काले साये
डॉ. उपासना दीक्षित
गाजियाबाद उ.प्र.
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क्यों बढ़ रहे, हमारी ओर
यह काले-गोरे हाथ
क्यों मिल रहा इन्हें
अमानवीय सभ्यता का साथ
यह नोंच लेना चाहते
मानवता की कोमलता
बच्चों की मुस्कराहटें
स्त्रियों की सहजता.....।
यह हाथ नहीं हैं
यह है क्रूर छाया
नष्ट करते आस्था
मिटाते मनुज काया
पाषाण हृदय, वहशी
आंतक के यह पुतले
युद्ध की विभीषिका को
देख खूब हँसते
फैल रही यह काले रंग की
हानिकारक फंगस
और न फैल सके
इसलिए बढ़ानी होगी
सीमाओं की चौकसी
छोड़नी होगी, पैर फैला कर
सोने की आदत
पडो़सी के घर
संगीनों की आहट
खुद के घर पर भी
देती अनचाही बुलावट
रोकने होंगे, ड़राते पंजों
के बढ़ते अहसास
चौकन्ने होकर देखने होंगे
विरोधियों के आघात
हम युद्ध नहीं चाहते
हम चाहते हैं शांति
धैर्य की कसौटी पर
होगी, हमारी घोषित क्रांति
परिचय :- डॉ. उपासना दीक्षित
जन्म ...