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Tag: अजयपाल सिंह नेगी

प्रकृति मेरी गजलें
कविता

प्रकृति मेरी गजलें

अजयपाल सिंह नेगी थलीसैंण, पौड़ी (गढ़वाल) ******************** इस तरह प्रकृति को हलाल होते देखा है, मानो सुबह सोया रात होते देखा है, यूं लम्हों में लम्हे गुजार जाते हैं लोग, सुबह होते ही पता नहीं कहां चले जाते हैं लोग, यूं पानी की बूंदों को टकराना, मानो गुलाब को हवा की तरह सब पर बरसाना, ये यूं ही चला जाता है मानो सुबह सोया रात को उठ जाना, वे पेड़ों की सांसो को दब से दबाना, मानो सुबह खाया रात को भूल जाना, और कहते हैं कि हमारे हक से कभी न रुलाना, ये तुम्हारा पुत्र नहीं पित्र है, प्रकृति संतुलन में आए तो तुम हिल जाते हो, मानों खाना खाया खुद और दूसरों को लड़ाये जाते हो, इसलिए प्रकृति की निस्वार्थ से जैसा लीजिएगा वैसा दीजिएगा। परिचय :- अजयपाल सिंह नेगी निवासी : थलीसैंण पौड़ी गढ़वाल घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अप...
मधुसूदन
कविता

मधुसूदन

अजयपाल सिंह नेगी थलीसैंण, पौड़ी (गढ़वाल) ******************** मधुसूदन में मधुसूदन लूट आया ना करो, यूं मधुसूदन पर इज्जत गवा या ना करो, यूं मधुसूदन का मूल दूसरों को चुकाना पड़ता, यूं प्यालो से प्यालो पे दूसरों को रुलाना पड़ता है, मुस्कुराती जिंदगी को बंदी बनाना तो छोड़ो, नहीं तो उन जनों को पर बुलाना पड़ता है, और उस रूमझूमु रात को भी खिलाना पड़ता है, परिवार को परिवार से हटाना पड़ता है, क्यों? प्यालो पे प्यालो को लगाना पड़ता है, यहां चिड़ियों की चंचकरियो की तरह प्यार भरे पलों को तुड़ाना पड़ता है, और जिंदगी को जिंदगी से भुलाना पड़ता है, खुशनसीब नहीं हैं वे जो प्यालो पर प्यालो को लगाया करते हैं, खुशनसीब तो वह है जो प्यालो पे प्यालो को तुड़ाया या करते हैं, और समय को समय पर गवाया न करते हैं, परिचय :- अजयपाल सिंह नेगी निवासी : थलीसैंण पौड़ी गढ़वाल घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
जिंदगी एक सफर
कविता

जिंदगी एक सफर

अजयपाल सिंह नेगी थलीसैंण, पौड़ी (गढ़वाल) ******************** जिंदगी एक सफर है जिंदा रहने का, जिंदगी में जिंदा रहना ही जिंदगी है, आज इंसानियत में इंसानियत को लुटा बैठा है, मानो जिंदगी से जिंदगी को लुभा बैठा हैं, और बहते हुए पानी में हिरे को डूबा बैठा हैं, कहते हैं जिंदगी में जिंदगी गवां बैठा है, जिंदगी में जिंदगी के बहते हुए पानी को देखो, जिंदगी में जिंदा रहने के बहाने न देखो, खुश नसीब है वह जिंदगीयों के मालिख, जो जिंदगी से जिंदगी को लगा बैठा है, जो राष्ट्रीय सम्मान पर लिपट आए तो कह देना जिंदगी में जिंदगी गवां बैठा है, वतन पर वतन की इंसा को डूबा बैठा है और प्यार व त्याग से दूसरों को रुला बैठा हैं ये पल भी ऐसा है मानो सुबह कुछ पाया और रात में गंवाया परिचय :- अजयपाल सिंह नेगी निवासी : थलीसैंण पौड़ी गढ़वाल घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित ए...
प्रकृति जीवन है
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प्रकृति जीवन है

अजयपाल सिंह नेगी थलीसैंण, पौड़ी (गढ़वाल) ******************** प्रकृति जीवन है, जीवन ही प्रकृति प्रकृति प्राण है, आत्मा भी प्रकृति प्रकृति मरुस्थल में नदी, मीठा झरना है प्रकृति प्रकृति पृथ्वी है, जगत है, धरा है प्रकृति प्रकृति कलम है, दवा है, सस्कृति की गवाह है प्रकृति प्रकृति परमात्मा की स्वयं में गवा है प्रकृति प्रकृति अकेली है, अकेले में ही है प्रकृति इसका का महत्व कम नहीं हो सकता कभी, होने पर दुनिया सशक्त न हो सकती कभी मैं अपनी चंद पंक्तियाँ, प्रकृति के नाम करता हुँ प्रकृति के निस्वार्थता को ह्रदय से प्रणाम करता हुँ परिचय :- अजयपाल सिंह नेगी निवासी : थलीसैंण पौड़ी गढ़वाल घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते है...