Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: काजल

अन्न का दान
कविता

अन्न का दान

काजल स्वरूप नगर (नई दिल्ली) ******************** मासूमियत सी तल्ख आखें सिग्नल लाइट के चौराहे पर हाथ बिखेरे मांग रही अन्न का दान। फटे पुराने कपड़े, हा जी, भूख की मार कर रही, भीख का काम। गरीब, गरीब कहे या किस्मत की मार, देख उन्हें गाड़ीवान बढ़ा देता अपनी रफ्तार दया करुणा ममता? इन आखों में सब है तिरोभाव यही वजह है गरीब होने का इतिहास। ये आंखे बया कर रही अकल्पनीय भोगा हुआ यथार्थ। इंसानियत की मार, डाल रही लोगो में फूंक। मूक दर्शक, देख न पाए, हक़ीक़ी उनकी कांच का लिए पर्दा डाल। बचपन में जो न खेले खिलौनों से खेल रही आज गरीबी के कोने में खिलौना, खिलोने नही न कोई गुड्डा गुडिया, वह तो है पहिया एक गाड़ी का। जिसे घुमाकर, बच्चा हो रहा प्रसन्न-चित्त, गरीबी का दुःख नहीं कर सकता उसकी अभिलाषा को दूर। फिर भी, मासूमियत सी तल्ख आखें सिंगनल ...
शाम की धूप
कविता

शाम की धूप

काजल स्वरूप नगर (नई दिल्ली) ******************** शाम की वो छलती धूप, दीप से थोड़ी कम लगती है पर कुछ अच्छी सी लगती हैं। छूती है जब तन को ठंडे पवन के साथ, शरारत सी करती है पर कुछ अच्छी सी लगती हैं। ढलते सूरज को देख ऐसा लगता है कोई किताब बस्ते में रखता है, छुट्टी होने की खुशी झलकती है इसलिए अच्छी सी लगती है। शाम की वो छलती धूप बड़ी प्यारी सी लगती है गलियों में सब निकल कर आते है बच्चे शोर मचाए चले जाते है उनपर वो छलती धूप, प्यार बरसाती है, इसीलिए सोने की छलनी सी लगती है, पर कुछ अच्छी सी लगती है। धूप के बिछड़ते ही चांद आता है रोशनी चांदनी में बदलती है, थोड़ी और शीतल होकर, जुबां पर हँसी सी खिलती है, पर कुछ अच्छी सी लगती है। पक्षियों का चहकना, हवाओं के साथ उड़ना बिना रुकावट के मन के पंखों को उड़ान देती है, इसीलिए अच्छा सी लगती है। परिचय :-  काजल पिता : सोहन सिं...