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हरफनमौला कवि बाबा नागार्जुन की १०९ वीं जयंती के अवसर पर विशेष
आलेख

हरफनमौला कवि बाबा नागार्जुन की १०९ वीं जयंती के अवसर पर विशेष

डॉ. यशुकृति हजारे भंडारा (महाराष्ट्र) ******************** जनता मुझसे पूछ रही है क्या बतलाऊं जन कवि हूँ मैं साफ कहूंगा क्यों, हकलाऊं                                        जन कवि कहे जाने वाले बाबा नागार्जुन की यह पंक्तियां उनके व्यक्तित्व, जीवन दर्शन तथा साहित्य में भी चरितार्थ होते दिखाई देती हैं। अपने समय की प्रत्येक महत्वपूर्ण घटना पर तेज तर्रार कविताएं लिखने वाले क्रांतिकारी बाबा नागार्जुन ने अनेक विधाओं में अपनी लेखनी चलाई तथा जन आंदोलनों पर भी उनका महत्वपूर्ण प्रभाव रहा। बाबा नागार्जुन का जन्म ३० जून १९११ ज्येष्ठ पूर्णिमा अपने ननिहाल तथा ग्राम जिला मधुबनी में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री गोकुल मिश्र तथा माता का नाम उमा देवी था। इनकी चार संतान हुई लेकिन वे जीवित नहीं रह पाए। इनके पिता भगवान शिव की पूजा आराधना करने बैजनाथ धाम (देवघर) जाकर बैजनाथ की उपासना शुरू कर दी। इस प्रकार अ...
धरती माँ की पुकार
कविता

धरती माँ की पुकार

डॉ. यशुकृति हजारे भंडारा (महाराष्ट्र) ******************** कल रात मेरे ख्वाबों में धरती माता आई थी कहने लगी देखो, रंगीन आसमानों के नीचे भोर की लालिमा सी लगती हूँ रंग-बिरंगे फूलों से मैं लदी हूंँ चहुँ ओर छाई है हरियाली, तुम सब सदा बनाये रखना मुझे सुंद। अब बहने लगी नदी स्वच्छ, निर्मल जल की धारा बन गई है तुम सबके लायक न करना प्रदूषित न कहना वह मैली हो गई है हे मानव ! तुम सदा रखना शुद्ध और पवित्र। धरती माता मुझसे कहती है मां बेटे का सदा बना रहे यूं ही रिश्ता अन्न, फूल, फल तुमको देती रही यूं ही सदा। बदले में मैं तुमसे कुछ ना लेती कहने लगी धरती माता। सुनो तुम सब हो मेरे बेटे बहने दो मंद-मंद पवन शीतल सुगंधित होने दो मुझकों शीतल सुगंधित अब रहने दो मुझकों। परिचय :- डॉ. यशुकृति हजारे निवासी : भंडारा (महाराष्ट्र) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोट...
नि:शब्द
कविता

नि:शब्द

डॉ. यशुकृति हजारे भंडारा (महाराष्ट्र) ******************** मैं चल पड़ी हूँ उस पथ पर डगमगाते है पग मेरे निराशाओं में घिरते जाती, दु: ख और सुख की अनुभूतियों में मैं खो जाती हूँ निहारू निरंतर भावों को, शब्द न जाने कहाँ खो गये नि:शब्द हुई मेरी कवित। मैं हुई एकांकी प्यासे हुए मेरे भाव बंद कमरे में, जिंदगी ठहर सी गई। इंद्रधनुष के रंगों को देखकर मैं समेटना चाहती हूं सतरंगी इंद्रधनुष के रंगों को जीवन में ढालना चाहती हूंँ तुम्हारे ही रंग में रंगना चाहती हूं फिर भी भाव न बनते हृदय प्रफुल्लित होता निरंतर, खिल उठता रोम-रोम, फिर भी भाव न बनते। कल्पनाओं की उड़ान नहीं बनती, यथार्थ में जीने की आदत हो गई है धुंधले दिखाई देते हैं सब कल्पनाओं के चित्र, जिंदगी बदरंग सी हो गई है क्या उषा, क्या निशा, कल्पनाओं की उड़ान, अब तमस में सिमट कर रह गई है... परिचय :- डॉ. यशुकृति हजारे निवासी : भंडारा (महाराष्ट...
मुश्किल में मुस्कान
कविता

मुश्किल में मुस्कान

डॉ. यशुकृति हजारे भंडारा (महाराष्ट्र) ******************** जिंदगी के सफर में मुश्किलें बढ़ती है आना जाना लगा है उसका जैसे उसके आने से लगे हैं सजा जीवन को सफल बनाने के लिए मुश्किलों का करना है सामना करते रहे निरंतर संघर्ष मुश्किलों और संघर्षों से बढे़ हम, गिरे हम, वक्त के पहले, ना मिले हैं सब कुछ, ना ज्यादा और ना कम यह सोचकर करे निरंतर संघर्ष सुदूर अंचल तक पहुंचना था इतना मुश्किल रास्ते को नापे बिना थम जाये हम यह ना था कर्म के पथ पर करे निरंतर संघर्ष करें निरंतर संघर्ष सफलता से है मिले हैं मुस्कान यही सोचकर मैं मजदूर, मैं विद्यार्थी, मैं डॉक्टर, मैं पुलिस, मैं प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति गांव से निकला शहर की ओर अब है ऐसी विपत्ति आई प्रत्येक वर्ग से आवाज आई मुझे पहुंचना है अपने घर चाहे पथ पर हो कितनी मुश्किलें न छोडू मैं अपनी मुस्कान ले चल पथ मुझे अपनी मंजिल एक मुस्कान लेकर मैं चला मुश...