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Tag: डॉ. किरन अवस्थी

प्रथम सभ्यता
कविता

प्रथम सभ्यता

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** प्रथम सभ्यता इसी धरा पर इसके सीने पर हुई हलचल इस धरती पर पग रखा प्रथम मनु ने साक्षी बनकर। प्रथम वांग्मय इसी धरा पर वेदों की वाणी बनी धरोहर उपनिषदों ने की इनकी व्याख्या गाईं पुराणों ने गाथाएं मनोहर। कैस्पियन सागर और इर्दगिर्द वर्तमान लेबनान के राजा बलि फैली थी मानव संस्कृति जनक थे इसके कश्यप ऋषि। इस विकसित संस्कृति के रहवासी आर्य यहां कहलाए नाम धरा का आर्यावर्त था विष्णुभक्त प्रहलाद ईरान (आज का) का राजा था। अवतरित आदि तीर्थंकर ऋषभदेव जी श्रीराम के ६७ वें पूर्वज ऋषिराजा उनके ग्रंथों में दर्शन जो आज है केल्ट सभ्यता। पूज्य ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती नरेश महा यशस्वी राज्य चहुं दिशि फैलाया 'भारतवर्ष' देश यह कहलाया। (वर्ष का अर्थ है भूमि अर्थात् भरत की भूमि)। हुए यशस्वी राजा दुष्यंत ...
जीवन के आश्रम चार
कविता

जीवन के आश्रम चार

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** पचीस-पचीस वर्षों में बांटा अपने ऋषि मुनियों ने जीवन को प्रथम नाम है ब्रह्मचर्य आश्रम पूर्णरूप से शिक्षित होने को। गृहस्थ आश्रम नवसृजन कर सृष्टि के कर्तव्य निभाने को, नवजीवन का पालन कर संस्कार दे, शिक्षित करने को। तृतीय वानप्रस्थ आश्रम में गृहस्थ जीवन के दायित्व निभाकर,शनै:शनै: जीवन की आकांक्षाओं से मोहभंग-दशा में जाने को। संन्यासआश्रम चतुर्थ स्थिति है मान, अपमान, लोभ, क्रोध की हर सीमा को कर पार इच्छाओं से मुक्ति, त्याग, विरक्ति मन में ईश भक्ति अंतिम यात्रा पूरी करने को। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट को...
निर्धनता है मन का भाव
कविता

निर्धनता है मन का भाव

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** स्वाभिमानी जन श्रम का मान किया करते है जो न श्रम का सम्मान करें निर्धन वही हुआ करते हैं। नहीं भावना हो जिनमे न श्रम का वो मान करें जो शब्दों के बाण चलाते अंतस् उनके रीते रहते हैं। श्रम करना ही मानवता श्रम का फल मीठा मीठा मन का श्रम, तन का श्रम पुष्ट रहे सारा तन मन। कुटुंब, समाज या मानवता हित जो भरपूर परिश्रम करते हैं कड़ी धूप या जल प्लावन हो स्वाभिमानी वो पूज्य हुआ करते हैं। भीषण लू गर्मी में स्वेद बहा कर घर बाहर भोज्य बनाकर महल अटारी सबको दिलवा कर सबको तृप्त किया करते हैं। जिसकी जो सामर्थ्य जिसको जो आता है उसमें अपना सर्वस्व लुटाकर वो जन मानस को तुष्ट किया करते हैं मान सम्मान के असली अधिकारी वो हर रोज़ हुआ करते हैं। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलि...
हिंदी शब्दों का रोमन लिप्यंतरण
आलेख

हिंदी शब्दों का रोमन लिप्यंतरण

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** हिंदी के लिए प्रयुक्त देवनागरी लिपि में विश्व की लगभग सभी भाषाओं की ध्वनियों केलिए पृथक ध्वनिचिह्न प्राप्त हैं। कुछ नहीं भी हैं तो हिंदी का ´विकासशीलता´ का गुण उसे अपना कर नया चिह्न दे देता है यथा, क=क़, ग=ग़, ज=ज़ आदि। चूँकि अंग्रेज़ी स्वयं में एक वैश्विक भाषा का रूप ले चुकी है तथा हिंदी के लगभग सभी पौराणिक व ऐतिहासिक ग्रंथ अंग्रेज़ी में प्राप्त हैं, प्रकाशित हो रहे हैं। ऐसे मे समस्या तब आती है जब राम को Rama कृष्ण को Krishna, सुग्रीव को Sugriva, Omkara, Veda, Chanakya, Ashoka आदि लिखा जाता है तथा रामा, कृष्णा, नारदा, चाणक्या ओमकारा, वेदा, अशोका लोग बोलने भी लगे हैं। इससे मूल शब्दों के अर्थ का अनर्थ भी हो रहा है। अहिंदी भाषियों, अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ने वाले प्रवासी भारतीयों, विदेशों में जन्मे भारतीय बच्चों तथा भारत म...
अनासक्ति भाव
आलेख

अनासक्ति भाव

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** द्वारिकाधीश स्वयं अनासक्ति के प्रतीक हैं। प्रेमघट भरा रहा, किंतु त्यागा वृंदावन तो पीछे मुड़ कर न देखा। अंदर तक भर गया था प्रेम तो बाहर क्या देखते। हम सांसारिक प्राणी अलग हैं। माया, मोह, धन सम्पत्ति, परिवार, यश सभी ओर लोलुप दृष्टि है। जब तक सब अपने पास न हो, मन में शांति नहीं। हम सब भाग रहे हैं, दौड़ रहे हैं येन केन प्रकारेण भौतिक सम्पन्नता पाने को। कोई अंतिम लक्ष्य नहीं। एक इच्छा पूर्ण हुई नहीं कि दूसरी तैयार आसक्त करने को। क्या करें, कैसे करें??? ईश्वर ने समस्या दी तो समाधान भी दिया। प्रेम व कर्म जीवन का अभिन्न अंग हैं अन्यथा सृष्टि चले कैसे। जीवन की राह में परिवार, भौतिक साधनों, धन सम्पत्ति,मित्र, समाज के प्रति आसक्ति बढ़ती जाती है। संगति का प्रभाव बलवान है, वह चाहेपरिवार, मित्र या पुस्तकों का हो। जैसे लोगों के बी...
कृष्ण जी की १६ हजार रानियों का सत्य
आलेख

कृष्ण जी की १६ हजार रानियों का सत्य

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** ‌‌ कृष्ण जी के जीवनकाल में एक घटना घटी। नरकासुर नामक राक्षस ने १६ हजार स्त्रियों का अपहरण करके अपने महल में बंदी बनाकर रखा था। उसे कृष्ण जी ने नरकासुर को मार कर उन स्त्रियों को मुक्त कर दिया। इतने वर्षों तक राक्षस के यहां रहने के बाद उन्हें कौन स्वीकार करेगा, यह सोचकर सभी नदी में डूबकर जीवन समाप्त करने के लिए चल पड़ी। कृष्ण जी के पूछने पर उन्होंने अपने मन‌ की बात उन्हें बताई। इसपर भगवान श्रीकृष्ण जी ने उन्हें जीवन त्याग करने से रोका तथा कहा कि आप सबको मैं आश्रय दूंगा, आप मेरे साथ रहेंगी। कृष्ण जी तो बहुत सक्षम थे, उन सबके रहने के लिए महल बनवाकर उन्हें सुरक्षा प्रदान की। कृष्ण जी उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली राजा थे, उनकी सुरक्षा के घेरे में आने का किसी में साहस नहीं था। इस प्रकार वो भगवान की आश्रिता थीं, संरक्षण में थीं...
जनसाधारण में रासलीला पर भ्रांतियां
आलेख

जनसाधारण में रासलीला पर भ्रांतियां

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ********************  ५/६ वर्ष से लेकर १२ वर्ष तक के बालक कृष्ण की रासलीला को कुतर्कों से लोगों को भ्रमित किया गया। १२/१३ वर्ष तक तो वे मथुरा चले गये, फिर कभी न लौटे। गोपियां तो गृहणियां थी, जो कृष्ण जी की मोहक मुरली के स्वर सुनकर दौड़ी आती थीं। संगीत प्रेमी वो भी‌ नन्हे बालक‌ के मुख‌ से, कौन न आतुर होगा सुनने को। एक को बीच में खड़ा करके आसपास नाचने गाने की परंपरा आज भी होली के दिनों में उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश में दिखाई देती है। भारतीय शास्त्रों में गहरे दर्शन को केवल प्रतीकात्मक रूप में दर्शाया गया‌ है। चैत्र की फसल आए या सावन का महिना हो, संगीत तो फूट ही पड़ता है व नर्तन गायन शुरू हो जाता है। बालक रुपी परमेश्वर धर्म संस्थापना के निमित्त धरती पर आए, तत्कालीन दिग्भ्रमित जनता के साथ खेलकूद करके, नृत्य गायन वादन करके सबको एकत्रित करते थे, ...
बृज का उलाहना कान्हा को
भजन, स्तुति

बृज का उलाहना कान्हा को

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कान्हा, तुम गये तो लौट न आए राह तकें गोकुल, वृंदावन नंदलाल को तरसे हर मन नंदगांव, बरसाना व्याकुल गउएं मुरली सुनने को आतुर घर से न निकलें, टेर लगाएं। बोलीं राधा - आए कन्हैया धरती पर अपना कर्तव्य निभाने को उनका सारा जग अपना तुम पहचान न पाए कान्हा को। जिस धरती ने उन्हें पुकारा दौड़ वहीं कान्हा आए पूतना, तृणावर्त, बकासुर वध कर बृज के रक्षक कहलाए। बृज की मइया, बृज की गइयां बृज के गोप, बृज की गोपियां बृज में कान्हा रास रचाएं बृज ने गीत भक्ति के गाए बहा स्नेह की निर्मल धारा तम का बंधन काटा सारा। बढ़ा कंस का अत्याचार मथुरा की धरती करे पुकार प्रलोभन प्रवृत्ति, राक्षसी बल अनाचार का प्रचंड प्रसार आर्तनाद सुन पहुंचे कान्हा मथुरा की धरा को पहचाना। हुई राक्षसों की भारी‌ हार मिटा कंस, किया उद्धार ...
उद्गार
कविता

उद्गार

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** उद्गार लालायित हैं उद्गार भरे मन को लेखनीबद्ध करने को स्तंभकार बनाने जीवन को। उद्गारों का ही खेल है लेखन लेख, कहानी, उपन्यास मन अगन, पवन, विज्ञान ज्ञान धरा, जलधि, पाताल, गगन। अंबर पर चंदा सूरज नवग्रह का जाल बिछा है धरती पर पल्लव, वृक्षों का गहन अंधकार छुपा है । आदिमानव के मन अनुभूति क्षुधा, प्यास की आपस में घिस पाहन को अनल ज्वाल प्रज्ज्वलित की। भाषा का आविष्कार तभी जब मन‌ में उद्गार भरे हों वेद पुराण उपनिषद् शास्त्र अष्टाध्यायी या नाट्यशास्त्र अभिज्ञान शाकुन्तल या कादंबरी मुद्राराक्षस या राजतरंगिणी। क्षत-विक्षत आहत तन हुआ आयुर्वेद का आविष्कार हुआ जब वर्षा की मृदुल फुहार गीत नर्तन का जन्म हुआ। मन रोया, आदि कवि की सृष्टि युवाकाल की हंसी निराली प्रेम, विनोद, क्रोध, विभीषिका व्यंग्य हास्य नवरस क...
जीवन यात्रा
कविता

जीवन यात्रा

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कोई जीवन कविता है, कोई बना कहानी कोई समाज का दर्पण, कोई बना इतिहास लिये जीव की अंतिम सांस। कोई विज्ञान बना है, कोई कोषागार कोई कला का सागर, कोई छुए आकाश लिये ह्रदय में प्यास। कोई मरुभूमि बना है, कहीं खेत हरियाता कोई किनारा अधबिसरों का, कोई सागर सा लहराता लिये मिलन की आस। जितने मन हैं उतने ढंग, जितने जीवन उतने रंग तरह-तरह के करे प्रयास, अंत मिले अनंत का वास भाव ये मन में, भरें मिठास। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति...
नवमी तिथि मधुमास पुनीता
भजन

नवमी तिथि मधुमास पुनीता

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** राम जन्मदिन शुभ अवसर है जनगण मन उत्सव सा प्लावित है राम हैं भारत कीआत्मा नर रूप धरा आये परमात्मा ये भारत के प्राणपुरुष हैं राम हैं मर्यादा, हाथ धनुष है। जब घायल हो भारत माता क्षत विक्षत हो मर्यादा भारत की अस्मत पानी होती और धर्म की हानि होती धरणी तब आवाहन करती मनुष्य रूप आयें तब धरती भारत धरती करे पुकार राम रूप आये अवतार राम पे कोई न चक्र चले प्रत्यंचा पर जब तीर चढ़े संकेत राम का है आना युद्ध न्याय का जीता जाना। रामलला की छवि हर मन है राम बसे जन जन के हिय हैं राम धरे धनुसायक हैं राम हमारे नायक हैं आस्था, मन, अंतःकरण पर्याय राम भारत के जीवन राम बिना नहि कुछ स्वीकार राम हैं प्राणों के उद्धार भक्त तुम्हारे तुम्हरे द्वार तुम्हें नमन है बारंबार तुम्हें नमन है बारंबार।। परिचय :- डॉ. किरन अवस...
वसंत की छटा होली संग
कविता

वसंत की छटा होली संग

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** जब भी माधव मन में आएं ॠतु बहार,बसंत की छाए राधावल्लभ के दर्शन हों मन की कलियां खिल जाएं। पीताम्बर छवि मन में समाई फूल खिले, सरसों बिखराई हर ओर है छाई ॠतरानी पुष्पांजलि अर्पित धानी धानी। बसंत में डूबी होली आई दौड़े-दौड़े आए कन्हाई हर‌ओर समा वृंदावन का रंग राधा का, बरसाने का। प्रकृति डुबी रास रंग में आस जगी सबके मन में दिनकर की किरणों संग ईश्वर का वरदान बसंत। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय...
देशवासियों जागो
कविता

देशवासियों जागो

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** जागो, देश वासियों जागो छद्मवेष है कोने-कोने में मन में खोट बसी इक खेमे में जागो देश वासियों, जागो। धोखे बहुत सहे हमने अब मिट रहा‌आवरण भ्रम का भारत माता अपनी जननी है इसकी रक्षा हमको करनी है। सनातन संस्कृति अपना आभूषण है इस पर न्योछावर भारत का जन मन‌ है इसकी रक्षा अपना प्रण है इसे नहीं मिटने देंगे। समय कहीं भी रखे‌ हमको फिर भी ‌हम कुछ कर सकते हैं कलम धनी हो यदि अपनी अपना योगदान दे सकते हैं । जागो, देश वासियों, जागो। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती ...
सूरज न अभिमान दिखाता
कविता

सूरज न अभिमान दिखाता

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** ‌हाथी ही पहाड़ के नीचे नही आता दिनपति भी बादलों में छुप जाता है रवि को जब ढक लेते हैं मेघा तो वह भी अपनी सीमा जान जाता है तभी तो रवि गर्व नहीं करता उसे अहंकार नही ढक पाता आओ मानव मुझे मनाओ कह, वह सिर न उठाता। सूर्य ऊर्जा, प्रकाश का दाता सारे जग का जीवन दाता उस बिन अस्तित्व नही जग का फिर भी न अभिमान दिखाता। जल, वायु सबको देता सबका मान सम दृष्टि से सबका करता सम्मान नही कभी एहसान जताता हर कण पर पूरा प्यार लुटाता। इस गुण से ही दिनकर पाता सबमें सम्मान नही कोई बैरी उसका ब्रह्मंड में सर्वोच्च स्थान। बच्चों तुम सूरज बन जाओ। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज...
तुम शिव बन जाओ
स्तुति

तुम शिव बन जाओ

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** तुम शिव बन जाओ जग के गरल को ग्रीवा में ग्रस लो नागों की फुफकार पर, नागेश्वर बन जाओ। अपनी परिधि से दूर कर दो कुत्सित समर को मन: अजिर में शीतलता दो तुम सोमनाथ बन जाओ। दैत्यराज भी आएँ लक्ष्य से भटकाने तुम्हें अडिग रहकर उसके लिए तुम महाकाल बन जाओ। जो आए विनती लेकर दर पर तुम्हारे, उसके लिए तुम भोलेनाथ बन जाओ। हर साँस में भटकते, तड़पते प्यासे की तुम आस बन जाओ उनके तुम विश्वनाथ बन जाओ तुम शिव बन जाओ। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्राय...
इंद्रधनुष सा सतरंगी जीवन
कविता

इंद्रधनुष सा सतरंगी जीवन

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** सात रंगों का सम्मिश्रण रवि की किरणों का संप्रेषण जीवन है इंद्रधनुष सा सम्मेलन। एक रंग लाता जीवन में वीरानी सब रंगों ने ईश्वर की कृति में मिलजुल कुछ करने की ठानी। सभी वर्ण अपने-अपने गुण-वाहन लेकर आए सभी गुणों का संदेशा लाये। रंग जामुनी निष्ठा औ स्थाई भाव का रंग बैंगनी मनन, ध्यान और मनुजता नीलवर्ण इच्छाशक्ति, मान, धैर्य, शालीनता। पुष्प, खेत, वृक्ष, वैभव के दर्शन हरियाली हरा रंग ले आता है सबके हिय को हर्षाता है। पीतवर्ण विद्या, बुद्धि, प्रतीक ज्ञान का नारंगी में ईश्वर का आशीष छुपा , उत्साह, शक्ति, गांभीर्य, संतुलन संयम का। लाल रंग में ऊर्जा औ उल्लास भरा है रक्तसंचरण की भांति जीवन में भाव निरंतर चलते जाने का है। सभी रंग इंद्रधनुष के कुछ न कुछ दे जाते हैं आस निराश, उत...
उषाकाल
कविता

उषाकाल

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** उषाकाल में सागर तट पर रवि की सारथि बन अरुण की अरुणाई छा गई विश्वपटल पर। उसकी सुखद मृदु छाया भा गई धरती को बन माया आभास दिवस का आया कर्म को गति, प्रकाश छाया अविरलअनन्त अस्तित्व उसी का जिससे बहती जीवनधार जिससे ही आल्हादित, स्पंदित हो अग्र बढ़े यह संसार। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमा...
२६ जनवरी
बाल कविताएं

२६ जनवरी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** २६ जनवरी गणतंत्र दिवस पर यह सपना साकार करें बाल, वृद्ध सब मिलकरके एक जतन हम आज करें। वतन में फैली महा कुरीतियाँ सब मिल के बहिष्कार करें इन्हें न पलनें दें भारत में निराकरण हम आज करें। आज की दुनियाँ बड़ी निराली धन की महिमा है अति भारी धर्म, कर्तव्य और त्याग नहीं है धर्म आज का केवल 'धन' है। आज के युग की महामारी केवल बढ़ती भौतिकता जीवन मूल्यों का नहीं मोल है भूल चुके सब नैतिकता। धन का मद है महापापमय धन का सद् उपयोग करें 'उचित काल में उचित प्रयोग का' हम बच्चों को संस्कार दें। बाल वृद्ध सब मिल कर के, एक जतन हम आज करें। नेकनियत और सच्चाई जिस जिसके भी पास हैं वही है सच्चा देशभक्त और ईश्वर उसके साथ है यही संदेशा हम बच्चों में घर-घर आज प्रसार करें बाल वृद्ध सब मिलकर के एक जतन हम आज करें। परिचय...
हे राम! क्यों प्रश्न तुम पर
कविता

हे राम! क्यों प्रश्न तुम पर

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** हे राम, क्यों प्रश्न है तुम पर तुमने ही जग को साधा तुम्हीं जगत् के स्वामी क्यों संशय है तुम पर? कहां रहे तुम राघव! कबतक गांभीर्य दिखाओगे कितने दल-बल घायल होंगे कितने शहीद होंगे सैंधव? हे रघुनाथ दयालु तुम कब पुनः ताड़का तारोगे आज अहिल्या पार करा कर पुन शबरी को मोक्ष दिलाओगे ? यज्ञशाला की वेदी पर प्रतिदिन अगणित विध्वंस हुआ करते हैं कब खल दल का नाश करोगे कब धरिणी का पुन उद्धार करोगे? कैसे इतना दुस्साहस है कैसे तुम पर प्रश्न लगे हैं क्षतविक्षत जीर्णशीर्ण मन है आहत भारत माता का जन जन है हे दाशरथि तुम आ जाओ। मां वसुंधरा की करुण पुकार प्रत्यंचा पर कब तीर चढाओगे घायल वसुधा की पीड़ा हरने मर्यादा पुरुषोत्तम कब आओगे? जय जय सुरनायक, सब सुखदायक रघुकुल तिलक तुम आ जाओ। परिचय :- डॉ. किरन अवस...
संपूर्ण दर्शन हो तुम
स्तुति

संपूर्ण दर्शन हो तुम

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** तुम पूर्ण दर्शन हो कन्हैया दर्शन के दर्शन करवाते हो तुममें डूब सकें हम तो जीवन नौका पार कराते हो। जो न समझा तुमको हमने काया नगरी न सुधरेगी ऊबड़-खाबड़ पगडंडी सी प्राणों की लकीर उभरेगी। शिशु काल में रिपु पहचाना बाल्यकाल में प्रेम दिखाया संपूर्ण स्नेह के संपूर्ण विरह को तुमने हमको सब समझाया। किशोरकाल के पहले पग पर समरनाद कर युद्ध किया अगणित कंसों को मारा मथुरा को नव जन्म दिया। समयानुसार आन पड़ी तो रण छोड़ गए, द्वारिका बसाई कर्म-क्षेत्र में जो बाधा बन आया यह तन छोड़ा, परमगति पाई। कब क्या करना है, मानव को तुमने हर पल सिखलाया सीमा‌ पार करें यदि कोई तुरत सुदर्शन चक्र चलाया। सखा बने तो तुमसा कोई मित्र सुदामा के जीवनदाई सारथि बनकर पार्थ संभाला यज्ञ राजसूय में पात उठाई। गुरु बन तुमने गीता गाई जीवन पक्...
नववर्ष
कविता

नववर्ष

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** अंतिम सप्ताह दिसंबर का एक जनवरी को यों तांक रहा विजय पताका सा व्यक्तित्व ज्यों झांक रहा अपने शैशव को, अपने यौवन की तरुणाई को खेल लड़कपन के, स्वप्न किशोरावस्था के चुनाव, तनाव, भटकाव जीवन के पतझड़ के पत्तों का झरण नव पल्लव का आगमन करते चलते लो आ गया अंतिम चरण शिथिल तन किंतु सुस्मित मन अब मुझको भी जाना है मेरे जीवन की अमराई को मेरी संतति को दोहराना है हर वर्ष ने स्वयं को दोहराया है नवजात शिशु की नन्ही चितवन सा जगमग करता मुस्काता सा नया वर्ष फिर आया है। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजरात...
हे द्वारिकाधीश, तुम आ जाओ
भजन, स्तुति

हे द्वारिकाधीश, तुम आ जाओ

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कहां छुपे हो कान्हा तुम कहां सुदर्शन चक्र तुम्हारा कहां तुम्हारी गीता है क्यों चुप पांचजन्य तुम्हारा। क्यों इतने दुर्योधन पलते हैं क्यों शिशुपाल दिनों दिन सीमा पार किया करते हैं सख्यभाव है कहां तुम्हारा। न्याय दिलाने पांडव को तुम बने सारथी, गीता गाई आज पुकारे भारतमाता मन क्रंदन, अंखियां भर आईं। द्रोपदियों का नित चीरहरण कैसे यह तुम सहते हो छत्तिस टुकड़े हो जाएं क्यों न न्याय दिलाते हैं। कबतक मन को थीरज दें हे कान्हा तुम आ जाओ फिर से गीता आन रचो हर भारतवासी के मन आन बसो। सबके मन को स्वछ बनाओ पुनः जीवन का अर्थ बताओ सबको धुन बंसी की सिखाओ हे कान्हा, तुम आ जाओ हे द्वारिकाधीश, तुम आ जाओ। (बंसीधुन=प्रेमधुन) परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिट...
खण्डहर
कविता

खण्डहर

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** लोग मुझे खण्डहर कहते हैं कुछ अनजान से होते हैं, खण्डहर समझ कर मुझे ठुकरा कर, आगे बढ़ जाते हैं जानते नहीं वो, मैं भी था कभी एक आलीशान महल, राजसी ठाठ कभी मेरा भी था यौवन, मैं भी सिर उठा खड़ा अभिमान से देखता, हर कोई मुझमें झाँकने का साहस न बटोर पाता। किंतु, समय के गर्त ने मृत्यु के समान अपने अंक में मेरा रूप समेट लिया। आज सभी मुझे बाहर से देख कर आगे बढ़ जाते हैं ! मानव भी तो शव हो जाता है श्रद्धांजलियाँ अर्पित करते हैं हज़ारों, और मेरे इस शव की? उपेक्षा करते हैं, क़दम एक भी रखते नहीं जिससे वो मलिन न हो जाए। रूप दोनों का एक ही, पर स्वागत ? कैसा है प्रकृति का व्यंग्य !! परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी ...
सागर का वसन्त अनंत
कविता

सागर का वसन्त अनंत

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** सागर का वसंत हैअनंत कभी न मरने वाली, अटखेली करती मतवाली लहरों का है संग, तो क्यों न हो सागर का वसंत अनंत। सागर को तर करने वाली, कूलों को बालू से भरने वाली लहरों का है संग, तो क्यों न हो सागर का वसंत अनंत। चंदा को रिझाने वाली, सूरज को चमकाने वाली लहरों का है संग, तो क्यों न हो सागर का वसंत अनंत। प्रस्तर को मृदु करने वाली, वृक्षों का सिंचन करने वाली लहरों का है संग, तो क्यों न हो सागर का वसंत अनंत। कमसिन सी जल भरने वाली, मीठी तान सुनाने वाली लहरों का है संग, तो क्यों न हो सागर का वसंत अनंत। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी...
नियति चक्र
कविता

नियति चक्र

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** जीवन की अंतर्तम गहराई को छलकाने वाले ओ। नयनों की बूँद, तुम्हें कैसे समझाऊँ ! जीवन को सपनों की घाटी बतलाकर ओ नयनों के अश्रु, तुम्हें कैसे बहलाऊँ! मृग तृष्णा बन विश्व चक्र यों घूम रहा है अन्तर की कस्तूरी को, नहीं कोई पहचान रहा है ज्ञात नियति को ख़ुद न समझने वाले ओ नयनों के दीप तुम्हें कैसे समझाऊँ ! जीवन क्या है, क्यों है, नहीं किसी ने जाना इसका कौन रचयिता, नहीं कोई पहचाना किसके अंतर की ज्वाला धधक रही धरती पर ओ नयनों की बूँद तुम्हें कैसे बतलाऊँ ! प्रकृति के हैं रूप अनेक, बसी जहाँ अनुपम माया कहीं रूप है, कहीं रंग है, कहीं रहे केवल छाया प्रकृति शाश्वत, काया नश्वर यह यथार्थ तुम स्वीकार करो ओ नयनों के दीप, तुम्हें कैसे सहलाऊँ !! परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी स...