Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: आचार्य राहुल शर्मा

मेरा भारत
कविता

मेरा भारत

आचार्य राहुल शर्मा फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत के लिए मरूँ मैं भी, यह गीत हृदय से गाता हूँ । नयनों के मध्य तिरंगा है, मैं नित नित शीष झुकाता हूँ ।। कर्तव्य यही बस मेरा हो, भारत की सेवा कर जाऊँ । खुशहाल रहे भारत मेरा, यह देख नजारा मर जाऊँ ।। १ ओ आदिशक्ति जगदंबे माँ, तन मन में बल भरदो मेरे । भारत की सेव करूँ मन से, अद्भुत क्षमता कर दो मेरे ।। यह कलम लिखे नित भारत को, हे वींणावादिनि वर देना । सपनों में भारत हो मेरे, कल्मष स्वारथ के हर लेना ।।२ बस एक रहे भारत मेरा, बलपौरुष में सबसे आगे । भारत की क्षमता देख-देख, दुश्मन पीछे को ही भागे ।। चहुँ ओर सुरक्षित भारत हो, बस ध्यान यही नित मैं ध्याऊँ । हर भारतवासी के उर में, केवल भारत को ही पाऊँ ।।३ स्निग्ध प्रबल उर भाव वसे, भारत के लिये हमेशा ही । शास्त्र शस्त्र हो कर मेरे, यह लक्ष्य रहे बस ऐस...
फौजी सरहद पै खड़ा
छंद

फौजी सरहद पै खड़ा

आचार्य राहुल शर्मा फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** कुंडली छंद... फौजी सरहद पै खड़ा, लेकर के बंदूक। जान हथेली पै रखे, चलता ले संदूक।। चलता ले संदूक, देश हित फौजी भाई। लदी हुयी बंदूक, कयामत रिपु पै आई।। कह राहुल कविराय, अकेली रहती भौजी। त्याग प्रेम समझाय, देश के प्रति बस फौजी।। परिचय :-  आचार्य राहुल शर्मा निवासी : फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने...
मेरी यह अभिलाषा है…
कविता

मेरी यह अभिलाषा है…

आचार्य राहुल शर्मा फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) ********************                लावणी छंद में कविता मेरे मन की यह अभिलाषा, प्रेम बढे जग खिल जाये । राग द्वेष से हटकर प्राणी, प्रेम गले से मिल जाये ।। प्रेम से बढकर कौन जहां मे, मुझको प्यारे बतलाओ । नम्र निवेदन यही करूँगा, पाठ प्रेम का सिखलाओ ।। १ बिना प्रेम के जग की रचना, मन कैसे हो पायेगी । प्रेम रूप ही ईश्वर का है, देख अक्ल आ जायेगी ।। सच्चा ज्ञान प्रेम है मानो, काली रातें कहतीं हैं । ये कटतीं हैं प्रेम मग्न हो, अंधकार को सहतीं हैं ।। २ तुलसी सूर कबीर कहें सब, प्रेम ड़गर चलते जाना । ईश्वर तुम से दूर नहीं हैं, जाओ तो मिलते जाना ।। मीरा गाये प्रेम मग्न हो, मैं तो हरि की हो गई रे । हरि की चादर ऐसी ओढ़ी, प्रेम गली में सो गई रे ।। ३ नारद वींणा वादन करते, भज नारायण कहते हैं । जगत सार बस हैं नारायण, प्रेम गली में रहते हैं ।।...
है लालसा यही अब मेरी
कविता

है लालसा यही अब मेरी

आचार्य राहुल शर्मा फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** लावणी छंद में कविता है लालसा यही अब मेरी .. बादल बनकर बरसूँ मैं। सबके ताप हरण मुझसे हों .. सेवा करके हरसूँ मैं।। मेढक मोर पपीहा खुश हों .. देख मुझे ही झूम उठें। धरती की मैं प्यास बुझाऊँ.. माथा मेरा चूम उठें।। १ सावन का बादल बन जाऊँ.. रिमझिम-रिमझिम बरसूँ मैं। गीला कर दूँ सूखे को यूँ.. मौसम ठंडा करदूँ मैं।। मैं भी सागर से जल लेके.. आऊँ-जाऊँ सावन में। मेरा भी मन मीत खड़ा हो.. मुझको देखे आँगन में।। २ पानी के बिन सूना सूना.. जीवन मरता रहता है। मेढक अपनी बोली बोले.. मोर पपीहा कहता है।। पलता जीवन सब जीवों का.. बादल जल बरसाते हैं। आमों पर बैठे तोते भी ... मीठू मीठू गाते हैं।। ३ मैंने एक लालसा पाली .. बादल बनना मुझको है। नभमंड़ल में उड़ता जाऊँ.. दृश्य देखना मुझको है।। बादल भी सेवा करते हैं.. बारिश...