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Tag: जितेन्द्र गुप्ता

अन्तर्मन
कविता

अन्तर्मन

जितेन्द्र गुप्ता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** संभल जाती है वो जब भी आती है कोई चिट्ठी, या आता है कोई फोन। सिमट जाती है वो जब भी..... हंसते सब हैं घर में... या बनते हैं पकवान.…. समझ जाती है वो फिर कोई आयेगा..... सपना दिखाया जायेगा.. नये जीवन का.. उम्मीद का संवारी जाती है वो.. सजायी जाती है वो... बेजान पुतलों सी... फिर होगी नापतौल.. मोल तोल...। सहम जाती है वो... सिहर जाती है वो... अगले पल को सोच फिर.... फिर.... फिर... होती है नापसंद और बिखर जाती है वो... और फिर शुरू हो जाता है.. इंतजार....... इंतजार... बस इंतजार..!!!!!! . परिचय :- जितेन्द्र गुप्ता निवासी : इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानिया...
घर वापसी
लघुकथा

घर वापसी

जितेन्द्र गुप्ता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में चतुर्थ विजेता (प्रोत्साहन) रही लघुकथा "अरे चलो, चलो जल्दी!" हंसते खिलखिलाते वे किशोर फटाफट अपने बेग्स लेकर उस एसी बस में चढ़ने लगे! सबके सब दुसरे स्टेट के रहने वाले थे और पढ़ाई के लिए इस शहर में रह रहे थे मगर महामारी के कारण लगे लॉक डॉउन में फंस गये थे। इनकी सुरक्षित घर वापसी हेतु एसी बसें लगाई गई थी। उनको रास्ते में खाने हेतु लंच पैकेट और पानी बोतलें भी थी। सभी हंसते, बतियाते, जा रहे थे। "अरे, देखो, देखो जरा!" सुमित ने जोर से कहा। पचासों पुरूष, महिलाएं सामान उठाये और बच्चों को गोद में या कंधे पर बैठाये सड़क किनारे-किनारे चले जा रहे थे। पसीने से लथपथ, थके-थके...। "बेचारे......." उनमें से एक किशोर अकड़ से बोला, "अरे मेरे पापा ने तो अपनी युनियन के द्वारा एड़ी च...
छोटी बहन
लघुकथा

छोटी बहन

जितेन्द्र गुप्ता इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  एक प्रौढ़वय स्त्री प्रतिदिन बाजार से गुजरती। शांत सौम्य, सुंदर सा अलंकृत चेहरा। बातें जैसे मनमोहनी जब भी बात शुरू करती तो लगातार कहती रहती और लोग भी पुरे चाव से सुनते। कुछ समय बीतते-बीतते लोग का जैसे मन भरने लगा था कि एक नई स्त्री उस प्रौढा के साथ बाजार में दिखने लगी। इसकी वय ज्यादा नहीं थी। परिपक्वता चेहरे और बातचीत से झलकती थी। ये थोड़ा कम बोलती थी मगर जो भी बोलती सारगर्भित और भावनात्मक रूप से लबरेज। प्रौढा के बहुत से चाहने वाले और कुछ नये रसिक इसके दिवाने हो गये। सब उसके पीछे-पीछे बतियाते, चुहलबाज़ी करते घुमने लगे। सब आनंद में चल रहा था कि अचानक उन दोनों के साथ एक बहुत कमसीन, मासूम सी किशोरी बाजार में दिखी। एकदम शर्मिली, चुप-चुप सी। सारे शोहदे उसके पीछे लग लिये। सब अपने-अपने तरीके से शब्द बाण चला रहे थे। पहली दोनोें स्त्रीय...