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Tag: डॉ. तेजसिंह किराड़ ‘तेज’

जीवन है क्या!
कविता

जीवन है क्या!

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** स्मरण के पन्नो से भरा है जीवन, सुख और दुःख कि पहेली है जीवन कभी अकेले बैठ कर, चिंतन करके तो देखो, संबंधों के बगैर अपूर्ण है यह जीवन ! मन की बातों को बाहर आने दो, दबे हुए दर्द को निकल जाने दो, मन को आशा के पंख लगा दीजिए, तन को चाहत कि खुशबू से भर दीजिए, इन लम्हों को जी भरकर आप जी लीजिए, कब जिंदगी का अवसान हो जाए पता नहीं, इस खुबसूरत जिंदगी को दोस्त बनाकर जी लीजिए। हर तरफ तन्हाई - बेवफाई का आलम है, कौन किसका साथी है किसे क्या मालूम है। चाहत के इस बाजार में वफ़ा कि उम्मीद क्या, पलभर के साथी है हम बंधन का रिश्ता क्या। हर किसी को पूछता हूं जिंदगी मायने क्या, जो जी चुका जिंदगी को किसी चाहत से उम्मीद क्या। परिचय :- डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' मूल निवासी : अमझेरा, जिला धार (म.प्र.) ...
ऊफ ! ये गर्मी
कविता

ऊफ ! ये गर्मी

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** तेज हवा के थपेड़ों से सीहर उठा ये बदन। चारों तरफ सन्नाटा हैं खौफ हैं, कपड़े की परतों से झांकती कोमल ये आंखें, कितनी सूर्ख और लाल हैं। चलना दुस्वार हुआ पैदल बाहर पेट्रोल की मार हैं। दुबके कब तक रहेगें हम रोज रोटी कि तलाश हैं। अनगिनत पेड़ों की लाशों से सबक नहीं सीखा हमने आज चिलचिलाती धूप में ठंडे पानी कि सबको तलाश हैं। किससे गिला शिकवा करें, यहां हमाम में सब बेनकाब हैं। पेड़ लगाया एक पीढ़ी ने दूसरों ने उसे उजाड़ दिया। आंखें खुली तो याद आया धरा को किसने नरक बनाया। अबभी समय हैं संभलनें का जल जमीन को बचा लीजिए, इन तेज थपेड़ों से सबको पेड़ लगाकर राहत दीजिए। कर सको कोई पुनित काम तो पक्षियों को पानी दीजिए इस तेज गर्म धूप में कोई मिले उस भूखें नंगे को भी सहारा कीजिए। ये समय भी यूं ही गुजर जाएगा। बस! समय ब...
मैं कमजोर नहीं
कविता

मैं कमजोर नहीं

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** इतिहास गवाह है हर जुल्म और सीतम के खूनी पन्नों में मेने इबारत लिखी हुई है वतन पर मरने वालों में। हर शास्त्र धर्म में रची बसी हूं नारी शक्ति के शब्द रूपों में मिटकर भी अमर कहानी बनी रही मैं हर युगों में। नई शक्ति का सृजन कर मेनें नवराष्ट्र को हर बार रचा है। असहनीय दर्द भी सहनकर कोमल शिशु को सींचा हैं। समय चक्र कि धारा में कई बार टूटी और बिखरी हूं, पर अब मैं अबला नहीं रही खुद को सबल बना खड़ी हूं। वैचारिकता के शब्दों ने भी खुब अन्याय ढाये मुझ पर, पर मजबूत इरादों से लडकर, चौखट लांगकर बनी आत्मनिर्भर। बराबरी के हक को लेकर राष्ट्र विकास कि धूरी बनी हूं अबला से सबला बनकर इतिहास कि वो नारी बनी हूं। विश्व जगत भी चकित हुआ देखकर नारी की शक्ति से, हर घर अब विकसित हो रहा महिला-पुरुष कि सहभागी ...
चांद उतरा जमीं पर
कविता

चांद उतरा जमीं पर

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** मौसम की ये कैसी फिदरत हैं। कभी बेरूखी तो कभी शिद्दत हैं। हमें कोई गम नहीं कही पर ना होने का अकेले ही हर्ष हैं अपनों के बीच रहने का। समय की रफ्तार में वक्त भी यूं ही ढल जाएगा। जिंदगी की इबारत में एक नाम और जुड़ जाएगा। कभी अनजाने हैं हम पास रहते भी इस जहां में। आज वे शुमार हैं हो गये शब्दों से तीर चलाने में। देख कर तस्वीर हमारी आज वे शब्द बुन रहें। कोई शिकवा नहीं हमें शब्दों से कि वे क्या लिख रहें। चाहत भरी जन्नत में सबको कुछ कहना चाहिए। ये किस्मत हमारी कि उन्हें तस्वीर समझना चाहिए। भावों के सागर में शब्दों का ये कैसा जाल हैं। अनकहें शब्दों से जो कह दें वही उनका हाल हैं। चांद बता रोशनी से उन्होंने दीदार किया हैं। ना कहते हुए भी बहुत कुछ शब्दों में इजहार किया हैं। चेहरें के भावों को पढ़ना सबकी आदत नहीं हैं।...
जिंदगी का कडवा सच
कविता

जिंदगी का कडवा सच

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** एक ऐसा सत्य जो रोज घटित होता है जिंदगी में। समझकर भी अनदेखा कर देते है पूरी जिंदगी में। हर चीज पाने की चाह में गुजर रही है ये जिंदगी। मूल्यों को दरकिनार कर मस्ती में गुजर रही जिंदगी। आज सुबह दौड़ते हुए, कुछ लोगो को देखा मेनें। हर कोई तेज भाग रहा था आगे, अपने सत्य से मुंह छिपाते आगे निकलते देखा मेने। अंदाज़ा लगाया कि मुझसे थोड़ा धीरे ही भाग रहे थे। एकअजीब सी खुशी मिली। कि मैं पकड़ लूंगा उन्हें। मैं तेज़ और तेज़ दौड़ने लगा। आगे बढ़ते हर कदम के साथ मैं भी उनके करीब पहुंचनें लगा। कुछ ही पलों में, मैं उससे सौ क़दम पीछे था। निर्णय ले लिया था कि मुझे उसे पीछे छोड़ना है। तब थोड़ी गति और बढ़ाई। अंततः लक्ष्य पा लिया उनके पास पहुंच, अब मैं भी उनसे आगे निकल ही गया। आंतरिक हर्ष की अनुभूति, कि ...
सफर के पीछे हमसफर
कविता

सफर के पीछे हमसफर

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** आगे सफर था और पीछे हमसफर था.. रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता। मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी.. ए दिल तू ही बता, उस वक्त मैं कहाँ जाता... मुद्दत का सफर भी था और बरसो का हमसफर भी था। रूकते तो बिछड़ जाते और चलते तो बिखर जाते.... यूँ समझ लो, प्यास लगी थी गजब की... मगर पानी में जहर था... पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते। बस! यही दो मसले, जिंदगी भर ना हल हुए!!! ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!! वक़्त ने कहा.....काश! थोड़ा और सब्र होता!! सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता! सुबह-सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।। आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।। "हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!! "शिकायतें तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्...
पेड़ की व्यथा
कविता

पेड़ की व्यथा

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** समय का रूख देखकर जिंदगी के रंगों का रंग और बदल जाते हैं हालात सभी। इन पत्तों की क्या विसात बड़ी टहनियां भी टूटकर और जड़े भी उखड़ जाती हैं कभी। एक हवा का झोका ही काफी हैं पत्ते उड़ाकर ले जाने को। तूफान में भी वजूद जिनका बना रहे ऐसे पत्ते संभालों आईना दिखाने को । पत्तों, फूलों और टहनियों का प्रश्न हैं सहज सी जिंदगी व दुखभरा हश्र हैं हरे रंगों की चादर में रंगबिरंगे सितारे हैं आंखों को सुकून दे ऐसे पत्ते हमारे हैं मन को महका दे फूलों की खुशबू हैं तपन को भूला दे शीतल परछाई हैं क्यों काटते पेड़ ये कैसी बेहरूमाई हैं? ऐसे लाखों प्रश्न हैं पर जिंदगी कम हैं हवा के सहारे ही जीवन का मर्म हैं दर्द किसे बयां करें किस्मत का रोना हैं तूफानों को सहने का हौंसला अपना हैं पत्तियां बिखर गई पर कोई गम नहीं हैं फूल म...
मां का बटवारा
कविता

मां का बटवारा

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** ये जिंदगी ना तेरी हैं ना मेरी हैं वक्त के इन कांटों में उलझी सी कभी हंसाती कभी रूलाती सुख दुखों में बंटी ये जिदंगी अंधेरों उजालों से लड़ती ये काया जीते जी अब तुम ही बताओं मां से मिला तो कैसे मां को ठुकराएं। बचपन की तस्वीरें सब बदल चुकी कोमल मन की यादें निकल चुकी दुलार कम आक्रोश से लड़ने लगा मां की ममता को पुत्र मोह खलने लगा सयानी औलादों से मां को डर लगने लगा कहीं टूट ना जाए मिट्टी का ये घरोंदा मां का दिल ये सोचकर रोज रोने लगा वक्त बड़ा बलवान है ये समझना चाहिए पुराने इतिहास से सबको सींखना चाहिए मां व जमीं को ही अबतक बाटा गया हैं मोह और लालच में रक्त को ही काटा गया हैं देती थी दुहाई मां सब पुत्र साथ रहेगें जब नजर लगी जमाने की तो क्या कहेगें भाई ही भाई के खून का प्यासा हो गये बटवारें को लेकर देखों सब अं...
दर्द की दास्तां
कविता

दर्द की दास्तां

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** दुनिया के गमों में बंटी ये जिंदगी अपनों से पटी ये बेरूखी बंदगी दर्द की दास्तां हैं हर घर की कहानी किसको बयां करें ये अपनी जुबानी हालात के मारे हैं हम बेबस हैं जिंदगी रब से गिला नहीं बस पाक रहे जिंदगी तन का बोझ भी अब संभलता नहीं मन की बातें दिल से कोई कहता नहीं जिंदगी के टूटें अरमानों को आंखों में सहेजकर रखा हैं। मुसीबतों के दर्द को चेहरें की मुस्कराहट में छिपाएं रखा हैं। मैं कोसो दूर से एक उम्मीद लिए इस शहर में आकर बसा हूं। कहना मुश्किल हैं यहां पर पता नहीं कब पहले खुलकर हंसा हूं। एक दर्द हैं जो दिखाई नहीं देता हैं रोज की जिंदगी में तन्हा हूं मैं। दोस्त की तलाश का इंतजार हैं मुझें कहीं फिर से यहां भटक ना जाऊ मैं। ये कमबख्त उम्र भी कुछ ऐसी हैं अब गिला करू तो किससे करू मैं। मुझें समझ सकें...
जिंदगी का ये सच
कविता

जिंदगी का ये सच

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** अपनों के बीच संबंधों का आईना देखा हैं बहुत करीब से। बनते तो ये व्यवहार करने से पर बिगड़ जाते हैं कर्कश शब्दों से। रिश्तों के नाम पर ये कैसी वफा हैं उम्मीदें मन की सब लगाए बैठे हैं झूकना पसंद नहीं हर किसी को यहां झूठे अहं में वे जिंदगी गवां बैठे हैं। अकेलेपन का नासूर रोज निगल रहा अपनों से दूर हो रहा नाजुक ये रिश्ता कमबख्त जिंदगी का ये कैसा सच हैं जी कर रोज दफन हो रहा ये रिश्ता । ना चेहरों पर खुशी हैं ना रिश्तों में प्रेम नकली मुस्कान का ये कैसा दर्द। एहसास हो जाता हैं नकली बनावट से रिश्तों के संबंधों से टूटकर बिखर गया अपनों से अपनों का वो अपना दर्द । सरल नहीं इतना आसान जीने का जितना जीने को जीने के लिए चाहिए। समय व्यर्थ गवां बैठे हम इस जहां में अब जिंदगी को सबकी परीक्षा चाहिए करोड़ों जन्म क...
इंतजार हैं मुझें
कविता

इंतजार हैं मुझें

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** कशमकश हैं जिंदगी में और उम्मीद की एक आश भी। टूटकर मैं अभी बिखरी नहीं हूं ना भूली मैं कोई तलाश भी।। लम्हा तो हर कोई जी लेता हैं जिंदगी जीना सच इतना आसान नहीं। किसे हमसफर कहें ये तो पता नहीं दोस्त से भी समझना कुछ आसान नहीं।। दर्पण मन को भी अब एक मनपसंद दर्पण सा सखा चाहिए। जिंदगी जीने के लिए इस भीड़ में एक हमदर्द सा दोस्त चाहिए ।। दुनिया को समझनें का ज्यादा हुनर नहीं हैं मुझमें। मैं कहीं लड़खड़ा ना जाऊ इस जहां में आकर कोई इन हाथों को थाम ले ऐसा सच्चा एक दोस्त चाहिए।। अपनों से गिला नहीं हैं मुझें जिंदगी में बस किस्मत में लिखा एक साथ चाहिए। मैं समझ सकूं उस नादा मन को उस दोस्त में मुझें वो खुदा चाहिए।। पता हैं मुझें हर मोड़ पर नजरें गड़ी हैं नजरों से बचा सके वो हमसफर चाहिए। मैं उत्...
जिंदगी का ये कारवां
कविता

जिंदगी का ये कारवां

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** यूं ही गुजरे जा रहा हैं जिंदगी का ये कारवां, बेगुनाह इंसान और दम तोड़ रही हैं जिंदगियां। थमने का नाम नहीं, और बढ़ता ही जा रहा ये सिलसिला। कहां कमी हुई हुक्मरानों से और अपनों से बड़ी गलतियां। गर संभल गये तो रुक सकता हैं अब भी मौत का ये कारवां। गलतियों को गर सुधार ले तो, बिखेर सकते हैं खुशियों का दारवां। अपनों के बीच आज अपने ही बेगानें हो चुकें हैं, पास होकर भी लाशों से कितने दूर हो चुकें हैं। चाह कर भी कोई रीति रिवाज ना निभा पा रहे हैं हम। अपनों के ही सामने अपनी जान को बचा रहें हैं हम। सिसकती मौत और जिंदगी की ये कैसी जंग हैं, ना कोई दृश्य शत्रु हैं ना कोई शरीर भंग हैं। एक वायरस के आगे महाशक्तियां भी दंग हैं, जिंदगी जिना भी चाहे तो अब जिंदगी कितनी बदरंग हैं। हाथ उठते हैं मदद के तो क्यों थम जाता हैं, इंसान भी आज इंसान की ...
रिश्तों को लगी नजर
कविता

रिश्तों को लगी नजर

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** बड़े आराम की थी रिश्तों भरी जिंदगी लग गयी हैं अब रिश्तों को भी नजर। किसने की ये हिमाकत दूर करने की अपनों से ही अपनों ने फेर ली नजर। हर कोई निश्चंत था संबंधों को लेकर आनाजाना भी सरल था बैखौफ होकर मस्ती में मस्त थे सब खुशियां थी भरपूर कोरोना ने लील लिया बनकर एक नासूर। हवा कुछ ऐसी चली दुनिया बदल गई मुंह तो ढक लिया पर नजरें बदल गई पास पास थे हम जितने अब दूर हो गये कुछ बोलने के लिए मुंह से मजबूर हो गये । हर कोई पूछ रहा हैं कब तक रहेगें ऐसे सरकारें भी मौन हैं जो जी रहा हैं जैसे बारबार के लाकडाउन ने कमर तोड़ दी उम्मीदों की महफिल ने आशाऐं छोड़ दी जब भी जरा सी उम्मीद नजर आती हैं दूर से फिर गम की यह खबर आती हैं। चला गया रिश्तों का एक रिश्ता भी हमसे अब कोरोना के डर में हर रात गुजर जाती हैं। सुबह कोई अखबार हमें फिर डरा देता हैं। चैन...