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Tag: आदर्श उपाध्याय

बिछड़ रहे हैं हम
कविता

बिछड़ रहे हैं हम

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** बिछड़ रहे हो तुम बिछड़ रहे हैं हम, फिर भी दिल से दिल मिला रहे हैं हम। ये जुदाई भी नस़ीब वालों को ही मुकम्मल होती है, तभी तो आँखों में समन्दर होठों पर मुस्कान लिए हैं हम। हमारी उल्फ़तों ने इक ऐसे मुकाम पर हमें खड़ा कर दिया, की सबकुछ याद करके भी भूल रहे हैं हम। मोहब्बत के इस शज़र पर कभी कोयल गाया करती थी, आज कौवे कि कर्कश ध्वनि सुन रहे हैं हम। तुमको फिर से मोहब्बत से ज्यादा मोहब्बत मिले, यही "वर" महादेव से माँग रहे हैं हम। नज़ाकत तुम्हारी हमेशा यूँ ही बनी रहे, इसीलिए तो तुमसे जुदा हो रहे हैं हम। कभी तुम्हारी आवाज से ही हमारी सुबह-शाम होती थी, आज उसी को याद करके जी रहें हैं हम। पिया घर जाओगी आँगन महकाओगी, यही हर रोज अब सोच रहे हैं हम। अब बाहों में तुम्हारी न हमारा हक होगा, बस ...
मुझसे बात नहीं करोगी
कविता

मुझसे बात नहीं करोगी

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** मुझसे बात नहीं करोगी तो मेरी रात नहीं होगी, अगले कल से कभी भी मेरी मुलाक़ात नहीं होगी। तुमसे ही बात करके ही जो जीता हूँ मैं, मेरी ज़िन्दग़ी में अब "खुशी" की बरसात नहीं होगी। तुम्हारा मुझे डाँटना मुझ पर गुस्सा करना सबकुछ मुझे प्यारा लगता है, बिना इसके मेरी ज़िन्दग़ी की कभी सुबह-ओ-शाम नहीं होगी। जबसे दोस्ती हुई तुमसे हर कोई मेरी तारीफ़ करने लगा, बिना तुम्हारी दोस्ती के मेरी ज़िन्दग़ी कभी खास नहीं होगी। माँ का दर्जा दे दिया हूँ तुमको मेरी "खुशी", बिन माँ के किसी मोहब्बत की शुरुआत नहीं होगी। सारी उम्र आपको अकेले ही याद करता रहूँगा, शायद इससे हमारी दोस्ती में कोई खटास नहीं होगी। भूलने का नाटक भले कर लेना "खुशी" पर मुझे भूल नहीं पाओगी, इससे ज्यादा किसी की दोस्ती कभी खास नहीं होगी। भगवा...
मोहब्बत के पुराने वक्त
कविता

मोहब्बत के पुराने वक्त

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** तुम्हारे साथ बिताए हुये हर वक्त का आज भी मुझे ख्याल आता है। क्या अपने होठों पर, मेरे होठों का आज भी तुम्हें स्वाद आता है? तुम्हारा गुलाबी सुर्ख होंठ और घन केशपास आज भी दिल में घर कर जाता है। क्या मेरा बेमतलब और बेवजह बातें करना आज भी तुम्हें मोहब्बत सिखाता है? मुझे ख्याल तुम्हारा हर नखड़ा, हर झिझक, हर ज़िद, हर रूठा हुआ चेहरा याद आता है। क्या पहले जैसा मेरा प्यार और मुझ पर तुम्हारा हक, ना मिलना आज भी तुम्हें तड़पाता है? परिचय :- आदर्श उपाध्याय निवासी : भवानीपुर उमरी, अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
सुशान्त सिंह राजपूत
कविता

सुशान्त सिंह राजपूत

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** जन्मते-जन्मते मुझको क्या दर्द सहा होगा मेरी माँ ने। ज़िन्दग़ी बदलकर मेरी ले ली खुद की ज़िन्दग़ी मेरी माँ ने।। बालपन से किशोरपन, किशोरपन से युवा को देखा मैंने। अपने कितने ख़ुदगर्ज़ हैं , अपनो से ही देखा मैंने।। ज़िन्दग़ी को जीते-जीते ज़िन्दग़ी से हार गया मैं। दुनिया भर से लड़करके अपनों से ही हार गया मैं।। जन्म देकर चली गयी वो दर्द न मेरा देखा उसने। ज़िन्दग़ी के मेरे लम्हों को, कभी-कभी था देखा उसने।। उसके आँचल का छाँव आसमाँ से भी बढ़कर था। टिक न पाता सामने मेरे सीने पर जो चढ़कर था।। ज़िन्दग़ी को समझते-समझते ज़िन्दग़ी ने ठुकरा दिया। हमने जिसको चाहा उसने ज़िन्दग़ी से ही उतार दिया।। हर दिन हर रात मेरी गुलाम सी हो गई थी। पर मेरी चाहत ही मेरी इन्तक़ाम सी हो गई थी।। खैर, मैं मरकर भी जी गया हूँ, अब जीवन भर माँ का साथ है। उसको जी...
दिल बेचारा
ग़ज़ल

दिल बेचारा

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** हर किसी का दिल कभी न कभी दुःखता है, मेरी एक आखिरी पहचान है ये "दिल बेचारा"। हर कोई अपने दिल को तसल्ली देना चाहता है, पर मानने को तैयार नहीं है ये "दिल बेचारा"। आपकी आँखों में आँसू तो हर कोई दे सकता है, पर आपके आँसुओं को पीना चाहता है ये "दिल बेचारा"। जब-जब याद आएगी तुम्हें अपने इस खास बन्दे की, तब-तब तुम्हें रुला देगा ये "दिल बेचारा"। मैं इस दुनिया में रहूँ या न रहूँ पर, मेरी कमी का एहसास कराएगा ये "दिल बेचारा"। आपका भी है दिल बेचारा, मेरा भी है दिल बेचारा, दर्द से भरे मन को समझाएगा ये "दिल बेचारा"। मैंने तो अपनी ज़िन्दगी जी लिया दोस्तों, तुम्हारी ज़िन्दगी के साथ चलेगा ये "दिल बेचारा"। जब मेरी कमी का एहसास तुम्हें होगा, फिर से मेरी याद तुम्हें दिलाएगा ये "दिल बेचारा"। सब कुछ सह लेना जीवन में हार कभी मत मानना, साज़िशें...
चला जाऊँगा
ग़ज़ल

चला जाऊँगा

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** रहकर तुम्हारी यादों में कुछ दिन और फिर मैं अपनी मंजिल की ओर चला जाऊँगा। क्यूँ रो रहे हो मेरे ख़ातिर ऐ दुनिया वालों कुछ दिन बाद तुम्हारी यादों से चला जाऊँगा। ये दुनिया इन्सान को इन्सान नहीं समझती इन्सानियत से थककर मैं अब चला जाऊँगा। ये दुनिया क़ाबिलियत को क़ाबिल नहीं समझती क़ाबिलियत को ज़मीं पर रखकर मैं चला जाऊँगा। लोग तारीफ़ की ही तारीफ़ करना चाहते हैं ख़ुद की तारीफ़ सुनने यमलोक चला जाऊँगा। दुनिया ये मोहब्बत को मोहब्बत नहीं देती मोहब्बत पाने माँ की गोद में चला जाऊँगा। क्या है ख़ुदा और क्या है उसकी ख़ुदाई देखने सब उसके पास चला जाऊँगा। जब - जब सताएगी मुझे माँ की याद झट से मैं उसके पास चला जाऊँगा। रहकर तुम्हारी यादों में कुछ दिन और फिर मैं अपनी मंजिल की ओर चला जाऊँगा। परिचय :- आदर्श उपाध्याय निवासी : भवानीपुर उमरी, अं...
मैं क्या करुँगा
ग़ज़ल

मैं क्या करुँगा

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** अपने दिल की तक़लीफ़ों को मैं ही जानता हूँ इसे दूसरों से बताकर मैं क्या करुँगा। ख़ुद अपने को सिमट-सिमट हर रोज जी रहा हूँ किसी और से बाँटकर मैं क्या करुँगा। मेरी रसके-कँवर ने मेरा फोन तक नहीं उठाया अब इस ज़िन्दगी को लेकर मैं क्या करुँगा। तुमने बिन सोचे कर लिया सगाई किसी और से अब तुम्हारे बिना जीकर मैं क्या करुँगा। हर कोई कर रहा है मुझे दफ़नाने की साज़िश घर में कैद होकर मैं क्या करुँगा। अपने ही लोगों ने मुझे दे दिया है धोखा दोस्ती की भूल में जीकर मैं क्या करुँगा। मैं तो चाहता हूँ हर किसी के होठों पर मुस्कान हो पर ख़ुद रो-रोकर मैं क्या करुँगा। खुश रहना ऐ शातिरों अब मै जा रहा हूँ इससे ज़्यादा तुम्हें दुःखी करके मैं क्या करुँगा। माफ़ करना दोस्तों मैं जा रहा हूँ तुम्हें छोड़कर तुम्हारे साथ रहकर ही अब मैं क्या करुँगा। अपने...
श्रापित गुड़िया
कहानी

श्रापित गुड़िया

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** वह ७ जुलाई २०१७ का दिन था, जब मैं पहली बार किसी शहर के लिए रवाना होने वाला थ। जैसा कि हमारे गांवों की रीति है कि जब कोई अपने घर से दूर प्रवास के लिए जाता है तो जाने से पहले मां, बहन, बुआ, भाभी आदि लोग रास्ते में खाने पीने के लिए कुछ ना कुछ तल भुनकर दे देती हैं ताकि मेरा बेटा, भाई, भतीजा, देवर रास्ते में भूखा ना रहे। ठीक ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। जब मैं नहा धोकर तैयार हो गया तो मम्मी और भाभी ढेर सारी पकौड़ी तैयारी मेरे लिए रख दिया लेकिन मेरी इन सब चीजों को साथ ले जाने की बिल्कुल भी रुचि नहीं थी और मेरी पलकें भीगी हुई थी क्योंकि पहली बार जन्म देने वाली मां और जीवन प्रदान करने वाली जन्मभूमि को छोड़कर कहीं दूर जा रहा था। जैसे तैसे मैं अकबरपुर रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया। भैया ने ट्रेन का समय बता दिया था लेकिन जब मैं स्टेशन पर पहुंच...
प्रवासी प्रेम
कहानी

प्रवासी प्रेम

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** वह ७ जुलाई २०१७ का दिन था, जब मैं पहली बार किसी शहर के लिए रवाना होने वाला थ। जैसा कि हमारे गांवों की रीति है कि जब कोई अपने घर से दूर प्रवास के लिए जाता है तो जाने से पहले मां, बहन, बुआ, भाभी आदि लोग रास्ते में खाने पीने के लिए कुछ ना कुछ तल भुनकर दे देती हैं ताकि मेरा बेटा, भाई, भतीजा, देवर रास्ते में भूखा ना रहे। ठीक ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। जब मैं नहा धोकर तैयार हो गया तो मम्मी और भाभी ढेर सारी पकौड़ी तैयारी मेरे लिए रख दिया लेकिन मेरी इन सब चीजों को साथ ले जाने की बिल्कुल भी रुचि नहीं थी और मेरी पलकें भीगी हुई थी क्योंकि पहली बार जन्म देने वाली मां और जीवन प्रदान करने वाली जन्मभूमि को छोड़कर कहीं दूर जा रहा था। जैसे तैसे मैं अकबरपुर रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया। भैया ने ट्रेन का समय बता दिया था लेकिन जब मैं स्टेशन पर पहुंच...
रोटी से पटरी तक
कविता

रोटी से पटरी तक

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** रोटी के लिए ही जन्म पाया रोटी को ही जीवन भर कमाय। वो घड़ी आ गई थी जब , रोटी को छोड़ मौत ने बुलाया। रोटी से रेल की पटरी तक क्या सारा प्रबंधन ही जर्जर है ? आ गई थी यह कैसी घड़ी मौत का ये कैसा मंजर है ? जिसने रोटी के लिए तड़प कर इस पटरी को देश , जनता और सरकारों के लिए बनाया है। इसी पटरी ने उन्हें आज मौत की गोद में सुलाया है । धिक्कार है ऐसी सत्ता पर जो मजदूरों को उनके घर न पहुँचा सकी, उनकी मौत के बाद ही केवल तमाम सबूतों और गवाहों में जुटी। ए खुदा , तेरी यह कैसी खुदाई है किस फैसले की सजा तुमने उन्हें सुनाई है ? फटे किसी के सिर और कटे किसी के हाथ परिवार और जिंदगी से छोटा सबका साथ। क्या खता थी उनकी जिसने शैशव भी नहीं देखा था ? माँ के दूध और आँचल को ठीक से नहीं निरेखा था। पत्नी के हाथ में हाथ धरे तुम मृत्यु की गोद में चले गए क्यों ...