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Tag: डॉ. छगन लाल गर्ग “विज्ञ”

क्षण- बोध
गीत

क्षण- बोध

डॉ. छगन लाल गर्ग "विज्ञ" आकरा भट्टा, सिरोही (राजस्थान) ******************** आह उर संवेदना को पालता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! खो गयी घनघोर रातें वासना में ! स्वप्न टूटे मोम से लो कामना में ! राग की मृदु वर्तिका- सी याचना में ! भ्रांत मारुत घोलता विष साधना में ! दीप भीतर का जलाना चाहता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! रिश्तों की अब बात बस अंगार जैसे! स्वार्थ में सब भूलते अपनत्व कैसे ! लोग बन बेशर्म हो उन्मत्त ऐसे ! फैंकते हर बोल बन प्रस्तर जैसे ! कोख की हर छाँव पलना चाहता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! कोन है जो थपकियाँ दे वेदना में ! बोल दे दो बोल मीठे चेतना में ! व्यर्थ रिश्ते- वासना संवेदना में ! अर्थ गहरे कह सके नवचेतना मेें ! हूँ अकेला ही सदा यह जानता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! कब कहूँगा प्यार से संतुष्ट हूँ मैं ! जागता ...