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अर्चना मंडलोई के लघुकथा संग्रह “पीहर की देहरी” का विमोचन
साहित्यिक

अर्चना मंडलोई के लघुकथा संग्रह “पीहर की देहरी” का विमोचन

इंदौर ७ मई। वरिष्ठ लेखिका और शिक्षिका श्रीमती अर्चना मंडलोई की प्रथम पुस्तक (लघुकथा-संग्रह) पीहर की देहरी का विमोचन शुक्रवार को माधव विद्यापीठ, अहिल्या नगर के सभागृह में हुआ। विमोचन समारोह के मुख्य अतिथि साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश के निदेशक डाॅक्टर विकास दवे थे। उन्होंने कहा कि लघुकथा लिखना आसान नहीं है। कहानी और उपन्यास लिखने से अधिक कठिन होता है लघुकथा लिखना। अध्यक्षता वरिष्ठ समाजसेवी श्री जयप्रकाश नाईक ने की। विशेष अतिथि विचार प्रवाह साहित्य मंच की अध्यक्ष श्रीमती सुषमा दुबे ने पीहर की देहरी को भावनात्मक रचनाओं का संग्रह और अर्चना मंडलोई को संवेदनशील लेखिका बताया। राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच के संस्थापक पवन मकवाना "हिंदी रक्षक" श्रीमती अर्चना मंडलोई को भगवा पल्लव पहनाकर शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए। विशेष अतिथि वामा साहित्य मंच की अध्यक्ष श्रीमती अमर चड्ढा ने कहा कि...
गरमकोट
लघुकथा

गरमकोट

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** माँ ने दिवंगत पिता के गरम कोट को सहलाकर भारी मन से अलमारी बंद करते हुए पूछा- बेटा सब तैयारी हो गई क्या? सुलभा इंतजार कर रही होगी। हाँ माँ..उसने मामेरा मे देने के सामान पर एक नजर डालते हुए कहा..तभी फोन की घंटी बज उठी...सुलभा का फोन था....कब पहूँचोगे भैया...उधर से सुलभा व्यग्रता से कह रही थी!.... बस निकल ही रहे है.... चलो बेटा आज तुम्हें पिता और भाई की दोहरी जिम्मेदारी निभानी है....माँ की डबडबाई आँखे उससे छुपी न रह सकी। नए कोट को सुटकेस में तह कर रखते हुए...वह उठा और अलमारी से निकाल पिता का कोट पहन लिया। देखते ही माँ बोली..ये क्या? इतना पुराना कोट....शादी में ... हाँ माँ बहन को पापा की कमी महसूस न हो इसलिए मैने आज ये कोट पहन लिया है... शहनाईयाँ बज उठी थी....माँ भावविभोर थी। और आरती की थाली लिए बहन पिता के रूप मे भाई को देखकर फूली नही समा र...
चाँदनी रात
कविता

चाँदनी रात

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता "प्रीत की पाती" में प्रेषित कविता) जैसे ही चाँद पर ठहरती है नजर यू ही याद आ जाते हो तुम चाँद के चमकिले उजास में आसमान की सतरंगी परिधि के बीच जैसे ही तुम्हारा अक्स नजर आने लगता है तब लगता है चाँद और मेरे बीच एक अनकहा रिश्ता है। उसके सौन्दर्य मे मै अपने सपनो को निहारती हूँ मन के आकाश मे घुमते मेरी अधूरी कामनाओं के बादल मेरी सपनीली आँखों में मधुर स्मृतियों के चित्र बनाते और क्षण भर में चाँदनी की तरह फिर बिखर जाते।। परिचय : इंदौर निवासी अर्चना मंडलोई शिक्षिका हैं आप एम.ए. हिन्दी साहित्य एवं आप एम.फिल. पी.एच.डी रजीस्टर्ड हैं, आपने विभिन्न विधाओं में लेखन, सामाजिक पत्रिका का संपादन व मालवी नाट्य मंचन किया है, आप अनेक सामाजिक व साहित्यिक संस्थाओं में सदस्य हैं व सामाजिक गतिविधिय...
तुम कब जाओगे…! अतिथि…!
आलेख

तुम कब जाओगे…! अतिथि…!

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** अतिथि! तुम्हारा जब आगमन हुआ था, तो हम सबने यही सोचा था कि मेहमान हो कुछ दिन ठहर कर चले जाओगे। लेकिन अब तो बार-बार पूछना पड रहा है.... अतिथि तुम कब जाओगे? तारीख पर तारीख और फिर तारीख! लेकिन तुम तो बेशर्म की तरह यहाँ पैर पसारे जमने की कोशिश कर रहे हो। तुम अपने खौफनाक डरावने चेहरे की छाप मेरी जमीन पर डाल तो चुके हो पर तुम ये भी जान लो कि तुम मेरी जमी और मेरे अपनों को बहुत आहत कर चुके। क्या तुम नहीं जानते ये हौसलो की जमी है, तुम्हे मूँह की खानी ही होगी। जब तुमने अपने आने की आहट दी थी, तब मेरा मन अज्ञात आशंका से धडक उठा था। अंदर ही अंदर मै मेरे अपनो के लिए काँप गई थी। हम सतर्क भी थे, हमने वितृष्णा से तुम्हारा तिरस्कार भी कर दिया था। फिर भी तुम न जाने कैसे बेदर्दी से मेरे अपनो को लील गए। मेरी आशंका निर्मूल नही थी ! तुम नहीं गए ! तुम्हें भगाने के ...
गुल्लक
लघुकथा

गुल्लक

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** माँ आशा आंटी का फोन है... बेटा मुझे फोन देते हुए बोला... मैने पोछा बाल्टी में फेकते हुए दुपट्टे से हाथ पोछे और बेटे के हाथ से फोन झपट लिया। कैसी हो दीदी उधर से आवाज आई ! .ठीक है हम सब तू कैसी है? और तेरे परिवार के लोग.....मैं एक सी सांस मे कह गई? नहीं दीदी...वह रूकती हुई बोली - पर आपको सब काम हाथ से ही करना पड रहा है ना? और आपके पैरो का दर्द कैसा है? उधर से बुझी सी आवाज आई। हम लोग मिलजुल कर मैनेज कर रहे है। बच्चें भी काम मे हाथ बँटा रहे है.... वो सब तो ठीक है पर तू बता तुम लोग गाँव तो नहीं गए ना? और तेरे पति क्या अभी भी सब्जी बेचने जाते है? मै उसकी खैरियत पूछने के लिए एक सांस मे सब कह गई। वो दीदी मालिक मकान किराया मांगने लगा था। और फिर हमारे घर में खाने का सामान भी इन आठ दिनों मे खतम होने लगा था। आटा दाल का इंतजाम तो करना ही था सो जान जोख...
मेज के उस पार की कुर्सी
लघुकथा

मेज के उस पार की कुर्सी

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** सुनों आज भी मैं खिडकी के पास रखी कुर्सी पर बैठी हूँ। बाहर बगीचे में ओस से भीगा आँवले से लदा पेड हरे काँच की बूँदों सा लग रहा है। इन दिनों गुलाब में भी बहार आई हुई है। सुर्ख लाल गुलाब पर मंडराती रंग-बिरंगी तितलियां मौसम को और भी खुशनुमा बना रही है। मौसम भी इस बार कुछ ज्यादा ही उतावला है नवम्बर में ही गुलाबी ठंड ने दस्तक दे दी है। ये गर्म काँफी मुझे अब वो गर्माहट नहीं देती क्योंकि मेज के उस पार खाली कुर्सी और काँफी मग का वो रिक्त स्थान तुम्हारी कमी महसूस करवा रहा है। मै अपनी बेबसी ठंडी कर काँफी के हर घूँट के साथ पीती जा रही हूँ। जानते हो ये हवा जो ठंड से भीगी हुई है, ये अब भीगोती नही है। भीगना और गीले होने का अंतर तुम्हारे बिना समझ में आया। मैं हथेलियों की सरसराहट से उस गर्माहट को महसूस करना चाहती हूँ, जो कभी तुम्हारी हथेलियों ने थाम कर गर्मा...
शहीद तुम्हें नमन्
कविता

शहीद तुम्हें नमन्

============================== रचयिता : अर्चना मंडलोई अन्धेरा उस घर में हो गया हाथ बढा कर एक दिया रख देना तुम।। निगल गया उसे मौत का कोई सौदागर हो सके तो, बेटी के सर पर हाथ जरा रख देना तुम अन्धेरा उस घर में हो गया एक दिया रख देना तुम मेरा घर रौशन हो जाए जला डाला उसने अपना घर आँखे उसकी तकती रही ताबुत हो गया उसका तन हो संभव तो, हाथ बढाकर चुडी हाथो में उसके पहना देना तुम अन्धेरा उस घर में हो गया एक दिया रख देना तुम।। मेरे घर में दीवाली हो हो जाए बैसाखी और ईद इसलिए हो गया वो शहीद हो सके तो बढकर उसे नमन् कर लेना तुम अन्धेरा उस घर में हो गया एक दिया उसके भी घर रख देना तुम। नन्हें हाथों ने जब पकडी होगी चीता की लौ काँप गई होगी उसकी रूह आशीषों का हाथ जरा तुम उसके सर पर रख देना अन्धेरा उस घर में हो गया एक दिया रख देना तुम।। काँपते हाथो ने जब छुआ होगा धूँधली नजरो ने माथे को जब चूमा होगा तिरंगे म...
बेटे का खत माँ के नाम
लघुकथा

बेटे का खत माँ के नाम

============================== रचयिता : अर्चना मंडलोई थैक्यू माँ ....      ओह! माँ तुम पास हो गई। कितनी खुश हो तुम आज मेरा रिजल्ट देखकर। टीचर जी ने तुम्हें मिठाई खिलाते हुए बधाई दी तो तुम रो ही पडी थी। मैं पास खडा, ये सब देख रहा था, और मन ही मन ईश्वर को शुक्रिया कह रहा था - यहाँ धरती पर तुम जैसी माँ जो मिली है, मुझे संभालने के लिए। मुझे पता है, माँ मैं उन आम बच्चों में शामिल नहीं हूँ, जिसे दुनिया नार्मल कहती है। और तुम भी दुनिया की तमाम माँ के समान ही हो। पर माँ मेरे साथ तुम भी खास हो गई हो। मैं जानता हूँ माँ हर रोज तुम मेरे स्कूल के गेट पर छुट्टी होने के समय से पहले ही खडी रहती हो। दौडते भागते बच्चों को हसरत भरी निगाहों से देखते हुए, मैं जानता हूँ उन बच्चों में तुम मुझे खोजती हो। वैसे तो माँ तुमने कभी किसी से मेरी तुलना नहीं की, फिर भी मेरी क्लास के टापर्स बच्चों की तुम खुशामद करती हो औ...