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प्रेम, प्रीत, प्यार, स्नेह…
कविता

प्रेम, प्रीत, प्यार, स्नेह…

गौरव सिंह घाणेराव सुमेरपुर, पाली (राजस्थान) ******************** प्रेम, प्रीत, प्यार, स्नेह, नाम अलग पर एक है भाव। उसी के प्रति होते ये, जिनसे होता विशेष लगाव।। जब मेरे ईश से होती प्रीत, तो मन में न रहता मेरा चित्त। प्रभु चरणों के वन्दन से ही तन मन हो जाता चिंता रहित।। पिता से अदृश्य बंधन है, अब क्या बताऊ ये बात। त्याग-बलिदान की मूरत ऐसी होगी न जग में तात।। माँ के बारे में क्या लिखू, माँ ने ही मुझे लिखा है। इस जग जो भी सीखा माते, तुमसे ही तो सीखा है। डांट, प्यार, समर्पण, वात्सल्य, चिंता हरपल ही करती हो। बच्चों की रक्षा करे विपदा से, नही किसी से डरती हो।। अर्धांगिनी का पवित्र प्रेम, जैसे राम के लिए ही सीता है। घर के प्रति सम्पूर्ण समर्पण, ऐसी प्यारी गृहीता है। माँ क दुसरा रूप तुझ में, ओ मेरे जीवन का गहना तुम। मुसीबत जब भी आती मुझ पर देती सदा साथ बहना तुम।। घर में छोटे फूल के जैसे खिले...