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Tag: डॉ. अवधेश कुमार अवध

दर्ज ना हो …
कविता

दर्ज ना हो …

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** फाड़ दो सब चिट्ठियाँ, कॉपी, किताबें, दर्ज ना हो देश का अभिमान जिसमें। काट दो इतिहास से वे पेज सारे, दर्ज ना हो वीरता - बलिदान जिसमें। खून के बदले मिला हमको तिरंगा, मत समझना मुफ़्त की सौगात है ये- तोड़ दो गद्दार के हर बाजुओं को, दर्ज ना हो हिंद - हिंदुस्तान जिसमें।। परिचय :- डॉ. अवधेश कुमार "अवध" सम्प्रति : अभियंता व साहित्यकार निवासी : भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कह...
राखी बनाम वचन पर्व
कविता

राखी बनाम वचन पर्व

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** थाल सजाकर बहन कह रही, आज बँधालो राखी। इस राखी में छुपी हुई है, अरमानों की साखी।। चंदन रोरी अक्षत मिसरी, आकुल कच्चे-धागे। अगर नहीं आए तो समझो, हम हैं बहुत अभागे।। क्या सरहद से एक दिवस की, छुट्टी ना मिल पायी? अथवा कोई और वजह है, मुझे बता दो भाई ? अब आँखों को चैन नहीं है और न दिल को राहत। एक बार बस आकर भइया, पूरी कर दो चाहत।। अहा! परम सौभाग्य कई जन, इसी ओर हैं आते। रक्षाबंधन के अवसर पर, भारत की जय गाते।। और साथ में ओढ़ तिरंगा, मुस्काता है भाई। एक साथ मेरे सम्मुख हैं, लाखों बढ़ी कलाई।। बरस रहा आँखों से पानी, कुछ भी समझ न आये। किसको बाँधू, किसको छोड़ू, कोई राह बताए? उसी वक्त बहनों की टोली, आई मेरे द्वारे। सोया भाई गर्वित होकर, सबकी ओर निहारे।। अब राखी की कमी नहीं है और न कम हैं भाई...
मौन
कविता

मौन

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** मौन की छाती में छिपा हुआ ज्वालामुखी बाहर से नहीं दिखता पर होता है सीने में असीम आग को समेटे स्वयं की आग से स्वयं को जलाता है पर धीरे धीरे ...... मौन नहीं होता सदा स्वीकार का लक्षण बल्कि अक्सर होता है यह अस्वीकार .... वह समय भी आता है जब मौन मुखर होता है अट्टहास ही तो करता है शिव के तांडव सरिस महाविनाश लीला सीने की आग बिखरकर जला देती है मौन को मौन सशब्द हो जाता जब मिट जाता है मौन होने का अभिशाप हाय! मौन इतना भयंकर !! परिचय :- डॉ. अवधेश कुमार "अवध" सम्प्रति : अभियंता व साहित्यकार निवासी : भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
माँ केवल माँ जैसी होती
कविता

माँ केवल माँ जैसी होती

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** चाहता हूँ वक्त को, मुट्ठी में अपने बंद कर लूँ, ज़िंदगी की दौड़ में अब, माँ न मेरी दौड़ पाती। *** जंग लड़ती ही रही माँ, ज़िंदगी भर ज़िंदगी से, वक्त ने धोखा दिया है, ज़िंदगी के साथ मिलकर। **** माता ने फिर भाँप लिया है, बेटे की नादानी को, किंतु न बेटा समझ सका है, कुर्बानी अपने माँ की। **** माँ को अपने छोड़ गया है, बेटा एक अनाथालय में, वर्षों पहले उस बच्चे को, उसी जगह से गोद लिया था। ***** माँ - बापू को छोड़ अनाथालय में, बेटा भागा है, शायद उसके तीर्थाटन की, ट्रेन छूटने वाली है। ***** पढ़ी- लिखी वह नहीं किंतु बेटे का मन पढ़ लेती है, जाने कब, किन स्कूलों में, माँ ने ये भाषा सीखी? ***** माँ केवल माँ जैसी होती, गुरु, ईश्वर सब पीछे हैं, जग में ऐसा बैंक नहीं, जो उसके ऋण को चुका सके। ***** परिचय :- डॉ. अवधेश कुमा...
मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ
भजन, स्तुति

मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ, दे दो मेरा अधिकार मुझे। वापी में हैं मेरे बाबा, कर दो सम्मुख-साकार मुझे।। अब तो जागो हे सनातनी, डम-डमडम डमरू बोल रहा। न्यायालय आकर वापी में, इतिहास पुराने खोल रहा।। अब बहुत छुप चुके हे बाबा, करने दो जय-जयकार मुझे। एक विदेशी खानदान ने, मंदिर को नापाक किया था। मूल निवासी सनातनी के, काट कलेजा चाक किया था।। औरंगजेब नाम था उसका, वह धर्मांध विनाशक था। भारत माता के आँचल का, वह कपूत था, नाशक था।। आस्तीन में साँप पले थे, बहु बार मिली थी हार मुझे। ले रहा समय अब अँगड़ाई, खुल रहे नयन सुविचार करो। बहुत सो चुके हे मनु वंशज, उठ पुनः नया उपचार करो।। लख रहा दूर से बेसुध मैं, वर्षों से बाबा दिखे नहीं। मैं अपलक चक्षु निहार रहा, विधि भी आकर कुछ लिखे नहीं।। अवध अहिल्या...
भारतीय गणतन्त्र के सात दशक
आलेख

भारतीय गणतन्त्र के सात दशक

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** परिवर्तन का जोश भरा था, कुर्बानी के तेवर में। उसने केवल कीमत देखी, मंगलसूत्री जेवर में।। हम खुशनसीब हैं कि इस वर्ष २६ जनवरी को ७४वाँ गणतन्त्र दिवस मना रहे हैं। १५ अगस्त सन् १९४७ को पायी हुई आजादी कानूनी रूप से इसी दिन पूर्णता को प्राप्त हुई थी। अपना राष्ट्रगान, अपनी परिसीमा, अपना राष्ट्रध्वज और अपनी सम्प्रभुता के साथ हमारा देश भारत वर्ष के नवीन रूप में आया था। हालाँकि इस खुशी में कश्मीर और सिक्किम जैसे कुछ सीमावर्ती या अधर में लटके राज्य कसक बनकर उभरे थे। देश को एक संविधान की जरूरत थी। संविधान इसलिए कि किसी भी स्थापित व्यवस्था को इसी के द्वारा सुचारु किया जाता है। संविधान को सामान्य अर्थों में अनुशासन कह सकते हैं। संविधान अनुशासन है, यह कला सिखाता जीने की। घट में अमृत या कि जहर है, सोच समझकर पीने की।। २ वर्ष...
मैं बटर कहाँ से लाऊँ
कविता

मैं बटर कहाँ से लाऊँ

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** भूखे आकर, गाली खाकर। खून जलाकर, स्वेद बहाकर।। रोटी-भात जुटाऊँ। मैं बटर कहाँ से लाऊँ! दिनभर खटकर, पल-पल मरकर। विपदा सहकर, रोकर-हँसकर।। रूखा-सूखा खाऊँ। मैं बटर कहाँ से लाऊँ! सर की चाहत, दारू की लत। गंदी आदत, मिले न राहत।। कैसे उन्हें मनाऊँ? मैं बटर कहाँ से लाऊँ! टूटी पायल, चिथड़ा आँचल। मन भी घायल, महँगा ऑयल।। खाऊँ या कि लगाऊँ? मैं बटर कहाँ से लाऊँ! दिन को रातें, उल्टी बातें। नकली खाते, चालें-घातें।। देखूँ, चुप रह जाऊँ? मैं बटर कहाँ से लाऊँ! जा रे जा जा, सबका खा जा। सच, झुठला जा, बन जा राजा।। अवध न शीश झुकाऊँ। मैं बटर कहाँ से लाऊँ! परिचय :- डॉ. अवधेश कुमार "अवध" सम्प्रति : अभियंता व साहित्यकार निवासी : भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह र...
बाजारवाद के चंगुल में
कविता

बाजारवाद के चंगुल में

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** ऑक्टोपस की कँटीली भुजाओं सरिस जकड़ रहा है सबको व्यापक बाजारवाद जन साधारण की औकात एक वस्तु जैसी है कुछ विशेष जन वस्तु समुच्चय ज्यों हैं हम स्वेच्छा से बिक भी नहीं सकते हम स्वेच्छा से खरीद भी नहीं सकते पूँजीपति रूपी नियंता चला रहा है पूरा बाजार जाने-अनजाने हम सौ-सौ बार बिक रहे हैं किसी और की मर्जी से हम हँसते या रोते दिख रहे हैं आँसू बेचकर भी कई मालामाल हैं हँसी बेचकर भी कई बेमिसाल हैं सब कुछ बिकाऊ है सबके खरीददार हैं इस अंतहीन भयानक पतन के दौर में किसी के भी शुद्ध या बुद्ध होने की आशा न करें सत्य यह है कि- हमारी इच्छाएँ भी नहीं हैं हमारी बल्कि, कठपुतली बनी हुई हैं बाजारवाद के नरभक्षी चंगुल में। परिचय :- डॉ. अवधेश कुमार "अवध" सम्प्रति : अभियंता व साहित्यकार निवासी : भानगढ़, गुवा...
हम भेड़ हैं
कविता

हम भेड़ हैं

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** हाँ, हम भेड़ हैं हमारी संख्या भी बहुत अधिक है सोचना-विचारना भी हमारे वश में नहीं न अतीत का दुःख न भविष्य की चिंता बस वर्तमान में संतुष्ट क्रियाशील, लगनशील, अनुगामी अगुआ के अंध फॉलोवर अंध भक्त, अंध विश्वासी अनासक्त सन्यासी क्योंकि हम भेड़ हैं। हाँ, हम भेड़ हैं किंतु खोज रहे हैं उस भेड़िये को उसके साथ मिले गड़ेरिये को जो लाया था- भेड़ की खाल में भेड़िया हाय रे! छली-कपटी गड़ेरिया दोनों ने किया था वादा लेकर थोड़ा, देंगे ज्यादा अबकि जाड़े में लाएंगे कंबल हमारी समस्याओं का निकालेंगे हल बदले में चाहिए हमसे थोड़े-थोड़े बाल हम सबको मिलेगी एक-एक शाल हम अपने गड़ेरिये की बात में आ गए बहुरुपये भेड़िये को देख जज्बात में आ गए। चिल्ला जाड़ा पड़ रहा है न कंबल, न शाल बुरा है हमारा हाल हमारी संख्या भी पहले से कम है ...
दीपोत्सव
कविता

दीपोत्सव

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** किसी जगह पर दीप जले अरु कहीं अँधेरी रातें हों । नहीं दिवाली पूर्ण बनेगी, अगर भेद की बातें हों ।। ऐसे व्यंजन नहीं चाहिए, हक हो जिसमें औरों का । ऐसी नीति महानाशक है, नाश करे जो गैरों का ।। हम तो पंचशील अनुयायी, सबके सुख में जीते हैं । अगर प्रेम से मिले जहर भी, हँस करके ही पीेते हैं ।। चूल्हा जले पड़ोसी के घर, तब हम मोद मनाते हैं । श्मशान तक कंधा देकर, अन्तिम साथ निभाते हैं ।। किन्तु चोट हो स्वाभिमान पर, जिन्दा कभी ना छोड़ेंगे । दीप जलाकर किया उजाला, राख बनाकर छोड़ेंगे ।। दीपोत्सव का मतलब तो यह, सबके घर खुशहाली हो । दीन दुखी निर्बल के घर भी, भूख मिटाती थाली हो ।। प्रथम दीप के प्रथम रश्मि की, कसम सभी जन खायेंगे । दीप जलाकर सबके घर में, अपना दीप जलायेंगे ।। घर घर में जयकारा गूँजे, कण कण में खु...