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Tag: जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी

संविधान
कविता

संविधान

जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी अहमदाबाद (गुजरात) ******************** हर शख्स संविधान का सन्मान करेगा। हर शख्स का सन्मान संविधान करेगा। हर शख्स अपना अपना न कानून बनाओ, हर शख्स वतन पे इतना एहसान करेगा। मिलजुल के रहो प्यारा हमें मुल्क चाहिए, मुल्क में न किसी का कोई अपमान करेगा। कुछ मुल्क के दुश्मन हैं जो गद्दार यहां पर, वही गद्दार अपने हिन्द को वीरान करेगा। बहू,बेटी पे हाथ डाले,उसे शूली पे चढ़ा दो, फ़िर काम कोई ऐसा न कभी शैतान करेगा। जो ईमान पै चलते उन्हे मिलती यहाँ ठोकर, जो न कर सके कानून यहाँ बेईमान करेगा। "बेज़ार" मन में आये तुम वो कानून बना लो, संविधान की इज्जत यहाँ इंसान करेगा। परिचय :- जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी निवासी : अहमदाबाद (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
पारो
कहानी

पारो

जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी अहमदाबाद (गुजरात) ********************  किसी स्टेशन पर रेलगाड़ी रुकी हुई थी, एक लड़का चाय की आवाज जोर-जोर लगाता हुआ आया, मैनें उससे एक चाय ली, चाय के पैसे देते हुए उससे स्टेशन का नाम पूंछा और चाय की चुस्की लेते हुए पारो (काल्पनिक नाम) के बारे सोचने लगा, वह बहुत ही सुंदर और अच्छे स्वभाव की लड़की थी, बचपन से कोलेज तक हम दोनों साथ में पढ़े थे, हम दोनों एक दूसरे को बहुत पसंद करते थे, में उससे बहुत प्यार करता था, मगर हम दोनों कभी एक दूसरे से प्यार का इज़हार करने की हिम्मत नहीं जुटा सके। मेरी कोलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद मै आर्मी में लेफ्टिनेंट के पद पर भर्ती हो गया, ट्रेनिंग के दौरान छुट्टी ना मिलने के कारण मै काफ़ी समय तक गांव नहीं आ पाया, ट्रेनिंग के बाद मेरी पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में कर दी गई। एक दिन गांव से ख़त आया दादी की तबियत ठीक नहीं रहती और तु...
वतन बदनाम करने पर हैं
ग़ज़ल

वतन बदनाम करने पर हैं

जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी अहमदाबाद (गुजरात) ******************** वतन बदनाम करने पर हैं आमादा वतन वाले। बहुत देखा मगर मिलते नहीं हैं अब जतन वाले। बहुत बेबाक अल्फ़ाजो से अब हमको नवाजा है, यही उनका बचा है फ़न जो आजमाते हैं फ़न वाले। जमाना क्या कहेगा हमको, इसकी फ़िक्र है किसको, ये वतन सोने की चिड़िया थी, कभी सोचा पतन वाले। मिटा दो आशियां अपना, जला दो हर शहर अपना, कफ़न बिक जायेंगे उनके, जो बैठे हैं कफ़न वाले। बेजार, अब देखा नहीं जाता है, बर्बादी का ये मंज़र, तुम क्यों वीरान करते हो चमन अपना चमन वाले। परिचय :- जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी निवासी : अहमदाबाद (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपन...
कितना सहूं झूठ कि
ग़ज़ल

कितना सहूं झूठ कि

जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी अहमदाबाद (गुजरात) ******************** कितना सहूं झूठ कि मर क्यों नहीं जाते। सच है जिधर लोग उधर क्यों ‌नहीं जाते। हर मील ‌के‌ पत्थर पे यहां झूठ लिखा है, मंजिल से पहले ‌ही ठहर‌ क्यों नहीं जाते। दर दर भटक रहा हूं मैं सच की तलाश में, कहते हैं मुझे लोग कि ‌घर क्यों नहीं जाते। अब उधर भी कौन सा सच होगा नसीब में, मझधार में कश्ती से उतर क्यों नहीं जाते। बेबस की बद्दुवा का असर "बेजार" देखना, रब के अज़ाब से तुम डर क्यों नहीं जाते। परिचय :- जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी निवासी : अहमदाबाद (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते है...