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Tag: ऋषभ गुप्ता

मोहब्बत भी इबादत है
कविता

मोहब्बत भी इबादत है

ऋषभ गुप्ता तिबड़ी रोड गुरदासपुर (पंजाब) ******************** उसकी नजरों ने छू लिया पहली दफा जब उसे देखा था वो ख्वाब है या हक़ीक़त उस रात इस उल्झन में डूबा था, तकते रहे उसकी राहें ये पन्ने भी डलती हूई शामों को उससे मिलने का इंतज़ार था हर मौसम ज़िन्दगी का सुहाना हो गया इन रातों को भी उससे मिलने का खुमार था, शाम जलने लगी उसके नूर से खूबसूरती का मंज़र जन्नत से कम नहीं था वो पल शायद ही मैं लिख पाता उसे सजाने के लिए इस शायर के पास कोई रंग नहीं था, उसके हर पहलू में खोया रहूँ उसकी हर एक अदा में मुझे सुकून मिलता है उससे मिलकर ये जाना मैंने कि हक़ीक़त में चाँद कितना खूबसूरत लगता है, उसका मुस्कुराना मेरे दिल को राहत देता है ज़िन्दगी जीने का जरिया देता है बेवजह ही अब मुस्कुराता रहता हूँ हर पल उसके ख्याल में बिताना मुनासिब लगता है मेरी मोहब्बत की आशीमा का मुझे खुद अंदा...
ख़्वाहिशें जगने लगी
कविता

ख़्वाहिशें जगने लगी

ऋषभ गुप्ता तिबड़ी रोड गुरदासपुर (पंजाब) ******************** बूंदे बरसने लगी ख़्वाहिशें जगने लगी ठहरी-ठहरी सी ये जिंदगी फिर से चलने लगी, मौसम भी सुहाना हो गया आसमान का दीवाना ये राही हो गया पहाड़ों की चोटियों पर जब ठण्डी-ठण्डी हवाएं चलने लगी ठहरी-ठहरी सी ये जिंदगी फिर से गुनगुनाने लगी, ख्वाहिशों की मोमबत्तियां कैसे बुझ जाती एक हवा के झोंकें से ठहरे हुए समंदर में भी कश्ती चलने लगी, बेड़ियों में बंधा ये परिंदा आज़ाद हो गया राहों पर खड़ी ख़्वाहिशें जब ज़ोर से पुकारने लगी, नया दौर नई दास्तां आँखों में आशाएँ लिये वही पुरानी ख्वाहिशों को कलम की जुबानी ये नज़्म सुनाने लगी ठहरी-ठहरी सी ये ज़िंदगी फिर से कदम बढ़ाने लगी परिचय :- ऋषभ गुप्ता निवासी : तिबड़ी रोड गुरदासपुर (पंजाबप्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित ...
कागज़ और कलम
कविता

कागज़ और कलम

ऋषभ गुप्ता तिबड़ी रोड गुरदासपुर (पंजाब) ******************** कुछ गहरे राज़ छुपे थे दिल में कागज़ और कलम उठाया तो निकल कर बाहर आए बातों में कुछ दर्द ऐसा छुपा था जिस अकेलेपन का एहसास कागज़ की महक और कलम की खुशबू में भी हो रहा था जो कागज़ और कलम के भी आँसू ले आए कोई साथ ना था मेरे जब कोई पास ना था मेरे जब हर रास्ते पर अकेला चला मैं था जब सोचता था कौन है मेरा यहाँ तो कागज़ और कलम मेरा हाथ थाम उन राहों पर साथ चलने आए रास्ता मुश्किल था मंजिल भी दूर थी दूर.दूर तक सन्नाटा था लेकिन कागज़ और कलम ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा सोचता था कैसे उतारूँगा इन का कर्ज़ जो हर समय साथ देने आए थे मेरा सुख से भी ज्यादा मेरी परेशानी के समय दिल के दरिया में ख्वाबों का इक महल कागज़ पर लफ़्ज़ो की माला में सजा कर लिखा था जो हर बार उनको पूरा करने के लिए मुझे नींद से जगाने आई हवाओं के रुख बदलने ...