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Tag: अंशिता दुबे

मिट्टी सी बेटी हूं मैं
कविता

मिट्टी सी बेटी हूं मैं

अंशिता दुबे लंदन ******************** कभी नम हो जाती हूं गम से, कभी सख्त हो जाती हूं श्रम से, कभी सौंधी खूशबू सी जाती हूं बिखर, कभी हौसले से चढ़ जाती हूं शिखर, कभी दरिया संग बह जाती हूं इक छोर, कभी तट पर रुक जाती हूं बन डोर, कभी उलफत की लहरों से जाती हूं मिलने, कभी शांत सरोवर में जाती हूं खिलने, कभी एहसासों की नदी में जाती हूं डुबने, कभी लगती तूफानी भंवर सी हूं ऊबने, कभी आसमां को मुटठी में बांधने हूं लगती, कभी जमीन को ही अपना आसमां मानने हूं लगती। परिचय :- अंशिता दुबे निवासी : लंदन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं...
बाकी रह गया…
कविता

बाकी रह गया…

अंशिता दुबे लंदन ******************** इश्क़ में भिगोना बाकी रह गया, तेरी रातों को जगाना बाकी रह गया। गजलें तो हो गयी मुक्कमल, पर तेरे लिये गुनगुना बाकी रह गया। फिजाओं को साथ लेकर आयें, पर तेरा सूनापन बाकी रह गया। तस्वीरों से ख्वाब सजाकर लाये, पर तेरे संग मुस्कुराना बाकी रह गया। खेल तो आए तेरे संग बाजियां, पर तुझको सताना बाकी रह गया। भीग तो आए रिमझिम सी बूदों में, पर तेरे सावन का पहरा बाकी रह गया। अपनों से मिल के तो आ गये, इक तुम से ही मिलना बाकी रह गया। खुद को तुम्हारी महफिल से आजाद कर लाएं, पर तेरे यादों का सेहरा बाकी रह गया। परिचय :- अंशिता दुबे निवासी :- लंदन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, र...