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स्त्री कमजोर नहीं
कविता

स्त्री कमजोर नहीं

डॉ. मनीषा ठाकरे नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** स्त्री कमजोर नहीं होती, बस संवेदनशील होती है, दुनिया की ठोकरें खाकर भी, मुस्कान में शामिल होती है। जो आँसू तुम कमजोरी समझ बैठे हो, वो उसकी सहनशक्ति की पहचान होती है। हर दर्द को सहेज कर भी, वो किसी का संबल बनती है, मुस्कान होती है। वो अगर खुलकर बोले तुमसे, तो यह उसकी सरलता है, साहस है, हर किसी के सामने दिल खोलना, हर किसी की आदत नहीं होती है। तुम समझ बैठे शायद, उसके शब्दों में कोई इशारा होगा, पर वो तो बस मन की उलझनें, किसी अपने से साझा कर रही होगी। उसकी चुप्पी में तूफान छुपे होते हैं, उसकी बातें भी कभी दवा होती हैं। वो रोती है तो मत समझो कमज़ोर है, उसके आँसू भी आग के जैसे होते है। वो लड़ती है अपने भीतर के डर से हर रोज़, संघर्षों की आग में तपकर कुंदन होती है। उसके विश्वास की क़ीम...