Monday, December 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: इन्दु सिन्हा “इन्दु”

बिजी लोग
लघुकथा

बिजी लोग

इन्दु सिन्हा "इन्दु" रतलाम (मध्यप्रदेश) ******************** आज छुट्टी थी, ऑफिस की और मैं फ्री था। बहुत दिनों से फेसबुक और मैसेंजर नहीं देख पाया था, दोपहर के खाने के बाद सब पोस्ट देख लूँगा टाइम निकालकर, दोपहर में नींद की झपकी लेना कैंसिल। पत्नी भी पहले तो दोपहर घर के काम काज से फ्री होकर होकर पास-पड़ोस में महिलाओं के घर चली जाती थी बतियाने। लेकिन अब वो भी दोपहर में मोबाइल लेकर बैठ जाती है, टाइम पास कर लेती है, इधर-उधर मोहल्ले की औरतों से तो मोबाइल ही भला, बहुत कम ऐसे मौके आते हैं जब दोनों दोपहर में साथ होते हैं। ज्यादातर तो छुट्टी के दिन भी वो ऑफिस निकल जाता है। लंच वगैरह से फ्री होकर उसने मोबाइल उठाया तो महिला मित्र की हॉट पिक सामने आ गई, यह महिला मित्र हमेशा ही अपने पिक डालती रहती थी, और उसने "वेरी नाइस" "सुपर" गिफ्ट कमेंट भेज दिया, फिर उसके बाद दूसरी पोस्ट को भी देखने लगा ज्यादातर...
अब नही तोड़ती वो पत्थर
कविता

अब नही तोड़ती वो पत्थर

इन्दु सिन्हा "इन्दु" रतलाम (मध्यप्रदेश) ******************** अब नही तोड़ती वो पत्थर जिसे देखा था कभी तुमने इलाहाबाद के पथ पर, अब लड़ती हैं हर लड़ाई आंखों में अटल संकल्प कर, हमेशा ही मिटती रही, जो पुरुष के झूठे अहम पर, नारी ही क्यों सिद्ध करें, हर बात को, क्या नारी होना अभिशाप है ? मै तो कहूँगी, नारी सबसे सुंदर रचना है नारी होना वरदान है, इसमे देश की उन्नति है समाज की शान है, पुरुष की पहचान है नारी आज भी मरियम है जीवन उसका अनुपम है बच्चे की पुकार है प्रेम की प्यास है यही शिव की भी पहचान है परिचय :-  इन्दु सिन्हा "इन्दु" निवास : रतलाम (मध्यप्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
सुन रही हो माँ
कविता

सुन रही हो माँ

इन्दु सिन्हा "इन्दु" रतलाम (मध्यप्रदेश) ******************** देखो माँ, हर वर्ष महिला दिवस पर तुम्हारा गुणगान किया जाता है, उस एक दिन में, भर दिए जाते है पन्ने, तुम्हारी महानता के, माँ महान है, माँ बगैर हम कुछ नही, कही झूठ कही सच, कही भ्रम का लिबास पहनाकर, तुम्हारी महिमा बतायी जाती है, ऐसा लगता है, काँच के शोकेस को चमकाकर, कोई मूर्ति रख दी हो, देवी कहकर तुमको तुमको, प्यार के रैपर से कवर किया जाता है, लेकिन कोई नही लिखता, कोई नही गाता, महानता के पीछे छिपे, पूरे घर मे तुम्हारी भागदौड़ को, दिन भर खटती रहती, तुम्हारी जिम्मेदारी को, आधी रात तक बर्तन घिसती, तुम्हारी उँगलियों को, तुम्हारे टूटे सपनो को, छिप छिप कर बहाए आँसुओं पर, होठों की नकली मुस्कान को, पल पल मरती इच्छाओं पर, तुम्हारे खोए व्यक्तित्व पर, घर घर ऐसी ही होती है माँ, तुम सुन रही हो ना माँ ? परिचय ...