लाठी
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण"
इन्दौर (मध्य प्रदेश)
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बाल कविता
कुत्ता पीछे पड़ा दिखा धरती पर पटक जड़ी लाठी।
प्राण बचा कर कुत्ता भागा लेकिन खड़ी पड़ी लाठी।।
झुकती नहीं टूट जाती है अक्सर बहुत कड़ी लाठी।
टुकड़े-टुकड़े हो जाती है कहते रहो लड़ी लाठी।।
जब से टूट गई दादा की लकड़ी की तगड़ी लाठी।
दादीजी मोटू से बोली ले आ नई छड़ी लाठी।।
छोटू-मोटू दोनों भाई लेने चले बड़ी लाठी।
धीरे-धीरे चले देखते कहाँ मिले कुबड़ी-लाठी।।
बाँसों का बाजार लगा था,बिकती जहांँ छड़ी लाठी।
एक परखने को हाथों में मोटू ने पकड़ी लाठी।।
उन्हीं लाठियों में लोहे से देखी मूँठ जड़ी लाठी।
छोटू बोला यह खरीद लो मोटू तुम तगड़ी लाठी।।
छोटी नहीं मिलेगी मोटू ले लो यही बड़ी लाठी।
दादा जी के लिए सहारा होती है कुबड़ी-लाठी।
लाठी लेकर घर जब पहुँचे कर दी द्वार खड़ी लाठी।
दादा खुश हो गए दे...