कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय कांफ्रैंस में आचार्य शीलक राम के वृहद् ग्रन्थ ‘दर्शनामृत’ का विमोचन
कुरुक्षेत्र। सांसारिक जीवन परस्पर आदान-प्रदान, लेन-देन, सहभागिता, सौहार्द, भाईचारे एवं सेवाभाव से चलता है। मानव प्राणी के साथ-साथ पशु-पक्षी, जलचर, थलचर, नभचर, पेड़-पौधे, जंगल आदि भी परस्पर सहभागिता एवं आदान-प्रदान से अपना जीवन-यापन करते हैं। यहां तक कि पहाड़, नदियां, झीलें, झरने, तालाब आदि भी परस्पर लेन-देन पर चलते हैं। पंचभूतों के इस संसार में कुछ भी ऐसा नहीं हैं जो अस्तित्व से टूटा हुआ अकेला हो। जड़-चेतन जगत् सब कुछ एक माला के मनकों की तरह अस्तित्व के धागे में पिरोया हुआ होता है। जहां भी व जिस भी समय इस कड़ी में कोई व्यवधान या रूकावट या टूटन आई तो वहीं पर शोषण, विकार व कमियां प्रवेश करना शुरू कर देंगी। समकालीन युग में यदि ध्यान से चहुंदिशि नजर दौड़ाई जाए तो मानव प्राणी ने अपनी स्वार्थपूर्ति, उन्मुक्तभोग एवं पद-प्रतिष्ठा की तृष्णा को पूरा करने के लिए शाश्वत सनातन जीवन-मूल्यों को तोड़ना शुरू कर ...