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Tag: डॉ. संगीता आवचार

हर पल नयी लगती है तू
कविता

हर पल नयी लगती है तू

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** हर पल कुछ नये से सुहाती रहती है तू नये सिरे से दिल को यूँही लुभाती है तू नयी नवेली दुल्हन जैसी सजती है तू नया कुछ कर गुजरने का ज़ज्बा देती है तू... लड़ने की प्रेरणा बनकर खड़ी है तू दुनियादारी के मायने समझाती है तू व्यस्त रहने के फायदे सिखाती है तू व्यवहार से वास्ता भी जताती है तू... बुराई से भी कभी-कभी टकराती है तू हौसला-अफजाई की मशक्कत करती है तू डटकर चलना भी बताती रहती है तू हमसफर बनके चलना जानती है तू... खुद का अन्दाज बनाने को उकसाती है तू औरों के लिए जीने का अवसर देती है तू विधाता की भेंट खुशनुमा रहती है तू जिन्दगी हर पल नयी उम्मीद जगाती है तू... परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्य...
बच्चे माँ-बाप की जागीर नहीं होते…
कविता

बच्चे माँ-बाप की जागीर नहीं होते…

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** बच्चे कभी अपने माँ-बाप की प्रतिमा नहीं होते, वे उनकी खुद की स्वतंत्र प्रतिभा के धनी है होते। बच्चें शायद माँ-बाप के जीवशास्त्र के वारिस होते होंगे, अपितु उनकी ख्वाहिशों की जागीर हरगिज़ नहीं होते। बच्चे जब अपनी माँ-बाप की आँखों का तारा हैं होते, यकीनन माँ-बाप अपने नन्हें मुन्नों के आका नहीं होते। बच्चें कभी अल्लाउद्दीन के चिराग का ज़ीन नहीं होते, बच्चों की जादुई नगरी के अपने-अपने फ़साने हैं होते। बच्चें जबरदस्ती से रिअ‍ॅलिटी शोज में भरे नहीं जाते, बच्चों की जिन्दगी के अपने अनगिन आयाम है होते। बच्चें लापरवाही से मोबाइलों के हाथ मे थमाए नहीं जाते, बच्चें माँ-बाप की गोद मे प्यार से सहलाये है जाते। बच्चें टीवी व चैनलों को 'बेहिचक दान' नहीं दिए जाते, वे प्रकृति की गोद मे खेल-कूद के आदी है बनाये जाते।...
पुरुष तुम
कविता

पुरुष तुम

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** पुरुष तुम पैदा होते हो स्त्री से, पुरुष तुम बेटे बनते हो माँ से, पुरुष तुम पति बनते हो पत्नी से, पुरुष तुम भाई बनते हो बहन से, पुरुष तुम बाप बनते हो बेटे-बेटी के, पुरुष तुम सखा बनते हो द्रौपदी के कृष्ण से! पुरुष तुम्हारी पहचान है स्त्री से... और स्त्री की पहचान है तुमसे... तो फिर ये भेद किसने बनाये है हुए? तुम क्यों इसके जिम्मेदार हो ठहराए गए? धुआं देखा है वहीं से निकलते हुए! जहाँ आग कोई है लगाए हुए! परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्यालय, परभणी महाराष्ट्र घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
भला वो प्यार कैसा?
कविता

भला वो प्यार कैसा?

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** जो जानलेवा होता है वो प्यार कैसा? हवस को भला प्यार का नाम कैसा? इस्तेमाल कर फेंक दे वो मर्द कैसा? टुकड़े-टुकड़े कर दे वो हमदर्द कैसा? पैसों से प्यार करे वो है हैवान जैसा! भरी महफिल से उठाए वो दोस्त कैसा? जानवर से बदतर ये आशिक भी कैसा? अंग-अंग नोचनेवाला जाहिल मर्द ऐसा! नाम 'आफताब' और कर्म अंधेरे जैसा! नाम 'श्रद्धा' और असमंजस ये कैसा? देखा नहीं मीरा ने प्यार किया कैसा? रिश्ता राधा से मोहन का था कैसा! पसन्द चूक गई तो जीवन है नर्क सा, ऐरो-गैरों पे आजाये वो दिल भी कैसा? आँख मूँद के सब सहना भी नहीं ऐसा! ये सब है बस मौत को न्यौता देने जैसा! सच्चा प्यार होता है सींप के मोती जैसा, नसीबवालों को मिलता है तोहफ़े सा! औरत का सम्मान हर धर्म मे एक जैसा, बच्चों को समझाया करो जरा जरासा! प्यार होता है कालिदास ...
किरदार पुराना है…
कविता

किरदार पुराना है…

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** वो भी क्या जमाना था! इन्सानियत का दौर था, रिश्तों मे गहरा विश्वास था, बातों मे भी अपनापन था! बडा सुनहरा वो समा था, दोस्ती का भी मकाम था, बुजुर्गो का सही सम्मान था, उनको भी सब समान था! ये भी क्या एक जमाना है? जरूरतों का सिर्फ सामान है, बस मतलब का माहौल है, रिश्तों मे करारा मलाल है! लोग तो यूँही पूछ बैठते हैं, किस जमाने मे हम रहते हैं? रहते नये जमाने मे जरूर है! आदतों मे किरदार पुराना है! परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्यालय, परभणी महाराष्ट्र घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने पर...
मित्रता
कविता

मित्रता

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** मित्रता कूचे गलियों से जो है बनती स्कूलों के मैदानों में है फूलती-फलती खेतों खलिहानों मे है अंगडाई लेती और फिर जिंदगी भर नहीं कभी टूटती। मित्रता मे कभी कोई भेद नहीं होता, मित्रता का जहाँ हमेशा आबाद है होता, कोई अमीर-गरीब मित्रता मे नहीं होता, रिश्तों के जैसा बंटवारा यहाँ नहीं रहता! मन मे निर्मल झरना प्रेम का बहता, वास्ता झगडे से केवल दो पल का होता! मित्रता मे समय ही समय है रहता, खाओ या भूखे रहो सब चल जाता। मित्रता मे सोच के नहीं बंधा जाता, न काला-गोरा और न छोरी- छोरा। मित्रता का होता है सिर्फ यहीं मायना जैसे मरूभूमि मे हरियाली का मिलना! एक मित्र ने पुकारते हुए अर्ज किया अभी के अभी मित्रता पे कुछ लिखना, अपने इस मित्र का कहना न था टालना कैसे होता सम्भव फिर कलम को रोकना? परिचय :- डॉ. संगी...
कैसा जीवन बिना जल ?
कविता

कैसा जीवन बिना जल ?

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** पीने लायक जल, कितना बचा है धरा पर? फ़िकर करे हर पल, अब इसी अहम मुद्दे पर! लोगों की चाल-ढाल, और बदले है सबके आसार बहा रहे हैं जल, मानो है जल निर्माण का आधार। आबादी ने किया बेहाल, बढ़ रही है बडी तेज रफ्तार प्रकृति का वरदान जल, बिक रहा है सरेआम बाजार। वसुन्धरा का दिया जल, बनाकर रख दिया है व्यापार मिल नहीं रहा जल, गरीब हो गए सब लाचार। उसका हो गया जल, जिसका बल है तेजतर्रार निर्बल को नहीं जल, दया की कोशिश है बरकरार। कैसा जीवन बिना जल? मानव करो प्रकृति का ऐतबार बचाते रहो जल, एक बूंद भी न जाए बेकार। भावी पीढ़ी का उज्ज्वल, चलो कर ले हम बेड़ा पार 'जलजला' बन गया जल, सुन लो माँ प्रकृति की गुहार।। परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग...
मन का मौसम
कविता

मन का मौसम

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** मन का मौसम है अपने ही मन का फेर, दूसरों को देखोगे तो हो ही जाएगी अंधेर। मन अपनी खुशी क्यों औरों से जोड़ते हो? तोड़ने वाले बहुत है फिर  मायूस हो जाते हो! मन अपना फूल से बढ़कर नाजूक होता है, औरों से कहा आज-कल समझा जाता है? मन रे कहा है किसी कवि ने तू धीर धर, औरों की वजह से खुद को बरबाद न कर। मन रे मोह माया से सम्भाल कर रहा कर, मुफ्त में सुख चैन का सौदा न किया कर मन का मौसम खुद के काबू में रखा कर, इसे औरों के भरोसे नहीं कभी सौंपा कर। परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्यालय, परभणी महाराष्ट्र घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
माँ
कविता

माँ

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** माँ जब तुम कसके चोटियां डालती थी बचपन में मेरी, गुस्से से आग बबुला हो जाती थी ये प्यारी सी गुड़िया तेरी! माँ जब तुम भगवान को प्रशाद चढ़ाने तक खाना नहीं देती, मुहँ फुलाकर कोने मे बैठ जाती थी ये प्यारी सी गुड़िया तेरी! माँ आज बिलकुल समय नहीं मिलता के खुद के बाल जरा सँवार लू, तू जैसी चाहती है वैसी कसके चोटी आ तेरे हाथों से डाल लू! और खाना तो अब सिर्फ तेरे ही हाथ का अजीज और लज़ीज़ लगता है, जिसके लिए मै दुनिया का फाईव स्टार होटल भी छोड़ दूँ! तुम्हारी गुड़िया, संगीता परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्यालय, परभणी महाराष्ट्र घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
छल-कपट
कविता

छल-कपट

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** छल-कपट दुनिया के देखते रहते हो! क्या आज कल तुम सोये हुए रहते हो? क्या तुम्हारी रूह जरा भी नहीं कांपती? घनघोर अन्याय के प्रत्यक्ष दर्शी होते हो! क्या कर बैठे हो दुर्योधनों से मिली भगत? या हफ्ता वसूली की आ गयी तुमपे भी नौबत? तुम्हारा अस्तित्व दिखता नहीं आज कल, भेड़ियों से बचने की चल रही है मशक्कत! द्रौपदी कितनी और जुएं मे है हारनी? कितनी गांधारी को आँखों पे है पट्टी बांधनी? गिरधारी आँख कब खुलेगी तुम्हारी? कितने महाभारत की मंशा और है बाकी? जाग जा… कर दे कुछ ऐसी अब करनी, राक्षसों की कर दे अब खत्म तू कहानी! या तो फिर कह दे तू दुनिया मे है नहीं, तेरे पास किसी समस्या का हल नहीं! परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला मह...
कमल बनके खिलना होगा
कविता

कमल बनके खिलना होगा

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** नारी तुम्हें कमल बनके खिलना होगा, कीचड मे भी साफ-सुथरा चलना होगा! नारी तुम्हें सन्तान का हित देखना होगा, संतान को सम्पत्ती के मोह से दूर रखना होगा! नारी तुम्हें दिमाग का खूब इस्तेमाल करना होगा, खुद की ताकद को नेकी मे ढालना होगा! नारी तुम्हें हर काम यूँ ढंग से करना होगा, राष्ट्र की उन्नति मे हरदम हाथ बंटाना होगा! नारी तुम्हें सबको सम्भालते हुए चलना होगा, मानवजाती की गरिमा को बनाए रखना होगा! नारी तुम्हें परिवार को साथ तो बनाये रखना होगा, पर स्वार्थों से परे खुद का किरदार लिखना होगा! नारी तुम्हें खुद का दामन बचाए रखना होगा, बेदाग अपने दामन को हर पल लहराना होगा! नारी किसी के बहकावे मे आना अच्छा न होगा, दिलोदिमाग को साथ चलना सिखाना होगा! नारी तुम्हें खुद की नींव को मजबूत करना होगा, नित प्रगती से निर...
नारी तुम बदल न पाओगी….
कविता

नारी तुम बदल न पाओगी….

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** नारी तुम बदल न पाओगी! सबकुछ सौंप जीवनसाथी को, तुम जोगीनी बन जाओगी, नारी तुम बदल न पाओगी! फूल सी नाजुक काया को, नारी तुम सम्भाल न पाओगी! पुरुष पर जान लुटाने मे ही, तुम अपना सुकून पाओगी! नारी तुम दुनिया के बदलाव को! ग़र अपनाना भी चाहोगी, तो पुरुष के खयाल मात्र से ही, तुम भ्रमित सी हो जाओगी! नारी तुम अपने सुख चैन को, पुरुष पे न्यौछावर कर जाओगी! सूद बुध अपनी खो बैठोगी, खुद को देख ही न पाओगी! पाकर अनमोल जीवन को! नारी तुम जी न पाओगी, दूसरों के लिए जीने मे ही, अपना अस्तित्व लुटाओगी! दुनिया के छल कपट को! नारी तुम समझ ही न पाओगी, सीधी राह चलते हुए भी, समझौतों पर उतर आओगी! इस पत्थरदिल दुनिया को, नारी तुम पहचान न पाओगी! मोम सी पिघल ही जाओगी, हसते ज़ख्म सहती जाओगी! पहचानकर लोगों के स्वार्थ को, ना...