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Tag: डॉ. मुकेश ‘असीमित’

रविवार का इंतज़ार
व्यंग्य

रविवार का इंतज़ार

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आज रविवार है, आप सोच रहे होंगे जैसे आप सभी के लिए रविवार ख़ास होता है मेरे लिए भी होगा ! नौकरीपेशा लोगों के लिए तो में समझ सकता हूँ, लेकिन मेरे लिए ऐसा नहीं है। निजी चिकित्सा पेशे में होने का मतलब, सन्डे हो या मंडे, रोज दो रोटी के जुगाड़ के हथकंडे। वैसे मैं आपको एक राज की बात बताऊँ, ये नौकरी पेशा लोग भी ना, चाहे जितना दावा कर लें, वीकेंड पर मौज-मस्ती का फोटो इंस्टाग्राम पर डाल कर लाइक्स बटोर लें, लेकिन असल जिंदगी में इनकी हालत घर में ऑफिस से भी बदतर होती है! सच तो यह है की इन्स्टा पर इनकी चमकीली दिखने वाली लाइफ में ज्यादा योगदान फोटो फिल्टरों का होता है, असल में जिंदगी आधार कार्ड के फोटो जैसी ही है सबकी ! क्योंकि घर का "बिग बॉस" जिस प्रकार से इन्हें सुबह से शाम तक घर के कामों में पिदात...
दास्तान-ए-सांड
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दास्तान-ए-सांड

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** जन्म दिवस मेरा अभी दूर है। परिवार में एक महीने पहले ही चर्चा शुरू हो गई है कि इस दिवस को कैसे अनूठा बनाया जाए। इस बार गायों को चारा और गुड़ खिलाकर मनाने का फैसला हुआ है। शहर में भी देखा-देखी कई गौ आश्रम खुल गए हैं। जब से हमारे आयुर्वेदिक प्रचारक योग गुरु बाबा ने हर सौंदर्य प्रसाधन, खानपान, दवा-दारू में गाय का तड़का लगाया है, देश में गायों के प्रति प्रेम उच्च कोटि का जाग्रत हो गया है। गाय और गाय के सभी उत्पाद, जैसे गौमूत्र, दूध, दही, घी, योगर्ट, गोबर, पनीर-सब ५-स्टार रैंकिंग वाले शो रूम में सज गए हैं। देसी गाय की पहुँच अब देशवासियों के लिए अपनी औकात से बाहर की बात हो गई है। यूं तो बचपन से ही गाय हमारे पाठ्यक्रम में थी। गाय पर निबंध से लेकर, बगल में भूरी काकी की काली गाय के गोबर से थापे...
प्लास्टर वाली टांग
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प्लास्टर वाली टांग

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आप चाहते हैं कि आप हमेशा दुनिया की नजरों में बने रहें, सबकी निगाहें आप पर टिकी रहें। जिस गली से गुजरें, लोग आपको देखकर रुक जाएँ, हाल-चाल पूछें, आपको याद करें। बस, आप आ जाइए हमारे पास, लगवा लीजिए एक प्लास्टर ... सच में, हर जगह आपकी पूछ होगी। जो आपको जानते हैं, जो नहीं जानते, सब आपको रास्ते में रोक सकते हैं। अगर आपके हाथ में प्लास्टर लगा हुआ है, तो आप इस शहर के लिए एक चलता-फिरता अजूबा बन सकते हैं। लोग आपको ऐसे देखने लगेंगे जैसे चिड़ियाघर से कोई प्राणी सड़क पर आ गया हो। और अगर आपकी टांग में प्लास्टर लगा हुआ है और आप घर में कैद हैं, तो लोग आपके घर तक भी आ सकते हैं। पुराने दोस्त, रिश्तेदार, मोहल्ले वाले, जो कभी आपका हाल तक नहीं पूछते, वे भी बिना रोक-टोक आपके दरवाजे पर आ जाएँगे। कसम से, रात...
भावनाओं का भंवरजाल
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भावनाओं का भंवरजाल

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** भावना ... ! यह शब्द सुनते ही कानों में घंटियों की मधुर आवाज़ और मन में हल्की-सी खुमारी छा जाती है। अरे, इसलिए नहीं कि यह हमारी किसी पुरानी गर्लफ्रेंड का नाम है, बल्कि इसलिए कि वह भी एक जमाना था जब हम भावनाओं से खेलते नहीं थे, बस उनके अधीन रहना चाहते थे। भावनाओं के आधार पर ही ज़माने भर को "भाव" देते थे। लेकिन आजकल भावना कुछ और ही हो गई है। भावना अब वह नहीं रही जो रोम-रोम में बसने वाले भाव थे। बहुत ढूंढा, जी... मन में कई प्रश्न थे। आजकल कहाँ निवास करती है भावना? ये लेटेस्ट वर्जन जो भावना के आ रहे हैं, आखिर इनकी सप्लाई हो कहाँ से रही है ...? क्या भावना का भी चाइनीज वर्जन लॉन्च हो गया है ...? देखो तो, ज्यादा चलती ही नहीं, यार... तुरंत भड़क जाती है। आहत हो जाती है। कोई भावना से खेले या न खेले...
भारत शादी प्रधान देश
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भारत शादी प्रधान देश

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** क्या कहा... भारत कृषि प्रधान देश है? नहीं जी, मुझे तो लगता है कि भारत शादी प्रधान देश है। भारत परंपराओं का देश भी है, और इस नजरिए से देखें तो यहाँ की प्रमुख परंपरा शादी ही है। शादियाँ यहाँ का मुख्य व्यवसाय, खानपान, परंपरा, रीति-रिवाज... सब कुछ हैं! यूँ तो शादियों का भी एक मौसम होता है, जैसे फसलों का रबी और खरीफ होता है। हिन्दू धर्मावलम्बियों में तो यह खासकर देवताओं की दिनचर्या के अनुकूल होता है। देवता जब अपने शयन काल से बाहर आते हैं, यानी देव उठनी एकादशी से शादियों का सीजन शुरू होता है। लेकिन आजकल शादियाँ हर मौसम में पाई जाती हैं! इस देश का आदमी जब कुछ नहीं कर रहा होता या करने को कुछ नहीं होता, या उसे करने लायक कुछ नहीं छोड़ा गया होता है, तो वो शादी निपटा लेता है! खुद की, नहीं तो पड़ो...
दिवाली का दिवालियापन
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दिवाली का दिवालियापन

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** दिवाली आ रही है। वैसे दिवाली का क्रेज़ बच्चों में था। अब उन्हें पहनने के लिए नए कपड़े, फोड़ने के लिए पटाखे, और चलाने के लिए फुलझड़ियां चाहिए। खाने के लिए दूध, मावे और चीनी की मिठाई चाहिए। अब तो दिवाली आते ही ग्रीन ट्रिब्यूनल वालों का रोना शुरू हो जाता है। एक्यूआई इंडेक्स एकदम सेंसेक्स की तरह उछलने लगता है। सुप्रीम कोर्ट हरकत में आ जाता है। पटाखे और फुलझड़ियां बेचारे गोदामों में घुटन में जीने को मजबूर हो रहे हैं। उधर आदमी एक्यूआई के बढ़ने की सूचना के साथ ही घुटन महसूस करने लगता है। प्रदूषण का धुआँ ठंडे बस्ते में बैठ जाता है। अब दिवाली के एक महीने पहले और बाद तक जो भी प्रदूषण होगा, उसमें दोषारोपण पराली पर नहीं, वह जले या न जले, दोषारोपण तो पटाखों पर ही होगा। आम आदमी को टैक्स स्लैब में छूट ...
भ्रष्ट नेता पुष्ट वर्धक च्यवनप्राश
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भ्रष्ट नेता पुष्ट वर्धक च्यवनप्राश

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आइए, आज मैं आपको एक ऐसी रेसिपी बताने जा रहा हूँ, जो एक सीक्रेट फॉर्मूला है, बिल्कुल कोला कंपनी के सीक्रेट फॉर्मूला की तरह। मजाल है कि पेपर लीक की तरह यह लीक हो जाए। इसका नाम है "भ्रष्ट नेता पुष्ट वर्धक च्यवनप्राश"। यह एक ऐसा च्यवनप्राश है जिसे आप किसी भी उम्र के पड़ाव में इस्तेमाल कर सकते हैं, जब आपको नेता बनने का कीड़ा कुलबुलाने लगे। लेकिन अगर आप देखते हैं कि आपके पूत के पांव पालने में ही नेताओं की दुम की तरह हिलते हैं, बच्चे के चेहरे पर भ्रष्ट नेता की तरह कुटिल मुस्कान है, और बच्चा हर सेकंड में मगरमच्छी आँसू बहाता है, तो समझ जाइए कि यह बच्चा आपके सात पीढ़ियों का नाम डुबोने के लिए भ्रष्ट नेता बनने के लिए अवतरित हुआ है। यदि आप बचपन से ही ऐसे बच्चे को यह च्यवनप्राश चटाएंगे, तो निश्चित ही ...
मुझे भी वायरल होना है
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मुझे भी वायरल होना है

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** मैं परेशान, थका-हारा देवाधिदेव, पतिदेव, अभी बिस्तर पर उल्टे मुँह पड़ा ही था कि न जाने कहाँ से नींद ने मुझे आगोश में ले लिया और मुझे सपना भी आया। जी हाँ, वैसे तो नींद के खर्राटों की आवाज़ से डरकर सपने पास आते ही नहीं, जब घरवाले पास नहीं आते तो सपनों की क्या मजाल। खैर, सपना भी अच्छा था, हकीकत से कोई ताल्लुक नहीं रखता था। मैं सेलिब्रिटी बन गया था, जी हाँ, एक बहुत बड़ी सेलिब्रिटी। रातों-रात स्टार बनने वाली सेलिब्रिटी, अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर छपने वाली सेलिब्रिटी, चमचमाती गाड़ी के खुले दरवाजे से सटकर पोज़ देने वाली सेलिब्रिटी, मैगज़ीन के पेज थ्री में छपने वाली सेलिब्रिटी, पपराज़ी की शिकार सेलिब्रिटी। जी हाँ, मेरा एक शॉर्ट वीडियो, जिसे रील कहते हैं, वायरल हो गया। यह रील भी कोई मेरी तुच्छ ब...
छोटी दिवाली
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छोटी दिवाली

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** दीवाली दो होती हैं - बड़ी दीवाली और छोटी दीवाली। कब से दीवाली को इस तरह विभाजित किया गया है, इसकी जानकारी तो नहीं है, लेकिन मुझे लगता है इसका भी कोई राजनीतिक कारण होगा। शायद एक मांग उठी होगी जैसे पाकिस्तान देश से अलग हुआ था, वैसे ही। लेकिन गनीमत ये रही कि छोटी दीवाली ने अपना नाम नहीं बदला, जबकि छोटे भारत ने अपना नाम बदलकर पाकिस्तान कर लिया। मैंने देखा है कि बड़ा जो होता है, वह अपनी तानाशाही गाहे-बगाहे चला ही लेता है, छोटे को छोटेपन का अहसास ही बड़ा ही कराता है, चाहे छोटे के दो-चार छोटे और क्यों न हो गए हों। अब पाकिस्तान चाहे अपने आकाओं के इशारे पर नंगा नाच दिखाए, लेकिन हम भारतवासी तो भारत को पाकिस्तान का बाप ही मानते हैं! छोटी दीवाली भी अपनी शिकायत लेकर पहुँची कि मुझे छोटी कहकर सब चिढ़...
राजनीति का जलेबीकरण
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राजनीति का जलेबीकरण

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** दिवाली की सजावट बाज़ार में जोर पकड़ रही है। हलवाई की दुकान पर खड़ा हूं। पत्नी ने १ किलो जलेबी लाने के लिए कहा है। पता नहीं पिछले दस दिनों से उसकी ज़ुबान पर भी जलेबी चढ़ी हुई है। पहले तो कभी इस मिठाई का नाम भी नहीं लिया कभी। काजू कतली से नीचे बात ही नहीं होती थी। हमने तो सोचा था कि दूध-जलेबी की स्वाद जो गांवों में मिलता था, वो कहीं बचपन में ही छूट गया। अब ताज्नीति के धुरंधर बात भी कर रहे हैं तो जलेबी की ही..दूध की कोई नहीं कर रहा.. ..अभी दूध की बात करें तो सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए.. । हमारा तो बचपन ही जबेली कहने से जलेबी कहने के बीच का सफ़र है बस ...। गरीबों की दिवाली भी जलेबी से ही मनती थी। उनकी लक्ष्मी पूजा में अगर दो जलेबियाँ मिल जाए, तो कहते फिरते थे, "इस बार दिवाली अच्छी र...
घूंघट के पट खोल
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घूंघट के पट खोल

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** मैं कुछ अति मित्रताप्रेमी किस्म का बंदा हूँ, जल्दी से फेसबुक पर अपने ५ के का टारगेट रीच करना चाहता हूँ, ताकि मेरा पेज भी पब्लिक फिगर बन जाए। सच पूछो तो कुछ सेलिब्रिटी जैसी फीलिंग आती है, शायद मेरी ये भावना फेसबुक के खोजी कुत्ते ने सूंघ ली है। फेसबुक की कृत्रिम बुद्धीमता भी आजकल लोगों की फीलिंग के सूंघ-सूंघ कर पहचान रहा है। फीलिंग के साथ खिलवाड़ करने से पहले सूंघना पड़ता है कि फीलिंग क्या है, उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाए। पहले तो मुझे टैग करवाने में बड़ा मज़ा आता था, तो रोज़ मेरे टैगवीर दोस्त मुझे दस-दस तस्वीरों के साथ टैग कर देते थे। पूरी टाइम लाइन इन टैग वीरों के सुहागरात, वर्षगाँठ, सत्य, असत्य विचार, देवी-देवताओं राक्षसों गंदार्भ किन्नरों के फोटो से भरी रहती थी। फिर कहीं से मुझे पता ल...
अब तो दरश दिखा जा
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अब तो दरश दिखा जा

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** हे लौह पथ गामिनी, अब तो दरश दिखाओ। देखो मेरी स्थिति पर तरस खाओ। पिछली बार तो मैं खुद था जो एक शांत प्रेमी की तरह घंटों तुम्हारा इंतज़ार करता रहा, बहुत इंतज़ार के बाद आखिर तुम आयी ..इठलाती हुई। तुमने एक नज़र मिलाकर भी मेरी तरफ देखना मुनासिब नहीं समझा। मैं भी तुम्हारे हज़ारों आशिकों की भीड़ में कुछ पुराने घायल प्रेमी की तरह "लैला लैला" चिल्लाए तुम्हारे पीछे दौड़ता रहा। वो तो शुक्र है एक मेरे ही जैसे दिलजले का जिसने हाथ पकड़ कर मुझे चढ़ा लिया। लेकिन आज तो मैं मेरे अतिथि को छोड़ने आया हूँ, इस अतिथि ने पिछले १० दिन से मुझे पकड़ रखा है। आज बड़ी मुश्किल से इनका जाने का मन हुआ है। घर से चला था, तुम्हारे ऑफिशियल समय से आधा घंटा लेट चला था, अभी आधा घंटा और हो गया है लेकिन तुम्हारे दर्शन मुझे इस ...
प्यार की नौटंकी
व्यंग्य

प्यार की नौटंकी

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** ज़िंदगी में सब कुछ तेजी से बदल रहा है। इतनी तेजी से तो मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों में मूवी भी नहीं बदल रही है। लेकिन अगर कुछ नहीं बदला है, तो वह है प्यार! जी हां, प्यार जिसे आप प्रेम, अनुराग, आसक्ति, मोह, स्नेह, रति, प्रीति, अनुरंजन, लगाव, अनुरक्त, इश्क़, मोहब्बत, स्नेहसिक्त, प्रेमभाव, राग, नेह, उल्फ़त, चाहत, वफ़ा, रफ़ाक़त और दिल्लगी जैसे साहित्यिक नामों से या हालात-ए-सूरत की असली शब्दावली से निकले शब्द जैसे प्रेम का पेंडेमिक, मोहब्बत का मीज़ल्स, प्यार का पीलिया, चाहत का चिकनगुनिया, आकर्षण का ऐंठन, रूमानी रूबेला, स्नेह का स्वाइन फ्लू, दिल का डेंगू, मोह का मलेरिया, दिल्लगी का दस्त, प्रीत की पथरी, मजनूं का मस्तिष्क ज्वर, माशूका का मतिभ्रम, लगाव का लूज मोशन, चाहत का चेचक, इश्क़ का बुखार, साजन ...
भेड़ियों का आतंक
आलेख

भेड़ियों का आतंक

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** शहर का पुलिस थाना, समय दिन का ही कोई.., वैसे भी पुलिस थाने तो २४ घंटे खुले रहते हैं, आखिर अपराध कोई समय देखकर थोड़े ही किए जाते हैं। पहले अपराध रात को होते थे और थाने दिन में खुलते थे, तो बड़ी परेशानी थी। पुलिस वालों को अपनी नींद हराम करनी पड़ती थी। वैसे भी हरामखोरी पुलिस की कार्यप्रणाली में रहे तो ठीक है, अब ये ये नींद में भी आ गई तो पुलिस वालों ने बगावत कर दी। इसलिए उनकी सुविधा के लिए अपराध दिन में ही होने लगे, पुलिस वालों के ऑफिस टाइम से मैच करते हुए। तो हाँ, पुलिस थाने का सीन वैसा ही, जैसा देश के हर कोने में किसी भी पुलिस स्टेशन का हो सकता है। ऑफिस के बरामदे में चार पांच कुर्सियाँ डली हुईं, उनके आगे एक कॉमन राउंड टेबल बिछी हुई। कुछ राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस का सा सीन है जी..। थाने की ...
हिंदी माता
व्यंग्य

हिंदी माता

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** ओपीडी में बैठा था कि एक मक्कार मानस नुमा, झूठ-प्रपंच शिरोमणि, मेरे दूर के रिश्तेदार और एक फ्रॉड संस्था में उच्च पद पर काबिज एक महाशय चैंबर में आ धमके। सुबह-सुबह आयी इस पनौती से आज दिन भर का ओपीडी प्रभावित होने की आशंका से ही मन खिन्न सा हो गया। क्या करें? दूर के रिश्तेदार से वैसे मैं दूरी बनाकर चलता हूँ, दूर के रिश्तेदार और सड़क पर सांड कब पटखनी दे दे, कह नहीं सकते। कई बार अपनी पटखनी दिला भी चुका हूँ। खैर, आशा के विपरीत आज तो महाशय एक आमंत्रण कार्ड साथ में लेकर आये। आमंत्रण था ‘चौदह सितम्बर’ को ‘हिंदी दिवस’ पर वो भी मुख्य अतिथि के रूप में। न जाने कैसे उन्हें पता लग गया था कि मैं आजकल हिंदी में लिखने लग गया हूँ। लेकिन हिंदी में लिखने मात्र से ही मैं हिंदी का खेवनहार तो नहीं बन गया। मुझे ...
टेंशन नहीं होने की टेंशन
व्यंग्य

टेंशन नहीं होने की टेंशन

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आज का दिन भाई ऐसा तो कभी सोचा नहीं, दिन भर सब कुछ बढ़िया चल रहा है- घर भी, बाहर भी, बच्चे सेटल्ड, कोई अनुचित डिमांड कहीं से नहीं। लाइफ स्मूथ जैसे हाईवे पर चल रही सौ की स्पीड में कार। क्या हुआ आज मेरे दिन को, इतना बढ़िया दिन ! आज बीवी से भी कोई खटपट नहीं, घर पे काम वाली भी समय पर आ गई, वरना उसका गुस्सा मुझ पर ही निकलता। बेटे का भी कोई फोन नहीं आया। बेटे के फोन का मतलब, जैसे एटीएम मशीन में कार्ड लगाना होता है। मरीज भी बिना कोई उलझन भरे प्रश्न किए, चुपचाप मेरे बताए निर्देशों का पालन करते नजर आ रहे हैं। क्या बात है, आज स्टाफ भी समय पर आ गया। स्वीपर ने सफाई भी बढ़िया कर दी है। ओपीडी भी फुल है। शाम तक मेरे को थोड़ी सी घबराहट होने लगी। ये क्या हो रहा है आज? टेंशन क्यूँ नहीं है? ऐसा कैसे हो सकता...
माखन लीला
व्यंग्य

माखन लीला

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** जन्माष्टमी पर कान्हा और उनकी माखन लीला बड़ी याद आती है। यूँ तो कृष्ण भगवान् का तो पूरा जीवन ही लीलामय है, लेकिन मुझे हमेशा सबसे ज्यादा आकर्षित किया है तो उनकी माखन लीला ने। “मुख माखन लिपटा दिखे, कान्हा पकड़े कान। बाल रूप में सज रहे, कैसे श्री भगवान।“ यूं तो बचपन में माताजी हमें भी कान्हा बना के ही रखती थीं। सुबह सुबह ही यसुदा मैया की तरह माथे पर चौड़ा सा कला टीका लगा देती थी। हम दिन भर मोहल्ले की गलियन की धुल फांकते शाम को घर पहुँचते तो माताजी को अपना लगाया काला टीका कहीं नजर नहीं आता था। नख से शिख तक कृष्ण वर्ण के बन कर माताजी के सामने उपस्थित होते थे। गाय चराने तो नहीं जाते थे, हां दिन भर रेंदा-पेंदा धनसुख मनसुख की टोलियां हमारी भी थी जो गली के कुत्तों को चराते डोलते थे। मक्खन हमें भी ...
बरसात की बूंदे
कविता

बरसात की बूंदे

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** बरसात की धीमे से गिरती बूँदें, मानो धरती को एक प्रेम पत्र लिखा जा रहा हो। मैं और तुम, इस अमृतमयी प्रभात के साक्षी, जहां हर बूँद में छिपी एक कहानी, एक गीत। वह बूँद जो तुम्हारी पलकों पर ठहरी, वो रूपक बन गया जीवन के संघर्षों का। मेरी बातें, तुम्हारे शब्द, मानो व्यंजना बन जोड़ रही हो दो आत्माओं को। क्या देख रहे हो इस पानी का चंचल नाच? इसकी मासूम नादानी और अठखेलियों को , जैसे तुम्हारी मुस्कान में खिल रहा है है खुशी का अप्रतिम सौन्दर्य। बरसात का यह मौसम, ये रिमझिम फुहारें, साक्षी हैं हमारी प्रेम कथा के, जिसमें हर शब्द, हर वाक्य बुन रहा है है आशाओं का परिधान। मैं और तुम, इस बारिश में भीगते हुए, नये सपने, नयी आशाएँ, नयी उम्मीदें बुनते हुए। जैसे नव वर्षा की बूँदें, लिख रहीं हों ह...
बाढ़ पर्यटन
व्यंग्य

बाढ़ पर्यटन

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** शहर की एक पॉश कॉलोनी, दिन का समय, एक बहुमंजिली ईमारत के बहु कक्षीय फ्लैट में वातानुकूलित वातावरण में एक पार्टी चल रही है। ये बहुत कुछ नाईट पार्टियों की तरह ही है बस दिन में इनका नाम किट्टी पार्टी हो जाता है। कुछ किटटीयाँ मेरा मतलब संभ्रांत महिलाएं सजी धजी काया के साथ और टॉपिंग के रूप लिपस्टिक क्रीम पाउडर धारण कर, अपने वॉलेट में पति के क्रेडिट कार्ड और पति की जेब से सेंध लगाकर निकाली हुई धनराशी के साथ एकत्रित होती हैं। हंसी-ठिठोली के माहौल में, एक किट्टी जो उस दिन पार्टी में नहीं आयी, उसकी टीन टप्पड उखाड़ने का काम रहता है। उन्हीं में एक महिला जिनके हाव-भाव से और जिस तरह से उन्हें भाव दिया जा रहा था, साफ नजर आ रहा था कि यह कोई बहुत ही शक्तिशाली महिला है, किट्टी पार्टी की सदस्य नहीं लेकिन जिसके घर पार्टी है...
पेपर लीक : शिक्षा और राजनीति का नया धंधा
व्यंग्य

पेपर लीक : शिक्षा और राजनीति का नया धंधा

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** अखबारों और टीवी न्यूज़ में आजकल एक खबर बहुत ज्यादा लीक कर रही है - पेपर लीक का मामला। यूं तो आए दिन कोई न कोई परीक्षा का पेपर लीक होता रहती है। जब लोकतंत्र की गाडी के पहियों पर चढ़े टायर ही लीक हो रहे हैं तो पेपर लीक होना कोई बड़ी बात तो है नहीं । अब ये लीक के मामले ही हैं जो अखवारो की हैडलाइन बनती है, सरकार को भी दो-चार जांच आयोग बिठाने का अवसर मिलता है, सत्ता पार्टी और विपक्ष पार्टियों को एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने का अवसर मिलता है, विरोधी पार्टियों पर दो चार सी बी आई के छापे और इ डी के छापे पडवाकर उन्हें हड्काने का मौका मिलता है, कुल मिलकर आने वाले चुनावों के लिए मुद्दों की फसल बुआई हो जाती है। नेता लोग कहते हैं, लोकतंत्र की चुनरी में ये लीक के दाग अच्छे हैं, इन्हें छुडाना नहीं है, लीक के दागों क...