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प्रीत की पाती: द्वितीय स्थान प्राप्त रचना
कविता

प्रीत की पाती: द्वितीय स्थान प्राप्त रचना

डॉ. भावना व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रिय बोलो कुछ कि ताल में पद्म प्रतीक्षा करते खिलने की, भौरों की गुंजन सुनने की, अधरों से उनके मिलने की, तुम देखो कि जीवन भानु सब ही मद्धम होते जाते, टिमटिम करते तारे भी हैं इक-इक कर के खोते जाते, ईश स्वयं अवतार लिए आए इस जग से जाने को, कोष अनंत पर समय अल्प मिलता है इसे लुटाने को, नहीं कोई वसु जो इस जग से इच्छा होने पर जाएंगे, उत्तरायण के आने की प्रतीक्षा ना हम कर पाएंगे, क्यों नहीं दिखता है मुख तुमको काल के काले सर्प का कुचला निगला है जिसने सिर प्रत्येक ही के दर्प का, देखो हम बढ़ते जाते हैं इस सिरे से उसके ही मुख को, सीमित घड़ियां प्राणेश रहीं, जी लो दुख को या सुख को रे धीरधारी ! त्याग धीर अंगुलियों की मुद्रिका करो और नैनों का दर्पण, श्रृंगार यही मोहे सोहते, आभूषण मात्र समर्पण, देखो कितनी ही रेखाएं मस्तक पर बढ़ती जाती हैं, हैं ...