होली के रंग
डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
********************
याद आते है, मुझे होली के रंग।
मतलबी दुनिया में, इंसान हुए बेरंग।
स्वार्थवश गूंगी हुई, भाई चारे की चंग।
रंग बदलते लोगों से, अचरज में सब रंग।
देख नशा इंसान का, ठगी गई है भंग।
उतरे रंग को देखकर, गुलाल रह गई दंग।
कंठ कंठ में बजते, कड़वे भावों के मृदंग।
ऊसर सब की वाणी, प्रेम वात्सल्य में जंग।
भौतिक सुखी अंतर्मन, ठूंठ सरीखे नंग।
गांव मौहल्ले भी, लगते शहर से बदरंग।
परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार)
निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, ...