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Tag: अंजनी कुमार चतुर्वेदी

उद्यमशील पिता की बेटी
कविता

उद्यमशील पिता की बेटी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** खनन उपकरण काँधे पर रख, खेती करने जाती। पढ़ी-लिखी, शिक्षित श्रमिका है, हरसाती मुस्काती। खेतों में श्रम बिंदु बहाते, बाबुल थक जाते हैं। लिए कुदाल हाथ में अपनी, बेटी को पाते हैं। निकल पड़ी है वीर यौवना, मेहनत गले लगाने। हँसती और मुस्कुरा गाती, है बरसाती गाने। स्वयं पिता का हाथ बटाने, खेतों पर जाती है। खेती के सब काम देखती, हरबोला गाती है। नारी को जो अबला कहते, उनको है बतलाती है। कुछ भी कर सकती है नारी, जब अपने पर आती। कठिन परिश्रम करके तन से, जब श्रम बिंदु बहाती। उद्यमशील पिता की छाती, गजभर फूली जाती। साहस और समर्पण लख कर, युवा शर्म खाते हैं। चुल्लू भर पानी में कायर, डूब मरे जाते हैं। बिटिया की मेहनत रँग लाई, फसल लहलहाती है। हरे भरे खेतों को लखकर, बिटिया मुस्काती है। हम सबको श...
सच्चाई हरदम लिखती है
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सच्चाई हरदम लिखती है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** परम सुपावन सदा लेखनी, सबकी किस्मत लिखती। बरसों पहले भी जैसी थी, आज पूर्व सी दिखती। सच्चाई हरदम लिखती है, सदा झूठ से दूरी। कलम सदा करती है सबके, मन की इच्छा पूरी। गीत गम भरे जब भी लिखती, रोना आ जाता है। प्यार भरे गीतों को पढ़कर, कौना हर्षाता है। दुखियारों का दुख लिखती है, लिखती सबकी खुशियाँ। विरहन का दुख भी लिखती है, लिख पाती मन बतियाँ। भेदभाव ना किया कलम ने, लिखा सदा ही पावन। रास लिखा मोहन राधा का, सुंदर सुखद सुहावन। हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, तूने कभी ना माना। रामायण, बाइबल, कुरान को, सदा एक सा जाना। क्या अमीर औ क्या गरीब हैं, सबको मान दिलाती। तू सबके सौभाग्य जगा कर, माँ सम दूध पिलाती। अगर कलम तू बिक जाएगी, हाहाकार मचेगी। डोल गया ईमान कलम का, दुनिया नहीं बचेगी। पत्रकार, लेखक,...
इंद्रधनुष की छटा निराली
कविता

इंद्रधनुष की छटा निराली

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** आया है बरसा का मौसम, हरियाली छाई है। प्रकृति मनोहर लगती प्यारी, सबके मन भाई है। धूप निकलती, वर्षा होती, इंद्रधनुष तब बनता। सूर्य रश्मियाँ जब बिखेरता, तब प्रकाश है छनता। शुरू बैगनी रँग से होकर, लाल रंग तक जाता। शेष बचे हिस्से में देखो, रँग प्रत्येक समाता। सातों रँग आपस में मिलकर, प्यारा धनुष बनाते। बालक, युवा, वृद्धजन इसको, देख देख हर्षाते। इंद्रधनुष की छटा निराली, सब को मोहित करती। सतरंगी यह दृश्य मनोहर, अनुपम छटा उभरती। यह अनुपम उपहार प्रकृति का, मानव बना न पाया। बारिश के मौसम में अद्भुत, एक नजारा छाया। कभी-कभी घर के पिछवाड़े, इंद्रधनुष बन जाता। लगता वह नयनाभिराम है, रंग बिरंगा छाता। जब भी बनता आसमान में, लगता बड़ा सुहाना। बच्चे गा-गा कर कहते हैं, मेरे घर आ जाना। परिचय...
पेड़ लगायें-धरा बचायें
कविता

पेड़ लगायें-धरा बचायें

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सवा लाख वर्षों में अब तक, हुई न इतनी गरमी। ताप बड़ा धरती पर इतना, हुई विलोपित नरमी। दिन दिन बढ़ता तापमान पर, कारण भी हम सब हैं। बेकरार क्यों मौसम करता, साधन भी जब सब हैं। अपनी खुशियों की खातिर ही, वृक्ष धरा से काटे। वसुधा के सारे हिस्से ही, कंक्रीट से पाटे। वृक्ष हमारे सहयोगी हैं, हमने समझ न पाया। वृक्ष काट धरती खाली की, अब जलती है काया। चोली दामन जैसा ही है, सदाबृक्ष से नाता। सहजीवन है बहुत जरूरी, नहीं निभाना आता। गरल युक्त वायु लेकर भी, प्राणवायु हैं देते। राहगीर को छाया देकर, हैं थकान हर लेते। वन संपदा वृक्ष देते हैं, फल प्रसून देते हैं। आँखों को हरियाली देकर, ताप सोख लेते हैं। वृक्षों के सँग नमक हरामी, हम सब ने ही की है। गर्मी पड़ी जानलेवा जब, भूल सभी ने की है। अड़तालिस ...
नशा छा जाता
कविता

नशा छा जाता

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिसके सेवन से मानव पर, त्वरित नशा छा जाता। ऐसा मादक द्रव्य देह को, ही समूह खा जाता। नशा नाश की जड़ है प्यारे, नशा नर्क का द्वार है। डूबा रहता जो व्यसनों में, नष्ट हुआ घर-बार है। बुद्धि भ्रष्ट हो जाती इससे, पतन आत्मा का होता। जैसे नाव डुबो देता है, हुआ तली में जो सोता। सभी मान मर्यादा खोता, व्यसन चाहने वाला। आयँ-बायँ बकने लगता है, गई हलक में हाला। बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू या, चरस अफीम औ गाँजा। करता है जो व्यसन हमेशा, उसका बजता बाजा। गाँजा, चरस, भांग, हेरोइन, ब्राउन शुगर जो लेता। सुरासुंदरी के घेरे में, तन- धन ही खो देता। नशा माफ न करे किसी को, व्यसन यही सिखलाता। नशा रक्त में मिलकर अपना, रौद्र रूप दिखलाता। व्यसनी अपना हित अनहित भी, कभी देख न पाता। अपने अवगुण के कारण ही, घर का खोज ...
पर्यावरण बचाना होगा
कविता

पर्यावरण बचाना होगा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** चारों ओर आवरण दिखता, पर्यावरण कहाता। हरा भरा चहुँ ओर आवरण, मन को खूब सुहाता। इसके बिना जिंदगी सूनी, सूना है घर आँगन। पर्यावरण प्रदूषित हो तब, सबको होती लाँघन। हरा-भरा धरती का आँचल, सबका मन हर लेता। धनसंपदा रसद भी मिलती, खाली घर भर देता। अपना उल्लू सीधा करने, वृक्ष काटते सारे। पारा आसमान को छूता, दिन में दिखते तारे। रात दिवस चलती रहती है, अंधाधुंध कटाई। हम खुद कालिदास बने हैं, जीवन पड़ा खटाई। शीतल छाँव नहीं पंथी को, पंछी नहीं बसेरा। मोर, पपीहा नहीं दीखते, घने वृक्ष का डेरा। धुआँ उगलती चिमनी देखो, पर्यावरण मिटाती। दूषित वायु प्रकृति सोख कर, पल-पल ताप घटाती। ड़ाल रसायन हम खेती को, मिलकर बाँझ बनाते। देख अधिक उत्पादन हम सब, खुशियाँ साँझ मनाते। आस्तीन के साँप स्वयं हम, ड़सते हैं अ...
माता तुलसी पतित पावनी
कविता

माता तुलसी पतित पावनी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** हर घर पूजित होती तुलसी, वेद पुराणों सी पावन। यत्र, तत्र, सर्वत्र विराजित, तुलसी है प्रिय मनभावन। विष्णुप्रिया, प्रिय सालिग्राम की, ठाकुर भोग लगाते। तुलसी घर में रोपण करके, सुख सौभाग्य जगाते। जनमानस में पूजी जाती, हर गुण से संपन्न। जिस घर होती भाग्य जगाती, जो धनहीन विपन्न। पूर्व जन्म में वृंदा थी यह, जालंधर को ब्याही। परम भक्त थी हरि विष्णु की, भगवत पथ की राही। अत्याचारी जालंधर से, सभी देव जब हारे। विष्णुधाम जाकर तब सब ने, अति प्रिय बचन उचारे। छद्म रूप धारण कर प्रभु ने, वृंदा करी अपावन। जालंधर को मार दिया तब, भोले शिव मनभावन। श्राप दिया वृंदा ने हरि को, सालिग्राम बनाया। जड़बत हुई समूची सृष्टि, अंधकार सा छाया। सब देवों ने करी प्रार्थना, तब वृंदा थी मानी। काला मुख कर श्राप हटाया, ...
तुम अधीर ना होना
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तुम अधीर ना होना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** दुख की धूप कभी भी सुत पर, जीवन में जब आती। आँचल की छाया देकर माँ, जीवन पाठ पढ़ाती। पनघट जैसी कठिन डगर है, जीवन मकड़ी जाला। नहीं उलझना मकड़जाल में, समझाती हूँ लाला। है जीवन तलवार दुधारी, इस पर कैसे चलना। हो प्रतिकूल परिस्थिति जैसी, उसमें कैसे ढ़लना। कठिन समय जब तुम्हें सताए, धीरज कभी न खोना। मन का अश्व रहे काबू में, तुम अधीर न होना। ऊँचाई पर चींटी चढ़ती, फिर फिर गिर जाती है। चढ़ती, गिरती गिरती, चढ़ती, आखिर चढ़ जाती है। बिना रुके तुम चढ़ते रहना, अगर शिखर हो पाना। सब के सहयोगी बनकर तुम, नाम अमर कर जाना। रंग चढ़ा दुनिया पर ऐसा, कोई काम न आता। मेरे प्यारे तुम बन जाना, सब के भाग्य विधाता। जीवन में पग-पग पर मिलते, हैं अपनों के ताने। फिर कैसे अपने हो सकते, जो हमसे अनजाने। अपनापन, अन...
बेड़ा पार लगा दो
कविता

बेड़ा पार लगा दो

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** करते जो दिन-रात परिश्रम, फिर भी सुख ना पाते। जिनका रक्त, स्वेद बन बहता, वे मजदूर कहाते। मजदूरों की देख दुर्दशा, पीड़ा बढ़ती जाती। मर्मांतक पीड़ा होती है, पत्थर होती छाती। पेट पीठ में मिला हुआ है, हुआ रंग भी काला। इनकी चिंता नहीं किसी को, कोई नहीं रखवाला। पीर पर्वताकार हो चली, कोई नहीं सहारा। भूखे पेट अल्प वस्त्रों में, जीवन सदा गुजारा। घर को छोड़ पलायन करते, झर झर आँसू बहते। जाड़ा, गर्मी, ओला, पाला, बिना वस्त्र तन सहते। इनका खून पसीना बनकर, खुशहाली लाता है। इनसे खुशी मिले जन-जन को, यह इनको भाता है। सदा सृजन करता रहता है, है प्रासाद बनाता। अपनी खुशहाली के सँग-सँग, सबकी खैर मनाता। श्रम सीकर से सींच- सींच कर, ऊँचे महल बनाता। गगन चूमते इन भवनों में, स्वयं नहीं रह पाता। धन वैभव ...
शतरंजी चालें
कविता

शतरंजी चालें

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन की *शतरंजी* चालें, हरदम चलना पड़ती। जैसी चाल कोई पड़ जाए, वैसा जीवन गढ़ती। भारतवंशी *चौरंगी* ने, बौद्धिक खेल बनाया। स्वस्थ मनोरंजन होता था, यह *चतुरंग* कहाया। चौंसठ खाने इसमें होते, यह *चौपाट* कहाती। सोलह-सोलह मोहरे लेकर, भिड़ते हैं दो साथी। श्वेत- श्याम इसके पाँसे हैं, जो *मोहरे* कहलाते। इन्हें खेलने वाले जन भी, गोरे काले कहलाते। *प्यादे* सा जीवन बचपन का, धीरे-धीरे चलता । चाहे जितना पानी डालो, वृक्ष समय पर फलता। युवा काल में होता मानव, बिल्कुल *घोड़े* जैसा। कर दिन रात परिश्रम भारी, खूब जोड़ता पैसा। युवा काल जाते ही जीवन, होता जैसे *हाथी*। खाता, पीता, मौज मनाता, परिजन, संगी -साथी। इसी समय मानव जीवन में, बजे खुशी का बाजा। मानव तभी समझता खुद को, है शतरंजी *राजा*। रहता है ...
जुड़े गाँठ पड़ जाती
कविता

जुड़े गाँठ पड़ जाती

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** दोनों तरफ खिचाव बहुत है, इसीलिए रस्सी टूटे। जीवन की आपाधापी में, खून मयी रिश्ते छूटे। है जीवन संग्राम जटिल अति, सब अपने में मगन हुए। धरती को धरती पर छोड़ा, समझ रहे वह गगन छुए। जड़ के बिना कोई भी पौधा, नहीं फूल फल सकता। रहे प्यार से जो अपनों सँग, कभी नहीं है थकता। खींचतान आपस में कर के, चले तोड़ने रिश्ते। जो अपनों को पीड़ा देते, खुद पीड़ा में पिसते। स्वार्थ हो गया सब पर भारी, टूटी सबसे यारी। कहीं खून के रिश्ते टूटे, टूटी रिश्तेदारी। रस्सा कस्सी की रज्जू ज्यों, अतिबल से टूटी है। उसको तोड़ रहे हैं वे, जिनकी किस्मत फूटी है। गर हिल मिल कर रहें साथ में, ताकत बढ़ जाती है। एक साथ जब चलती चींटी, पर्वत चढ़ जाती है। रिश्तों की रज्जू नाजुक है, बहुत अधिक ना खींचें। अपनेपन, स्नेह- प्यार से, ...
नित नित शीश झुकाऊँ
भजन, स्तुति

नित नित शीश झुकाऊँ

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अष्टभुजी हैं दुर्गा माता, तू सहस्त्र भुज धारी। तेरी गाथा लिखना मुश्किल, तू पृथ्वी से भारी। तू जीवन आधार सभी का, तू है सबसे प्यारी। हर युग से तू रही सीखती, तेरी महिमा न्यारी। शिव शंकर से सीखा उसने, गरल कंठ में धरना। सीखा माता पार्वती से, कठिन तपस्या करना। दशरथ नंदन से सीखा है, सुख दुख में सम रहना। सीखा भूमि सुता से उसने, लिखा भाग्य में सहना। नटनगर से सीखा उसने, कर्म करें बस अपना। केवल प्रभु की शरण सत्य है, और जगत है सपना। बरसाने वाली से सीखा, खुद बन जाना राधा। राधा में है कृष्ण समाया, और कृष्ण में राधा। लक्ष्मीनारायण से सीखा, बहु अवतारी होना। तज बैकुंठ, धरा पर जाकर, नर संसारी होना। हनुमान से सीखा उसने, काम प्रभु के आना। ऊँचा लक्ष्य रखें जीवन का, प्रभु पद प्रीति लगाना। सीता उ...
वैभव तेरा चहुँ ओर रहे
कविता

वैभव तेरा चहुँ ओर रहे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** माता लक्ष्मी दारिद्र हरो, मम जीवन में उल्लास भरो मिट जाए दुख पीड़ा सारी, वर मुद्रा में निज हाथ धरो। हे विष्णु प्रिया लक्ष्मी माता, तुमसे है दुनियाँ का नाता। जिस पर ना कृपा आपकी हो, जीवन भी उसको भरमाता। हे कमला माता कल्याणी, जीते अभाव में जो प्राणी धनवर्षा उन पर माँ कर दो, खाली झोली उनकी भर दो। तुम उनका भाग जगा दो माँ, सारा दुख दर्द मिटा दो माँ उनके जीवन में शुचिता कर, सारा संताप हटा दो माँ। हे सिंधु सुता, धन की देवी, धनधान्य युक्त जीवन कर दो निर्धन के घर धन की वर्षा, शरणागत को सुख का वर दो जीवन में कर दो खुशहाली, सज्जित हो पूजा की थाली जगमग हो सबके जीवन में, मिट जाय रात सब की काली। खुशहाली चारों ओर रहे, दारिद्र ताप ना कोई सहे हर घर में रोशन हो चिराग, वैभव तेरा चहुँ ओर रहे। परिचय :- अंजनी क...
जो तन मन को हर्षाता है
कविता

जो तन मन को हर्षाता है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** शरद-शीत का साथ सलोना, नव यौवन सा रूप धरे। हरसिंगार, मालती बेला, पुष्पों से श्रृंगार करे। शुभ्र धवल पोशाक पहनकर, जब जब सर्दी आती है। देह समूची कंपित होती, पीड़ा सही ना जाती है। कोहरा पाला शीत सखा हैं, सदा साथ ही रहते हैं। पशु पक्षी पादप मानव भी, भीषण ठंडक सहते हैं। वारिस के सँग ओले आते, शीत अधिक बढ़ जाती है। बीच शीत बारिश होती तब, सर्दी जीव चिढ़ाती है। बसे अगर परदेस पिया हों, सर्दी विरह बढ़ाती है। मनसिज पुष्प बाण से पीड़ा, और अधिक बढ़ जाती है। जिनके प्रियतम पास प्रिया के, उनको शीत लुभाती है। पा सानिध्य सजन का गोरी, चंपा सी खिल जाती है। कंबल गरम रजाई भी अब, गर्माहट ना दे पाते हैं। रिश्तों की गर्माहट पाकर, सबके तन मन हर्षाते हैं। नमन शीत है तुम को मन से, शीतलता सब जग पाता है। तुझसे ही वसंत की आशा...
हिंदी से पहचान है, हिंदी से सम्मान
कविता

हिंदी से पहचान है, हिंदी से सम्मान

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** हिंदी से पहचान है, हिंदी से सम्मान। हिंदी भारत देश है, हिंदी भारत गान। हिंदी से है मान हमारा। करें काम हिंदी में सारा। हिंदी पर ही तन मन वारा। इसके गुण गाये जग सारा। सूर कबीरा तुलसी गाते। हिंदी से ही भाव जगाते। कोयल भ्रमर पपीहा बोले। हिंदी द्वार हृदय के खोले। हिंदी हिंद देश की भाषा। हिंदी जन-जन की अभिलाषा। जीवन में हिंदी अपनाएं। इसको जीवन सूत्र बनाएं। हिंदी है अभिमान हमारा। हिंद देश है सबसे प्यारा। आओ हिंदी के गुण गाएं। सब मिल ऊँचे शिखर चढ़ाएं। हिंदी ही है जान हमारी। लगती है प्राणों से प्यारी। माँ हिंदी में लोरी गाती। झप्पी देकर हमें सुलाती। हिंदी में ही नानी मेरी, मुन्ना कह कर हमें बुलाती। फिर क्यों हम हिंदी को भूले। पर, भाषा के कर में झूले। अम्मा के माथे की बिंदी। अपने सिर पर रखती हिंदी। हिंदी भाषा है अ...
हम पंछी कहलाते हैं
कविता

हम पंछी कहलाते हैं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** हिंदू-मुस्लिम नहीं जानते, खुद को बस पंछी जानें। मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा को, बस अपना ही घर मानें। मंदिर के पीपल पर बैठे, कभी चर्च गुरुद्वारे पर। मस्जिद की चोटी पर बैठे, उड़ते एक इशारे पर। पावन मनसे कलरव करते, कभी ना बंटते कौमों में। मस्जिद द्वार तबर्रुख खाते, दाने चुगते होंमों में। मंदिर की चोटी से उड़कर, फिर मस्जिद पर जाते हैं। क्या अल्ला क्या ईश्वर मिलकर, मधुर तराने गाते हैं। जाति धर्म में नहीं उलझते, गीत बतन के गाते हैं। ओ मानव तुम बतलादो क्यों, हम पंछी कहलाते हैं।। परिचय :- अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवासी : निवाड़ी शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मे...
सत्य पथ को आजमा ले
कविता

सत्य पथ को आजमा ले

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** तू रात दिन रोता फिरे, निज़ पाप का परिणाम है। प्रारब्ध को भी समझ तू, जो पाप तेरे नाम है। तू न समझेगा अभागे, मति तेरी मारी गई। कुपथ ही अपना लिया तब, अक्ल भी सारी गई। भटकता फिरता सदा ही, छोड़कर सद्कर्म तू। जिंदगी का भी समझ ले, फल सफा और मर्म तू। जब तलक ए जिंदगी है, तू भटकता ही फिरेगा। जो ना समझेगा प्रभू को, पा पतन नीचे गिरेगा। वक्त है अब भी संभल जा, सत्य पथ को आजमा ले। जो बचा है शेष जीवन, कर दे तू प्रभु के हवाले। दौड़ कर बाहों में लेंगे, तुझको प्यारे राम जी। भुलाकर अपराध तेरे, देंगे अपना धाम भी।। परिचय :- अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवासी : निवाड़ी शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...