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Tag: कीर्ति मेहता “कोमल”

शरद पूर्णिमा
दोहा

शरद पूर्णिमा

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** षोडश कल युत चंद्रमा, दिये सुधा सौगात। युगल रचाते रास हैं, शरद पुर्णिमा रात।। शरद पूर्णिमा यामिनी, करें बिहारी रास। राधा घट की स्वामिनी, सोहे दोनों पास।। शरद धवल है चंद्रमा, रजनी पूनम आज। सज्जित षोडश है कला, सुधा सरस है साज।। चन्द्र किरण कोजागिरी, दोष मुक्त सब लोग। भोग प्रसादी खीर का, काया रहे निरोग।। चन्द्र प्रभा शीतल लगे, शरद रहा है साक्ष्य। ताप घटेगा सूर्य का, जाड़ा बनता लक्ष्य।। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से लेखन रचना प्रकाशन : साहित्यिक पत्रिकाओं में, कविता, कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल आदि का प्रकाशन, आकाशवाणी से प्रसारण। प्राप्त सम्मान : अभिव्यक्ति विचार मंच नागदा से अ...
हरियाली तीज
दोहा

हरियाली तीज

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावन की शुभ तीज है, आनंद अति उमंग। गौरी पूजे नारियाँ, मन उल्लास उतंग।। सावन के झूले पड़े, झूले सुंदर नार। सजी-धजी सखियाँ हँसे, ऊँची पींगें मार।। मालपुए मीठे करें, मुँह में मधुर मिठास। घर-घर सावन तीज का, पर्व मनाएं खास।। शंकर-गौरी पूजती, सभी सुहागन नार। सुख सौभाग्य सँवारती, माँगे शुभ संसार।। हरियाली चहुँ ओर है, हुआ हरित संसार। पावस की बूंदें करें, सकल धरा श्रृंगार।। बरखा बरसे झूमके, व्योम धरा सन्देश। इंद्रधनुष के रंग सजे, निखरे नभ का वेश।। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से लेखन रचना प्रकाशन : साहित्यिक पत्रिकाओं में, कविता, कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल आदि का प्रकाशन, आकाशवाणी...
कुंडलियाँ
कुण्डलियाँ

कुंडलियाँ

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** देख शिकारी आदमी, बिना लिए हथियार। तन पर उजला चैल है, मन में काली धार।। मन में काली धार, चले हैं वो व्यापारी। बिना लगाए दाँत, डसे है ये विषधारी।। कोमल होती दंग, फँसे जनता बेचारी। नेता करते घात, धूर्त हैं देख शिकारी।। बैठ शिकारी राह में, घात लगाए एक। सरल लक्ष्य को ताकता, आँख वहीं पर टेक।। आँख वहीं पर टेक, बालिका सुंदर प्यारी। जाल बिछाता देख, कलुष देखो व्यभिचारी।। कोमल करती क्रोध, पाप की ये बीमारी। हरो दुष्ट के प्राण, राह में बैठ शिकारी।। बनो शिकारी साधकों, शब्द बिछाओ जाल। रचो काव्य की योजना, छंद सोरठा माल।। छंद सोरठा माल, नाथ को करना अर्पण।। सुनो ध्वनि करताल, दमकना फिर तुम दर्पण।। कोमल बड़ी प्रसन्न, महालय है हितकारी। श्रोता से पा मान, शब्द के बनो शिकारी।। बनी शिकारी आज मैं, देखूँ कर की ताल। टेढ़ी-म...
तमस घनेरा हो रहा
दोहा

तमस घनेरा हो रहा

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तमस घनेरा हो रहा, श्याम थाम लो हाथ। दास अकेला हो गया, रहना हर पल साथ।। नहीं अकेला राह में, चलता रह दिन-रात। कृष्ण सदा ही साथ हैं, सुन ले अब तू तात।। पीड़ा मन की बोलती, अश्रु बहे दिन-रैन। श्याम अकेला कर गए, नहीं हिया में चैन।। आया तू संसार में, निपट अकेला तात। जाना है सब त्याग के, सुनना इतनी बात।। मीत अकेला रह गया, हुई अकेली रात। अश्रु नैन में भर गए, तभी हुई बरसात।। कभी अकेला सा लगे, सुनना मन की बात। कहीं दबी तुममें रही, लक्ष्यहीन सौगात।। कभी अकेला मत करो, खुद को जानो आप। कुछ क्षण भीतर झाँक लो, काटो हर संताप।। स्व मूल्यांकन तो करो, नहीं अकेले आप। पा लोगे तुम जीत को, करो साधना जाप।। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन ...
मासूम कली
कविता

मासूम कली

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक कली मतवाली थी सीधी भोली-भाली थी हँसती खिलखिलाती सूरज की वो लाली थी देख रूपसी मुखड़ा उसका भँवरा एक खींचा आया भोली सी उस कली को उसने, धीरे से फिर सहलाया चिंहुक उठी मासूम कलिका भँवरे ने फिर बहलाया भँवरा मदमस्त हुआ, फिर अपने पे इतराया रस पीकर अधखिली कली का भँवरा जैसे बौराया कुचल उसने किसलय कुसुमित उड़ा गगन में अलसाया धरा पड़ी अर्दित बोंडी वो बेसुध संज्ञाशून्य हुई बागबान की दृष्टि में वो, अनुपयोगी धूल हुई जैसे निर्मोही माली की बेगानी इक भूल हुई आह! मनुज बोलो ... इसमें मेरा दोष है क्या मैं तो स्वयम अशक्त रूप थी अब कैसे मैं व्यर्थ हुई??? अब कैसे मैं व्यर्थ हुई??? परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की स...
फागुन आयो रे ….
गीत

फागुन आयो रे ….

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पीली चुनर ओढ़े धरती, पुष्पों का श्रृंगार किये हर्ष और उल्लास का, मौसम आयो रे फागुन आयो रे। रंग-बिरंगी फूली सरसों, पिया बिन तरसी जो बरसों प्रेम रंग अब रँगेगी गौरी फागुन आयो रे। गौरी घूँघट में शरमाये, पिया देख मन को हर्षाये दोनों संग-संग भीगेंगे अब फागुन आयो रे। टेसू के हैं फूल घुले, रंग उड़े गुलाल अखियाँ ढूंढे साजन को, रंग हो गया लाल प्रेम रस की चली फुहारें फागुन आये रे। कोयल छेड़े मीठी तान, गौरी मन हर्षाये पिया मिलन की आस में तन को है तरसाये संग-संग भीगेंगे तन-मन फागुन आयो रे। रचा महोत्सव पीत का, फागुन खेले श्याम, रंगों में भीगी राधा भागी गोपी धाम कृष्ण मुरारी ढूंढे श्यामा फागुन आयो रे। राधा-राधा रटे श्याम की, बंसी की मीठी तान सारा जग जाने श्यामा मोहन की है जान युगल जोड़ी देखो...
उत्तरायण
कविता

उत्तरायण

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नवीन वर्ष प्रारम्भ हुआ है, खुशियों का आरम्भ हुआ है। रंगबिरंगी पतंगों से ये, आसमान रंगीन हुआ है। गुड़-तिल्ली की मिठास भर गई, हर मन से खटास कम हुई। क्लेश मिट गए अब सारे रिश्तों का तारतम्य हुआ है। संक्रांति का महापर्व ये सूर्य आज उत्तरायण हुआ है। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से लेखन रचना प्रकाशन : साहित्यिक पत्रिकाओं में, कविता, कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल आदि का प्रकाशन, आकाशवाणी से प्रसारण। प्राप्त सम्मान : अभिव्यक्ति विचार मंच नागदा से अभियक्ति गौरव सम्मान तथा शब्दप्रवाह उज्जैन द्वारा प्राप्त लेखनी का उद्देश्य : जानकारी से ज्ञान प्राप्त करना। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ क...
स्वर की मधुरता
लघुकथा

स्वर की मधुरता

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** १० साल की आरिया काफी समय बाद आज अपने कमरे की खिड़की से, अस्ताचलगामी सूर्य की लालिमा से रक्ताभ हुए आकाश में पंख पसारे पक्षियों की चहचहाहट को केवल महसूस कर पा रही थी। ४ महीने पहले "कनेक्टिव टिशु डिसऑर्डर" नाम की बीमारी ने उसकी सुनने की क्षमता को छीन लिया था। आरिया मतलब मेलोडी माने स्वर की मधुरता। ४ साल की उम्र से ही आरिया का संगीत में रुझान था। जब उसकी उंगलियां गिटार पर चलती और खनकती आवाज़ में वो कोई गाना गाती तो लोग अपनी सुध बुध भूल जाते। संगीत के प्रति उसका लगाव धीरे-धीरे उसका जुनून बनने लगा था, उसका सपना था कि एक दिन वह एक मशहूर सिंगर बनेगी। लेकिन आज पक्षियों के कलरव ने उसे आशा की नई किरण दी थी। धीरे-धीरे आरिया में आत्मविश्वास बढ़ने लगा, क्या हुआ अगर वो सुन नहीं सकती थी, उसने संगीत को महसूस करना शुरू कर ...
तेरा मेरा रिश्ता
कविता

तेरा मेरा रिश्ता

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भाई तेरा मेरा बचपन, था इमली सा खट्टा मीठा रूठ के जब मैं सो जाती थी, तेरी खुशियाँ खो जाती थी मुझे मनाने को तुम कितने जतन लगाते थे आखिर में आँगन के पेड़ से इमली तोड़ लाते थे एक चुटकी नमक लगा फिर जबरन मुझे खिलाते थे मेरे चटकारों में तुम, अपनी हँसी लुटाते थे खट्टी सी इमली में भी तुम प्यार भरकर लाते थे बीत गया अब वो बचपन, इमली सी न बात रही दूर हुए हम दोनों ही, कहीं तो थोड़ी खटास रही बदल गए क्यों रंग जीवन के, मीठा सा अब वो साथ नहीं बदल गया है सबकुछ अब तो हम दोनों के बीच में बूढा हुआ क्या रिश्ता हमारा उस आँगन के पेड़ सा वो शरारती बचपन मेरा फिर से लौटा लाओ ना फिर उस बूढ़े पेड़ से, एक इमली तोड़ लाओ ना। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी...
दिल तोड़ कर मजे़ से
ग़ज़ल

दिल तोड़ कर मजे़ से

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिल तोड़ कर मजे़ से, लो मुस्कुरा रहे हैं घर को गिरा के मेरा, अपना बसा रहे हैं सारे हसीन गुल थे, जो मेरे  गुलसिताँ के बे-नूर चमन करके, दुनियां महका रहे हैं पूछा जो हाल मैंने, तब सच छुपा गये वे दिल को जलाने वाले, लो मुँह बना रहे हैं ऐसा ये इश्क़ होगा, सोचा नहीं कभी भी दिल में छुपाये ख़ंजर, मुझको डरा रहे हैं मंजिल मेरी तुम्हीं हो, जो बात बोलते थे दामन छुडा़ के मुझसे, अब दूर जा रहे हैं करते थे प्यार खु़दही, मर्जी मेरी कहाँ थी दिल को लगाया क्यूँ था, बैठे जता रहे हैं ताजे़ हैं ज़ख्म 'कोमल' कैसे भरेंगे सोंचो गै़रों में खुश रहे वे, नमकें छिड़का रहे हैं परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से ले...
हिंदी मेरा अभिमान है
कविता

हिंदी मेरा अभिमान है

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी मेरी आन है, हिंदी मेरी शान है सरस्वती का दिया हुआ, अद्भुत ये वरदान है हिन्द की गौरवगाथा है, ये कवियों के प्राण हैं माँ की ममता सी प्यारी, ये भारत की जान है हिंदी मेरा अभिमान है अनेकता में एकता की, परंपरा का ज्ञान है प्रांतों को जोड़े रखती सबकी यह मुस्कान है जिसके बिना हिन्द रुक जाए, ऐसा गौरवगान है हर काल को जिसने जीत लिया ऐसा सुगम उत्थान है हिंदी मेरा अभिमान है इसमें पंत की कोमलता है, जयशंकर का प्रसाद है दिनकर का इसमें ओज है शामिल, जायसी की तान है महादेवी का दर्द भरा, सुभद्रा की शक्ति का भान है मीरा की इसमें भक्ति बसी, तुलसी की ये प्राण है हिंदी मेरा अभिमान है हिंदी से ही हिन्द बना है हिंदी से हिंदुस्तान है आओ इससे प्रेम करें हम यही हमारी शान है हिंदी मेरा अभिमान है परिचय :- कीर्ति ...
व्यथा
कविता

व्यथा

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेम में मिले आँसू, नहीं होते अभिशाप! जब बहते हैं किसी प्रेमिका की आँख से तो उस बहाव में, अठखेलियाँ करती हैं, मधुर स्मृतियाँ.... जिनमें होते है प्रेम में बीते वे अनगिनत क्षण वो हाथों का स्पर्श!!!! जिनमें था साथ निभाने का वचन! वो माथे पर अंकित चुम्बन,... जो द्योतक था आत्मा के स्पर्श का वो विरह के क्षण,..... जिनमें था सदैव राह तकने का समर्पण प्रेम में मिले आँसू "सौगात" है उम्र भर की प्रतीक्षा की!!! ये प्रतीक्षा है, सच्चे प्रेम में पगे व्यथित हृदय की जो सदियों से करती आई है, एक स्त्री प्रेमिका के रूप में.... ओर पाती आयी है "सौगात" सदा के लिए प्रतीक्षा की.... परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समा...
स्त्री मन
कविता

स्त्री मन

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भीगे कपड़े पसारते हुए छू जाता है गीले कपड़ों का अपनापन कुछ पलों के निजीपन याद आते ही बज उठता है संगीत मन का उतरते ही छत से खिसक आता है पास बच्चों के आने का पल संगीत भूल, मन हो जाता उद्वेलित शाम के खाने की जुगत में तभी याद आता छत पर भीगेगा अचार मन का संगीत हो जाता कुछ खट्टा सुनाई देती है बुजुर्गों की खाँसी तीतर बितर हो जाता मन का संगीत चांवल चढ़ाते चूल्हे पर दाल छोंकते खनकती है चूड़ियां कलाई में बजती है पैरों की पायल नहीं गूंजती मन में फिर कविताओं की स्वर लहरियाँ महसूस नहीं होते आकाश में गीतों के मन्द मधुर स्वर सृजित हुए थे जो उषा के प्रकाश में पूरब के रुपहले तन से अलग होकर जो दूर कहीं खनकता है मन का संगीत।। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्...
नीम की मौत
कहानी

नीम की मौत

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** आपने बहुत से पेड़ों को घरों में, मोहल्लों में और सड़कों के किनारे खड़े अवश्य देखा होगा। प्रत्येक पेड़ का अपना कुछ न कुछ महत्व होता है। इस कहानी में मैने एक मोहल्ले में खड़े नीम के पेड़ के माध्यम से पेड़ों के महत्व को बताने का प्रयास किया है। गांव सलगवां के राघव मोहल्ले में एक विशाल नीम का पेड़ था। इसके अलावा पूरे गांव में कोई पेड़ न था। उसकी बनावट एक छाते कि तरह थी। लोग गर्मियों में उसकी छाया का आनंद लेते थे। बरसात में भी लोग उसके नीचे खड़े हो जाते थे और वह लोगों को विशाल गोवर्धन पर्वत की तरह ही बरसात से बचाता। लोग उसके नीचे रोज पत्ते भी खेला करते थे। मोहल्ले के बच्चे भी अपने दैमिक खेल उसके नीचे खेलते थे। कुछ बुजुर्ग उसकी टहनियों से दातुन करते थे। इस प्रकार बच्चे, बड़े और बुजुर्ग लोगों को वह कुछ न कुछ देता था। ये लोग पेड़ को पसंद ...
दिल की गहराइयों में
कविता

दिल की गहराइयों में

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिल की गहराइयों में दर्द तेरा शामिल है मेरे अश्क़ों का समंदर ही मेरा साहिल है ऐसे पीछे से चलाया गया खंजर मुझ पर हर तरफ़ जैसे लबे-बाम मेरा क़ातिल है मन की बातों को मसोसे हुए मैं बैठ गई आरजू़ कैसे बयाँ हो जो खडा़ जाहिल है मर तो जाऊंगी पर हिम्मत नहीं हारूँगी मैं मेरी रग-रग में मेरी माँ की दुआ शामिल है कब से बैचैन हूँ तन्हाइयों में रोती हूँ दोस्त क्या मेरी जिस्त में पैवस्ता यही हासिल है सुर्ख़ कदमों में लिये फिरती हूँ गाहे-गाहे आबले कौन भला समझे कहाँ आकिल है खू़ब मालूम है तूफ़ां है ये साहिल तो नहीं तू ही कहदे इसे 'कोमल' तो यही साहिल है गाहे-गाहे (जगह/जगह) आबले (फफोले/छाले) परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी...
बूँद के सतून पर
कविता

बूँद के सतून पर

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बूँद के सतून पर जीवन का तानाबाना टिका है हरे हो जाते हैं प्यासे वृक्ष निर्वाण प्राप्त करता है जीव आनंद को महसूस करती है प्रकृति यौवन की गाँठें खुल जाती हैं नया सूरज निकलता है और झूम जाता है धरती पर मेला सजता है कलकल करती नदियां निकलती हैं पक्षियों का अमर गीत गुंजायमान होता है बूँद के तह में जीवन है जीवन की तलहटी में बूँद दो पाटों के बीच ईश्वर संतोष को महसूसता है मुस्कुराता है आशीर्वाद देता है जीवन अनमोल है अनमोल है जीवन ये दो शब्द बादलों की डायरी में दर्ज है। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से लेखन रचना प्रकाशन : साहित्यिक पत्रिकाओं में, कविता, कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल...
तूफान है…..!!
कविता

तूफान है…..!!

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** काँप रही प्रकृति और 'वो' बिना काँपे, लगे है जुगत में, 'जीवन' की..... क्योंकि दोनो पर है जिम्मेदारी, कुटुम्ब' की किन्तु..... उसके लिए 'भविष्य' उजला है क्योंकि, वो पेड़ नहीं.... वो काँपता नहीं बल्कि देख रहा है अपने कुटुम्ब रूपी पेड़ के हरे पत्तों को उसके मासूम बच्चों को परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से लेखन रचना प्रकाशन : साहित्यिक पत्रिकाओं में, कविता, कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल आदि का प्रकाशन, आकाशवाणी से प्रसारण। प्राप्त सम्मान : अभिव्यक्ति विचार मंच नागदा से अभियक्ति गौरव सम्मान तथा शब्दप्रवाह उज्जैन द्वारा प्राप्त लेखनी का उद्देश्य : जानकारी से ज्ञान प्राप्त करना। घोषणा पत्र : मैं...
मासूम सपने
कहानी

मासूम सपने

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये कहानी है सपनों की नगरी कहे जाने वाले, मुंबई जैसे महानगर की एक, नाले के पास बसी छोटी सी बस्ती में रहने वाले, १३ साल के लड़के साहेब की। जो कूड़े के ढेर से ओर गन्दे नालों से कूड़ा बीनने का काम करता है! इस उम्मीद में की इस कूड़े के ढेर में या नाले में कही कुछ सिक्के मिल जाये जो उसके खाली पेट को थोड़ा सा भर सके। "मैं हूँ उस बस्ती के पास ही बनी एक २५ मंजिला बिल्डिंग में रहने वाली एक वर्किंग वीमेन जो अपने ऑफिस आते-जाते समय अक्सर उस बच्चे को देखती हूँ!!!" उसको देख कर लगता ही नहीं की उसका वो गंदगी में कुछ ढूंढने का काम उस पर भारी है, अपने कंधे पर वो टाट की बोरी लेकर, बेफिक्र हो, इस अंदाज में घूमता है, मानो कहीं का बादशाह हो। छोटी छोटी मगर, एक अजीब सी चमक ओर गहराई लिए उसकी वो आँखें, ऐसी थी मानो दुनिया भर की समझदारी उनमें भरी हो!! उसके ...