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Tag: ऋतु गुप्ता

बटवारा
लघुकथा

बटवारा

ऋतु गुप्ता खुर्जा बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** घर भर में कोहराम मचा था, तारा जी सीढ़ी से गिर गई थी, सिर पर भारी चोट लगी थी, डाक्टर ने बताया कि शायद दिमाग की कोई नस फट गई थी, जो उन्हें यूं अचानक दुनिया को छोड़ अलविदा कहना पड़ा। यूं तो तारा जी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो चुकी थी, तीन बेटे थे, सभी की शादी हो चुकी थी और सभी अपने अपने परिवार में मस्त थे। लेकिन तारा जी का यूं अचानक जाना उनके पति राधेश्याम जी पर पहाड़ टूटने जैसा था, क्योंकि राधेश्याम जी थोड़े से अस्वस्थ रहते थे, और उन्हें हर पल तारा जी के साथ की जरूरत महसूस होती थी, असल में यही वह उम्र होती है, जिसमें हमें अपने जीवनसाथी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, और जीवन साथी की जैसे आदत सी हो जाती है, इसी समय पर आकर हम जीवनसाथी का सही मायनों में अर्थ समझ पाते हैं, और फिर पूरी ज़िंदगी तो जिम्मेदारियों में निकलती ही है, ...
वक्त का आईना
कहानी

वक्त का आईना

ऋतु गुप्ता खुर्जा बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** शारदा जी के पास उनके प्रभाकर भैया का फोन आया था कि तेरी सरोज भाभी सीढ़ियों से गिर गई है, रीड की हड्डी में गंभीर चोट आई है, ना जाने अब बिस्तर से उठ भी पाएगी या नहीं, बच्चे भी पास में नहीं रहते, पता नहीं अब किस तरह बुढ़ापा कटेगा। इतना सुनकर एक बार को तो शारदा जी का मन फिर से अतित की उन गलियों में चला गया, जब उनके भाई प्रभाकर जी का विवाह सरोज भाभी के साथ हुआ था। सरोज भाभी शहर की पढ़ी लिखी थी, और उस समय में भी स्वतंत्र विचारों की थी। आजादी के नाम पर अपनी मनमानी करने वाली थी। वह अपनी सुंदरता के आगे किसी को कुछ ना समझती थी, और बेचारी अम्मा ठहरी सीधे सरल स्वभाव की बस अपने लल्ला (प्रभाकर जी) का ही भला चाहती थी, सोचती मैं ही चुप रहूं तो क्या बिगड़े, ताकि उनके बेटे की गृहस्थी में कोई अलगाव की अंगिठि ना सुलग जाये, और सोचती कि अभी बहू...
अब की नूतन वर्ष में
कविता

अब की नूतन वर्ष में

ऋतु गुप्ता खुर्जा बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** अब की नूतन वर्ष में एक प्रण हम करते हैं, टूटे-फूटे रिश्तो की चलो मरम्मत करते हैं। बहुत हुआ रिश्तो की बखिया उधेड़ना, अब एक काम करते हैं, खफा हुए जो संगी साथी, उनका अभिनंदन करते हैं। अब की नूतन वर्ष में.... जिनसे ना मिले हो एक अरसे से, उनकी नाराजगी दूर करते हैं, मिलकर खुद अपनी तरफ से, रिश्तो में...फूलों की सी महक भरते हैं। आपकी नूतन वर्ष में.... दम तोड़ते कुछ रिश्तो में, न‌ई ऑक्सीजन भरते हैं, चोट लगे हुए रिश्तो पर, स्नेह का मरहम....….रखते हैं। अब की नूतन वर्ष में.... करके दूर गलत फहमियां दिलों की, खुश फहमियां भरते हैं, बड़ा के एक कदम हम आगे, चलो.....खुशियों की महफिल रखते है। अब की नूतन वर्ष में.... बड़े बच्चों और हम उम्र अपनों से, प्रेम लगाव का बंधन रखते हैं जो आज दूर है हमसे किसी भी वजह से, ...