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Tag: डॉ. जयलक्ष्मी विनायक

रोना
कविता

रोना

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** रोने में कोई बंदिश नहीं रोने में कोई मनाही नहीं रोने में टैक्स नही लगता रोने को कोई नहीं रोकता। जब इच्छा हुई रोलो रोना व्यक्तिगत भावना है आंसू हमारी संपत्ति है रोलो हल्के हो जाओ। सारी समस्याओं का हल रोना किसी को इससे आपत्ति नही रुंधे गले से रो, हिचकियां ले रो अविरल रो, सिसक के रो। आर्तनाद करो, चीख के रो छुपके रो, असहाय हो तो रो छाती पीट के रो, रुदाली बनो बेतहाशा, फफक के रो। रोना एक ऐसी कुंजी है जो हर विपदा से बचने हेतु राहत का ताला खोलती है रोना आंखों को धोता है रोना मन को निर्मल करता है। अश्रुसिक्त नयन सौन्दर्य सूचक, मनमोहक आकर्षण के द्योतक कमल नयन, मृगनयन रोने के पश्चात, मन में उत्साह, उम्मीद के संचारक आंसू, पुनः हंसी और मिलन का स्वागत करते हैं । परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवा...
वर्णमाला कविता
कविता

वर्णमाला कविता

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** अ- अवर्णीय है जो आ- आदि अगम अगोचर इ- इस चराचर का पालनहार वो ई- ईश्वर सर्वे सर्वा उ- उमंग व उल्लास भर ऊ- ऊंची पहाड़ सी मुश्किलों में ऋ- ऋषियों समान स्थितप्रज्ञ रहने की ए- एक सीख देता है। ऐ- ऐसी क्या विडम्बना कि ओ- ओम नमः: शिवाय जप कर भी औ- औरों की तरह हम एकाग्र चित्त नहीं होते। अं- अंग अंग में व्याप्त प्रभु यदि कृपा करें, अ: - अ: तो क्या कुछ नही मिलता! क- कहां कहां नहीं ढूंढा तुम्हे ख- खंडहरों में, ग- गरजते बादलों मे, घ- घर के हर कोने में, च- चहुं ओर, छ- छोटी-छोटी बातें समझाती है हमें ज- जगावतार तेरी महिमा। झ- झगडे़ हजार होते हैं ट- टूटते रिश्ते मजहब के नाम, ठ- ठिकाने टूटते हैं अयोध्या मे, ड- डर लगता है सचमुच ढ- ढेर ना हो जाएं आशाएं त- तहस- नहस ना हो जाएं धरा, थ- थर्रा कर फिजूल उसूलों से, द- दनादन ...
दीवार
कविता

दीवार

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** ईंट और चूने की दीवार घरों को बनाती दीवार रिश्तों को जोड़ती दीवार सजावट का केंद्र दीवार, अनेक रंगों की दीवार आधुनिक समय की पहचान कभी लाल कभी नीली दीवार फोटो फ्रेमों से सज्जित दीवार, पर ये ही दीवार जकड़ लेती है हमें, कुंठित कर लेती है चहारदीवारी में बंध जाते हैं, कैद हो जाते हैं दीवार में, उससे आजाद होने के लिए तरसते हैं उहापोह में फंसे, मात्र एक सूर्य की किरण के लिए होते हैं व्याकुल। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत द्वारा पुरस्कृत हैं। आप "मैं हूं भोपाल' के खिताब से भी सुशोभित हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द...
मां का दिल
लघुकथा

मां का दिल

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** ऊंची कद काठी के, मृतप्राय से, अपने पति को मृत्यु शैय्या पर देख सुमित्रा का मन धक सा हो रहा था। तीनों बेटियों को बुला लिया था डॉक्टर ने जवाब जो दे दिया था। इसलिए हॉस्पिटल से पति को वापिस लाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। वैसे तो छोटी बेटी ने किचन संभाल लिया था। रोटी सब्जी दाल चावल तो बन ही जाता था। पर सुमित्रा को यह रह-रह कर लग रहा था कि मेरी बेटियां इतने दूर से आई है, उन्हें कुछ अच्छा खिला सकती। दूसरे दिन मां को बेटियों ने घर पर नहीं पाया। सोचा, कहां चली गयी होगीं? तभी दरवाजा खोल मां का आगमन हुआ। मां के कंधे पर बैग झूल रहा था। उसमे से उन्होंने एक डिब्बा निकाला और डायनिंग टेबल पर रख दिया। 'क्या है इसमें?' बेटियों ने उत्सुकता से पूछा। 'तुम सबको श्रीखंड पसंद है ना? वो ही लेने गयी थी।' परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी...
सूर्य की गरिमा
कविता

सूर्य की गरिमा

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** माना कि मैं अलसायी सूर्य की गरिमा हूं बुझे हुए अलावा की चिंगारी हूं शरद ऋतु का झडा़ हुआ पत्ता हूं किताब का अनचाहा पन्ना हूं पर कभी तुमने उज्जवल सूर्य की वंदना की थी, प्रज्ज्वलित ज्वाला की धधक देखी थी, बसंत की बहार का लुत्फ उठाया था, किताब के हर पन्ने का आनंद लिया था। तो समझो मेरी व्यथा मेरा हक छीनों मत, मेरा हाथ खीचो मत, संरक्षक था कभी मैं तुम्हारा मुझे रोको मत, मुझे टोको मत, क्योंकि मैं सैनिक था मैं सैनिक हूं मैं सैनिक रहुंगा। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत द्वारा पुरस्कृत हैं। आप "मैं हूं भोपाल' के खिताब से भी सुशोभि...
पान मद्रास
कविता

पान मद्रास

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** तड़के, सूर्योदय से पहले गर्मी में, जब हम मकान की छत पर सोते रहते थे चैन से, सर्दी में, जब ठिठुरते थे, रजाई के भीतर तब सहसा एक आवाज उस नीरव निस्तब्धता में गूंजती थी, पान मद्रास, पान मद्रास! परीक्षा की तैयारियों में जुटे जब कभी साड़े पांच के अर्लाम से उठे तो वहीं आवाज चौंका देती हमें पान मद्रास, पान मद्रास! मंदिर की घंटियों की तरह मस्जिद की अज़ान के समान रोज, प्रतिदिन, हमेशा वो आवाज़ पान मद्रास, पान मद्रास! इतनी सुबह क्या कोई पान खरीदता होगा? साईकिल से गुजरने वाला शख्स आखिर कैसा होगा? रोजमर्रा की दिनचर्या का जरुरी हिस्सा अतीत से भविष्य को चीरती वह सशक्त, बुलंद, अविस्मृत सी आवाज, पान मद्रास, पान मद्रास! परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका ह...
प्यार
कविता

प्यार

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** प्यार है तो इकरार क्यों नहीं करते? दिल में प्यार का तूफान समेटे अव्यक्त को व्यक्त क्यों नही करते? डरते हो? अपने आप से या समाज से? खुल्लम खुल्ला नहीं तो चोरी छिपे ही प्यार का इजहार क्यों नहीं करते? प्यार है तो इकरार क्यों नहीं करते? तहज़ीब का जामा पहने सभ्य समाज में गंभीर से तुम, मन में प्यार का सैलाब लिए भीतर ही भीतर परेशान से कुछ, अपने को अभिव्यक्त क्यों नहीं करते? प्यार है तो इकरार क्यों नहीं करते? पर प्यार क्या केवल इकरार ही है? क्या समर्पण प्यार नहीं? दूसरे की खुशी में अपनी खुशी समझना क्या प्यार नहीं? अव्यक्त प्यार की यहीं परिभाषा है चोट सहकर भी चुप रहना यहीं प्यार की पराकाष्ठा है। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजो...
बेबसी
कविता

बेबसी

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मां से स्नेह पाया पिता ने दुलार लुटाया, मैं घड़ी की सुई की तरह कभी इधर , कभी उधर प्यार समेटती, सहेजती दोनों में एक अनचाहा रिश्ता जोड़ती। संपूर्ण प्यार की चाह जीवन की इकलौती आस, बंटी हुई ज़िंदगी के क्या मायने जब माता पिता नदी के दो किनारे? हॉस्टेल की खिड़की से किसे देखती मेरी मायूस निगाहें छन-छन कर सूर्य की किरणें उदास करती मेरी राहें मम्मी डैडी को लगाने गले तड़पती मेरी छोटी छोटी बांहें। गले लगती पिता से जब मां याद आती हर पल, मां के चरण जब छूती पिता कैसे होंगे मैं सोचती, क्या सोचा मेरे मां बाप ने कभी बेटी किन दौरों से गुजरी? होठों पर मुस्कान है फीकी आंखें हैं उसकी गीली गीली, अगर तुम ना बिछड़ते रहते हमेशा साथ-साथ तो क्या बेटी होती दुखी? क्या बेटी होती दुखी? यहीं है बेटी की बेबसी। परिचय :- ...
दिल्ली की औरतें
कविता

दिल्ली की औरतें

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** ये दिल्ली की औरतें कुछ मीठी और नमक सैंडिल ऊंची पहनती लगती है जैसे क्वीन। ये दिल्ली की औरतें कुछ मीठी कुछ नमकीन। पार्लर अक्सर जाती कारें रफ्तार से दौड़ाती तेज तर्राट और गर्म मिजाज़ तबीयत है इनकी रंगीन ये दिल्ली की औरतें कुछ मीठी और नमकीन। नौकरी बड़ी ऊंची करती पैसे खूब कमाती, भारत की नारियों में अग्रगणी ये किसी से कम नहीं। ये दिल्ली की औरतें कुछ मीठी कुछ नमकीन। शापिंग करने में सबसे आगे पैसे बचाने में गंभीर वाकपटुता में सबसे आगे वैभवी और महाजबीन, ये दिल्ली की औरतें कुछ मीठी कुछ नमकीन। दिल्ली की ठंडी-गर्मी सहती पर अपनी त्वचा को बकायदा संवारती, स्कूल टीचर से लेकर बिजनेस टायकून तक सब पर अपनी धाक जमाती। ये दिल्ली की औरतें कुछ मीठी कुछ नमकीन। जूते की नोक पर सभी मर्दों को रखती कोई अगर उनसे...
आग
कविता

आग

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** जवानों में आग की धधक देश पर मर मिटने की ललक, योगी के अंतस का अनल सांसारिकता से अलग एक दिव्यता का ओजस, सूर्य के ताप में जल बन जाएं सब विमल, अग्नि की लौ में समर्पित सारे द्वेष और दुःख, ज्वालादेवी के प्रताप से जिसका मुख हो दव, कर्मठता व पवित्रता की द्युति हो आग से प्रखर, हवनकुंड की पावक से वायुमंडल महक, टुटे हुए दिल की चोटिल अग्नि सृजनात्मक बन प्रसिद्धि की और अग्रसर, उसी आग पर बनी रोटी करें उदर का शमन, विवाह में वर-वधू की साक्षी यह शिव स्वरुप हुताशन, महाराज हरिश्चंद्र का पुत्र रोहिताश्व अर्थात, सूरज की प्रथम किरण हमें दिखती सर्वप्रथम, जंगल में दावानल मानव निर्मित या कहिये प्राकृतिक, शिव के अपमान पर सति का पिता के घर हवन कुंड में दहन, अंत में क्षणभंगुर शरीर समर्पित इसी को वैश्वानर, हर मानव में ...
छड़ी
कविता

छड़ी

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** कोने में रखी दुबकी हुई सी, उपेक्षित नजर आती, बाप दादाओं से विरासत में मिली, अमूल्य धरोहर एक छड़ी , छड़ी शब्द से कुछ यादें ताजा होती हैं। मास्टर जी की दिल दहलाने वाली छड़ी जो हाथ पे निशान छोड़ जाती थी, बाबूजी की सैर पर जाने वाली छड़ी जिसके साथ वे रौबदार दिखते थे, अपना दबदबा बनाए रखते थे, एक फौजी अधिकारी की घुमाती छड़ी जो अपनी शानदार मूंछों को सहलाते युद्ध के कारनामे बतलाते थे, कमर झुकी शरीर का बोझ ढोती छड़ी, बीमार को सचेत करने वाली छड़ी, एक अंंधे लाचार का सहारा जो बिना छड़ी के रास्ता नहीं कर सकता पार, मुन्ने के खिलोनों की शोभा बढ़ाने वाली छड़ी, पतली, कड़क, सीधी, सर्पाकार डिजाइन वाली, मूठ वाली, भूरी, काली, सफेद, कई रंग की, लकड़ी की, प्लास्टिक की कई किस्म की, अनोखी, जादुगर छड़...
शर्ट
कविता

शर्ट

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** शर्ट-शर्ट नहीं हुयी मानो एक प्यार का इज़हार बन गयी, कभी लिपस्टिक लगाकर प्रेयसी की अमानत, तो कभी रफू कर मां का दुलार, बटन निकलने पर उसकी पुचकार कर मरम्मत, फटने पर, उसके सिलने का पत्नी का प्रयास नजदीकियों का आगाज, शर्ट को प्रेस करने के लिए धोबी को समझाना बेरंग या फटने पर बेटी की अनावश्यक चिंता और नया शर्ट लाने की चुहलता मानो शर्ट नहीं शर्ट के एवज में बहुत सारा प्यार, अनुकंपा और जद्दोजहद, और जब श्रीमान घर से बाहर निकले तो ये सोचें कि चलो मैं नहीं तो क्या मेरी शर्ट की है इतनी महत्ता। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत ...
श्रृद्धांजलि
कविता

श्रृद्धांजलि

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** जब कोई सिपाही होता है शहीद मेरी आंखें होती हैं नम एक आंसू टपक कर बनता है अविरल धारा शहादत की वो अपूर्व गाथा। भले ही मेरा कुछ ना लगता हो वो अनजाना सा अपरिचित, फिर क्यों मेरे ज़हन में उठती है इक मायूसी और टीस बलिदान हमारे लिए देगया वीर। छह महीने पहले जिसकी सधवा बिलखती बन गई विधवा, नैतृत्व करते अपनी टुकड़ी तेलंगाना शूर हुआ शहीद बेहिचक नन्ही बेटी जलाती है दीप उसकी स्मृति में असमंजस। वो बीस सिपाही दस्त-बदस्त लड़े डंडे पत्थरों के ज़ख्मों से आहत, गवां गए अपने प्राण, कभी ना सोचा अपना स्वार्थ जान हथेली पर ले तत्पर। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित...
एक भारत ऐसा भी
कविता

एक भारत ऐसा भी

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** एक पुल के ऊपर ठाठ बाट संभ्रान्त, दूसरा पुल के नीचे अर्द्ध नग्न सहता संताप। एक लंबी छुट्टी का लेता आरामदायक मजा, दूसरा लंबी छुट्टी की लेता कष्टदायक सजा। एक सुरक्षित, आनंदमय, गुनगुनाता, खिलखिलाता परिवार, दूसरा चिलचिलाती धूप में थका-मांदा पैर रगड़ता सुबकता परिवार। एक जो रोज नए खाद्य पदार्थ की विधि से अपनी चंचल जिव्हा को तुष्ट करता, सोशल मीडिया पर इतराकर अपनी पाक कला दर्शाता। तो दूसरा एक कटोरी भात के लिए दूसरों के समक्ष हाथ पसारता। आठ बच्चों में एक रोटी के टुकड़े कर गटागट पानी पी सो जाता। एक बैंक में जमे पैसों का लेखा-जोखा देख निश्चिंत। दूसरा हाथों की उंगलियों को चटकाता बिना आजीविका चिंतित। एक बालकनी में आनंद लेता पक्षियों की चहचहाहट। दूसरे के मन में आर्तनाद और घबराहट। एक कोरोना के आंकड़े गिनता ...
नारी तुम सशक्त हो
कविता

नारी तुम सशक्त हो

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** नारी तुम सशक्त हो कभी लक्ष्मी, कभी दुर्गा कभी झांसी की रानी कांटों की राह पर चलती नि:सहाय निर्बला नहीं आंधी की तरह कष्टों को चीरती प्रबल वात तुम, प्रचंड पर्वत की तरह अटल हो। कभी झुकती नहीं, रुकती नहीं, टूटती नहीं तुम समर्थ हो। तुम मन से प्रबल तन से सबल, देवी का स्वरुप हो। तुम करुणा का सागर मानव जाति का संबल हो। भर्तायर की सच्ची सहचरी, राखी के बंधन को अक्षुण्ण रखती बहना, वात्सल्य की छाया देती जननी, स्नेह की डोर से बंधी पुत्री, नारी विविध रुप तुम्हारे अभूतपूर्व, अलौकिक, अतुलनीय जग जननी, वंदनीय तुम्हे शत शत नमन हो। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत ...
टेसू के फूल
कविता

टेसू के फूल

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** क्या तुम अश्रुसिक्त नयनों की लालिमा हो ? अस्त होते अलसायी सूर्य की गरिमा हो? क्या किसी प्रज्वलित ज्वाला की धधक हो? शूरवीर योद्धा की रक्तरंजित तलवार हो ? जो कुछ भी हो एक टीस सी उठती है तुम्हें देखकर ओ टेसू के फूल पर्णहीन हो, दिखते हो कितने गरिमाशील, होली के आगमन के प्रतीक, चंद दिनों के मेहमान, क्षणिक ख़ुशी के मीत कहाँ कमल का फूल कहाँ टेसू एक कीचड़ का मित्र दूसरा गगन का दीप एक लक्ष्मी का वास दूसरा दिलाता होलिका की याद पर है दोनो फूल लालिमायुक्त, क्षणिक, झणभंगुर। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत द्वारा ...