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चलो बुलावा आया है
व्यंग्य

चलो बुलावा आया है

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** चलो बुलावा आया है, दिल्ली ने बुलाया है। इनकी निगाहें दिल्ली पर टिकी हुई हैं। क्या नेता, क्या लेखक, क्या कलाकार सबकी नजरें दिल्ली की ओर लगी रहती हैं। जैसे गली-गली में आवारा घूम रहा आशिक, जो बस दिल्ली के एक इशारे भर की देर में अपना बोरिया-बिस्तर समेटकर दिल्ली को कूच कर दे। कोई रैली के लिए, कोई धरना-प्रदर्शन के लिए, कोई टिकट के लिए, कोई पुरस्कार के लिए सबके लिए बस एक ही मंजिल...एक ही सहारा...हारे का सहारा... "चलो दिल्ली।" दिल्ली एक मंजिल है, एक आकर्षण है, एक मानक है, एक वॉशिंग मशीन भी, जहां हर प्रकार के दाग धुल जाते हैं। राजनेताओं की तो एक टांग अपने क्षेत्र में है, तो दूसरी दिल्ली में। कुछ ऐसे हैं, जिनका बुलावा नहीं आता, फिर भी हर दूसरे दिन दिल्ली जा पहुँचते हैं। शायद बुलाने वाले भूल गए हो...