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Tag: डॉ. सत्यनारायण चौधरी “सत्या”

मिलकर दीप जलायें 
कविता

मिलकर दीप जलायें 

डॉ. सत्यनारायण चौधरी "सत्या" जयपुर, (राजस्थान) ******************** आओ सभी मिलकर दीप जलायें इस दीपावली नवदीप जलायें । जो ज्ञान का दे प्रकाश, चलो ज्ञानदीप जलायें। जो जाति-पाति का मिटा दे अंधेरा, एक ऐसा धर्मदीप जलायें । जो अशुभ रूपी तम को हर ले, इक ऐसा शुभदीप जलायें। विज्ञान के दम पर हो भारत का नाम, एक ऐसा विज्ञानदीप जलायें। जनतन्त्र ना बदले, भीड़तन्त्र में, इक ऐसा जनदीप जलायें। चहुँ और हो प्रेम और सौहार्द, एक ऐसा प्रेमदीप जलायें। जन-जन हो प्रफुल्लित, इक ऐसा हर्षदीप जलायें। शूरवीरों की शहादत को ना भूलें, चलो एक शौर्यदीप जलायें। संस्कृति का परचम फहरे जग में, एक ऐसा संस्कृतिदीप जलायें। भारतभूमि का हो यशोगान, इक ऐसा यशदीप जलायें। मिट जाए भेद ग़रीबी-अमीरी का, एक ऐसा समदीप जलायें। अक्षर के ज्ञान से हों सभी परिचित, इक ऐसा साक्षरदीप जलायें। पर्यावरण को रखना है स...
गुरु
कविता

गुरु

डॉ. सत्यनारायण चौधरी "सत्या" जयपुर, (राजस्थान) ******************** शिक्षक वह जो करें मार्ग प्रशस्त। जिसके सीख से अज्ञान हो अस्त। जीवन को मिलता नव संगीत। वही सद्चरित और उन्नति का मीत। गुरु ही तो होता है खेवनहार। वही पार लगाए अपनी पतवार। गुरु दीये सा खुद ही जलता। खुद जलकर अँधियारा हरता। गुरु का ज्ञान मिले जो हम को। सफल बना दे जीवन को। गुरु ही मिलाये गोविंद को। कर दो न्यौछावर तन मन को। जिससे सीख मिले वह शिक्षक। वही हमारा है जीवन रक्षक। कोरे कागद का वह चित्रकार। वही गीली मिट्टी का कुम्भकार। गुरु संदीपन की कृपा से कान्हा से श्रीकृष्ण कहलाये। गुरु वशिष्ठ की शिक्षा पाकर, भगवान राम भी मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये। जो है हमारा पथप्रदर्शक। वही गुरु है, वही है शिक्षक। गुरु की महिमा का न कोई पार। उसके बिन अधूरा जीवन संसार। गुरु की गरिमा के आगे, मैं लघु मानव क्या-क्या ...
विश्व गुरु भारत
कविता

विश्व गुरु भारत

डॉ. सत्यनारायण चौधरी "सत्या" जयपुर, (राजस्थान) ******************** जहाँ वेद उपनिषद का अद्वितीय ज्ञान। और मिलते हैं पुराण, आरण्यक और आख्यान। तुलसी का रामचरित व वाल्मीकि जी की रामायण। समझाया है सबको, नर में ही बसते हैं नारायण। सांख्य-योग, न्याय-वैशेषिक आदि से, जीवन का मर्म है जिसने समझाया। चार्वाक ने भौतिकवाद है पनपाया। गीता ने निष्काम कर्म है सिखलाया। जो भगवान श्रीराम जैसा आदर्श जग को देता है। सीता माँ जैसी पतिव्रता पर गर्व सभी को होता है। जहाँ रामायण, गीता और है महाभारत। ये है हमारा भारत विश्वगुरु भारत। आर्यों की इस पावन धरा से, ज्ञान का शाश्वत प्रकाश हुआ। शून्य के आविष्कार को, सम्पूर्ण जगत ने मान लिया। गुरुकुल प्रणाली द्वारा शिक्षा का प्रसार किया। व्यवहारिक शिक्षा का भी यहीं से सूत्रपात हुआ। विश्व ने माना लोहा भारत का, विश्व गुरु तब कहलाया। ...
मानवता केवल मानवता
कविता

मानवता केवल मानवता

डॉ. सत्यनारायण चौधरी "सत्या" जयपुर, (राजस्थान) ******************** जाति धर्म के क्यों पीछे है पड़ता इसमे केवल नेता ही जमता उसी को शोभित है दानवता मेरे लिए तो एक ही धर्म है... मानवता...केवल मानवता। अंत समय आता है तब नही रह पाती पशुता चाहे कहे लोग भला बुरा मुझे मुझको जो जचता वो मैं करता जिसके कर्मों में हो खोट वही किसी से है डरता मेरे लिए तो एक ही कर्म है मानवता...केवल मानवता। बहुत हुए ऋषि मुनि ज्ञाता लेकिन आज तक समझ न आया ये इन्सान कहाँ से आता और कहाँ है जाता ना मैं सोचूँ, ना मैं जानू, मेरे लिए तो एक ही मर्म है मानवता...केवल मानवता। अपना लो जो तुम सभी मानवता खत्म हो जाएगी दुनिया से दानवता कहते हैं हर घट-घट में है ईश्वर बसता मिट जाए सारे द्वंद फसाद जो अपना लें सभी मानवता। जो अपना लें सभी मानवता। मानवता...केवल मानवता।। परिचय :- डॉ....
तिरंगे की अभिलाषा
कविता

तिरंगे की अभिलाषा

डॉ. सत्यनारायण चौधरी "सत्या" जयपुर, (राजस्थान) ******************** चाह नहीं मैं फरेबी नेता के हाथों में इठलाऊँ। चाह नहीं मैं झूठे लोकतंत्र के मंदिर पर फहराया जाऊँ। चाह नहीं मैं भगवा और हरे में बंट जाऊँ। चाह नहीं मैं किसी वीआईपी की गाड़ी की शोभा बन पाऊँ। चाह नहीं मैं विरोध स्वरूप लालकिले पर चढ़ जाऊँ। चाह नहीं मैं किसी लालची नेता के तन पर लपेटा जाऊँ। चाह नहीं मैं किसी खेल की शोभा बन पाऊँ। चाह नहीं मैं किसी धर्म-ध्वज के साथ लहराया जाऊँ। है अभिलाषा यही मेरी भारत माता की शान बढाऊँ। है अभिलाषा यही मेरी केसरिया से शौर्य को दिखलाऊँ। है अभिलाषा यही मेरी हरे रंग से विकास को दर्शाऊँ। है अभिलाषा यही मेरी सफ़ेद से शांति का पाठ पढ़ाऊँ। है अभिलाषा यही मेरी चक्र से मानव धर्म को सिखलाऊँ। है अभिलाषा यही मेरी मैं सबके मन मंदिर में बस जाऊँ। बाहर भले ही न फहराओ सब के अन्तर्...