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Tag: डॉ. किरन अवस्थी

हे राम, हे राम
भजन

हे राम, हे राम

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** हे राम, हे राम तुम्हें नमन है बारम्बार, बारंबार दाशरथि बन विष्णु आए, सकल लोक में मंगल छाए राम बिना नहि उद्धार, नहि उद्धार तुम्हें नमन है बारंबार, बारम्बार।। तुम्हें नमन है बारंबार, परम पिता परमेश्वर नाम जातुधान से मुक्त कराया, धरनी हित ´पुरुषोत्तम ´राम राम करेंगे बेड़ा पार, बेड़ा पार तुम्हें नमन है बारंबार, बारंबार।। राम न केवल तुम अवतार, तुम अवतार अवतरण तुम्हारा है ´दर्शन, हर पहलू का विश्लेषण तुम्हीं जगत के पालनहार, पालनहार तुम्हें नमन है बारंबार, तुम्हें नमन है बारंबार।। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफ...
ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी
आलेख

ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ********************  सभी को ज्ञात होगा कि रामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में लिखी है। नारी अवधी भाषा का शब्द है जो नाली शब्द का अपभ्रंश है। नारा जिसे हिंदी में नाला कहते हैं, का अर्थ अवधी भाषा ‌मे है जलवाहक, जिसमें दोनों ओर बांध (ताड़ना का एक अर्थ बांधना भी है) होते हैं। बांध न हो तो जल प्लावन हो जाए। उसी का स्त्रीलिंग है नारी। समुद्र ने स्वयं अपने लिए नारा ‌शब्द का प्रयोग किया। काव्य में तुकबंदी के लिए तुलसीदास जी ने नारा का नारी लिखा। इतने, परमज्ञानी, स्वयं अपनी पत्नी का इतना सम्मान करने वाले, स्त्री जातिमात्र (शबरी को माता कहकर पुकारा है भगवान राम ने रामचरितमानस में) का आदर करने वाले भक्तज्ञानी गोस्वामी तुलसीदास जी यह नहीं जानते थे कि ५०० वर्ष बाद भारतीयों के अज्ञान की पराकाष्ठा होगी, व उनके नारी शब्द के अर्थ का इतना बड़ा...
भक्ति रस है राधा
कविता

भक्ति रस है राधा

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** श्री कृष्ण हैं परमेश्वर तो भक्ति भाव हैं राधा बिन राधा कृष्ण अधूरे, और कृष्ण का ज्ञान है आधा। दस वर्ष के बालक बन गोपियों को रहस्य बतलाना ईश्वर से न कुछ भी छिपा है तो उससे क्या छुपाना। हर गोपी संग रास रचाकर ईश्वर का रुप दिखाया सांसारिक जीवन से उठकर उनमें आध्यात्मिक भाव जगाया। राधा तो पराकाष्ठा भक्ति की वो नहीं कोई संसारी उनके जैसा भाव न‌ कोई न ही कोई कृष्ण आचारी। कृष्ण को पाना‌ चाहा तो राधा सी भक्ति में डूबेंगे भक्ति रस में सराबोर हो योगेश्वर कृष्ण को पा लेंगे।। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच ...
धरती माता क्यों
कविता

धरती माता क्यों

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** पालती है मां नन्हे शिशु को गोद बैठाकर जलपान कराकर, भोजन देकर हाथ-पैर चलवाकर वस्त्र पहनाकर, अन्नप्राशन करवाकर गोद उठाकर घुटने चलवाकर, उंगली पकड़ाकर साइकिल चलवाकर पढ़ना, लिखना सिखलाकर सभी प्रकार के भोजन से बालक को बलवान बनाकर आध्यात्मिकता के भाव जगाकर नैतिकता का पाठ पढ़ाकर पुरुषार्थ का अर्थ समझाकर नन्हे पादप सम शिशु को गगनचुंबी वृक्ष बना देती है। धरतीमाता ही हमको अपनी गोद बैठाकर जल, भोजन दे, अन्न उगाकर कागज, कपड़े दिलवाकर पवन, ऊर्जा हम तक पहुंचा कर अपने सीने पर चलना सिखलाकर हर प्राणी का भार उठाकर उत्तम संदेशा लाती है हमको बढ़ना सिखलाती‌ है मां जैसी इसी शक्ति से धरती हमको आध्यात्मिकता का 'परोपकाराय सताम् विभूतय:' के (सज्जनों की संपत्ति परोपकार के लिए होती है) दिव्यभाव का नैतिकता का अन...
भुखमरी
कविता

भुखमरी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** चरम पर कलियुग है भावनाओं की भुखमरी है पुरुषार्थ बदल रहा है ह्रदय की आराजकता, बिखरी हुई मानसिकता मानवता को खाया जा रहा‌ है लोलुपता की दृष्टि भी लोलुप है उदात्तभाव की भुखमरी है जिधर देखो उधर खाया ही जा रहा है रिश्वत तो आराम से खाया जा रहा है। वस्त्र, राशन, अखबार, इंसान सबको मिलावट का रंग खाएं जा रहा है वासना स्वच्छंद है पुरुषार्थ निर्बाध, निर्द्वंद्व है उठते थे हाथ असहाय, दीन, मातृशक्ति की रक्षा पर वहीं हाथ उनके भक्षक‌ नजर ही नजर में गिर गई मर चुकी है आत्मा स्त्रीत्व को खाया जा रहा है पुरुषार्थ का अर्थ बदल रहा है । किताबें तो अब पढी‌ नही जातीं वो भी दीमक खाए जा रहा है कामना नहीं है वश में भौतिकता पूर्णतः हावी है आध्यात्मिकता की भुखमरी है इंसान इंसान को, इंसान को घुन खाए जा रहा है इ...
बेटी
कविता

बेटी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** अनचाही होकर भी बेटी मन को सम्मोहित कर लेती है उसकी नन्हीं चितवन ही अनचाही को चाही कर देती है ह्रदय मर्म को छूनेवाली वही एक नारी है किन्तु भावनाशून्य पिता को वही एक भारी है बेटी न केवल पुत्री है रमा, शारदा, वह दुर्गा है बलिदान, त्याग, ममता की मूर्ति अमित सौहार्द, सहनशक्ति गृहलक्ष्मी बन असहज क्षणों में सखी-सहेली बन जाती है माँ बन वह ममता का सारा कोष लुटाती है भगिनी बनकर स्नेहसूत्र में बाँध सभी को लेती है पत्नी बन वह न्योछावर साँसें अपनी कर देती है। शिक्षित होकर वह माँ सरस्वती बन जाती है प्रश्न उठे गृहरक्षा का जब दुर्गारूप वह धर लेती है इसीलिए वरदान है बेटी मात-पिता का मान है बेटी दो कुलों की तारक है अतुल शक्ति की खान है बेटी। जयहिन्द जय हिन्द की बेटी परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी...
हम डूब जाएं पानी में
कविता

हम डूब जाएं पानी में

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** (२०१२,२०१३ दामिनी घटनाओं से आहत) देश डूब जाए पानी में तब न होगा रेप, न होंगी हत्याएँ न ही क़त्ल की चर्चा होगी, न ही डाके की घटना होगी। किंतनी गुड़िया आहत होंगी, कितनी देंगी क़ुर्बानी कितनी कलियाँ मुरझाएँगीं, कितने जीवन होंगे पानी पानी। कितनी गुड़िया चीख़ेंगीं, कितनी गुडियां तड़पेंगीं कितनी गुड़िया क़ुरबान चढ़ेंगी, प्रतीक्षा प्रलय की अगवानी में। देश डूब जाए पानी में। न गुड़िया घायल होंगीं, न गुड़िया को ग्लानि होगी न उसकी सिसकी गूँजेंगीं, न भारत की अस्मत पानी होगी गुडियां बच भी जाएँ तो क्या, घायल की गति घायल ही जाने उसके मन में क्रंदन होगा, आग लगे अब पानी में। देश डूब जाए अब पानी में। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्त...
सोलह कलाओं के अवतार
स्तुति

सोलह कलाओं के अवतार

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** रमा विष्णु के तुम अवतार, राधाकृष्ण तुम्हें प्रणाम। जब जब नाश धर्म का होता, तब-तब जन्म सुरेश का होता सोलह कलाओं के अवतार, राधाकृष्ण तुम्हें प्रणाम।। बने राम अहिल्या तारी, रूप कृष्ण में पूतना मारी तुम अवतारी गोकुल धाम, राधा कृष्ण तुम्हें प्रणाम।। बंसी बजाएँ सबको बुलाएँ, राधा के मुरलीधर घनश्याम बैरन मुरली छीन लई, राधा कृष्ण तुम्हें प्रणाम।। रास रचाएँ, गोपी नचाएँ, गोपों के तुम मितवा श्याम जय-जय कृष्ण राधे श्याम, राधा कृष्ण तुम्हें प्रणाम।। वृंदावन की कुंज गलिन को, छोड चले तुम राधा के श्याम मथुरा में जा कंस संघारे, यशोदा नंदन तुम्हें प्रणाम।। रणछोड़ भए द्वारिका बसाई, अर्जुन सम्मुख गीता रचाई जय सुखधाम, जय सुखधाम, देवकीनन्दन तुम्हें प्रणाम।। सोलह कलाओं के अवतार, राधाकृष्ण तुम्हें प्रणाम ...
भारतीय भाषाओं की रानी हिंदी
कविता

भारतीय भाषाओं की रानी हिंदी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** साठ प्रतिशत जनता भारत की बोल रही है हिंदी सर्वाधिक जन द्वारा भारत में फूल रही है हिंदी कंप्यूटर पे खरी उतरी उसका साथ निभाती है हिंदी प्रत्येक ध्वनि का पृथक चिह्न है जो बोलें,सो लिखती है हिंदी आज विदेशों में भी फलीभूत है हिंदी भारत की तो है ही फिजी,गयाना माॅरिशस में भी गाई जाती है हिंदी म्यांमार, भूटान, नेपाल, सिंगापुर इंडोनेशिया, युगांडा,यमन त्रिनिदाद, थाईलैंड, न्यूजीलैंड सहित लगभग पच्चिस देशों में 80 करोड़ की आबादी बोल रही है हिंदी सबका करती सम्मान है हिंदी विकासमान भाषा है हिंदी संपर्क में आई हर भाषा के शब्दों को अपनाती है हिंदी हर भाषा का सम्मान करें हम शीर्ष पर रखें हम हिंदी।। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमा...
जीवन  है परिवर्तन
कविता

जीवन है परिवर्तन

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** शैशव को कर पार किशोरी की अरुणाई शनै शनै:तरुणाई में बदल गई। बालेपन की उन्मुक्त पवन सी चुनमुन चिड़िया की रफ्तार मीठी शहनाई में बदल गई। बचपन की एन .सी.सी.की ठक् ठक् करती कदमताल नूपुर की रुनझुन में बदल गई। दौड़ा करती भोली बिटिया जीवन संगिनी में बदल गई पायल की बेड़ी में बदल गई। नवपल्लव मृदुता को तज विशाल वृक्ष की काया बन शीतल छाया में बदल जाते हैं। ठुमक ठुमक नन्हें पग वृद्धि सिद्धि से हो उन्नत अपना कर्तव्य निभाते हैं। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्य...
पृथ्वी बनी
कविता

पृथ्वी बनी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** पृथ्वी बनी, उस पर पर्वत बने ताकि पृथ्वी लुप्त न हो जाए फिर पर्वत पर पर्व बने ताकि संस्कृति नष्ट न हो जाए। मनु बने, शतरूपा बनी ताकि सृष्टि रची जाए सृष्टि पर फिर भाव बने ताकि सृष्टि नष्ट न हो जाए। भाव बने, ग्रंथ बने ताकि संस्कृति बढ़ती जाए संस्कृति से सब सभ्य बने ताकि सृष्टि उन्नत हो जाए। मानव ने फिर महल रचे ताकि सभ्यता नष्ट न हो जाए युगों-युगों तक बहे प्रेम की धारा ताकि मनु की रचना बच जाए। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की क...
नव भारत का निर्माण करें
कविता

नव भारत का निर्माण करें

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** युवा बाल और वृद्ध सभी मिल, नव भारत का निर्माण करें श्रृंगी ऋषि और भरद्वाज के भारत का उद्धार करें कश्यप ऋषि की कश्मीरी को, आर्यावर्त की संस्कृति को विष्णु शर्मा के पंचतंत्र को, नया वितान प्रदान करें, नव भारत का निर्माण करें। वेद ,शास्त्र, उपनिषद, पुराण, भरतमुनि का नाट्य शास्त्र आदिनाथ की पुरा परम्परा, नए भारत का परिधान बनें चरक, च्यवन और सुश्रुत, आर्यभट्ट, पुन भारत के प्राण बनें नागार्जुन, बौधायन, कणाद का, हम फिर से सम्मान करें, नव भारत का निर्माण करें। खड़ा हिमालय पावन धरती पर, गंगा यमुना औ रेवा तट पर व्यास, सरस्वती, कृष्णा, कावेरी, की सीमाओं का विस्तार करें जय जय जय भारत की सेना, है भारत की प्रस्तर प्रहरी वह भारत का अक्षुण्ण बल है, उन्हें नमन हम आज करें, नव भारत का निर्माण करें। अपन...
लहरें
कविता

लहरें

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** सदियों से चलती रहतीं, लगातार तुम धरती सी सूरज, चंदा, ग्रह और तारे, साथी, संगी हैं तुम्हारे पवन तुम्हारी रक्षा करती, धूप कलेवर चाँदी का देती वृक्ष तुम्हें पा हरिया जाते, और तीर गदगद हो जाते तुम धरती को जीवन देतीं, खेतों में धान उगातीं आत्मा में प्राण जगाकर, कृतज्ञता कर्ता को दर्शातीं अगाध नीर की नीली स्वामिनी तुम सा जीवन लासानी, तुम सा जीवन लासानी। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आ...
लहरों का संदेश
कविता

लहरों का संदेश

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** सागर की लहरों में हमदम रेस चला करती है तीव्र गति, अबाध, स्मितमुख दौड़ा करती हैं न कोई रोकटोक न कोई प्रतिस्पर्धा इधर उधर से भाग-भाग कर एकाकार हुआ करती हैं गुफ़ा, कंदरा में ऋषि मुनि खोजा करते मोक्ष मार्ग इन लहरों को देखो, चलचल कर पा जातीं खुला मोक्ष का द्वार लहरें चल-चल कर अपना काम किया करती हैं चलते रहने का मानव को संदेश दिया करती हैं। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्...
धरती की प्रहरी लहरें
कविता

धरती की प्रहरी लहरें

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** उमड़ घुमड़ कर, लहर लहर कर, लहराती सागर की लहरें मानों धरती की सीमाओं पर, देतीं लगातार पहरे। धरती को ख़ुशहाली देतीं, बन उसकी प्रहरी कोई दस्यु लाँघ न पाए, धरती की देहरी। तट पर आ लहरें, ख़ूब करें अटखेली कभी सिंवई की उलझी जाली, कभी बने मतवाली। छलाँग लगाकर उछल-उछल कर, करतीं सागर को मालामाल कभी झाग को घेर-घेर कर, ख़ूब बनाएँ सुंदर ताल। कभी मगरमच्छ सी मुँह बाए, लहरें दौड़ी-दौड़ी आएँ कभी षोडषी कमसिन सी, केशलटों को लहराएँ । धाराओं की तुम अमिट स्वामिनी, तुम सागर का प्यार तुम सागर से रूठ न जाओ, वह देता रत्नों का उपहार। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषा...
कृतज्ञ धरती
कविता

कृतज्ञ धरती

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** अथाह जलराशि से तर होकर, कृतज्ञ यह धरती सम्पूर्ण हृदय से गदगद होकर, रचनाकार की स्तुति करती जो ईश्वर का वरदान न होता, तो मै प्यासी तिल-तिल मरती। कैसे तुम्हारी इस रचना का, माँ बन मैं पालन करती। कैसे ममता बिखरी होती, कैसे समता के रस से तेरी इस कृति को सम्पूर्ण समर्पण देती। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं। ...
डॉ. किरन अवस्थी साहित्य शिरोमणि राष्ट्रीय सम्मान २०२३ से सम्मानित
साहित्यिक

डॉ. किरन अवस्थी साहित्य शिरोमणि राष्ट्रीय सम्मान २०२३ से सम्मानित

इंदौर (म.प्र.)। दिनांक १४ मई को होने वाले हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०२३ में सम्मान लेने व जून माह तक भारत में रहने हेतु अमेरिका से इंदौर पधारीं श्रीमती डॉ. किरन अवस्थी को स्वास्थ्यगत कारणों के चलते समय से पहले अमेरिका प्रस्थान करना पड़ा। अतः राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच द्वारा उन्हें हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०२३ कार्यक्रम के पूर्व सम्मानित किया गया। इस लघु सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि प्रसिद्ध वरिष्ठ गीतकार श्री विमलप्रकाशजी चतुर्वेदी "चकोर", कार्यक्रम के अध्यक्ष राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच के संस्थापक डॉ.पवन मकवाना, विशिष्ठ अतिथि डॉ.दीपमाला गुप्ता, विशेष अतिथि राजू जी राउत एवं अन्य राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच एवं परिवार के सदस्य विशेष रूप से उपस्थित थे कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ.पवन मकवाना ने उन्हें मंगलकामनाएं प्रेषित करते हुए उन्हें पुनः राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच की अमेरिका स्थित शाखा की...
सागर की लहरों ने
कविता

सागर की लहरों ने

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** सागर की लहरों ने माँगा जब मेघों से पानी बरस पड़े वो जल बनकर, लहरें होगईं धानी-धानी रत्नाकर की लहरों ने माँगा जव साहिल से जीवन खड़ा रहा अविचल होकर बन लहरों का साजन उदधि की लहरों ने माँगा जब धरती से श्रृंगार खड़े कर दिए वृक्ष, पुष्प, बालू के अनुपम उपहार जलधि की लहरों ने माँगा जब सागर से आहार मीन, मत्स्य, मूँगा, मोती से पूर्ण किया कुक्षागार ओ कलाकार, तू बड़ा निराला ! इक-इक राही इस प्रकृति का करें तुम्हे प्रणाम साभार परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार कर...
ज़िम्मेदार कौन
कविता

ज़िम्मेदार कौन

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कहीं ट्रक से ट्रक टकराता है, कहीं कोई बिना ब्रेक की गाड़ी दौड़ाता है इनका परिणाम हादसा होता है इनका ज़िम्मेदार कौन होता है? कहीं शराबी ड्राइवर ट्रक चलाता है कहीं बिना लाइसेंस के वैन भगाता है कभी स्कूल बस अनफ़िट होती है ये सब हादसों के शिकार होते हैं इनका ज़िम्मेदार कौन होता है कभी ८० की रफ़्तार मासूमों की जान लेती है कभी ओवरलोडेड ट्रक पलट जाता है कहीं गड्ढे गाड़ी उछालते हैं प्रति दिन हज़ारों जानें जाती हैं कोई मोबाइल के चलते गाड़ी चलाता है कोई असावधान हो जाता है लगातार गाड़ी चलाचला कर किसी की नींद पूरी नहीं होती ये सब कइयों की मौत से खेल जाते हैं इन सबका ज़िम्मेदार कौन होता है? ज़रा सोचें, ज़रा समझें, इनमें से कोई कारणों के ज़िम्मेदार हम स्वयं होते हैं। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : ...
सावधान
कविता

सावधान

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** भारतीय संस्कृति पर हमला, भारत की अस्मत पर हमला चाहे कुछ भी हो जाए, कभी नहीं होने देंगे। चाहे कितने बम बना लें, चाहे कितने पत्थर बरसा लें चाहे कितनी मिसाइल चला लें, उनकी न हम चलने देंगे। छेद रहे हैं देश की संस्कृति, देश की ही दीवारों से सचेत रहना है हमको, इन आतंकी गुनहगारों से। यहाँ वहाँ आतंक मचाते, नहीं देश के काम आते आगज़नी, गोली, गन, ये घर में ही बम बरसाते। कभी राजनीति के ज़रिये, कभी कहीं ये छुप जाते कभी देश के टुकड़े करते, ये बोली से बम बरसाते। छुपेरुस्तम ये देश के दुश्मन, बचना है ग़द्दारों से छेद रहे हैं देश की संस्कृति, देश की ही दीवारों से। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका...
प्रेम का दीपक जला दो
कविता

प्रेम का दीपक जला दो

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** रवींद्रनाथ टैगोर की कविता Light the lamp of thy love का हिंदी रूपांतर हे प्रभु, मेरे ह्रदय में अपने हाथों से प्रेम का दीपक जला दो आलोकित कर दो मेरे ह्रदय को प्रेम की किरणों से इसकी मोहक किरण ह्रदय को भेद जाए बदल कर मेरे भावों का संसार। हे प्रभु, दूर कर दो तम को ह्रदय के उसमें प्रेम का प्रकाश भर दो दुर्भावना में सद्भावना जगा दो दुर्व्यसनों को जलाकर ह्रदय में सद्गगुणों का वास कर दो हे प्रभु, एक बार तो कर दो स्पर्श मेरा मैं बदल जाऊँगा, मेरा मृदातन स्वर्ण बन जाएगा इंद्रिय-जाल से ढके मेरे अंतर को अपने प्रेम प्रकाश से भर दो कुत्सित भावनाओं का दमन कर दो इंद्रियों का शमन कर दो हे प्रभु मेरे ह्रदय में प्रेम का दीपक जला दो। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिट...
अनासक्ति भाव
आलेख

अनासक्ति भाव

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** केशव स्वयं अनासक्ति के प्रतीक हैं। प्रेमघट भरा रहा, किंतु त्यागा वृंदावन तो पीछे मुड़ कर न देखा। अंदर तक भर गया था प्रेम तो बाहर क्या देखते। हम सांसारिक प्राणी अलग हैं। माया, मोह, धन-सम्पत्ति, परिवार, यश सभी ओर लोलुप दृष्टि है। जब तक सब अपने पास न हो, मन में शांति नहीं। हम सब भाग रहे हैं, दौड़ रहे हैं येन केन प्रकारेण भौतिक सम्पन्नता पाने को। कोई अंतिम लक्ष्य नहीं। एक इच्छा पूर्ण हुई नहीं कि दूसरी तैयार आसक्त करने को। क्या करें, कैसे करें........??? ईश्वर ने समस्या दी तो समाधान भी दिया। प्रेम व कर्म जीवन का अभिन्न अंग हैं अन्यथा सृष्टि चले कैसे। जीवन की राह में परिवार, भौतिक साधनों, धन-सम्पत्ति, मित्र, समाज के प्रति आसक्ति बढ़ती जाती है। संगति का प्रभाव बलवान है, वह चाहे परिवार, मित्र या पुस्तकों का हो। जैसे लोगों के ब...
राधा भाव
आलेख

राधा भाव

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्याहम। परित्राणाय साधूनाम विनाशाय च दुष्कृताम धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे। अपने कान्हा तभी अवतरित होते हैं जब धरती पुकारती है, जैसे त्रेता युग में ´जय-जय सुर नायक, जन सुख दायक´ कहकर पुकारा था।द्वापर युग का अंत समीप था, पृथ्वी कंसों व दुर्योधनों के भार से बोझिल हो रही थी। कलि-काल के उदय का पूर्वाभास होने लगा था। तभी तो वो चुपचाप कारागार में आए। महल में पदार्पण करते तो नंदगाँव, गोकुल, वृन्दावन को कैसे तृप्त करते। उन्होंने युग परिवर्तन को देखते हुए प्रारम्भ की अपनी लीला उस धरती माँ से जिसने उसका पालन किया। कुछ तो कारण था कि उस धरती ने कन्हैया को पुकारा ओर वो चले आए अपनी सोलह कलाओं सहित। वो शैशव काल में ही पूतना वध सेअपनी कलाओं द्वारा अपन...
गणतंत्र दिवस
कविता

गणतंत्र दिवस

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** गणतंत्र दिवस हम मना रहे, लहर लहर लहराए तिरंगा देशप्रेम की अलख जगी है, भारत की हर साँस तिरंगा। भारत की सीमाएँ, रक्षित बनी रहें सदा, भारत की सेना के बल, लहराए तिरंगा सदा सदा। चाहे बम हो या मिसाइल, या चाहे हनुमान-गदा भारत की दसों दिशाएं रक्षित रहें सदा सदा। भारत की सीमाओं का, होता जाए विस्तार सदा वैदिक युग का, हिंद महासागर, जो आर्यावर्त की मूल धरा। अमर रहे, सम्मानित, भारत का संविधान सदा बन जाए हमारी गीता, भारतवासी का ज्ञान सदा। देववाणी, सनातन संस्कृति कर्तव्य भाव का ध्यान सदा उपनिषदों की व्याख्या हो, वेदों का हो मान सदा।। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी,...
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डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** नो दाग, नो धब्बे के, चाहे कितने ऐड बना लो कन्या-जीवन पर लगे दाग को, हरगिज़ नहीं मिटा सकते। चाहे कितने ए.सी., कूलर और बना लो जब तक नन्हीं कलियों की दुर्गति होगी बाला की अंतर्ज्वाला को, हरगिज़ शांत नहीं कर सकते। चाहे कितनी सीमेंट बना लो, मन के टूटे तारों में भग्न संवेदना की धारों में, न तुम जोड़ लगा सकते। चाहे भौतिकता की कितनी डोर बढ़ा लो नैतिकता का पुष्प सुखाकर, आध्यात्म का बीज मिटाकर मन का उद्वेलन, हरगिज़ खामोश नहीं कर सकते। भारत की पावन संस्कृति, नन्हीं आहों से तपती है कितने ही फुव्वारे लगवा लो, बच्ची के तप्त ह्रदय को मन के तपते अंगारों को, हरगिज़ शांत नहीं कर सकते। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापो...