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Tag: अंजनी कुमार चतुर्वेदी

प्रभु स्वरूप साजन पाना
कविता

प्रभु स्वरूप साजन पाना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** स्वर्णिम स्वप्न सँजो कर बैठी, डोली में बिटिया रानी। होठों पर लालिमा मनोहर, नैनों में दुख का पानी। कभी सोचती अपने मन में, मुझे पिया के घर जाना, झाँक-झाँक पर्दे से कहती,j भैया मुझे लिवा जाना। नयन नीर हाथों से पौंछे, पिता सिसकियाँ भरता है। पहली बार पिता बेटी को, घर से बाहर करता है। प्यार सुरक्षा अपनापन दे, माता रखती थी घर में। कन्यादान पिता ने करके, सौंप दिया वर के कर में। आँखों से ओझल होते ही, व्याकुल होते थे पापा। मुझको आज बिठा डोली में, क्यों ओझल होते पापा। रुठा करती थी पल-पल में, आज क्यों नहीं मैं रूठी। कोई रोक नहीं पायेगा, सब उम्मीदें हैं झूठी। जाना होगा आज सजन घर, समझ गई बिटिया रानी। सजल नयन हैं आज खुशी से, उम्मीदों का है पानी। सोच रही थी मन ही मन में, इतने में भाई आया। नीर ...
अधोगति होती मन की
कविता

अधोगति होती मन की

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अधोगति होती पानी की, नदिया हो या झरना। गिरता है स्वभाव बस अपने, फिर क्यों चिंतन करना। नीचे से ऊपर को जाना, है उत्थान कहाता। पाने को उत्थान सदा ही, मानव स्वेद बहाता। झरना झर झर नीचे गिरता, अठखेली करता है। धुवाँधार है दृश्य मनोरम, सबका मन हरता है। हों कितनी कठोर चट्टानें, भले कोई बाधा हो। झरना कभी नहीं रुकता है, कभी न वल आधा हो। वसुधा से वसुधा पर गिरता, इसमें पीड़ा कैसी। ऊँच नीच इसमें ना होती, माँ की ममता जैसी। गिरता जो मंजिल पाने को, यह उसकी ऊँचाई। मंजिल पा जाना ही सबके, जीवन की सच्चाई। झरने सभी उतरते नीचे, ऊँचाई पाने को। ऊँचाई पाकर तत्पर हैं, फिर नीचे जाने को। यही प्रकृति का नियम साथियो, हरदम आगे बढ़ना। चींटी सम सौ बार गिरें पर, फिर फिर ऊपर चढ़ना। झरना तो गिरता उमंग से, पी...
सत्य कभी ना हारा
कविता

सत्य कभी ना हारा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** दुनिया में 'हे राम' आपकी, क्या है होने वाला। घर बाहर सारी धरती पर, नहीं सुरक्षित बाला। मन में सोच बना दी प्रभु ने, भरी प्यार से दुनिया। असुरक्षित लाचार गेह में, क्यों प्यारी सी मुनिया। भोग, भोग चौरासी पाया, तन अनमोल खजाना। धन वैभव शोहरत पाकर तू, प्रभु को ना पहचाना। मर्यादा पुरुषोत्तम बन कर, रखा मान नारी का। लाज बचाई थी कृष्णा की, धरा रूप सारी का। भूल गए अपनी मर्यादा, तुम्हें लाज ना आती। व्यभिचारी बन घूम रहे हो, है विदीर्ण माँ छाती। माँ का दूध लजाते हो तुम, बनकर नमक हरामी। तेरे सारे कर्म देखते, हैं प्रभु अंतर्यामी। वैष्णव जन तो तेने कहिए, राष्ट्रपिता थे गाते। जो जन जाने पीर पराई, उसको राम बताते। गोली खाई जब सीने पर, तब 'हे राम' पुकारा। दिखा दिया बापू ने जग को, सत्य कभी ना हारा।...
कहाँ गई अब चिट्ठी प्यारी
कविता

कहाँ गई अब चिट्ठी प्यारी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** बीत गए अब चिट्ठी के दिन। सीख लिया जीना चिट्ठी बिन। सभी लोग लिखते थे चिट्ठी। होती थी वह खट्टी मीठी। चिट्ठी सभी खबर लाती थी। हाल सभी के बतलाती थी। अच्छी बुरी खबर सब लाती। दुख में सबका मन बहलाती। अगर नौकरी लग जाती थी। खोज खबर चिट्ठी लाती थी। पोस्टमैन घर घर जाते थे। डाकिया बाबू कहलाते थे। बुरी खबर जब भी लाते थे। उन पर ही सब झल्लाते थे। धीरजवान डाकिया बाबू। खुद पर वे रखते थे काबू। पलट जवाब नहीं देते थे। बातें सबकी सह लेते थे। खबर नौकरी की लाते थे। मन वांछित इनाम पाते थे। बाहर खड़े बुलाते रहते। बरसा जाड़ा गर्मी सहते। लिखती थी बिरहन मन बातें। दिन कटता कटती ना रातें। चिट्ठी पाते ही आ जाना। साजन अब ना देर लगाना। चिट्ठी माँ लिखती लल्ला को। रोज देखती हूँ बल्ला को। रोज खेलने तू जाता था। लौट...
अनुभव भरा खजाना
कविता

अनुभव भरा खजाना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** हैं अनमोल धरोहर घर की, बूढ़ी दादी नानी। इनके पास छड़ी जादू की, दोनों बड़ी सयानी। नुस्खों का भंडार भरा है, अनुभव भरा खजाना। इनके पास दवा खाना है, नहीं वैद्य घर जाना। जीवन के अनुभव संग्रह कर, रखतीं दादी नानी। बतलातीं निरोग वो रहता, पियें गुनगुना पानी। सुबह शाम जो पैदल चलता, उसे रोग ना घेरे। वे धनवान सदा रहते हैं, जगते बड़े सवेरे। जिनको सूरज रोज जगाता, वे रोगी हो जाते। जो सूरज को स्वयं जगाते, रोग पास ना आते। जीवन जीना हमें सिखातीं, कौशल भी बतलातीं। कैसे रहे निरोगी काया, योगासन सिखलातीं। सारे घर को बाँध नेह से, हैं परिवार बनातीं। अगर रूठता कोई परिजन, जाकर उसे मनातीं। अनुशासन का पाठ पढ़ातीं, हैं सम्मान सिखातीं। कोई परिजन राह भटकता, उसको राह दिखातीं। सारे घर को एक बनाना, दादी ना...
गर्वित अटल बिहारी
कविता

गर्वित अटल बिहारी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** पैतृक गाँव बटेश्वर में ही, जन्म आपने पाया। कृष्ण बिहारी, कृष्णा देवी, का घर धन्य बनाया। पच्चीस दिसंबर सन चौविस में, जन्मे अटल बिहारी। मात-पिता परिजन हर्षित थे, छाई खुशियाँ भारी। सरस्वती शिक्षा मंदिर सँग, वे कॉलेज पढ़े थे। शिक्षा अरु कौशल के दम पर, ऊँचे शिखर चढ़े थे। नमिता और नंदिता दोंनों, गोद लिए बेटी थीं। लाड प्यार से पाला उनको, दोनों परम चहेतीं। जनमानस की सेवा करना, ध्येय बनाया अपना। निर्बल, निर्धन सभी सुखी हों, मन में देखा सपना। राजनीति में पहुँच आपने, जनसंघ को अपनाया। प्रथम सांसद बन दुनिया में, यश सम्मान कमाया। अपनी वाणी पर संयम रख, सबका मन हर्षाया। देश विदेशों में भारत का, था परचम लहराया। रहे सांसद और मंत्री, प्रखर अग्रणी वक्ता। राजनीति में जगह आपकी, कोई नहीं ले सकता। ...
सदा विजय होती है उनकी
कविता

सदा विजय होती है उनकी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिनमें भरा स्वाबलंबन है, वे मुहताज न होते। सदा राज करते दुनिया पर, कभी ताज ना खोते। जो सागर का ह्रदय चीरते, वे मोती पाते हैं। जो गहरे जाने से डरते, बैठे रह जाते हैं। जो फैलाते पंख हवा में, अंबर में उड़ जाते। जो संकल्प करें ध्रुव जैसा, ऊँचाई हैं पाते। कर प्रयास जो सागर को भी, गागर में भरते हैं। उनकी सदा विजय होती है, जो प्रयास करते हैं। रखें इरादे जो फौलादी, सदा सफलता पाते। तूफानों से जो डर जाते, वे पीछे रह जाते। परशुराम सा तेज धारकर, जो आगे बढ़ते हैं। प्रभु की कृपा प्राप्त कर पंगु, उच्च शिखर चढ़ते हैं। वादा करें स्वयं से पक्का, रक्खें अटल इरादा। सारे काम करें दृढ़ता से, मिले भाग्य से ज्यादा। जो अपना पुरुषार्थ जगाकर, पौरुष दिखलाते हैं। पथरीली राहों पर चलते, वही शिखर पाते हैं। ...
उत्तम राह दिखाते
कविता

उत्तम राह दिखाते

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सब कुछ नहीं जानता कोई, इस दुनिया में आकर। ज्ञानवान विद्वान बनें सब, गुरु से शिक्षा पाकर। चरण शरण जो गुरु की जाते, शिक्षा दीक्षा पाते। बन जाते विद्वान वहीं नर, जीवन सफल बनाते। गुरुकुल हैं शिक्षा के मंदिर, विद्या बुद्धि प्रदाता। विद्या मंदिर में जो आता, वह विद्वान कहाता। पा आशीष ज्ञान निज गुरु से, आगे बढ़ता जाता। मिल जाती जब कृपा ईश की, पंगु शिखर चढ़ जाता। वेद पुराण उपनिषद गीता, सबको ज्ञान सिखाते। ज्ञानवान विद्वान सभी जन, उत्तम राह दिखाते। वाणी और नियम संयम से, जीवन को महकायें। विद्वानों की शरण प्राप्त कर, ज्ञानवान बन जायें। अहंकार ना रहे तनिक भी, मन मानस के अंदर। अहंकार से दूर रहे जो, बनता वही सिकंदर। सही समय पर समुचित बोले, वह विद्वान कहाता। जो उद्धार करे जन जन का, सारे जग को ...
ओंस सदृश है जीवन
कविता

ओंस सदृश है जीवन

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** पत्तों और घास के ऊपर, स्वर्णिम आभा पाता। बनकर बूँद कनक सा दमके, पानी ओंस कहाता। जब जल वाष्प संघनित होती, तभी ओंस बन जाती। कभी बर्फ में यही बदलती, तब पाला कहलाती। घास पत्तियों रेलिंग छत पर, ओस दिखाई देती। सूर्य रश्मियाँ इस पर पड़तीं, मोती आभा लेती। सूरज से आभा पाती है, नष्ट उसी से होती। तेज धूप पड़ने के कारण, अपना जीवन खोती। ड्रोसोमीटर मापन इसका, सही माप बतलाता। अधिक शीत से बर्फ बने यह, तब पाला कहलाता। होती है भयभीत ओंस जब, सूर्य रश्मियाँ आतीं। बनकर बूँद बिखर जाती है, ताप नहीं सहपाती। दमक रही पत्तों के तन पर, कुछ तारों पर झूले। मोती की लडियों से दिखती, पारिजात जयों फूले। ओंस बूँद सा सबका जीवन, लंबा कभी ना होता। अल्प समय बर्बाद करे जो, अपना जीवन खोता। कभी प्यास ना बुझी किसी क...
घड़ी मिलन की आती
कविता

घड़ी मिलन की आती

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जब सौभाग्य उदय होता है, घड़ी मिलन की आती। पल-पल बढ़ती दिल की धड़कन, दूरी सही न जाती। मधुर मिलन है प्रियतम तुमसे, है उमंग निज मन में। है रोमांच हृदय में मेरे, जीवन के उपवन में। घड़ी मिलन की अति सुखदाई, हर्षित करती मन को। प्रमुदित हो मन मोर नाचता, खुशी मिले जीवन को। मिलन प्यार को उपजाता है, युगल प्रेम को जाने। पाकर प्यार, युगल हो जाते, गाते प्यार तराने। जब भी दिल में प्यार उमड़ता, मन मयूर हर्षाता। प्रेम हिलोरें उठती मन में, मन प्रसून खिल जाता। उभय हृदय में प्रेम पल्लवित, जब भी है हो जाता। दाम्पत्य स्थिरता पाता, प्रेम प्रकट हो जाता। बँधें प्यार के बंधन में जब, अपनापन आ जाता। जीवन की सूनी बगिया में, मधुर प्रेम छा जाता। झुकी नजर सजनी की कहती, दिल में उठी हिलोरें। प्रियतम हैं नजदीक ह...
देवालय
कविता

देवालय

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मन को बना स्वयं देवालय, करें विचारों को पावन। चहुँ दिश खुशहाली छाएगी, जैसे हरियाली सावन। राम दुलारे बजरंगी ने, ह्रदय चीर दिखलाया था। भक्ति भाव से सियाराम को, हृदय बीच बिठलाया था। देवालय पावन स्थल हैं, सब की पुण्य धरोहर हैं। सागर सप्त, पूजनिय पावन, सुंदर सलिल मनोहर हैं। सभी तीर्थ हैं नदियों के तट, भव्य मनोरम देवालय। स्वयं देव जिनमें स्थापित, प्रभु का घर है देवालय। प्राण प्रतिष्ठा कर देवों की, मंदिर में पधराते हैं। सुबह शाम आरती सजाकर, देव वंदना गाते हैं। देवालय में दर्शन पाकर, मन प्रमुदित हो जाता है। जीवन के जंजाल भूलकर, प्रभु से मन मिल जाता है। भागमभाग भरे जीवन में, चारों ओर तमस छाया। देवालय आकर मानव ने, अमन चैन सब कुछ पाया। शांति धाम भी हैं देवालय, प्रभु दर्शन भी होते हैं। पात...
धरती पर हरयाली होगी
कविता

धरती पर हरयाली होगी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** तस्वीरों में वृक्ष बने हैं, दीवारों के ऊपर। काटकाट वीरान किया है, बचे नहीं हैं भू पर। अंधाधुंध कटाई जारी, कोइ नहीं रखवाला। सुंदर वन संपदा मिटाते, दुख में, ऊपर वाला। प्राणवायु जो हमको देते, जीवन के संसाधन। देते शीतल छाँव सभी को, सब फल फूल सुपावन। केवल अपने हित की खातिर, वृक्ष काटते मानव। मानवता को रखें ताक पर, बन जाते हैं दानव। अरे अभागो अब मत काटो, मिलकर इन्हें बचा लो। वृक्ष मित्र बन कर जीवन को, अपना स्वयं संभालो। वरना वह दिन दूर नहीं है, पल पल पछताओगे। प्राण दायिनी जीवन वायु, बिल्कुल ना पाओगे। बिना वृक्ष के जीवन जीना, संभव कभी ना होगा। सुखमय जीवन अगर चाहते, इन्हें बचाना होगा। आने वाली पीढ़ी को हम, कैसे समझाएंगे। नहीं रहेंगे पेड़ धरा पर, फोटो दिखलाएंगे। जब जागे तब हुआ सवेरा,...
दीपावली की रंगोली
कविता

दीपावली की रंगोली

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मन के भाव कला बनकर जब, रंगोली बन जाते। रंगोली के विविध रंग तब, सबके मन को भाते। रंगोली की कला निखरती, कलाकार के कर से। रंगोली की छटा देख कर, जन-जन का मन हरसे। कई रंग से मिलकर बनता, इसका रूप निराला। सारे कौशल दिखलाता है, इसे बनाने वाला। अलग-अलग हैं भाव सभी के, अलग-अलग है बोली। अपने भावों को रँग देकर, बनती है रंगोली। कइ प्रकार बनती रंगोली, अलग अलग दिखती है, कोमलांगी अपने कर से, मनोभाव लिखती है। दीपोत्सव है पर्व अनोखा, मिलकर सभी मनाते। रंग बिरंगे दीप सजाकर, मोहक कला बनाते। सधे हुए हाथों से जब भी, रंगोली बनती है। हर कोने पर दिया सजाकर, दीवाली मनती है। दीप मालिका सजा, सजा कर, रोशन करते घर को। शांति संदेशा रंगोली का, गाँवों और शहर को। कइ वृक्षों के फूल बिखर कर, रंगोली बन जाती। ...
जीवन के संघर्ष
कविता

जीवन के संघर्ष

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जो जीवन संघर्ष रहित है, वो जीवन क्या जीना। वह तन भी क्या तन है जिससे, निकला नहीं पसीना। बिना परिश्रम के मिल जाता, जिनको चाँदी सोना। नहीं ठहरता वह जीवनभर, उसको पड़ता खोना। संघर्षों से जो घबराते, कायर कहलाते हैं। अवमूल्यन होता समाज में, मान नहीं पाते हैं। जो जीवन की बाधाओं को, लड़कर दूर भगाते। पाते वे सम्मान जगत में, सोया भाग्य जगाते। जीवन जीना सरल नहीं है, बाधायें पग पग हैं। साहस से जीवन की गलियाँ, रोशन हैं, जगमग हैं। करते हैं संघर्ष पखेरू, अंबर में उड़ जाते। मौसम चाहे भी जैसा हो, मधुर तराने गाते। छैनी और हथौड़े से जब, चोट बदन पर पड़ती। पत्थर बन जाता है मूरत, भोग प्रसादी चढ़ती। चढ़ते, चढ़ते गिरती चींटी, रुकती ना घबराती। करती जब संघर्ष अंत में, वह फिर से चढ़ जाती। पाँवों में ...
एकता में शक्ति है
कविता

एकता में शक्ति है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सदा संगठन में जो रहते, ताकतवर हो जाते। चूहे अगर एक हो जायें, बिल्ली को धमकाते। आधी सदा एक की ताकत, दो की होती चार गुना। मिल जाते दस बीस साथ में, होती तभी हजार गुना। एक अकेला थक जाएगा, मिलकर हाथ बढ़ायें। जो दुर्बल हैं उन्हें सहारा, देकर शिखर चढ़ायें। करें एकता का जो पोषण, उनको कौन डराता। ताकतवर दुश्मन भी उनको, कभी हरा ना पाता। जब भी कोइ अकेला होता, साहस घट जाता है। जैसे कोइ अकेला कागज, झट से फट जाता है। बूंदें भी नदिया में बहकर, हैं सागर बन जाती । फसीं, जाल में मिलकर, चिड़ियाँ, जाल सहित उड़ जातीं। हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, सब इस की संताने। बन जाते भारत की ताकत, सारी दुनिया जाने। रहें एकता में सब मिलकर, हिंदुस्तान हमारा। गर्व करें अपने भारत पर, है प्राणों से प्यारा। परिचय :...
माँ चंद्रघंटा
स्तुति

माँ चंद्रघंटा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** तृतीय रूप माता रानी का, घंटा चंद्र कहाता। देती माँ संतुष्टि सभी को, धन आरोग्य प्रदाता। घंटा चंद्र विराजित जिनके, माता सौम्य स्वरूपा। शरण रहें जो भक्त आपकी, दूर रहें भव कूपा। हाथ त्रिशूल धारती माता, अर्ध चंद्रमा सोहे। सौम्य स्वरूप देख माता का, जन जन का मन मोहे। अक्षत पुष्प चढ़ा माता को, दीपक ज्योति जलाते। शरण रहें जो भक्त आपकी, मनवांछित फल पाते। धनुष गदा तलवार हाथ में, अर्ध चंद्रमा प्यारा। है त्रिदेव की शक्ति समाहित, मोहित है जग सारा। केसर दूध चढ़ाकर माँ को, फल मिष्ठान चढ़ाते। पा आशीष चंद्रघंटा का, अपना वंश बढ़ाते। शहद प्रसाद परम प्रिय माँ को, पीत वर्ण है प्यारा, श्वेत वस्त्र सिंदूर पुष्प से, माँ का रूप सँवारा। सारे जग की पालनकर्ता, संकट दूर करो माँ। राक्षस पापी नीच जनों का, तु...
तुमको गाँव बुलाता
कविता

तुमको गाँव बुलाता

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जाकर जो बस गये शहर में, उन्हें शहर ही भाता। याद सताती जिन्हें गाँव की, उनको गाँव बुलाता। बावन बीघे का घर छोड़ा, छोड़ा अँगना प्यारा। जाकर बसे शहर में निर्मम, बना बसेरा न्यारा। आँगन के अमरुद छोड़कर, और छोड़ गलियारे। शीतल छाँव छोड़ अमुआँ की, शहर बसे हुरयारे। कच्चा चूल्हा धर आँगन में, अम्मा खीर बनाती। जब जब तू रूठा करता था, तुझको खूब मनाती। कल कल करती नदी गाँव की, तुझे याद ना आती। बचपन के यारों की यादें, तुझको नहीं सताती। गाँवों की गलियाँ सूनी हैं, पनघट भी सुने हैं। सपने लेकर शहर जा बसे, गए आसमां छूने। दौलत सँग रसूख पाने को, गाँवों को विसराया। कंक्रीट के अंदर रहते, जहाँ प्रदूषण छाया। कोयल मोर पपीहा मिलकर, बागों में थे गाते। घर के बाहर बड़े ताल में, छोटी नाव चलाते। भाभी ननद और बह...
चाँद मुझे भी छूना है
कविता

चाँद मुझे भी छूना है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** चेहरा नजर नहीं आता वो, उसके बिन सब सूना है। कहती थी हर बार पिता से, चाँद मुझे भी छूना है। जिस दिन घर में जन्मी बेटी, ढोल बजे ना शहनाई। सारे घर में मातम छाया, लगता था आफत आई। कानाफूसी परिजन करते, ऊपर ऊपर हँसते थे। बेटी की माता के ऊपर, मिलकर ताने कसते थे। माँ ने धैर्य नहीं खोया था, सब की बातें सुनती थी। बेटी आसमान चूमेगी, सपने मन में बुनती थी। लालन-पालन कर बेटी को, मन से खूब पढ़ाया था। खेलकूद में किया दीक्षित, सबका मान बढ़ाया था। नित नित कर अभ्यास स्वयं ही, लंबी दौड़ लगाती थी। अपने श्रम के बलबूते पर, सोया भाग्य जगाती थी। ओलंपिक में दौड़ लगा कर, सोना लाई थी घर में। मिला पदक, सम्मान उसी को, लगी सलामी घर-घर में। अब तुम ही बतला दो साथी, बेटी बेटे से कम है। बेटा बेटी एक मान लो, इस सल...
हरि अनंत हरि कथा अनंता
कविता, भजन, स्तुति

हरि अनंत हरि कथा अनंता

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** हरि अनंत हरि कथा अनंता, रामायण है गाती। श्री हरि की महिमा का वर्णन, रामचरित बतलाती। हे अनंत हे कृपासिंधु प्रभु, सब जन शरण तुम्हारी। भव बंधन को दूर करो तुम, रखना लाज हमारी। भाद्र मास की चतुर्दशी को, शुक्ल पक्ष जब आता। सारा जनमानस नत होकर, तुमको शीश झुकाता। चतुर्दशी तिथि है अति पावन, है अनंत का पूजन। चौदह गाँठ लगा धागे में, बाँह बाँधता जन-जन। कथा सुनाते नारायण की, अनंत चतुर्दशी प्यारी। वेद पुराण सभी गाते हैं, श्री हरि महिमा न्यारी। जो ध्याता अनंत फल पाता, भवसागर तर जाता। जो हो जाता लीन आप में, दुख कलेश हर जाता। रहते शेषनाग सैया पर, जग के पालन करता। चरण शरण प्रभु रहूँ आपकी, सब सुख मंगल करता। शुभ आशीष आपका पानें, पूजन सब करते हैं। हैं अनंत, प्रभु सबकी झोली, खुशियों से भरते हैं। ...
शिक्षा ज्योति जलायें
कविता

शिक्षा ज्योति जलायें

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** उज्जवल ज्ञानपुंज हैं शिक्षक, सबको राह दिखाते। सारे जग को जीवन जीना, गुरुवर सदा सिखाते। काला अक्षर भैंस बराबर, सारी दुनिया कहती। जो आबादी अभी अशिक्षित, वो यह पीड़ा सहती। अंधकार को दूर भगा कर, गुरु प्रकाश करते हैं। तम से भरे हृदय में हरदम, गुरु उजास भरते हैं। नीरस मन रसधार बहाकर, सरस भाव भरते हैं। बालक की मर्मान्तक पीड़ा, शिक्षक ही हरते हैं। मोम सदृश्य जो अपने तन को, हरदम पिघलाते हैं। स्वयं शिष्य को शिक्षा देकर, श्रीहरि दिखलाते हैं। दीप ज्योति से जलकर शिक्षक, तम को दूर भगाते। सुप्त भाव अंतस में जितने, गुरु ही उन्हें जगाते। जगत नियंता राम, कृष्ण भी, गुरु को शीश नवायें। गुरु की गुरुता करें उच्चतर, जगतगुरु बन जायें। रहे हिमालय सी ऊँचाई, सागर सी गहराई। गुरु विस्तारित नील गगन से, महि...
नमन गजानन देवा
कविता

नमन गजानन देवा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** प्रथम पूज्य मंगल करते हैं, श्री गणपति महाराज। गौरी पुत्र गजानन स्वामी, देवों के सरताज। महादेव के पुत्र कहाते, और षडानन भ्राता। जो भी शरण तुम्हारी आता, जन्म सफल हो जाता। ऋद्धि सिद्धि प्राणों से प्यारीं, मंगल ही करतीं हैं। दीन दुखी सबके जीवन में, खुशियाँ ही भरतीं हैं। मूषक पर तुम सदा विराजित, सदा सुमंगल करते। ऋद्धि सिद्धि सबके जीवन में, श्री गणेश जी भरते। विद्या के सागर गणेश जी, बुद्धि प्रदाता स्वामी। सबके, मन की आप जानते, तुम हो अंतर्यामी। दूब फूल मेवा चढ़ता है, रोली अक्षत न्यारा। पार्वती, शिव, कार्तिकेय सँग, है दरबार प्यारा। मोदक का प्रसाद चढ़ता है, चढ़े देव को मेवा। सारे काम सफल होते हैं, जो जन करते सेवा। मोदक से मधुमेह उपजता, श्री गणेश जी जानें। चढ़ता है कपित्थ अरु जंबू, है ...
पिता आसमा से ऊँचे
कविता

पिता आसमा से ऊँचे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सारी दुनिया यही मानती, है जग में सुख भारी। फिरती है हरदम तलाश में, मृगतृष्णा की मारी। सदा सर्वदा झूठा है जग, संत महंत बताते। कठिन गृहस्थी है जीवन की, ऋषि मुनि पार न पाते। मानव की विसात ही क्या है, ऋषि मुनि समझ ना पाए। है जीवन भी जटिल पहेली, ज्ञानवान सुलझाए। जब सारा घर खुश होता है, सबको लगता प्यारा। घर की शोभा माँ से होती, माँ का आँचल न्यारा। माँ की ममता है सागर सी, पिता आसमा जैसा। छाँव मिले माँ के आँचल की, दुनिया में सुख कैसा। जब माँ का साया उठ जाता, वीरानी छा जाती। बच्चों सहित पिता के ऊपर, भी आफत आ जाती। लिए बज्र सी छाती दिनभर, पिता रात को आते। बच्चों के मुख देख पिता ही, खुद माता बन जाते। रुचिकर भोजन बना बना कर, बच्चों को देते हैं। करते लाड़ दुलार, उठा फिर, गोदी में लेते हैं।...
शीश काट लाऊँगा
कविता

शीश काट लाऊँगा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** रोली चंदन अक्षत लेकर, लगा भाल पर टीका। रक्षाबंधन कर भाई का, दिया जलाती घी का। फिर मिष्ठान खिलाती उसको, मंगल कलश सजाती। जुग-जुग जिये लाडला भैया, प्रभु से खैर मनाती। बार-बार आरती सजाकर, सभी बलायें लेती। बुरी नजर न लगे भाइ को, फिर आशीषें देती। भाई का मुख देख बहनियाँ, मंद मंद मुस्काती। चुंबन लेती है कलाई का, फिर फिर गले लगाती। रुचिकर भोजन थाल लगाकर, भोजन उसे कराती। नयन नेह आँसू भर कहती, तू पापा की थाती। पापा हुए शहीद देश पर, इसको ज्ञान नहीं था। केवल आठ बरस का था यह, कोई भान नहीं था। माँ बचपन में छोड़ गई थी, इसने कभी न जाना। होश सँभाला जब से उसने, मुझको ही माँ माना। आज तलक में भी भैया को, बेटा ही कहती हूँ। भाई को बेटा कहने की, टीस स्वयं सहती हूँ। सारे रिश्ते खूब निभाती, इस पर न...
फिर भी गोरी प्यासी है
कविता

फिर भी गोरी प्यासी है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जाय बसे परदेश सजनवाँ, मन में भरी उदासी है। बाहर बरस रहा है पानी, फिर भी गोरी प्यासी है। बारिश के पानी में भीगा, घर का चप्पा-चप्पा। बैठ झरोखा रिमझिम देखे, लगे सजन का धप्पा। धरती आँगन भीग गए सब, फिर भी मन है सूखा। भीग गए गलियारे उपवन, अंतर्मन है भूखा। बिना तुम्हारे सावन आया, मन में कोई हुलास नहीं। सखियाँ सब साजन सँग झूलें, मेरे मन में आस नहीं। ओ बेदर्दी बालम तुमको, याद नहीं आती है। प्यार भरी ऋतु में भी निंदिया, पास नहीं आती है। रिमझिम बारिश आग लगाती, बढ़ती मन की प्यास है। हो सामीप्य सजन जब तेरा, दिल में बड़े उजास है। विरह वेदना से पीड़ित मन, और अधिक अकुलाता। डूब प्यार में जब अनंग ही, कामुक बाण चलाता। मोर पपीहा नहीं सुहाते, कोयल विरह बढ़ाती। है चकोर सी विरह वेदना, ऊँचे शिखर चढ़ाती...
उज्ज्वल शिक्षा ज्योति
कविता

उज्ज्वल शिक्षा ज्योति

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सबसे बुरा कलंक अशिक्षा, शिक्षा सद्गुण की जननी। जो शिक्षा से दूर साथियो, उनकी बिगड़ी है करनी। संस्कार शिक्षा से मिलते, बुद्धि प्रखर होती है। अंधकार को दूर भगाती, शिक्षा की ज्योति है। प्रथम पाठशाला बच्चे की, घर में होती पूरी। आगे की शिक्षा पाने को, हैं स्कूल जरूरी। अब विद्यालय लगे सँवरने, बच्चे भी खुश होते। खुशी-खुशी पढ़ने आते हैं, अब बिल्कुल न रोते। शिक्षा है अनमोल धरोहर, जीवन मंत्र बताती। शिक्षा ही जीवन की कुंजी, उज्जवल राह दिखाती। सबको मिले जरूरी शिक्षा, करें जतन सब ऐसा। शिक्षा जहाँ काम आती है, काम ना आता पैसा। गुरु शिष्य की परंपरा को, आगे सभी बढ़ायें। दुर्गम परिस्थिति से लड़कर, बच्चे सभी पढ़ायें। शिक्षक ही भूदेव भूमि के, शत-शत नमन करूँ मैं। गुरु जीवन के भाग्य विधाता, उर में ...