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Tag: आशीष तिवारी “निर्मल”

थम के बरस ओ जरा जम के बरस
व्यंग्य

थम के बरस ओ जरा जम के बरस

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जब मौसम विज्ञान इतना अपडेट नहीं था तब बारिश भी इतनी चतुर सुजान नहीं थी और सुनिश्चित समय पर आरंभ हो जाती थी। आज मौसम विभाग के तरक्की का दौर है बारिश को लेकर जितने भी अटकलें मौसम विभाग लगाता है करीब-करीब सभी अटकलें केवल अटकलें ही रह जाती हैं। आज बारिश के ये हालात हो चलें कि मौसम विभाग जहां अतिबारिश बताता है वहां सूखा पड़ जाता है। और जहां सूखे की आशंकाएं जताई जाती हैं वहां बाढ़ आ जाती है। अब बारिश बहुत होशियार और चालाक हो चुकी है पूरी तरह भारतीय नेताओं के जैसे जब आप घर से बाहर हों तभी बारिश होती है जब आपके पास छाता न हो जब आपके पास रेनकोट न हो तभी बारिश होती है। आदमी को भिगोकर अपने होने का सबूत देती है। इस वर्ष बारिश किसी घोटाले की तरह आई और किसी जांच दल की तरह चुपचाप जा रही है। बचपन में जब रात को तेज बारिश हो रही होती थी त...
मानवीय संवेदना व प्रकृति के बेहद करीब है काव्य कृति ‘साक्षी’
पुस्तक समीक्षा

मानवीय संवेदना व प्रकृति के बेहद करीब है काव्य कृति ‘साक्षी’

पुस्तक समीक्षा पुस्तक का नाम - साक्षी (मेरी लेखनी से) समीक्षक - आशीष तिवारी निर्मल रचनाकार - साक्षी जैन संस्करण - प्रथम पुस्तक कीमत - १९९ रुपए प्रकाशक - जे.एस.एम पब्लिकेशन आगरा।) पिछले दिनों भोपाल में आयोजित एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में जाना हुआ काव्य पाठ व सम्मान के अतिरिक्त कालापीपल जिला शाजापुर मध्य प्रदेश निवासी कवयित्री व शिक्षिका श्रीमती साक्षी जैन द्वारा काव्य संग्रह साक्षी (मेरी लेखनी से) प्राप्त हुई। काव्य संग्रह का कवर बेहद आकर्षक है जिसमें कवयित्री के आराध्य देव कान्हा जी की तस्वीर व उनके चरणों की सेविका स्वयं साक्षी जैन की तस्वीर लगी है। काव्य संग्रह में कुल ६३ रचनाएं प्रकाशित हैं। सुघड़ साहित्यकार साक्षी जैन द्वारा विरचित कविताओं में संवेदनशीलता का विस्तार है कवयित्री ने अपने लेखन के माध्यम से मानव समाज व प्रकृति के हर पहलू पर बखूबी लिखा है। जिसमें कान्हा के प्रति भ...
हर्जाने हैं
कविता

हर्जाने हैं

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** हमने भी सुनें लाखों अफसाने हैं हुस्न वालों के यहां हजारों दीवाने हैं। हराम की कमाई में कोई सरचार्ज नहीं ईमान की कमाई पे लाखों जुर्माने हैं। राह चलते बहन बेटियां सुरक्षित नही खुलवा रहे थाने की बजाय मयखाने हैं। रुलाने को आतुर दिखता है हर कोई हंसने, हंसाने की खताओं में हर्जाने हैं। साला बना है उनका मंत्री जी का खास अब झूठे मुकदमें थानेदार पे चलवाने हैं। जनता ने चुना पर जनता की नहीं सुनते ऐसे नेताओं को डंडे मार भगाने हैं। कैसे अपने दिल का हाल सुनाओगे तुम अपनों से ज्यादा तो दिखते यहां बेगाने हैं। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ...
सरकार मज़े में है ….!
कविता, हास्य

सरकार मज़े में है ….!

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** फूल मज़े में है खार मज़े में है झुठ्ठों का कारोबार मज़े में है। जिसे पहन कर भागे थे वह बाबा की सलवार मज़े में है । बढ़े हैं चोर उचक्के जबसे रहता थानेदार मज़े में है। औने-पौने फसल खरीदी कर व्यापारी व व्यापार मज़े में है सौ का ठर्रा पी के सो जाता है रहता पल्लेदार मज़े में है। मध्यम वर्ग का लहू पी कर रहती है ये सरकार मज़े में है। जनता को चूना लगाकर नेताओं का रोजगार मज़े में है। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मा...
मुस्कुराना आपका
कविता

मुस्कुराना आपका

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** यूं नजर मिलाकर फिर वो शर्माना आपका मुझे देख धीरे - धीरे से मुस्कुराना आपका। रौशनी बनकर आयी हो मेरे जीवन में विभा काम है जीवन से मेरे अंधेरे को भगाना आपका। मेरे पास आते ही आप यूं सकुचा सी जाती हो मुझे भा गया इस तरह से सकुचाना आपका। आ जाओ अब तो आप यूं न लजाओ यारा हाय ! मुझको मार डालेगा यूं लजाना आपका। मेरा लिखना हो रहा है अब तो सार्थक निर्मल गूगल करके मेरी नज्मों को यूं गुनगुनाना आपका। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्म...
मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण है काव्य संग्रह- जीजिविषा
पुस्तक समीक्षा

मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण है काव्य संग्रह- जीजिविषा

काव्य संग्रह का नाम- जिजीविषा रचनाकार का नाम- मोनिका प्रकाशक- बीएफसी पब्लिकेशन गोमती नगर लखनऊ पुस्तक की कीमत- २७० रूपए। पुस्तक समीक्षक- आशीष तिवारी "निर्मल" (रीवा मध्य प्रदेश) देश की वरेण्य कवयित्री लखनऊ निवासी मोनिका जी की काव्य संग्रह जीजिविषा पढ़ने को मिली। इस काव्य संग्रह में मानवीय संवेदना से परिपूर्ण कुल चालीस नई विधा की कवितांए हैं।यह काव्य संग्रह पाठक को चिंतन के धरातल पर ले जाता है। जीवन के सच्चे लगाव को प्रकट करती इन कविताओं मे मानव मन के सरल निश्चल भावों की अभिव्यक्ति समायी है। कविता में चिंतन उसके अर्थ को गहराई प्रदान करता है।काव्य संग्रह 'जीजिविषा' में रचनाकार के सरोकारों का दायरा विस्तृत है और वैयक्तिक भावों के अलावा कवयित्री मोनिका के सामाजिक सरोकार भी बेहद पैनी और सधी भाव भंगिमा भी इन कविताओं में समाहित है। कविता जीवन से आत्मीयता और प्रेम प्रकट करने वाली विधा है। क...
सबरस समाहित अद्वितीय कृति है ‘निहारिका’
पुस्तक समीक्षा

सबरस समाहित अद्वितीय कृति है ‘निहारिका’

  पुस्तक का नाम- निहारिका समीक्षक- आशीष तिवारी "निर्मल" रचनाकार- कवि उपेन्द्र द्विवेदी रूक्मेय प्रकाशक- विधा प्रकाशन उत्तराखंड कीमत- २२५ कवि सम्मेलन यात्रा से मैं लौटकर रीवा पहुंचा ही था कि देश के तटस्थ रचनाकार कवि उपेन्द्र द्विवेदी जी का फोन आया कि अल्प प्रवास पर रीवा आया हूं शीघ्र ही राजस्थान निकलना है। मैं बिना समय गवाएं उपेन्द्र जी से मिलने पहुंचा तो एक गर्मजोशी भरी मुलाकात के बाद उन्होंन अपनी एक अद्वितीय व दूसरी कृति 'निहारिका' मुझे भेंट की। इसके पहले मैं उनकी एक राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत कृति राष्ट्र चिंतन पढ़ चुका था। अत: दूसरी कृति पाकर मन प्रसन्न हो गया। उपेन्द्र जी एक संवेदनशील कवि हैं। वे सबरस कविता और गद्य लेखन दोनों में सामर्थ्य के साथ अपनी रचनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। कवि उपेन्द्र द्विवेदी काफी समय से लेखन में सक्रिय हैं। दो काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ...
ज़िंदगी
कविता

ज़िंदगी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** आपाधापी, भागादौड़ी, रेलमपेल हो गयी ज़िंदगी मैट्रो शहर की कोई रेल हो गई । दो पाटों के बीच में पिस रहा हर कोई ऐसे ज़िंदगी डालडा कभी सरसों का तेल हो गई। बाबाजी के प्रवचन सुनके घर को लौटा हूं मैं खबर चल रही है टीवी में, उनको जेल हो गई। हुस्न के कारागृह में चक्की चला रहे कितने ही मुझ निरापराधी की चंद दिनों में बेल हो गई। टिकते कहां है मोबाइल युग के रिश्ते ऐ-निर्मल कस्मे, वादे और मोहब्बत जैसे कोई सेल हो गई। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक सं...
आना चाहती हो मगर…
कविता

आना चाहती हो मगर…

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** ये बात तुम नही तुम्हारे नैन कहते हैं मुुझसे मिलने को बड़े बेचैन रहते हैं। आना तो चाहती हो मगर आओ कैसे? कसमकस में तुम्हारे दिन-रैन रहते हैं। उठवा लेने की धमकी देती हो मुझको जब कि मेरे बंगले पे गनमैन रहते हैं। 'निर्मल' पावन गंगा ही ना समझ मुझे हम कभी 'गोवा',कभी 'उज्जैन' रहते हैं। मेरी शख्सियत का अंदाजा न लगा तू तेरे मुहल्ले में मेरे 'जबरा फैन' रहते हैं। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्त...
टाइमपास रहा मैं
कविता

टाइमपास रहा मैं

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सच कहता हूं तेरे पास रहा मैं, पर कभी न तेरा खास रहा मैं। बाहर से हँसता ही रहता हरदम, अंदर ही अंदर उदास रहा मैं। ख़ामोश हो गया हूं अब तो ऐसे, जैैसे मरघट में कोई लाश रहा मैं। मेरी भावनाओं की कोई कद्र न की तेरे लिए महज़ टाइमपास रहा मैं । कटी उम्र आधी शेष सफ़र है आधा अब भी क्या ख़ाक तलाश रहा मैं। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अप...
घबरायी होगी
ग़ज़ल

घबरायी होगी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** ख़त मेरा वो पायी होगी। जी भर वो इतरायी होगी।। घर लगता है घर सा मुझको। शायद घर वो आयी होगी।। देख दरीचे से फिर मुझको। मन ही मन शरमायी होगी।। दी होगी द्वारे पर दस्तक। पर थोड़ा घबरायी होगी।। मुझे देखकर तस्वीरों में। अपना मन बहलायी होगी।। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अपनी हास्य एवं व्यंग्य लेखन की वजह से लोकप्रिय हुए युवा कवि आश...
दुनिया है तलवार दुधारी
कविता

दुनिया है तलवार दुधारी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सीख ले दुनियादारी निर्मल जंग पड़ी है सारी निर्मल। दुनिया वालों से क्या बतलाना अपनी हर लाचारी निर्मल। संभल के रहना पल-प्रतिपल दुनिया है तलवार दुधारी निर्मल। मन में है विश्वास तो इक दिन जीतेगा तू बाजी हारी निर्मल । नोच खाने को सब आतुर हैं मत रख सबसे यारी निर्मल। खा जाएगी तुझको इक दिन सच बोलने की बीमारी निर्मल। बहकावे में आ के पागल मत बन खुद में रख थोड़ी होशियारी निर्मल। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कव...
इश्क बेहिसाब
कविता

इश्क बेहिसाब

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सारे काम वो लाजवाब कर बैठी इश्क हमसे वो बेहिसाब कर बैठी । सब देखते रहे मुुझे अखबार की तरह वो मेरे चेहरे को किताब कर बैठी। ना पीना कभी भी यह देके कसम खुद की आँखों को शराब कर बैठी। वफाओं का मिला यह सिला उसे कई रातों की नींद खराब कर बैठी। लिपट कर खूब रोए हम दोनों ही वो अपनी वफा का हिसाब कर बैठी। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अप...
रंग साँवला
कविता

रंग साँवला

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** यह बात तुझसे कहा नही होता तुम्हारे इश़्क में बावला नही होता। बिना समय गंवाए तू मेरी होती रंग मेरा यदि साँवला नही होता। लोग कहते रहें भले कुछ लेकिन प्यार इतना भी बुरा नही होता। दो प्यार करने वालों के दरम्याँ यार रहे याद, कोई तीसरा नही होता ॥ रुठते मनाते रहते हैं एक दूजे को देर तक कोई ख़फा नही होता॥ किस्मत से मिलता है सच्चा प्यार हर कोई यहाँ बेवफ़ा नही होता ॥ परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी न...
दहेज़ एक कुप्रथा
कविता

दहेज़ एक कुप्रथा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** लिखा नही इस विषय में निर्मल, लिखना बहुत ज़रूरी है सच बोलो ऐ दहेज़ लोभियों क्या दहेज़ लेना मजबूरी है? न जाने कितने ही घर बर्बाद हो रहे दहेज़ की बोली में बेमौत मर रही कितनी ही बेटियाँ, बैठ न पाईं डोली में। पिता के नयनों में आंसू है, बेटी के हाथ पीले कराने में कितनों के जोड़े हाथ, पैर पड़े, शर्म आती है बतलाने में। घर गहने, खेत, खलिहान बिके इस दहेज़ की बोली में बेमौत मर रही कितनी ही बेटियाँ, बैठ न पाईं डोली में। दहेज़ लोभी समाज की हैं यह कितनी भयावह तस्वीरें बिखर चुके कई परिवार यहाँ और फूट रही हैं तकदीरें। पढ़े-लिखे, शिक्षित जवान, क्यूँ बनते आज भिखारी हो दहेज़ मांगने वालों तुम समाज की गंभीर बीमारी हो। जिस पर गुजरे वो ही जाने, बात नही है यह कहने की इतना मत माँगो दहेज़ कि सीमा टूट ही जाए सहने की। इसी दहेज़ के ...
तुम भी दगा न करना
कविता

तुम भी दगा न करना

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** हे नववर्ष! तुम भी दगा न करना आओ हे नववर्ष! तुम हमसे कोई दग़ा न करना बीते जैसे साल पुराने वैसी कोई ख़ता न करना। पहले के ज़ख्म़ों से ही चाक शहर का सीना है नये साल में दर्द मिलें किसी को ख़ुदा न करना। मेरी इल्तज़ा तुझसे बस इतनी है हे नववर्ष अपनों को यूँ अपनो से तुम ज़ुदा न करना। संकट के इस दौर में तू पूरे मन से पूजा जाएगा फरिश्ता साबित होगा, किसी का बुरा न करना। संकट से जूझ रहे हैं सब,विषाद से गहरा नाता है ऐसे में आकर के शेष जीवन बे-मज़ा न करना। सबका हो सुनहरा आने वाला हर एक पल किसी के लिए कोई भी बुरी बद्दुआ न करना। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प...
वफ़ा के नाम पे …
ग़ज़ल

वफ़ा के नाम पे …

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जिसने चराग़ दिल में वफ़ा का जला दिया ख़ुद को भी उसने दोस्तों इंसां बना दिया। घरबार जिसके प्यार में अपना लुटा दिया उस शख़्स ने ही बेवफा हमको बना दिया। जो मिल गए हैं ख़ाक में वो होंगे और ही हमने तो हौसलों को ही मंज़िल बना दिया। यह है रिहाई कैसी परों को ही काट कर सैयाद तूने पंछी हवा में उड़ा दिया। हंस हंस के ज़ख़्म खाता रहा जो सदा तेरे तूने ख़िताब उसको दगाबाज़ का दिया। 'निर्मल' समझ के अपना जिसे प्यार से मिले उसने वफ़ा के नाम पे धोका सदा दिया। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन ...
बेमौत मरती नदियां, त्रास सहेंगी सदियां।
आलेख

बेमौत मरती नदियां, त्रास सहेंगी सदियां।

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** छठ पर्व पर एक भयावह तस्वीर यमुना नदी दिल्ली की सामने आयी, जिसमें सफेद झाग से स्नान वा अर्क देते श्रद्धालु दिखे। यह बात तो जगजाहिर है कि समूचे विश्व में हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है जहां नदियों को माँ की उपमा दी गई है, पवित्र माना गया है। लेकिन वर्तमान समय में जितनी दुर्दशा हिन्दुस्तान में नदियों की है शायद ही किसी अन्य राष्ट्र में हो। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अलग-अलग राज्यों की निगरानी एजेंसियों के हालिया विश्लेषण ने इस बात की पुष्टि की है कि हमारे महत्वपूर्ण सतही जल स्त्रोतों का लगभग ९२ प्रतिशत हिस्सा अब इस्तेमाल करने लायक नही बचा है। वहीं रिपोर्ट में देश की अधिकतम नदियों में प्रदूषण की मुख्य वजह कारखानों का अपशिष्ट गंदा जल, घरेलू सीवरेज, सफाई की कमी व अपार्याप्त सुविधाएं, खराब सेप्टेज प्रबंधन तथा साफ-सफाई के...
लहू वही है जो वतन के काम आए।
संस्मरण

लहू वही है जो वतन के काम आए।

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** वैश्विक स्तर की कोरोना महामारी से जूझ रहे समूचे विश्व के लोगों के समक्ष अपनी और अपनों की जान बचाना सबसे बड़ी चुनौती थी। आये दिन दुर्दांत खबरें सुन मानो कलेजा फटा जा रहा था। हर तरफ से केवल बुरी खबरें कानों को झकझोर रही थीं। ऐसे समय पर इंसान के चेहरे पर मौत को लेकर जो भय व्याप्त था वह सुस्पष्ट देखा जा रहा था। सड़कों पर पसरे सन्नाटे के बीच सायरन बजाती हुई निकलने वाली एंबुलेंस वाहन की आवाज सुन कलेजा धक सा हो उठता था। कि कहीं वह एंबुलेंस वाहन हमारे ही किसी आस-पास के व्यक्ति से संबंधित कोई बुरी खबर लेकर नही आ रही हो। संकट कालीन इस बुरे दौर में कोई यदि दूसरों की सहायता करते नजर आये तो वह साक्षात ईश्वर लगने लगता था। हम और आप सबने बचपन से लेकर आज तक बड़े बुजुर्गों से यही सुना कि मारने वाले से बचाने वाला सदैव बड़ा होता है।स्कूलों में...
अभिनेता सुशांत सिंह फिर सिद्धार्थ शुक्ला..! कहीं यह साज़िश तो नही ?
आलेख

अभिनेता सुशांत सिंह फिर सिद्धार्थ शुक्ला..! कहीं यह साज़िश तो नही ?

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** फिल्म अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला अब हमारे बीच नही हैं। ऐसा लिखने और कह सकने के लिए दिल अब भी गवाही नही दे रहा, पर लिखना तो पड़ेगा ही मानना तो पड़ेगा ही..! व्यस्तता के बीच जैसे ही मैने मोबाइल ऑन किया एक प्रतिभाशाली सुंदर, सुडौल, उम्मीदों से भरे एक दमकते-चमकते सितारे के असमय चले जाने की खबरों से मन दहल गया। आंखे सजल हो उठीं। मन मे न जाने कितनी तरह की बातें उमड़-घुमड़ कर चल रही हैं। गत वर्ष सुशांत सिंह राजपूत के असमय काल के गाल में समाहित हो जाने की खबरों ने हम सबको झकझोर के रख दिया और अब सिद्धार्थ के इस तरह से काल कंलवित हो जाना बेहद निराशा जनक है। हमने सुना था और शायद सच भी है कि फिल्म उद्योग के लिए वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना कर रखने वाली मुंबई मायानगरी सच मे मायावी होती जा रही है। यहां अब प्रतिभावान कलाकारों की मौत एक ...
अच्छा लगा
कविता

अच्छा लगा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** तेरा ज़िंदगी में आना, अच्छा लगा हँसना, रुठना, मनाना, अच्छा लगा। जरा जरा सी बातों पर तुनक कर तेरा मुँह को फुलाना, अच्छा लगा। महफ़िल में या यूँ ही अकेले कहीं तेरा गले से लगाना, अच्छा लगा। सौंपकर मुझको खुशियाँ अनमोल तेरा यूँ नखरे दिखाना अच्छा लगा। तुझ पे लिखा हूँ जितनी भी नज़्में तेरा उनको गुनगुनाना अच्छा लगा। वहशी तरीके तुम टूटती हो मुझ पर मुझे सितमगर बताना अच्छा लगा। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष त...
जीवन जीने के लिए लड़े जाने वाले अंतहीन युद्ध को समर्पित है पुस्तक “यही सफलता साधो”
साहित्य

जीवन जीने के लिए लड़े जाने वाले अंतहीन युद्ध को समर्पित है पुस्तक “यही सफलता साधो”

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** पुस्तक का नाम - यही सफलता साधो रचनाकार - कवि संदीप द्विवेदी प्रकाशक - ब्ल्यूरोज़ संस्करण - प्रथम (मार्च २०२१) कीमत - १६० रूपये समीक्षक - आशीष तिवारी निर्मल अपने दौर को तो सभी साहित्यकार अपनी कलम के माध्यम से दर्ज करने का सफल प्रयास करते हैं, लेकिन ऐसे चंद ही रचनाकार होते हैं, जिन्हें उनका दौर इतिहास में उनके प्रभावी लेखन के कारण कुछ ख़ास तरह से दर्ज करता है। जी हाँ! मै आज एक ऐसे ही उर्जावान रचनाकार और उनकी रचनात्मकता की चर्चा करने जा रहा हूँ, जो अपने सुघड़ लेखन के कारण हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान के बाहर सुने जाते हैं और पढ़े जाते हैं। कवि श्री संदीप द्विवेदी देश के उन युवा रचनाकारों की श्रेणी में आते हैं जो किसी भी पाठक या श्रोता के हृदय में सदैव सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। कवि संदीप द्वारा विरचित काव्य कृति "यही सफ...
आज़माना ठीक नही
कविता

आज़माना ठीक नही

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** दोस्ती में दोस्तों को आज़माना ठीक नही बेवजह की बातों पे तैश खाना ठीक नही। कोई शिकवा, शिकायत हो तो हमसे कहिए यूँ सबसे मन की व्यथा सुनाना ठीक नही। हर समस्या का है हल आज नही तो कल छोटी-छोटी बातों पर घबराना ठीक नही। मुश्किल से ही गुंथते हैं रिश्तों के ताने बाने स्वारथ की बेदी पे रिश्तों को चढ़ाना ठीक नही। तुम सच्चे थे सच्चे हो ये भ्रम भी हो सकता है भ्रम में पड़कर औरों को झुठलाना ठीक नही। भूल किए हो भारी माफ़ी मांग भी सकते हो बरसों से निभते रिश्तों को दफ़नाना ठीक नही। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन म...
कभी कभी
कविता

कभी कभी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** तुम्हारी याद सताती है बस कभी कभी भूली बातें याद दिलाती है, बस कभी कभी। तेरी यादों की चादर में लिपट के रोता हूँ काश!तुम अश्क पोंछने आती, बस कभी कभी। बहुत सताया हूं तुमको है सब याद मुझे उन ज़ख़्मो को तुम दिखलाती, बस कभी कभी । अरसे से तरसे यूं फ़कत दीदार के लिए तुम भी मुझको आवाज़ लगाती, बस कभी कभी। सिवा तुम्हारे हम किसी और के हो भी नही पाए मुझे भी कुछ एह़सास दिलाती, बस कभी कभी। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल व...
दम तोड़ती मानवता के गाल पर तमाचा है पुस्तक पैसा बोलता है।
पुस्तक समीक्षा

दम तोड़ती मानवता के गाल पर तमाचा है पुस्तक पैसा बोलता है।

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** पुस्तक का नाम- पैसा बोलता है रचनाकार- गंगा प्रसाद त्रिपाठी 'मासूम' संस्करण- प्रथम प्रकाशक- विश्व साहित्य प्रकाशन प्रयागराज पुस्तक कीमत-१०० पुस्तक समीक्षक- आशीष तिवारी निर्मल पिछले दिनों मैं संगम नगरी प्रयागराज की साहित्यिक यात्रा पर था। प्रयागराज के सुप्रिसिद्ध कवियों, शायरों से मुलाकात हुई। इस दौरान देश के युवा कुशल व्यंग्यकार गंगा प्रसाद त्रिपाठी 'मासूम' द्वारा विरचित काव्य कृति 'पैसा बोलता है' प्राप्त हुई। काव्य संग्रह का सघन अध्ययन करने के पश्चात मैंने पाया कि उक्त काव्य संग्रह में अंधी दौड़ में शामिल गिरावट के आखिरी पायदान पर पड़ी गिरती हुई आदमीयत और मानव जीवन के विविध् प्रसंगो को स्वंय में संजोए गीत, ग़ज़ल, व्यंग्य, मुक्तक, कविता सहित कुल ३२ एक से बढ़कर एक रचनाएँ हैं। गंगा प्रसाद त्रिपाठी 'मासूम' की कृतियाँ क्रमश: दूसरी आज...