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Tag: अर्पणा तिवारी

मै भारत की बेटी हूं
कविता

मै भारत की बेटी हूं

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मै भारत की बेटी हूं, क्यों ना मै अभिमान करू रज कण जिसके चंदन है, नतमस्तक मै गुणगान करू, आर्या वर्तो की श्रेष्ठ भूमि है, सुरजन वंदन करते है, राम कृष्ण की पावन भूमि, नित अभिनंदन करते है, उत्तुंग शिखर हिमगिरि, श्रेष्ठ धरा पर उन्नत भाल हमारा है, वारिध जिसके चरण पखारे, सप्त स्वरों में गाता है, वेद ऋचाएं जनमी है, दसो दिशाएं सुरभि त है, हवन कुंड से उठता धुंआ, करता मन आनंदित है, पुण्य भूमि है भरत भूमि यह, जिसका मै यश गान करू मै भारत की बेटी हूं क्यों ना मै अभिमान करू..... विंध्या चल है कमर मेखला सतपुड़ा से श्रृंगार हुआ गंगा यमुना ने सींचा जिसको रेवा तट उपहार हुआ ज्ञान दीप हुआ प्रज्ज्वलित देश मेरा दिनमान रहा एक अलौकिक युग दृष्टा आदर्शो का प्रतिमान रहा संस्कृतियों का पलना अद्भुत राष्ट्र भक्ति की त्रिवेणी है जन गण मन का मंत्र जिसका मै रसपान करू ...
पापा जिंदा है
लघुकथा

पापा जिंदा है

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा) पांच साल की नन्हीं मासूम गुड़िया की समझ में नहीं आ रहा था कि, पापा के आने की चिट्ठी पढ कर तो दादी और मां दोनों मिलकर पापा की पसंद के पकवान बनाती थीं, फिर आज पापा के आने की चिट्ठी पर घर में सब क्यों रो रहे है? आखिर दादी के पास जाकर गुड़िया ने अपना प्रश्न दादी से पूछा, दादी गुड़िया को सीने से लगाकर फफक फफक कर रोने लगी, गुड़िया मेरी बच्ची तेरे पापा देश की सेवा करते हुए शहीद हो गए है। तुझ पर से पिता साया हट गया है मेरी बिटिया, तेरे पापा अब इस दुनियां में नहीं रहे बेटी, दादी के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे, लेकिन दादी पापा ने तो मुझसे कहा था कि जो देश की सेवा में शहीद होते है, वे हमेशा जिन्दा रहते है, देश की हवाओं में, देश की मिट्टी में और देशव...
सीता बनना सौभाग्य कहां
कविता

सीता बनना सौभाग्य कहां

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सीता बनना सौभाग्य कहां अगणित तुमको शूल मिले, वनवासी तो राम रहे पर, तुमको भी कब फूल मिले .. आदर्श बनीं तुम जग में, पतिव्रत धर्म निभाया था, त्याग समर्पण का पथ तुमने, जग को दिखलाया था, जनक सुता होकर भी तुम, महलों में कब रुक पाई थी, आदर्शो की राह दिखाने, पुण्य धरा पर आई थी, राम प्रिया से मानव को, कितने जीवन मूल्य मिले, वनवासी तो राम रहे पर, तुमको भी कब फूल मिले... अग्नि परीक्षा देकर तुम, खुद को निर्दोष बताती हो, परीक्षा स्वीकार करे ना जग तो धरती बीच समाती हो, त्रेता युग की उस अग्नि परीक्षा को कलयुग में ऐसा मोड़ दिया, चरित्र शुद्धता से मानव ने, फिर उसको जोड़ दिया, राम के आदर्शो को भुला नर, नारी सीता तुल्य मिले, वनवासी तो राम रहे पर, तुमको भी कब फूल मिले.... माफ़ करो तुम जनक सुता, ये प्रश्न बड़ा बैचेन किए, अग्नि परीक्षा एक कसौटी हो, न...
किरणों का स्पर्श
कविता

किरणों का स्पर्श

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रवि किरणों का स्पर्श मिला, नवजीवन धरा के अंतर में अकुलाया है। वसुधा के उर में निश्चिंत पड़ा, दिनकर ने फिर स्नेहभाव से सहलाया है। नभ में विचरण करती बदली ने, ममत्व भाव से उस पर स्नेह नीर बरसाया है। स्नेह सिक्त कोमल भाव है आधार, धरणी के आंचल में जीवन पुलका इठलाया है। कोंपल फूटी प्रस्फुटित हुआ वह मानव का मित्र बना वृक्ष वही कहलाया है। . परिचय :- अर्पणा तिवारी निवासी : इंदौर मध्यप्रदेश शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजि...
सबला की तैयारी है
कविता

सबला की तैयारी है

https://www.youtube.com/watch?v=pZkz9vc2bFI अबला बनकर क्या पाया, बस तुने नीर बहाया है, वनिता होकर भी तो अश्कों, का सागर ही लहराया है। शिक्षा शस्त्रों का संधान करो तुम, सबला की तैयारी है....। दुनियां देखे शिक्षित नारी, रूप बड़ा सुखकारी है। कमजोर नहीं है कर तेरे, कंगन जिनमें सजते हैं, अधरों पर मधुगान रहे जो, हाला से ही लगते है। कंगन वाले हाथो को अब, कलम लगे बड़ी प्यारी है, शिक्षा शस्त्रों का संधान करो तुम, सबला की तैयारी है.....। अधरो से बहा तू अक्षर गंगा, हाला से मनोहारी है, दुनियां देखे शिक्षित नारी रूप बड़ा सुखकारी है। सबला की तैयारी है, सबला की तैयारी है। क्यों आस करे तू गोविंदा, तेरी लाज बचाएंगे, अग्निपरीक्षा देकर ही तुझको निर्दोष बताएंगे। याज्ञसैनी तू अग्निशिखा बन दुनियां तुझसे हारी है, शिक्षा शस्त्रों का संधान करो तुम, सबला की तैयारी है....। चीर बचना सीखो अपना, अब ना तू बेचारी ह...
आंसू
कविता

आंसू

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नयनों का श्रंगार हुए हैं जब, खुशियों का संदेश सुनाते हैं। दृग कोरो का भार हुए हैं जब, व्यथा हृदय की बतलाते हैं। झरते है मोती बन कर नैनो से, जाने कितने शोक मिटाते हैं। मन की सीपी के मोती है जो, यदा कदा अखियों में लहराते है। पीड़ा की अभिव्यक्ति है आंसू, बहकर मन निर्मल कर जाते है। खुशियों का उपहार भी आंसू, अधरों की मुस्कानों संग आते हैं। पावनता का पर्याय बने है आंसू, इसीलिए गंगाजल कहलाते हैं। . परिचय :- अर्पणा तिवारी निवासी : इंदौर मध्यप्रदेश शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ट...
खामोशी
कविता

खामोशी

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तेरी प्रीति निश्चल थीं वो अनुराग पावन था जब तुमने दस्तक दी मेरा रीता रीता मन था था पहरा उदासी का मेरे मन के आंगन में गहरा घना अंधियारा छाया था जीवन में मेरे मन का अम्बर था ज्यो पतझड़ का मौसम थीं नीरवता जीवन में ना भ्रमरो का गुंजन था जब तुमने दस्तक दी मेरा रीता रीता मन था ना भावो को समझा ना अन्तर को परखा मुझको समझ ना आई वो मौन की भाषा तुम कहते रहे मुझको मै सुनती रही तुमको पर गढ़ ना पाई मै प्रेम की परिभाषा मै जिस खुशबु से महकी और बेला सी बहकी ना वो चंपा ना ही जूही तेरे मन का चंदन था जब तुमने दस्तक दी मेरा रीता रीता मन था . परिचय :- अर्पणा तिवारी निवासी : इंदौर मध्यप्रदेश शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...
शब्द कलश
कविता

शब्द कलश

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शब्द कलश भी रिक्त हुए है, भावों की गंगा बहती है। हृदय कुंज के झुरमुट में मां, अमराई सी रहती है। शब्द अनूठा अनुपम ऐसा, परमेश्वर ने उपहार दिया। जहां स्वयं न पहुंचे भगवन, सृष्टि को आधार दिया। ममता पर जो लिखना चाहा, कलम भला कब थमती है। हृदय कुंज के झुरमुट में मां, अमराई सी रहती है। सहकर पीड़ा भारी जो, जीवन का पुष्प खिलाती है। जाग जाग कर रातों में जो, लोरी मधुर सुनाती है। पूजाघर में जलते दीपक सी, जो घर को आलोकित करती है। तुलसी दल सी पावन है जो मन को सुरभित करती है। क्या लिख जाऊं क्या छोड़ूं मै, मंथन की लहरे चलती है। हृदय कुंज के झुरमुट में मां, अमराई सी रहती है। जीवन के तपते रेगिस्तानों में आंचल की ठंडी छाह मिली। कठिन डगर पर कैसे गिरती, मुझको मां की बांह मिली। मंजिल मंजिल पार करूं मैं, शूल स्वयं ही हट जाते है। जब मेरे गालों पर आकर, ...
सुनो प्राणप्रिय
गीत

सुनो प्राणप्रिय

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावन का मोर संग लहरों का शोर संग पतंग का डोर संग चांद का चकोर संग रातों का जो भोर संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। नदी का किनारों संग फूलों का बहारों संग डोली का कहारो संग नैनों का इशारों संग मौसम का नजारों संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। मन का जो मीत संग जग का जो रीत संग पाती का जो प्रीत संग बाती का जो दीप संग स्वाति का जो सीप संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। गीत का संगीत संग प्यासे का जो नीर संग पंछियों का जो नीड़ संग काजल का जो दीठ संग आंसू का जो पीर संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। जग बैरी रूठे चाहे सांसों की ये माला टूटे शूल मिले चाहे मुझे ...
निर्झरणी
कविता

निर्झरणी

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मै नारी हुं, निर्झरणी हुं, कल कल करती सरिता पावन हुं। मन से रेवा, तन से गंगा, अनुरागी हुं, मनभावन हुं।। परमेश्वर ने मुझको सृष्टि की रचना का आधार रखा। आदि शक्ति का रूप बनाकर उमा रमा फिर नाम दिया।। मानव जाति जन्मे तुझसे, मुझको यह वरदान दिया। नवजीवन देती, परमेश्वर की सत्ता की परिचायक हुं।। मन से रेवा तन से गंगा अनुरागी हुं मनभावन हुं। मै जीवन के तपते रेगिस्तानो में रिश्तों की बगिया महकाती हुं। मै वसुधा हुं, पीड़ा सहकर जीवन का पुष्प खिलाती हुं।। लेकर मर्यादा सागर की सिमट सिमट मै जाती हुं। मै सुर भित मंद पवन सी सृष्टि की अधिनायक हुं।। मन से रेवा तन से गंगा, अनुरागी हुं मनभावन हुं। उत्कृष्ट कृति मै परमेश्वर की फिर क्यों कमतर आंकी जाती हुं। सतयुग में अग्निपरीक्षा देती, द्वापर में जुएं में हारी जाती हुं।। पुष्पों सा कोमल मन ले क्यों कलयुग...