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मजदूर
कविता

मजदूर

डॉ. रिया तिवारी कबीर नगर (रायपुर) ******************** एक दिन आँखों में सपने लेकर निकल पड़ा था छोड़कर गाँव मजबूर उस वक्त भी था निकले थे जब घर से पाँव माँ की आँखे रोई थी घर का आँगन सुना था पर अभाव के कारण ही तो ये रास्ता मैंने चुना था अब भी मजबूरी है कठिन अभी भी है मेरा रास्ता माँ कहती तू लौट आ आ तुझे मेरी ममता का वास्ता निकल पड़ा हूँ फिर वीरान सड़कों पर ये राह कही तो जाएगी एक एक कदमो से ये मीलों की दुरी तय हो जाएगी मैंने तो दुनिया देखी है भरी गर्मी में खुद को तपाया है क्या करू अपने लाल का जिसने कुछ साल पहले ही जन्म पाया है उसके सूखे होंठ .. ठन्डे पानी को तरस गए उसके नन्हे पाँव .. अब गर्म सड़कों से झुलस गए कितनी दूर चल कर आ गए अभी और कितनी दूर जाना है संघर्षों का कैसा ये दौर ना छत .. ना ठिकाना है ना कोई मदद की आस है ना कोई मेरे साथ है ... पर मैं पहुच जाऊंगा मंजिल तक मेरे मन में विश्वास है ....