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Tag: चन्दन केशरी

हम पर्यावरण बचाएँगे
कविता

हम पर्यावरण बचाएँगे

चन्दन केशरी झाझा, जमुई (बिहार) ******************** निज हित के लिए हमने, किया पेड़ों पर प्रहार है। हर पेड़ यहाँ कराह रहा, यह कैसा अत्याचार है? पेड़ों को जब काट-काट, हमनें शहर बसाया था। खुद से एक सवाल करो क्या हमने पेड़ लगाया था? जहरीली हो रही हवा, चहुँ ओर बीमारी छाई है। ऑक्सीजन भी न मिल रहा, ये कैसी विपदा आई है? ऑक्सीजन देते पेड़ को, कभी हमने ही कटवाया है। ऑक्सीजन का महत्व हमें, प्रकृति ने आज बताया है। जल को किया बर्बाद कभी, खरीद उसे आज पी रहे। जल की बर्बादी कर हम, ये कैसी जिन्दगी जी रहे? जल है तभी प्राण है, रखना इसका ध्यान है। जल की बर्बादी रोक कर, बचानी अपनी जान है। लोभ-मोह में आकर हमने, प्रकृति से खिलवाड़ किया। इससे क्या नुकसान है? क्या हमने कभी विचार किया? रोका न गया खिलवाड़ तो, हम चैन से कैसे सोएँगे? जैसे धरती माँ रो रही, एक दिन हम भी रोएँगे।...
पृथ्वीराज चौहान
कविता

पृथ्वीराज चौहान

चन्दन केशरी झाझा, जमुई (बिहार) ******************** हिन्द देश के परमवीर, आर्यावर्त के शान की, ये गौरवमयी गाथा है, पृथ्वीराज चौहान की। बारहवीं सदी में हिन्द ने, ऐसे वीर को पाया था। बिना अस्त्र-शस्त्र जिसने, सिंह को मार गिराया था। शब्दभेदी विद्या में कुशल, वह हिन्द का अभिमान था। वो बुद्धिमान और थे चतुर, उन्हें छः भाषाओं का ज्ञान था। संयोगिता थी संगिनी और मित्र थे कवि चंद्रबरदाई। दोनों मित्र थे साथ चाहे, कितनी भी विपदा आई। शत्रु सेना का शासक, मुहम्मद गौरी, अफगानी था। पृथ्वीराज ने युद्ध में, पिला दिया उसे पानी था। अपनी युद्ध कुशलता से, शत्रु को धूल चटाया था। इनके सामने गजनी का, सुल्तान भी थर्राया था। किया वार पर वार और हर बार मुँह की खाया था। पृथ्वीराज ने गौरी को, सत्रह बार हराया था। जब माफ किया उसे सत्रह बार, फिर से किया उसने वार। अबकी पृथ्वीरा...
प्रताप की हुँकार
कविता

प्रताप की हुँकार

चन्दन केशरी झाझा, जमुई (बिहार) ******************** जो कहलाए थे महाराणा, उस प्रताप की हुँकार सुनो। आज इस "चन्दन" की ज़ुबानी, तुम दास्तान-ए-मेवाड़ सुनो। पिता उदय सिंह द्वितीय, और माँ जयवंताबाई थी। कुम्भलगढ़ के किले में जन्में, तब माटी भी मुस्काई थी। अधीनता न है स्वीकार, महाराणा ने ये ठाना था। वो थे साहसी, कर्मवीर, ये अकबर ने भी जाना था। हुआ युद्ध प्रचंड और लहू से सन गई माटी थी। जहाँ मुगल भी काँप उठे, वह भूमि हल्दीघाटी थी। भील थे इनके साथ और शत्रु सेना विशाल थी। इस परमप्रतापी राणा की, सेना नहीं, मशाल थी। बहलोल खान को इन्होनें, बीच से ही चीर दिया। धन्य है वो माता भी जिसने, देश को ऐसा वीर दिया। जब राणा शत्रुओं से घिरे, चेतक ने उन्हें बचाया था। २८ फीट का नाला भी तब, कटी टांग से पार लगाया था। राणा को बचाने में उसने, अपना दे दिया प्राण था। वो चेतक, केवल अश्व नहीं, राणा का मित्र महान था। आए ...