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चरित्र निर्माण
कविता

चरित्र निर्माण

कीर्ति दिल्ली विश्वविद्यालय ******************* मानव चरित्र का निर्माण कभी एक दिन मे नही होता जो गिर जाने पर दोबारा एक दिन मे उठा लोगे उम्र के कई साल निकल जाते हैं इसे मोतियो सा चमकाने में आभा होती हैं ऐसी चरित्र की जो करती है गुणगान तुम्हारे चरितार्थ का चरित्र दोष व्यक्ति के चरित्र को बहुत औछा बना देता हैं विशिष्टता चरित्र की समाज में उसको एक नया दृष्टिकोण देता हैं मुख से निकाला गया अपशब्द तुम्हारा स्थान गिरा देता हैं तुम्हारी चरित्र की शोभा को एक छण में फिर मिट्टी में मिला देता हैं सम्मान यहाँ तुम्हारा तुम्हारे रूतबे का नही घुमा लेने पर पीठ रूतबा भी यहाँ परिहास का कारण बनता हैं चरित्र हो ऐसा तेरे न होने पर भी गुणगान का कारण बनता हो। परिचय :-  कीर्ति (एम.ए) निवासी : दिल्ली विश्वविद्यालय घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक ...
मूक शब्दों को समझाना
कविता

मूक शब्दों को समझाना

कीर्ति दिल्ली विश्वविद्यालय ******************* वफादारी के चर्चों में कई सदियां गुजर गई जब मानव ने होश सम्भाला समाज में अपना स्थान पाया उसे अपने पालतू के रूप में युगों-युगों से अपने साथ ही पाया थोड़ा सा अपनापन थोड़ा सा प्रेम और थोड़ी सी सहानभूति उसे तुम्हारा कर्जदार बना जाती हैं उसे चुकाते-चुकाते उसकी अंतिम सास भी तुम पर कुर्बान हो जाती हैं चिलचिलाती धूप, भारी वर्षा, या हो कडकडाती ठंड दृढसंकल्प प्रदान करने का सुरक्षा तुम्हे और अधिक हो जाता हैं उसका प्रबल उसका मेहताना बस दो रोटी ही तो होता हैं परंतु तुमसे उसका लगाव तुम्हारी भुख से कही अधिक होता हैं कौन कहता है पशुओं में भाव नही होते वह परेशान होते है वह रोते है वह दुखी भी होते है परंतु मानव की भांति वह औरो को दोषी नही कहते हैं साथ तुम्हारे खेलना उसका तुम्हे बच्चे जैसा आनंद कराता है जीवन के क...