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Tag: जीत जांगिड़

पिताजी
कविता

पिताजी

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** मैं दफ्तर से लौटू तो ऐसा लगता हैं कि कोई बुला रहा है, घर के अन्दर से निकलकर जैसे कोई मेरे पास आ रहा है। लगता हैं कि वो डाँटेगा और कहेगा कि मास्क लगाया नहीं तूने, अरे ये बाईक और मोबाईल भी आज सेनेटाइज किया नहीं तूने। महामारी फैली हुई हैं और तू बेपरवाह होता जा रहा है, हेलमेट भी नही लगाया कितना लापरवाह होता जा रहा है। हर रोज की तरह आज भी तू मुझको बताकर नही गया, तेरी माँ सुबह से परेशान है कि तू खाना खाकर नही गया। सोचता हूँ कि ये सब घर पर सुनूंगा और सहम जाऊंगा मैं, मगर ये क्या पता कि अब ये सिर्फ एक वहम पाऊंगा मैं। अब घर लौटते ही दरवाज़े पर खड़े पिताजी नहीं मिलते, मेरी जीवन नौका तारणहार मेरे वो माझी नहीं मिलते। अब क्या गलत है और क्या सही है ये बताने वाला कोई नहीं, बार बार डांटकर फटकार कर अब समझाने वाला कोई नहीं। आज सब कुछ पाकर जब अपने पैरो...
बदनाम गली
लघुकथा

बदनाम गली

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित लघुकथा लेखन प्रतियोगिता हेतु प्रेषित की गई लघुकथा "अरे यार। मतलब हद है मुर्खता की। तुम वहां गये हो।" "गया तो कोई बात नहीं मगर इतना रिस्क कौन लेता है।, " सभी जाते हैं। तुम नहीं जाते क्या?" "जाता हूँ मगर इन महाशय की तरह पैसे बाँटने नहीं।" "खैर इनको दस बीस हजार से क्या फर्क पड़ता है? महीने भर की ही तो सेलेरी थी।" "और जब तुमको साथ चलने को कहा था तब तो तुम्हें बड़ी शराफत चढ़ रही थी।" दोस्तों द्वारा की जा रही सवालों की इस बारिश के बीच रणजीत सहमा हुआ खड़ा था। "तुम लोगों को साथ चलना हैं तो चलो वरना मना कर दो और वैसे भी मुझे कोई शौक तो है नहीं पैसे बाँटने का। उसने कहा कि मुसीबत में हूँ, कल तक लौटा दूंगी। और उसके चेहरे से और उसके आंसुओ से पता चल रहा था कि वो जरुर किसी मुसीबत में है" रणजीत ने टोकते हुए कहा। "अच्छा। तुम्ह...
अजीब लगता हैं
कविता

अजीब लगता हैं

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** वो इक शख्स जो उसके करीब लगता है, जहां में सबसे ज्यादा खुशनसीब लगता है। दुआ है मेरी कि दुआ उसकी कुबूल ना हो, वो शख्स रिश्ते में मेरा रकीब लगता है। नजरों से नाप लेता है अरमाओ के खेत को, पटवारघर की मुझे वो कोई जरीब लगता है। हमने नहीं देखा उनको पास रहकर भी पूरा, कौन कहता है कि वस्ले इश्क़ हबीब लगता है। सुना है माल चाइना का ज्यादा नहीं टिकता, कोरोना मिट न रहा मसला ये अजीब लगता है। . परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा निवासी - सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक ...
विश्वकर्मा वन्दन
कविता

विश्वकर्मा वन्दन

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** हे विश्वव्यापी हे श्वेताम्बर, हे शिल्पराट हे दयावान, हे विश्वाधार हे महारक्षक, हे विश्वकर्मा हे शक्तिवान। हे जीवाधार हे विश्वपति, हे कर्मकुशल हे सूत्रधार, जगती के आधार अटल, आलोक पुंज हे तारणहार। कर प्राप्त हो हुनर सर्व को, और मन मंदिर प्रदीप्त रहें चित संवेदनाओं को जानें, सब सत्कर्मो में संलिप्त रहें। जीवन में सदा साथ तेरा हो, और मन में तेरा ही वास रहें भ्रम भँवर से निर्भय हो गुजरे, निज सामर्थ्य पर विश्वास रहें। हर मनुज कर्म का भान करें, निज समाज का सम्मान रहें, होंठो पर हो मुस्कान सदा, मन में भारत ये महान रहें। नित नई ऊंचाइयो मिलती रहे, हर एक पंछी की उड़ान को, फुले फले नित नए तरुवर, पतझड़ से पत्ते अनजान रहे। नए दिवस नई नई रचनाएं, गगन चुमते रहे सहचर मिलती रहे तेरी कृपा और, सिर पर तु तन आसमान रहे। . परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा...
इतिहास नगरी गढ़ सिवाणा : संत-शूरमाओं की मातृभूमि
आलेख

इतिहास नगरी गढ़ सिवाणा : संत-शूरमाओं की मातृभूमि

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** एक हजारवें स्थापना दिवस पर विशेष संतो और शूरमाओं की मातृभूमि राजस्थान राज्य के बाड़मेर जिले में स्थित गढ़ सिवाणा शहर की स्थापना विक्रमी संवत १०७७ में पौष महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिधि को वीर नारायण परमार ने की थी! आगामी 1 जनवरी २०२० को इस ऐतिहासिक शहर की स्थापना के एक हजार वर्ष पूर्ण हो रहे है! इस अवसर पर जानते है सिवाना शहर के इतिहास और विशिष्टता को! गढ़ सिवाणा का ऐतिहासिक दुर्ग राजपुताना के प्राचीन दुर्गो में अपना विशिष्ट स्थान रखता हैं। ये दुर्ग राजस्थान के उस चुनिन्दा दुर्गों में शुमार है जहाँ दो बार जौहर हुए है! वहीं यह शहर प्राचीन काल से ही कई महान तपस्वी विभूतियों की तपोभूमि रही हैं। कस्बे के मध्यभाग में स्थित गुरू समाधी मंदिर हजारों श्रद्धालुओं के श्रद्धा का केंद्र हैं। राजस्थान का मिनी माउंट हल्देश्वर तीर्थ अत्यंत रमणीय स...
मेरा हमदम
कविता

मेरा हमदम

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** क्या लिक्खा हैं? राज़ इक गहरा। क्या देखा है? उसका चेहरा। गाते क्या हो? उसका नजारा। क्या बजता है? उसका इकतारा। धड़कन क्या है? उसकी इबादत। सांसें क्या है? उसकी अमानत। उसकी अदाएं? लगती क़यामत। दीदार उसका? एक जियारत। मर जाओगे? हो गर इजाजत। जी लोगे क्या? हो गर जमानत। दिल में क्या है? उसकी धड़कन। और धड़कन में? उसकी तड़फन। याद क्या है? उसकी छुअन। भूलें क्या हो? उसका दामन। जीना क्या है? उसका मुस्काना। और मरना? उसका खफाना। क्या पाया है? पागल का तमगा। क्या खोया है? दिल अपना। वहम क्या है? वो अपना हैं। और हकीकत? ये सपना है। वो कहां है? मेरे दिल में। कहां नहीं है? मुस्तकबिल में। उसका होना? रब का होना। उसको खोना? सब को खोना। नाम तुम्हारा? उसका दीवाना। काम तुम्हारा? इश्क़ निभाना। उसकी झुल्फे? काली घटाएं। उसकी आंखे? नूर ...
दिल आया मझधार में
गीत

दिल आया मझधार में

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** कभी रुखसत जो हुई यादें, हम हंसकर रो लिए, तेरे ख्वाबों को बना कर मोती, ख्यालों में पिरो लिए, उन रोती हुई आंखों की धार में, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। धूल उड़ी ही नहीं थी फिर भी, घेर खड़ा हुआ तिमिर, सांस हार ने को तैयार न फिर भी, हारने लग गया शरीर, जीती लड़ाई हारे हम करार में, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। वो रोशन हुई रात अमावस की, जब चांद से हटा घूंघट, लब न बोले नज़रे भी झुक गई, फिर बोला मुझसे लिपट, मेरा तन रोशन है तेरी बहार से, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। कम तेरा प्यार नहीं था न मेरा था, शंकाओं की घटा ने घेरा था, संग संग में सदा रहे हरपल शाम में, संग में गुजरा हर सवेरा था, संग छूटा इक गलती की मार से, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। . लेखक परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा निवासी - सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस...
नूर का दरिया
कविता

नूर का दरिया

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** नज़रों ने तेरा चेहरा देखा, नूर का दरिया गहरा देखा। चलते फिरते एक चांद पे, घनी घटा का पहरा देखा। कारवां मासूम दिलों का, तेरी बस्ती में ठहरा देखा। तेरी गलियों में आते जाते, होता दिल आवारा देखा। झील सी नीली आंखों में, घुलता एक इशारा देखा। सुर्ख लाल गुलाब खिलाते, गुलशन का नजारा देखा। . लेखक परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा निवासी - सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अ...
मैं ही राम, मैं ही रावण
कविता

मैं ही राम, मैं ही रावण

********** जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) हां रावण हूं मैं रावण हूं, धर्मशास्त्र का परमज्ञाता, शिव उपासक ब्राह्मण हूं, हां रावण हूं मैं रावण हूं। कुटिल नहीं मैं सरल हूं, अमी की धारा अविरल हूं, नहीं अपना मैं हित साधता, शिव को ही मैं श्रेष्ठ मानता, अनुशासन की मूरत अटल, परम धर्म परायण हूं, हां रावण हूं मैं रावण हूं। मैं हूं चार वेदों का ज्ञाता, तांडव स्तोत्र का रचयिता, मेरा बल मेरी ही शक्ति, प्रिय शंकर को मेरी भक्ति, मैं साहसी, मैं पराक्रमी, शास्त्र शस्त्र का मैं दर्पण हूं, हां रावण हूं मैं रावण हूं। मेरा राज था मेरी ही लंका, चहुंओर था मेरा ही डंका, फिर भी सीता का कभी, किया नहीं चरित्र कलंका, स्वयं की मुक्ति के हित में, राम को युद्ध निमंत्रण हूं, हां रावण हूं मैं रावण हूं। बार बार न मुझे बनाओ, बार बार न मुझे जलाओ, अगर राम तुम बन न पाओ, रावण ही बनकर दिखलाओ, संयम मुझ सा बरत बताओ, फिर...