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Tag: ओम प्रकाश त्रिपाठी

नेह का निमंत्रण
कविता

नेह का निमंत्रण

ओम प्रकाश त्रिपाठी महराजगंज (उत्तर प्रदेश) ******************** नेह का निमंत्रण मीत, तुझको हूं भेज रहा आज अपनी गरिमा को, अब तो पहचानो। कोसते हो जिनको कि, तूने कुछ नहीं दिया आज उस ब्रह्म का, आभार तुम मानो ।। विश्व पर विपत्ति आज, कैसे पड़ी हैआन भान कर इसका तू घर नहीं त्यागो। मान बात घरनी की, जाओ न विदेश अब जीवन है अमूल्य सिर्फ, पैसे पे न भागो ।। क्रूर कोरोना काल, आगे है बढ रहा राह इसका छोड़ अब नयी राह गढ लो। सह नहीं जायेगा, बिछोह तेरा मीत मेरे परिजन के संग, अब प्रीति करना सीख लो।। रीति जो है प्रीति की ,तू छोड़ेगा कभी न मीत विश्वास को हमारे, ठेस न लगायेगा। कुछ ही दिनों की बात, मान एक पाती लिखो संकट का काल मीत, स्वयं कट जायेगा।। परिचय :- ओम प्रकाश त्रिपाठी निवासी : शिकारगढ जनपद-महराजगंज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एव...
हमनें तेरे लिए
गीत

हमनें तेरे लिए

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** हमनें तेरे लिए हर कसम तोड़ दी दुनिया तेरे लिए हमनें यू छोड़ दी बस तमन्ना यही दिल मे है बस मेरे आप भी अब इन्हें छोड़ दें आओ संग कहीं मिलकर चलें।। हाथ मे हाथ बस यूं तुम्हारा रहे एक दूजे का हम यूं सहारा रहें गिर पड़े हम अगर यूं कहीं राह मे एक दूजे को बढ थाम लें आओ संग कहीं मिल कर चलें।। चलें ऐसी जगह ढूंढ कर हम कहीं चिडियाँ चहके जहाँ फूले कलियाँ कहीं प्यार ही प्यार हो जिस चमन मे सनम उस चमन की तरफ हम चलें आओ संग कहीं मिलकर चलें।। . परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.co...
उठो क्रांति का ले मशाल
कविता

उठो क्रांति का ले मशाल

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** उठो क्रांति का ले मशाल, फिर से ज्वाला दिखला डालो। सडे गले इस सिस्टम से, अब अपना पिंड छुडा डालो।। इस सिस्टम को इन नेताओं ने, स्वयं हेतु निर्माण किया। अपने हित को साध सके, इसका खूब बिधान किया।। तीस साल पढने मे बिताओ, पैतीस मे रिटायर हो जाओ। कहते बैंक से कर्जा लेकर, रोजीरोटी मे लग जाओ।। पर अपनी रिटायरी के उम्र का कोई कानून नहीं लाया। सत्तर के भी हो जाने पर मंत्री पद को इसने पाया।। जनता का हित करना हो तो पैसे इनके पास नही। अपना वेतन बढता है जब होती कोई बात नहीं।। आना जाना दवा व दारू इनका सब कुछ जनता पर। पता नहीं फिर वेतन भी क्यों लदता है फिर जनता पर।। कहते हैं सब जन समान हैं भारत की इस भूमि पर। फिर असमान कानून यहां क्यों बनते भारत भूमि पर।। इसीलिए तो कहता हूँ कि उठो बाण संधान करो। एक और क्रांति के खातिर जन जन का आह्वान करो।।जय हिन्द।। . लेख...
मही हो स्वर्ग सी मेरी
कविता

मही हो स्वर्ग सी मेरी

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** मही हो स्वर्ग सी मेरी, यही बस कामना दिल मे महक बिखरे सदा यू ही, यही बस भावना दिल मे। लडी मोती की न टूटे, यही बस है मेरी ख्वाहिश न जीते न कोई हारे, प्यार ही प्यार हो जग मे।। उत्तर में हिमालयसे, समन्दर तक ये बोलेगा सुनो ऐ दुनिया वालों तुम, तेरे आखों को खोलेगा। राज्य हो राम के जैसा, नहीं हो दीन अब कोई धरा का जर्रा जर्रा फिर, वसुधैव कुटुम्बकम बोलेगा।। नहीं हो फिर कोई हिटलर, नहीं मूसोलिनी जैसा जगत के मूल में न हो, कभी रुपया और पैसा। मिले दिल एक दूजे से, न हो कोई गिला शिकवा बनाये आओ मिलकर के, हमारा विश्व एक ऐसा।। . लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रका...
कँहा है बाबा का संविधान
कविता

कँहा है बाबा का संविधान

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** बतलाओ अब आज कँहा है, बाबा का संविधान, ये भारत पूछ रहा है...।। प्रथम प्रहार इसके प्रयोग पर, नेहरु ने कर डाला था। कुटिल नीति पर चल कर, मौलिक नियम बदल डाला था। पूछो उस दिन कहां हुआ था, बाबा का सम्मान ये भारत पूछ....।। जब बारी इन्दिरा की आयी, उसने भी न छोडा। अपने सत्ता के सुख खातिर, खूब तोडा और मरोड़ा। ऐसा संसोधन उसनें की कि तडप उठा इन्सान ये भारत पूछ......।। संविधान को करके निलंबित, इमरजेंसी लगा डाला था। अमन पसंद सभी जन को, जेलों में, भर डाला था। फिर भी कहते हैं कि हमको पूज्य है ये संविधान ये भारत पूछ ...।। सबने बारी बारी से, निज सुविधा इसको बदला है। और बदलने को खातिर, अगला भी देखो मचला है। देश को लूटे कर संसोधन और बचा ली अपनी जान ये भारत पूछ....।। सुप्रीम कोर्ट चलता है उससे, उसको भी न चलने देते। अगर वोट होता है प्रभावित, हैं संसोधन कर लेते। ...
चाय की दूकान पर
कविता

चाय की दूकान पर

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** सुबह उठा मंजन किया धोया मुह और हाथ, थोड़ी दूर घर से चला मिला मित्र का साथ। मिला मित्र का साथ, बात कुछ ऐसी छिड गई, टीम हमारी जा करके दूकान पहुंच गई।। पहले से दूकान पर बैठे थे कुछ लोग, चना जलेबी चाय की लगा रहे थे भोग। लगा रहे थे भोग भाव दिखलाते अपना, कहा गया रे छोटुआ ला गिलास दे अपना।। अंकल थोडा ठहरिए आता हूं मै पास बाल दिवस पर टीवी मे आ रहा है कुछ खास। आ रहा है कुछ खास बच्चे चहक रहे हैं कुछ है बैठे झूले पर कुछ सरक रहे हैं।। तभी जोर से मालिक ने चिल्ला कर बोला कहा है रे छोटुआ साला टीवी क्यों खोला? डरा, सहमा, कापता छोटुआ गिलास ले भागा। हाय धरा पर कैसा है कुछ बचपन आभागा।। सत्तर सालों से हम हैं यह दिवस मनाते। पर इस गंदी सोच को मिल क्यों नहीं मिटाते।। . लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
जीता भाई चारा
कविता

जीता भाई चारा

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** हिन्दू जीता न मुस्लिम जीता जीता भाई चारा । आओ मिलकर के सब बोले हिन्दुस्थान हमारा।। मिलकर हिन्दू मुस्लिम सब मन्दिर मस्जिद निर्माण करें, राम और अल्लाह के जैसे सब जन जन को प्यार करें। इसीलिए तो सब हैं कहते हिन्दुस्तान जग से न्यारा, आओ मिलकर.....।। एक बनेंगे, नेक बनेंगे मिलजुल कर हम काम करेंगे, परम वैभवी हो मां मेरी सब मिलजुल यह जतन करेंगे। कभी नहीं टूटेगा यह हम सबका भाईचारा आओ मिलकर.....।। वर्षों के झगड़े को भी मिलकर हमनें सुलझा डाला, विश्व पटल पर शान्ति, अहिंसा का परचम फहरा डाला। गूंज उठा है अन्तरिक्ष मे श्री राम का नारा। आओ मिलकर.....।। . लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविता...
मिटा इतिहास वो काला, इबारत गढ
कविता

मिटा इतिहास वो काला, इबारत गढ

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** मिटा इतिहास वो काला, इबारत गढ नयी डाला, शत्रु भी सोचता होगा, पडा किससे है अब पाला।। गया अब तीन सौ सत्तर, नया इतिहास लिख डालो। चढाई कर पी ओ के पर, उसे अपना बना डालो। पाक अब रह जाये जपते, यू ही कश्मीर की माला शत्रु भी........।। तू ही है मान भारत का तू ही अभिमान भारत का तू ही है शान भारत का तू ही है जान भारत का तूने ही हर असंभव को, बना संभव है अब डाला शत्रु भी....।। है कुछ गद्दार भी अपने चमन मे, उनको पहचानो है जो इस देश का दुश्मन, उसे अपना नहीं जानो जो बोले देशद्रोही बोल, उन पर डाल दो ताला शत्रु भी.......।। करो ताण्डव दिखा दो शक्ति, दुश्मन बच नहीं पाये हसरतें जो भी मन मे है, धरी की धरी रह जाये वो खुद जल भस्म हो जाये नयन मे ऐसी हो ज्वाला शत्रु भी....।। . लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कह...
सोचो जब जमी पर
कविता

सोचो जब जमी पर

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** पानी.. जरा सोचो जब जमी पर एक दिन ऐसा होगा धरा सब रेत होगी सन्नाटा यू पसरा हुआ होगा नहीं होगी हरी घासें न दीखेगी हरी बासें न नदियां कल कलायेंगी न चिडियाँ चह चहायेंगी न फसलें लह लहायेंगी न बिजली चम चमायेंगी धरित्री माँ का ये धानी चुनर जब जल रहा होगा धरा सब.........।। जब तक ये पानी है,जवानी है सभी किस्सा कहानी है सुनो उपदेश रहिमन की यही उनकीभी बानी है सून सब कुछ है, बिन पानी सँवारो आने वाला कल बचा एक बूँद पानी को नहीं चेता अगर अब भी भयानक कल बडा होगा धरा सब..।। . लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी...
हे धरती माता के रक्षक
कविता

हे धरती माता के रक्षक

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** हे धरती माता के रक्षक क्यों बनते हो खुद का भक्षक दुनिया के पेटो को भरने को खुद का पेट जलाते हो पर शस्यश्यामला धरती के सीने में आग लगाते हो। जिसके खूनो को चूस-चूस अनगिन फसलों हे धरती माता के रक्षक क्यों बनते हो खुद का भक्षक दुनिया के पेटो को भरने को खुद का पेट जलाते हो पर शस्यश्यामला धरती के सीने में आग लगाते हो। जिसके खूनो को चूस-चूस अनगिन फसलों को लहकाया जिसकी करुणा से घर आँगन फूलों से तूने महकाया अब उसी धरित्री माता के आँचल को स्वयं जलाते हो। जिन पुत्रों को पाला तुमने उनका ही दुश्मन बन बैठे तेरे इन जले पराली से सांसे उनकी कैसे पैठे हे आवश्यकता के आविष्कारक तृण से क्यो क्यों हारे बैठे हो। . लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...