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ज़िंदगी की रफ्तार
कविता

ज़िंदगी की रफ्तार

कुमारी आरती दरभंगा (बिहार) ****************** ज़िन्दगी की रफ्तार में, हम निकल गए इतने आगे। छूट सा गया हर मंज़र, जो इतनी रफ्तार में हम भागे। जहां कण-कण में बस्ती थी खुशियां, आज खेलते सब खूनो की होलि‌‌या। सुख- चैन का कहीं नाम नहीं है, आस्तिक को नास्तिक बनते देखा है, रामयुग से कलयुग को आते देखा है, भाई-भाई में मतभेद होते देखा है, दहेज के नाम पर आज भी नारियों का सौदा करते देखा है। हवस के शिकारी है जो, उन्हें खुले आम घूमते देखा है। अतिथि सत्कार खो गया है अरे, आज मानवता को हो क्या गया है? मानव को हो क्या गया? साथ मिलकर मानते है जहां खुशियां, आज घर के हाथ हाथ में मोबाइल का बोल-बाला है, मोबाइल का बोल-बाला है सभी धर्म ग्रंथ छूट गए पीछे, जिसे कितनो ने मन से सीचे, जिसे कितनो ने मन से सीचे। माता पिता के जो होते थे चरणों के धूल, आज जगह-जगह वृद्धाश्रम गया है खुल। कर बैठे हम क्या ये भूल? कर बैठे हम...
आंसू
कविता

आंसू

कुमारी आरती दरभंगा (बिहार) ****************** ये आंखे मुझसे पूछती है हजार बार, बहती है क्यों ये आंसू बार बार! जवाब में क्या दू उसको, वो रो रो कर भी रुलाती है मुझको ! रोकना चाहूं मै लाख उसे, पर न जाने पड़ी है मेरे पीछे कब से ! मै कहती हूं आंसू को, तुम भी सीख लो मुस्कुराना, लेकिन कह देती है मुझसे, तुम्ही ने सिखाया मुझे, रो रो कर आंखो से गिराना ! आंसू भी एक पीड़ा है, जो गिर कर आंखो को दर्द देती है ! एक बार में न सही, सौ सौ बार रोकर, चुप हो जाती है ! है किसी के पास गम के आंसू तो है किसी के पास खुशी के आंसू ! न जाने इन आंखो में, कैसे कैसे हैं आंसू ! आंसू ! आंसू ! आंसू ! . परिचय :-  कुमारी आरती निवासी : दरभंगा (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रका...