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देवतुल्य परिवार मिले
गीत

देवतुल्य परिवार मिले

डॉ. राजीव पाण्डेय गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** प्राणवंत हो सुप्त भावना, हो पूरण सब मनोकामना। वाणी में अमृत घुलता हो। बाँहो का हार मचलता हो। अग्रज के सम्मुख हम नत हो। आदर्शों में अध्ययनरत हों। हो बीजारोपण ममता का। जहाँ पाठ पढ़े सब समता का। कर्मठता का मूल्यांकन हो। हर योग यहाँ मणिकांचन हो। घर घर मे तुलसी सेवा हो। हर मूर्ति यहाँ सचदेवा हो। जहाँ वेद ऋचाएं गुंजित हों। आशीषों से अभिनन्दित हों। घर प्रगतिशील कल्पना हो। जीवन में नई अल्पना हो। मुरली की तान बिखरती हो। मंदिर घण्टा ध्वनि बजती हो। जीवन का कोना कुसुमित, रोज यहाँ त्योहार मिले। संस्कृतियों के संरक्षण हित देवतुल्य परिवार मिले। सुरभित क्यारी सी गंध मिले। उन सुमनों पर मकरन्द मिले। उन पर भृमरों का गुंजन हो। कली का अलि से अभिनन्दन हो। जहाँ पक्षी करते होंकलरव। हो गन्ध गंध में हर अवयव। ...
कोरोना काल की व्यथा
कविता

कोरोना काल की व्यथा

डॉ. राजीव पाण्डेय गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** घिरी अमंगल घोर घटाएं। अपना कहर रही बरपाएँ। यही निवेदन प्रभुजी करता जग पर कृपा रस बरसाएं। सहमी सहमी गुलशन क्यारी उसके गन्धित पुष्प बचाएं। जहर घुला है प्राणवायु में, सबसे पहले शुद्ध बनाएं। घुसे गुफा में हम बैठे हैं बाहर जाने के दिन आएं। पंख हमारे सिकुड़ गए हैं, नभ में कैसे भी फैलाएं। क्रूर काल के वैश्विक पंजे, काटे छाँटे चक्र चलाएं। मुँह को बांधे क्या जीना है, जीते हैं पहचान छिपाएं । घर घर के विस्तर हैं पीड़ित, सोच रहे हैं कब मुस्काएं। युवा दिलों की धड़कनसोचें बैंड हमारे कब बज पाएं। बस्ते लेकर बच्चे गुमसुम कब से हम फिर शालाआएं। पार्को में पसरे सन्नाटे, भूले कैसे सैर कराएं। मेहनतकश के बच्चे भूखे खाली थाली रोज बजाएं। सुबह साँझ में कैसा अंतर, सन्नाटों को क्या समझाएं। सुंदरतम कवितायें भी अब ताली से वंचित रह जाएं। ग...