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Tag: ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”

द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद
छंद

द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद (समवृत्तिक (दो-दो चरण-समतुकान्त)- नगण+भगण-भगण+रगण-१२ वर्ण) (ॐ स शनये नम : !) शनि सुनो विनती हर लो दुखा। कर कृपा हिय में भर दो सुखा।। तनु श्याम कुदृष्टि भयंकरा। नसत बुद्धि, विवेक सभी हरा।। मति हरी जिसकी उ नहीं बचा। तनय अर्क उसे त रहे नचा।। फलत कर्म यमी अनुसार ही। मिलत दण्ड भरे कुविचार ही।। शनि प्रसन्न, रहे न महादशा। कठिन राह सभी रहते गशा।। अभय देकर दान बता रहे। कलुष कल्मष खेह सभी बहे।। चढ़त तेल करू जल बीच है। शनि दिना जब पिप्पल सिंच है।। कटत दु:ख अपार न संशया। शनि प्रभो जबहीं करते दया।। सुखद जीवन मंद नहीं पड़े। भज चलो शनि देव रहें खड़े।। सकल सूरत में भल कुरूप हैं। सफल न्यायिक-दाण्डिक रूप हैं।। परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" निवासी...
गगन गोचर देव प्रचंड हैं
छंद

गगन गोचर देव प्रचंड हैं

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद समवृत्तिक (दो-दो चरण- समतुकान्त)- नगण+भगण-भगण+रगण- १२वर्ण ॐस रवये नम : गगन गोचर देव प्रचंड हैं । प्रसरते चहुँ रश्मि अखंड हैं ।। परम ज्योति अलौकिक धन्य है । सुखद चारु सरूप सुरम्य है ।। जगत भासित है तुमसे शुभी । निरत रहते ना रुकते कभी ।। जपत जे प्रभु भानु हँ नित्य हैं । भरत ते धन-धान्य सुकृत्य हैं ।। अदिति पुत्र प्रभो तम नाशिकी । रवि अहस्कर तेजस मानकी ।। इसलिए इनको कहते चहूँ । कनक रूप धरे दिखते दहूँ ।। निशि-दिना जगते सुप्रभास हैं । जगत के इक सुन्दर आस हैं ।। अरुणि सारथि हाँकत स्यंदना । करत देव जती सब वंदना ।। दिखत अद्भुत दृश्य मनोहरा । अरुणिमा बिखरे जब भास्कर ।। जयति भानु विकर्तन देवता । प्रथम पूज्य अर्क विभेदता ।। परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्ड...
द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद
छंद

द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद समवृत्तिक (दो-दो चरण- समतुकान्त)- नगण+भगण-भगण+रगण- १२वर्ण पवन-पुत्र कपीश बलीस हैं । लखन प्राण निवारक अनीस हैं ।। हरन शोक सिया त अशोक हैं । तरन सिंधु विशाल विशोक हैं ।। कपिस केश सुबाहु बलिष्ठ हैं । कनक देह सुशोभित मिष्ठ हैं ।। अमित विक्रम अम्मर साहसी । जगत रक्षक साधक जापसी ।। सच कहा भल सज्जन वानरा । कर भला जब ही भल डाबरा ।। नित करो हनु का जप ध्यान से । मनन तर्पण-अर्पण मानसे ।। पनपती विष वल्लरि द्वार है । विपति-साँसति फैलति झार है ।। सुखद भाव भरे कर दो शुभा । पतित-पावन रूप चलो निभा ।। चहुँमुखी सुरसा मुँह खोलती । प्रगति पंथ खड़ी नित रोकती ।। कुशल, कौशल आकर मोइए । चहुँदिशा यश-वैभव जोइए ।। अनीस- सुप्रीम , मिष्ठ- पुण्यात्मा , डाबरा मीठे लड्डू परि...
आदित्य देव सुन लो, विनती हमारी
छंद

आदित्य देव सुन लो, विनती हमारी

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** वसन्ततिलका- उक्ता वसंततिलका तभजा : जगौ ग : (तगण, भगण, जगण , जगण , दो गुरु - १४ वर्ण ८, ६ पर यति हो या नहीं भी हो, दो सम तुकान्त) ॐ स सूर्याय नम : आदित्य देव सुन लो, विनती हमारी। आओ प्रभास भरके, तम हे निवारी।। मुक्ता सुमाल पहिरे, गल है सुहाता। प्रद्योत राशि बिखरे, जब हो प्रभाता।। संपतिवान करते, रवि हैं दयालू। पूजो सदा प्रबल को, यह हैं कृपालू।। बाधा सभी निपट के, सुख शांति देती। स्वामी सुकर्म कहते, पहले शुभेती।। आराधना सुखद है रविवार द्यौ की। शीघ्राति पूर्ण करते, फल देत लौ की।। प्रातः सुकाल चित में, इनको बिठाना। सच्ची लगी लगन से, इनको बुलाना।। संपूर्ण व्योम चलते, थकते नहीं हैं। उत्पन्न अन्न करते, डिगते नहीं हैं।। नक्षत्र में प्रथम हैं, बहु हैं प्रतापी । सारंग सूर्य जग के, कर लो मिलाप...
शिव-गौरी विवाह
भजन, स्तुति

शिव-गौरी विवाह

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** बूढ़े बैल असवार, आये हिमगिरि के द्वार, ब्याहन गौरी सरकार, भोले भंडारी।। गल माहीं लिपटा है विषधर माथे बाल विधू है सुंदर डमरू संग हांथ तिरसूला नीलकंठ गंगाधर शंकर छाती नर मुंडन कै हार, बिछुआ कनवा झूलनदार है अद्भुत रूप सिंगार भोले भंडारी.... दीखैं रंग रंग बाराती कोऊ मोटा ताजा माती बिन मुख हांथ पाँउ बा केऊ केउतउ बहु अंगन जामाती कूकुर सुअर सियार, गदहा मुखन आकार, नाहीं इनकै है संभार भोले भंडारी.... नाचत भूतन सँगे परेता डाकिनी शाकिनी समेता जोगिनी संगती भिड़ावैं ढ़ोलक पिशाचिनी जमेता बैठी सकल जिंवार, रही बरातिन निहार, खोले सजरा हजार भोले भंडारी.... चहुँमुख बजे हैं नगाड़े ब्रह्मा विष्नु हैं पधारे सगरे देवा हैं पहुँचे राजा हिमाँचली द्वारे लखिके दमदा लीलार, मैंना पीटैं कापार, विधिन...
वसन्ततिलका – उक्ता वसंततिलका
छंद

वसन्ततिलका – उक्ता वसंततिलका

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** तभजा : जगौ ग : (तगण, भगण, जगण, जगण, दो गुरु - १४ वर्ण ८, ६ पर यति हो या नहीं भी हो, दो सम तुकान्त) (ॐ स विष्णवे नम:) श्री विष्णु पूजन करो, उठते सवेरे। एकादशी अति शुभी, जपले लबेरे।। पीतांबरी तन गछी, कर शंख राधे। बैजंति माल गल में, गद चक्र साधे।। दैत्यासुरा दल दिखे, भयभीत भाजे। पापी कुकर्म बझिके, कबहूँ न छाजे।। फैले प्रकाश हिय में, जब भान होगा। सत्ता उसी परम की, तब ज्ञान होगा।। मानो न बात उलटी, न बनो कुगामी। सोचो मिले न कुछ भी, घुमिए गुनामी।। आगे बढ़ें सपथ पे, न चलें कुचालें। पैनी रखें नजर यूँ, डग भी सँभालें।। लिखा वही करम का, लिखता-मिटाता। भाषा न जान सकता, कितना छुपाता।। है कर्म सुंदर जभी, तब ही सुहाता। धर्ता वही जगत का, वह ही प्रदाता।। आओ विचार करलें, भरलें चिता में। कूर्मा सरूप...
बासंती छटा
कविता

बासंती छटा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** माहिया- १२,१०,१२ आई-आई-आई रितुओं की रानी बासन्ती चहुँ छाई बौराई अमराई कोकिल कू कूके खुल कलियाँ मुसकाई फूली सरसों रानी धरती ने रंगी अपनी चूनर धानी जब रह-रहकर बोले पपिहा पिउ कहवां मनवां विरही हौले सूना-सूना लगता दुअरा घर-आंगन बिन साजन ना फबता रिमझिम-रिमझिम बरसे बारिश की बूँदें कैसे न हिया हुलसे नयना निंदिया घेरे अलसाई घरनी सपनों में ले फेरे अँखियाँ खुशियाँ लौरे महके जब मधुबन करते गुन-गुन भँवरे कलियाँ चहकीं महकीं मदमाती डगराँ बातें करतीं बहकीं घुल-मिल कर मन नाचे झूमे यूँ गाये मनहर बतियाँ बाँचे परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" निवासी : अमेठी (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
गणतन्त्र-दिवस
कविता

गणतन्त्र-दिवस

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** गणतंत्र है पाठ पढ़ाता इक अनुशासन का । जनता का, जनता पर, जनता द्वारा शासन का ।। व्यवस्थापिका नियम बनाती, कार्यपालिका लागू करती न्यायपालिका दोनों के संग सामंजस्य स्थापित करती कितना सुंदर पावन दिखता रूप प्रशासन का ।। जनता का.... बिना भेद के नागरिकों को मूल-अधिकार मिले हुए हैं प्रतिमानों को पूरा करने नियमों संग सब सधे हुए हैं संविधान नियमों का संग्रह संशय नहीं कुशासन का ।। जनता का.... लोक भलाई के कामों में सरकारें सब लगी हुई हैं बेहतर से बेहतर सुविधाएं जनमानस में रमी हुई हैं कमजोरों को कोटा सिस्टम टोटा न अन्नप्राशन का ।। जनता का.... है अनेकता में भी एकता सब आपस में भाई-भाई फिरका परस्ती में कुछ भटके जाने क्यूँ कर रहे बुराई भलमनसाहत भेंट चढ़ गई सिक्का चले दुशासन का ।। जनता का.... मन में बस...
चामर छंद
छंद

चामर छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (चामर छंद- (दीर्घ+लघु) ×७+१ दीर्घ - २ = १५ वर्ण, दो या चारों सम पदान्त, चार-चरण) बाम अंग बैठ के उमा महेश संग में । चंद्रमा निहारतीं भरे बड़े उमंग में ।। हैं गणेश कार्तिकेय नंदि पास में खड़े । सोहते सभी अतीव एक एक से बड़े ।। गंग लोरतीं कपार घूमतीं यहाँ-वहाँ । मुंडमाल क्षार देह है पुती कहाँ-कहाँ ।। हैं अनंत हैं अनादि देव जे पुकारते । देव है बड़े महान दु:ख ते निवारते ।। रूद्र देव आदि देव धूम्र वर्ण धूर्जटी । विश्वरूप आयुताक्ष* भंग रात-द्यौ घुटी ।। कामरूप सोमपा शिवा शिवा शिवा शिवा । शंकरा महेश्वरा अराधिए नवा शिरा ।। कंठ है पवित्र गंग केश में बहा करें । नृत्य तांडवा शिवा डमड्ड पे किया करें ।। ग्रीव में भुजंग माल हार ज्यूँ झुला करे । तीन नेत्र अग्नि रूप माथ पे दहा करे ।। शंभु पूजिए अवश्...
विवशता विछोह की
सवैया

विवशता विछोह की

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** मंदिरा सवैया राह निहारि थकीं अँखियाँ नहिं दीखतु राउरु काउ करूँ ? आसु नहीं पतियातु कतौ जसि लागतु खोहु म डूबि मरूँ । खासु नहीं कहुँ जे दुलराबयि अंधि कुँआ बिचु बैठि सरूँ । हे सखिया कछु तौ बतलाउ त कैसि हिया भलु धीरु धरूँ ।। लाजु न लाबतु ढ़ीठु बड़ौ सहुँआतु न मोहिं त का करिहौं । भायि गयो दुसरौ हउ लागतु दूरि बसौ जहु का धरिहौं । यादु दिलाइतु बातनु ते जउ भेंटउँ ताहि मुँहा जरिहौं । हाय सखी मन कै बतिया दइझारु बिना कँहवाँ गरिहौं ।। भोरहिं जागि मनाबतु देउ सनेसु हमारु जिया कहिहौ । रातिउ नींदु न आबतु बाहि न चैनु दिना भलुके रहिहौ । साँझि भये हरहा घरु आबतु साँसरि कूँ कबु लौ डहिहौ । खातु अहौ छिंटकानि कँरौंदु जही भलु मालु कहौ खहिहौ ?? मीतु सुनौ जहु मादकु यौबनु एकु दिना ढ़रिकै सचु है । चाँदु अमाबसु गायबु ...
स्वामी विवेकानंद
कविता

स्वामी विवेकानंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** स्वामी विवेकानंद जी के पावन अवतरण-दिवस की ढ़ेरों बधाईयाँ व शुभकामनाएं ! ॐ तत्सत ॐ तत्सत ॐ तत्सत ॐ तत्सत। है इसी में विश्वपूरित ॐ तत्सत ॐ तत्सत।। भुनेश्वरी मां उदर जाये विश्वेश्वर नरेंदर कहाये पाया परमहंसी कृपा जब स्वामी विवेकानंद जताये भूख ईश्वर प्राप्त की दीन दुखियों संग उपगत ... ॐ तत्सत.... शिकागो शहर में धर्म-चर्चा अमेरिका गये बिना पर्चा भाइयों बहनों कहा जब प्यार पाया बिना खर्चा "वसुधैव कुटुंब" है बताया भारत का मत ... ॐ तत्सत ... कर्म और धर्म का संग भी संजों के रखना सभ्यता व संस्कृति ध्वजा फहरा के रखना देश का स्वाभिमान जागे साथ वैभव-यश बढ़े जन-जन के मानस पटल पे भाव ऐसा भर के रखना ए ही संदेशा दे गए हैं यही सच्चाई है सास्वत ... ॐ तत्सत ... संवेदना मन मे जगे साथ सेवा...
आगत का स्वागत विगत को अलविदा
कविता

आगत का स्वागत विगत को अलविदा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** इंकलाब आएगा खुशी के गीत गाए जा । एकता अखंडता के साज को बजाए जा ।। राह में जो मुश्किलें मिलीं थीं भूल जा उन्हें क्या गिला अतीत से मिला है जो सजा उन्हें वक्त से मिला कदम तू कदम बढ़ाए जा ।। एकता अखंडता... धूप-छाँव भी तो जिंदगी का एक अंग है दूर होगी कालिमा मन में यदि उमंग है साम-दाम-दंड-भेद नीति को निभाए जा ।। एकता अखंडता... भाषा-धर्म-जाति-पाँति में नहीं विभेद हो कर्म भी करो वही कि ना कभी भी खेद हो मिल-मिला के नेह से प्रेम रंग चढ़ाए जा ।। एकता अखंडता... शौर्य में वृद्धि हो मान और शान हो स्वस्थ रहें सभी मर्यादा का भी भान हो दर्श दर्प का न हो सद्भावना बढ़ाए जा ।। एकता अखंडता... आ गया नवीन वर्ष तू आरती उतार ले पथ स्वयं प्रशस्त कर तू भविष्य सँवार ले क्या विषाद है तुझे हँस के मिटाए जा ।...
हर्फ़-हर्फ़ जानने से
ग़ज़ल

हर्फ़-हर्फ़ जानने से

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** हर्फ़-हर्फ़ जानने से ही कहाँ बना करती है ग़ज़ल । है इसके लिए तो पर्त-दर-पर्त रूह में उतरना होता ।। मिलतीं रहीं निग़ाहें सजती रही ग़ज़ल । रुख़सार झलक जाए बनती रही ग़ज़ल ।। साँसों में भरके निक़हत उतरे सुरूर दिल में । ज़ज़्बात मचल जाए उड़ती रही ग़ज़ल ।। बर्दाश्त करे कब तक कोई लू के थपेड़े । कुरब़त में उलझ जाए छलती रही ग़ज़ल ।। शिकवे-गिले वफ़ा के दोनों के दरमियाँ बस । अरमाँ बिखर जाए पिसती रही ग़ज़ल ।। नजरें बचा-बचा के अदा गुफ़्तगू करे है । महफ़िल में गज़ब ढ़ाये जमती रही ग़ज़ल ।। छोटी सी ज़िन्दगी के किस्से हैं अनगढ़े से । बिन बात बहक़ जाए चलती रही ग़ज़ल ।। बे-क़ैफ़ी कैसी भी हो हाँ तंज़ नहीं करना । अश्आर सँवर जाए कहती रही ग़ज़ल ।। मिलतीं रहीं निग़ाहें सजती रही ग़ज़ल । रुख़सार झलक ...
शहरी/किसान
आंचलिक बोली

शहरी/किसान

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (अवधि भाषा) भले तू बाट्या बड़ा महानु, बड़ा सा अहै तोहारु मकानु, अही हमु किञ्चौ ना हलकानु, हे बबुआ हमहूँ अही किसानु।। बड़ु सुंदरु रहनि-सहनि तुम्हरा हर मनईन ख़ातिर इकु कमरा बढ़िया तोहार है खानु-पानु मुला लागतु हौ जैसेन बिमरा नूनु-भातु चटनी-रोटी ई हमारु पूरिउ-पकवानु।। हे बबुआ ... तू ए सी मा बासि करौ ठंडाई पी-पी ऐश करौ हमतौ सेंवारी मा घूमी मुला ठंड़ी-ठंड़ी सांसु भरौं फ्रिज कै तू पानी पिअतु अहा हमरौ गगरी मा हउ भरानु।। हे बबुआ ... तू सूटेड-बूटेड बना रहा हरु चौराहे पै अड़ा रहा हमतौ बस खेती-बारी मा चंहटा-मांटी मा सना रहा रूपिया-पैइसा से लदा अहा हमतौ अही मटिया मा धसानु।। हे बबुआ ... तू कामु किहा रूपिया पाया मनमाना सबकछु भरि लाया हमतौ खेते म जरी-मरी तब्बौ हाथे न दिखी माया तू मालु-...
हमरौ खान-पान
आंचलिक बोली

हमरौ खान-पान

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (अवधि भाषा) तालमेल रखिहौ तनिक, खानपान व्यवहार। मान प्रतिष्ठा बाढ़िहै, चहुँ हुयिहैं , सत्कार। चहुँ हुयिहैं सत्कार, जीभु भलु स्वादु चखेगी। खट्टा-मीठा संगु, मीठु पकवानु मिलेगी।। "मधुरस" भलु समझायि, इसारा करतु भली के। बनबावउ चौसारु, जेंवाबउ बैठि कुली के।। चला चली रसोई बनाई हो भल पाहुनु हँ आबत। भाँति-भाँति व्यंजनु सजाई हो भलु पाहुनु हँ आबत।। आई चतुर्थी गनेसा मनाई लडुवा ढ़ूढी से भोगु लगाई रिद्धी औ सिद्धी बुलाई हो भलु पाहुनु हँ आबत।। भाँति---- दीपावली मा मावा मँगाये होरी आई त गुझिया छकाये दसहरा रसगुल्ला भाये हो भलु पाहुनु हँ आबत।। भाँति--- कृष्ण जन्माष्टमी हलुवा ही हलुवा गुरुपर्व दिना कड़ा प्रसदुवा नरियर खीरु बिहू सजाये हो भल पाहुनु हँ आबत।। भाँति--- ठण्डी म दाल बाटी चोखा खियाइब दाल ...
इकु किसानु कै पीरा
आंचलिक बोली, कविता

इकु किसानु कै पीरा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** बदरा रूठि गईल हे धनियाँ कैसे के होई रोपनियाँ ना। बेहनु खेतवा माहीं झुराइलि कैसे के होई रोपनियाँ ना।। जेठु महीना जसु तपा असाढ़ी यैसिनि मा के हौ गोड़ु काढ़ी बरसतु भिनुसरहिनु ते अगिया कैसे के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... तालि-तलैइया मा दर्रौ फाटयि झुलसी घांसि दूबिउ नाहीं जागतु लागतु सावनु झूरौ झूरौ कैसे के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... सावनु-भादौउं जौ सूखा-सूखा चिरई-चुनुंगा सबै रहिहैं भूखा कहिजा बदरा काहे रूठल कैसे के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... लखि-लखि बदरा कोयलरि कूकैयि उपरा तकि-तकि जियरा हूकैयि अँसुवा ते भीजल मोरु बदनियाँ कैसी के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... उमड़ि-घुमड़ि काहे ललचावतु आतुरि हुयि सबै रहिया जोहारतु झूमिके बरसौउ भलु सेवनियाँ जमके होई रोपनियाँ ना।...
निर्गुण ब्रह्म धरूँ
कविता

निर्गुण ब्रह्म धरूँ

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** गोपी-उद्धव संवाद संदेश है मोहन का निर्गुण ब्रह्म धरूँ अनुनय है मोहन का मथुरा से आए हैं बनि के इक योगी उद्धव कहलाएँ हैं कान्हा रस में डूबी ना जानूँ कुछ भी क्या खूबी मधुकर की उड़-उड़ के है बूमे गुन-गुन-गुन करते रस चूसे औ झूमे हम सगुण उपासक हैं हम तो ना माने यदुनंदन बाधक हैं वो नैनों का तारा कैसे हम भूलें? है वो ही उजियारा वाकी बंकिम चितवन चित को भरमाए है याही तो उलझन ये कैसे हम कह दें ? बैठा जो भीतर बाहर कैसे कर दें ? आती जब भी यादें रास रचाने की हैं करतीं फरियादें हे निष्ठुर आ जाते भूल गिले शिकवे करतीं जी भर बातें उद्धव का ज्ञान धरा कुछ भी ना समझे उनका सब राग हरा परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" निवासी : अमेठी (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र :...
मनहर के आने का संदेश पाने पर मनहरी की मनोदशा
आंचलिक बोली, छंद, सवैया

मनहर के आने का संदेश पाने पर मनहरी की मनोदशा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** सुंदरी सवैया छंद (अवधि भाषा) मुसकातु अहै उ कपाटु धरे मनवा हुलरै पियवा अजु आवै । भिनही कगवा मुँडरा चढ़िके कहवाँ-कहवाँ भलुके दुलरावै । ननदा बिहँसै जरि जायि हिया सनकी-मनकी करि खूबि खिझावै । ढुरकैं जबहीं सुरजू तबहीं फँसि जायि परानु कछू नहिं भावै ।।१।। परछायि दिखै दुअरा दुलरा दुलही जियरा खुलिके हरसावै । कबहूँ अँगना महिं नाचि करै कबहूँ ननदा बहियाँ लिपिटावै । चुपके-चुपके नियरानि जबै अँखियाँ लड़ितै घुँघटा लटकावै । कहिजा मँखना अँगना तड़पै कबुलौं दहकै कसिके समुझावै ।।२।। तुहिंसे लड़ना सजना जमुके बतिया दुइठूं करना तुम नाहीं । इसकी उसकी परके घरकी नथिया-नकिया धरना तुम नाहीं । फिरकी फिरकी अपनी-अपनी भलुके भरिके फँसना तुम नाहीं । रचिके बचिके चँदना बहकौ कपरा सबुके सजना तुम नाहीं ।।३।। पतझारि दिखै जिनिगी...