Monday, December 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: अनुपमा ठाकुर

बेरवाली
लघुकथा

बेरवाली

अनुपमा ठाकुर सेलू (महाराष्ट्र) ******************** सर्दियों के दिन थे। बाजार में अमरूद पपीता, गन्ना तरह- तरह के फल आए हुए थे। चाहे कितनी भी सर्दी खांसी का डर हो, इन मौसमी फलों को खाने का मोह नहीं छूटता। संध्या समय जब मैं घर में झाड़ू लगा रही थी, मैंने बेर वाली की आवाज सुनी। वह जोर से आवाज लगा रही थी, "बेर ले लो बेर, मीठे-मीठे बेर ले लो।" मेरा भी मन हुआ बेर खाने का। बाहर जाकर मैंने उससे पूछा- "कैसे दिए?" उसने कहा, "१५ रुपये के पावसेर। " मैंने कहा - "पर बाजार में १० रुपये के पावसेर है।" वह बोली, "नहीं बाई, इतना बोझ उठाकर सिर पर लाना होता है। मुझे नहीं परतल पड़ेगा।" मैंने सोचा सही है। इतना बोझ इसे उठाना पड़ता है। मैंने टोकरा नीचे रखने में उसकी मदद की। टोकरा सचमुच बहुत भारी था। थोड़े कच्चे-पक्के बेर चुनकर मैंने उसे २० रुपए दिए। उसने कमर में छोटी सी थैली निकालकर टटोलते हुए कहा, "५ रुपये...
काजोल
जीवन मूल्य

काजोल

अनुपमा ठाकुर सेलू (महाराष्ट्र) ******************** एक दिन संध्या समय जब मैं और मेरी बेटियाँ पाठशाला से लौटी तो देखा घर के आँगन में दरवाजे के पास एक बिल्ली विश्राम कर रही थी। उसे देखते ही मेरी छोटी बेटी खुशी के मारे उछल पड़ी। गेट खोलने पर वह हमसे डरकर पीछे-पीछे सरकने लगी। मेरी बेटी उसे हाथ लगाने का प्रयास करती पर वह डरकर पीछे सरकती। उतने में मेरी बड़ी बेटी तुरंत भीतर से दूध ले आई और उसके सामने रख दिया। दूध को देखते ही वह म्याऊं-म्याऊं करते हुए समीप आकर दूध पीने लगी। उसका डर अब पूरी तरह से समाप्त हो चुका था। वह अब खुशी-खुशी मेरी बेटियों को हाथ लगाने दे रही थी। रात होने तक वह वहीं बैठे रही, किसी काम से मैं बाहर आती तो वह मेरी ओर मुँह किए माँऊ-माँऊ कर चिल्लाती और अपने शरीर को मेरे पैरों से रगड़ने लगती। अब यह उसका नित्य का क्रम बन चुका था। रात में पता नहीं वह कहां निवास करती परंतु जैसे ...