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Tag: कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार

संकट का यह दौर
कविता

संकट का यह दौर

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** आज मानवता संकट में है वक्त कैसा सितम ढा रहा है इंसान को इंसान से दूर कर रहा है बेवजह लोग बीमार पड़ रहे हैं हमें हमारे ही घर में कैद कर रहा है अपनों से दूर कर रहा है एक अदृश्य शत्रु दुश्मन बन रहा है संपूर्ण मानवता को अपने वश में कर रहा है काश कोरोना तुझे हम देख पाते हमारे भारतीय सैनिक से तुझे गोली मरवाते अगर नहीं मरता तू गोली से कमबख्त तुझे हम बम से उड़बातें फिर भी नहीं मरता तो भारत के तेजस व सुखोई लड़ाकू विमान से तुझे टारगेट बनवाते इस दुनिया से तेरा नामो निशान मिटाते वक्त तू कैसा सितम ढा रहा है इंसान को इंसान से दूर कर रहा परिचय :- कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार पिता : जालम सिंह अहिरवार निवासी : ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया जिला भोपाल शिक्षा : एम.ए. हिंदी साहित्य शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय भोपाल अध्य...
मैं एक गरीब किसान हूं
कविता

मैं एक गरीब किसान हूं

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** लघु कथा मैं एक गरीब किसान हूं कहने को मैं अन्नदाता हूं मेरे हृदय से पूछो मैं बहुत दुखी हूं क्या तुम मेरी दर्द वेदना व्यथा को समझ पाओगे कभी मुझ पर कुदरत का कहर बरस जाता है कभी सरकार का मुझे रोता देखकर क्या तुम मेरे आंसू पहुंच पाओगे मेरे दुख दर्द में मेरे साथ खड़े होकर मुझे दिलासा दोगे मैं हूं ना यह कह कर मेरे साथ खड़ा रहोगे पूरे साल मुझे काम बहुत रहते हैं मेरे बूढ़े माता-पिता का देखभाल मेरी जीवन संगिनी की देखभाल मेरे नन्हे नन्हे छोटे-छोटे बच्चे हैं साहब मेरे बच्चे कुपोषित रहते हैं मैं उन्हें दो वक्त का खाना नहीं खिला पाता एक बच्चे के विकास के लिए जितना पोषण चाहिए वह नहीं है मेरे पास मेरे बच्चों को अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा पाता हूं मैं उनके स्कूल की फीस नहीं भर पाता हूं मैं एक उम्र होती है बच्चों की पढ़ने लिखने क...
जिंदगी एक सफर है
कविता

जिंदगी एक सफर है

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** जिंदगी एक सफर है। कदम बढ़ाते चलो हंसते गाते मुस्कुराते चलो, ऐ चलने वाले मुसाफिर सफर लंबा है। कदम बढ़ाते चलो राह में रुकना नहीं है। सफर जितना लंबा होगा सफलता उतनी ही बेहतर होगी, जीवन में सफर करते समय अनेक बाधाएं आएंगी, इन बाधाओं में रुक ना जाना ए मंजिल के मुसाफिर, लोग यहां थक हर कर बीच सफर में ही रुक जाते हैं। वह लोग यह नहीं जानते उस समय हम मंजिल के कितने करीब थे, सफर में जब निकल चले हैं। मंजिल मिले बगैर रुकने का सवाल ही नहीं होता, आज नहीं तो कल जरूर मिलेगी, जिंदगी एक सफर है हंसते गाते मुस्कुराते कदम बढ़ाते चलो। चलते चलो मुसाफिर चलते चलो। परिचय :- कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार पिता : जालम सिंह अहिरवार निवासी : ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया जिला भोपाल शिक्षा : एम.ए. हिंदी साहित्य शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्...
बदलते परिवेश रो आयो जमानो
कविता

बदलते परिवेश रो आयो जमानो

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** मेरा प्यारा गांँव कहां है १ प्यारा नादान बचपन कहां है मां की लोरी दादा नानी के किस्से कहानी कहां है। हंसते खेलते परिवार कहां है हिल मिलकर रहने वाले वह प्यार लोग कहां हैं। जिस पेड़ की छांव में बैठकर करते थे वार्तालाप वह नीम का पेड़ कहां है । जहां मैं खेल कूद कर बड़ा हुआ वह आंगन गलियां कहां है। मेरे नादान बचपन पर प्यार दुलार लुटाने वाले वह प्यारे लोग कहां हैं। निस्वार्थ सेवा की भावना ऐसे आज मित्र कहां है। बचपन में करते थे स्नान वह कल कल सी बहती स्वच्छ शीतल नदी कहां है। शिक्षा बनी व्यापार निस्वार्थ ज्ञान देने वाले आज गुरु कहां है। दूध देने जाने लगे डेरी पर घर में। मटकी भर मक्खन कहां है। पढ़ाई हो गई कंप्यूटर मोबाइल पर मेरी प्यारी किताब कहां है। फैशन रो आयो जमानो धोती कुर्ता भारतीय नारी रो वस्त्र कहां है। एक बीवी...
अगर मैं फौजी होता
कविता

अगर मैं फौजी होता

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** काश मैं कवि होता, तो हिंदुस्तान पे, कविताऐ लुटा देता ! अगर मैं फौजी होता , वतन के लिए जान लुटा देता ! काश मैं गुलाब होता, तो वतन के लिए अपनी खुशबू लुटा देता ! काश मैं वृक्ष होता तो वतन के लिए अपनी छाँव लुटा देता ! काश में सूर्य होता, तो वतन के लिए अपनी रोशनी लुटा देता ! काश मैं कवि होता तो वतन पर अपनी कविताऐ लुटा देता ! काश में फौजी होता, तो वतन के लिए जान लुटा देता !! परिचय :- कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार पिता : जालम सिंह अहिरवार निवासी : ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया जिला भोपाल शिक्षा : एम.ए. हिंदी साहित्य शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय भोपाल अध्ययनरत राष्ट्रीय सेवा योजना एन.एस.एस. स्वयंसेवक, सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वर...
मानव तेरा ऐसा स्वभाव होता
कविता

मानव तेरा ऐसा स्वभाव होता

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** काश मानव तेरा ऐसा स्वभाव होता हम इसके जीवन यह प्रकृति हमारी काया होती निस्वार्थ भाव से स्वयं देना प्रकृति का वरदान है निस्वार्थ भाव से सेवा करना मानव तेरा स्वभाव होता फिर ना शिक्षा व्यापार बनती प्राकृतिक वह प्राणी के लिए मन में दया का भाव होता हम इसके जीवन यह प्रकृति हमारी काया होती फिर ना यह कोरोना होता ना यह मास्क ना सैनिटाइजर होता फिर ना तू मुझसे दूर होता ना मैं तुझसे दूर होता दिल में दया का भाव होता तू भी आजाद में भी आजाद होता प्रकृति पर है सबका अधिकार ऐसा तेरा स्वभाव होता ना मैं तेरा दुश्मन ना तू मेरा दुश्मन होता हम सब मिलकर रहते हम सब मिलकर रहते तू धरती पर मैं पंछी मैं आकाश में उड़ता हम इसके जीवन यह प्रकृति हमारी काया होती फिर ना तू मुझसे दूर ना मैं तुझसे दूर होता काश मानव तेरा ऐसा स्वभाव होता परि...
दिलों में रहने का रास्ता ढूंढ
कविता

दिलों में रहने का रास्ता ढूंढ

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** दिलों में रहने का रास्ता ढूंढ पास तो पराए भी बैठ जाते हैं खुशबू बनकर कर महक ने की कोशिश कर फूल तो कागज के भी खिल जाते हैं ताउम्र साथ चलने की कोशिश कर हमसफ़र एक मिल चलने वाले तो हजारों मिल जाते हैं दो कदम चल कर मंजिल तक पहुंच मुश्किलों से हार कर बैठे जाने वाले तो हजारों मिल जाते किताबों से दिल लगा कर देखो यार लोग तो दिल लगाने वाले लाखो मिल जाते हैं अपने सपनों को पूरा कर सपने देखने वाले तो हजारों मिल जाएंगे प्रकृति की तरह कुछ देना सीख बाहे फैलाकर लेने वाले तो हजारों मिल जाएंगे स्वयं खुश रहकर औरों को हंसाने की कोशिश कर बेवजह रुलाने वाले तो हजारों मिल जाते हैं खुशबू बनकर महक गुलाब की तरह फूल तो कागज के भी खिल जाते हैं हो सके तो सच्चा प्यार कर साथी बेवजह धोखा देने वाले तो लाखों मिल जाते नदी की तरह ताउम्र चल मु...