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Tag: अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन

गुरु वंदना
भजन

गुरु वंदना

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन महासमुंद ******************** गुरु मेरे सांई गुरु मेरे दाता गुरु मेरे जीवन के भाग्य विधाता गुरु बिन डगमग मेरी जीवन नैया गुरु ही तो मेरे हैं नाव खेवइया गुरु बिन भवसागर पार कौन लगाता गुरु मेरे जीवन के भाग्य विधाता तम से भरी दुनियाँ में राह दिखाये ज्ञान ज्योति उर में वही तो जलाये गुरु बिन सदमार्ग हमें कौन दिखाता गुरु मेरे जीवन के भाग्य विधाता गुरु से ही पाऊँ मै भगवन दर्शन गुरु को ही अर्पण करूँ सारा जीवन गुरु चरणन में निशदिन माथ नवाता गुरु मेरे जीवन के भाग्य विधाता संताप मरुस्थल में गुरु ठंडी छांव है जीवन सफर का केवल वे ही ठांव है गुरु मेरे हृदय पूज्य गुरु मेरे ज्ञाता गुरु मेरे जीवन के भाग्य विधाता . परिचय :- अन्नपूर्णाजवाहर देवांगन जन्मतिथि : १७/८/१९७६ छुरा (गरियाबंद) पिता : श्री गजानंद प्रसाद देवांगन माता : श्रीमती सुशीला देवांगन पति : श्री जवाहर देवांग...
पर्यावरण
कविता

पर्यावरण

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन महासमुंद ******************** धवल शुभ्र तुंग से निखर, रवि किरणें पड़ती जब धरा। खिल उठे वन उपवन सारे, जीव जगत में तब हो उजियारा।। खेतों में लहलहायें जब फसलें, ओढ़े वसुधा तब धानी चुनरिया। कल कल कर जब सरिता बहती। छलकाए प्रकृति तब प्रेम गगरिया।। कानों मे रस घोले कोयल प्यारी, करे, मदमाये आम्र कुंजो में विचरण। कानन,कानन तब बाजे झांझ मृदंगा, सुरभित मुखरित हो हमारा पर्यावरण।। सौंदर्य प्रकृति की और निखर जाती, करते जब हम सब इसका संरक्षण। विकसित पथ चल करता मानव प्रहार, कराहती विचलित सृष्टि का होता क्षरण।। करे मानुष जब नियति से छेड़छाड़, और धरती पर बढ़े जब अत्याचार। अकुलाती धरा तब न धरती धीर जरा, आते हैं तब ही वसुधा पर प्रलय भयंकरा।। रोपित करें चलो आज बीज एक, आयेंगे तब कल उनमें पक्षी अपार। खिल उठेगा अपना भी मन उपवन, स्वच्छ सुरभित जब चलेगी बयार।। . परिचय :- अन्नपूर्णा...
माँ
कविता

माँ

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन महासमुंद ******************** ईश्वर का वरदान है माँ, धरती पर भगवान है माँ कोई उपमा न दे पांऊ मैं, ऐसी महान् आत्मा है माँ। माँ से पाया उजास सूरज ने, माँ से पाई उंचाई आकाश ने और गहराई प्रेम की सागर ने, पाया है उसने भी दुलार माँ से। बीजों में फूटते अंकुर में, अग्नि से उठती ज्वाला में पतझर में भी सावन का, सा एहसास करातीं है माँ। तुझे शब्दों में न बांध पाऊँ मैं, क्योंकि तू ही पूर्ण शब्द है माँ . परिचय :- अन्नपूर्णाजवाहर देवांगन जन्मतिथि : १७/८/१९७६ छुरा (गरियाबंद) पिता : श्री गजानंद प्रसाद देवांगन माता : श्रीमती सुशीला देवांगन पति : श्री जवाहर देवांगन शिक्षा : एम.ए हिंदी, बी.एड., पी.एच.डी सम्प्रति : शोधछात्रा निवासी : राजेन्द्र नगर, महासमुंद प्रकाशन : आंचलिक पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित सम्मान : श्रेष्ठ सृजक सम्मान, साहित्य साधना सम्मान अन्य : समाजसेव...
माँ
कविता

माँ

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन महासमुंद ******************** किसी शब्द में न बांध पाऊं तुम्हें क्योंकि पूर्ण शब्द तुम ही हो माँ अंधेरे में भटकती खोजती हूं तुम्हें मेरे हृदय में करती उजास हो माँ धूप में जल जाये न कहीं मेरे पैर इसलिए अपना पैर जला लेती हो माँ सूखे में मैं सोऊं रात भर इसलिए खुद गीले में सोती हो माँ सुख रहे सदा मेरे साथ इसलिए जीवनभर दुख मेरा ले लेती हो माँ अमृत की चाह नहीं तुझे, मुझे कभी न पीना पड़े जहर इसलिए स्वयं नीलकंठ बन जाती हो मां आराम से सो सकूं मैं इसलिए झूला, गोद में बना लेती हो माँ अश्क मेरी आँखों से न बह पाये कभी इसलिए खुद समंदर बन जाती हो माँ एक रोटी मांगू तो देती हो चार और भूखा न रहूं मैं इसलिए गिनती ही भूला देती हो मां जीवन गणित के सूत्र में कहीं फेल न हो जाऊं मैं इसलिए इस शून्य की दहाई बन जाती हो माँ नजर न लगे दुनियां की मुझे इसलिए आँखों से अपनी माथे पर मेरे, काजल का ...
कुछ तो बदला है
कविता

कुछ तो बदला है

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन महासमुंद ******************** हवाओं ने आज रूख बदला है, न जमीं बदली है न आसमान बदला है। केवल हवाओं ने आज रूख बदला है। बदला है मेरे गांव का चौपाल जहां साझा होते थे तजुर्बे आज पसरा है वहां सन्नाटा। बदला है मेरे घर का आँगन जो दिन भर अब गूंजते हैं किलकारियों से। बदले हैं रस्मों रिवाज मेरे घर के जहां बंटते हैं प्यार खाने की थालियों में। बदली है मेरी राहें जा रहे थे जो पूरब को छोड़ पश्चिम की अगवानी में। बदला है वह समय जो कल तक नहीं था पास किसी के अब हैं फुर्सत में। बदले हैं वे रिश्ते नाते जो रहकर पास रहते थे अपनों से दूर अब लगाव महसूसते हैं फासलों में बदला है बरगद का पुराना सूना पेंड़ जहाँ लगे हैं लौटने खग अपने नीड़ में बदली है ग्रीष्म की वो बंद सरिता जहां चल रही नाव साहिल की तलाश में बदले हैं वो अंदाज जो करते थे बयां होती नहीं मोहब्बत गले मिलने से ही न धर्म बदला है न करम ...