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Tag: अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”

रिश्ते कभी रिसने न पाएं
कविता

रिश्ते कभी रिसने न पाएं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** रिश्ते कभी न रिसने पायें, रिश्ते सभी निभाएं। चलो बचा लें हर रिश्ते को, हर रिश्ता अपनायें। रिश्ते हैं अनमोल धरोहर, रिश्ते कभी न टूटें। प्यार भरे रिश्ते जीवन में, जीते जी मत छूटें। नेह प्यार दें हर रिश्ते को, हर रिश्ता है प्यारा। कभी न रिसने पाएं रिश्ते, हर रिश्ता है न्यारा। संबंधों में भरें मधुरता, इनको देखें भालें। सूख गए जो प्यारे रिश्ते, उन में पानी डालें। सब मतभेद भुला कर अपने, मन को पावन कर लें। गंगाजल डालें रिश्तों में, खुशी हृदय में भर लें। नेह प्यार विश्वास भरा हो, मानव का हर रिश्ता। सदा काम आए जो सबके, कहते उसे फरिश्ता। जब रिश्तों में टूटन होती, हर रिश्ता रिस जाता। रुकती नहीं रिसन रिश्ते की, साँस नहीं ले पाता। रिसन रोक कर हर रिश्ते को, प्रेम डोर से बाँधें। रिश्...
साँसों का क्या ठिकाना
कविता

साँसों का क्या ठिकाना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** कब रुक जाएं चलती साँसें, कोई नहीं ठिकाना? चलते रहना तुम जीवन भर, कहीं नहीं रुक जाना। जब तक साँसें, तब तक जीवन, दिल की धड़कन चलती। जब रुक जाती दिल की धड़कन, तब काया है जलती। साँसों से जीवन चलता है, बिना साँस रुक जाता। नहीं ठिकाना है साँसों का, मानव समझ न पाता। मानव गर्भ छोड़कर ज्यों ही, बाहर आ जाता है। चलने लगती साँसें उसकी, जीवन पा जाता है। निर्धारित साँसें मिलती हैं, प्रभु प्रदत्त जीवन में। साँसें ही ऊर्जा भरती हैं, मानव के तन-मन में। साँसों का आना-जाना ही, जीवन कहलाता है। साँसों के रुकते ही मानव, मुर्दा बन जाता है। साँसों का सब लेखा जोखा, परमपिता रखता है। जो जैसा करता जीवन में, वैसा फल चखता है। तूने जितना जीवन पाया, उतनी साँसें तेरी। रखना साँसों को सँभाल कर, हो ना ज...
जब-जब कलम मौन होती है
कविता

जब-जब कलम मौन होती है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** कह दो अब खामोश कलम से, तुझको लिखना होगा। जीवन के संग्राम समर में, आगे दिखना होगा। जब-जब कलम मौन होती है, पाप तभी बढ़ता है। तब तब पाप निरंकुश होकर, सबके सर चढ़ता है। पेनी तलवारों से ज्यादा, धार कलम की होती। जब-जब पापाचार देखती, तभी कलम है रोती। रही समर में सदा लेखनी, सबका जोश बढ़ाया। अपने लेखन से अपंग को, ऊँचे शिखर चढ़ाया। छोटी है पर बड़ी साहसी, तेरी ताकत भारी। कभी नहीं खामोश हुई तू, कभी न हिम्मत हारी। जाने क्यों खामोश हो गई, समझ नहीं मैं पाया। क्रियाकलाप देख कलयुग के, तेरा मन घबराया। इसीलिए खामोश हुई तू, तूने लिखना छोड़ा। सच्चाई लिखने से तूने, क्यों अपना मुख मोड़ा। खामोशी को तोड़ कलम तू, लिखना सबकी पीड़ा। सभी कलयुगी पाप मिटाने, कलम उठाना बीड़ा। परिचय :- अंजनी कु...
भाव भंगिमा
कविता

भाव भंगिमा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मन की मनोदशा दिखलाने, तन मन जो करता है। भाव भंगिमा से औरों का, पल में मन हरता है। भाव भंगिमा देह जनित गुण, मानव दर्शाता है। मनोभाव मानव निज मन के, तभी दिखा पाता है। भावभंगिमा से अंतस का, भाव समझ में आता। हाव-भाव दिखलाकर सबको, सुख-दुख मनुज बताता। मन की दशा दिशा दिखलाने, जो प्रयत्न करता है। भाव भंगिमा दिखला कर ही, मन धीरज धरता है। घृणा-प्यार दिखलाती है यह, अपनापन दिखलाती। भाव भंगिमा मन की पीड़ा, बिना कहे कह जाती। भाव भंगिमा लख राघव की, जनक सुता हरषानी। गौरी पूजन से वर पाया, प्रमुदित हुई भवानी। भाव भंगिमा मोहित करती, पीड़ा भी पहुँचाती। भाव भंगिमा मानव मन को, हर्ष विषाद दिलाती। भाव भंगिमा से हम सब के, मन को मोहित कर लें। सुभाशीष पाकर अपनों का, खुशी हृदय में भर लें। ...
माँ की कैसे करें विदाई?
भजन

माँ की कैसे करें विदाई?

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** नौ दिन नवराते में माँ के, खुशियाँ खूब मनाईं। नवविवाहिता सभी बेटियाँ, जैसे घर हों आईं। सजे-धजे माता के मंदिर, अनुपम छटा निराली। कहीं शैलपुत्री, कुष्मांडा, कहीं-कहीं माँ काली। पूजन अर्चन और जवारे, शोभा अनुपम प्यारी। मनमोहक परिधान सजी माँ, करती सिंह सवारी। अलख भोर से भक्त जनों ने, पूजा थाल सजाया। ले नैवेद्य, प्रसादी, चूनर, माँ को भोग लगाया। नवमी पूज, प्रसाद लगाया, और नारियल फोड़े। होती माँ की आज विदाई, तन प्राणों को छोड़े। लगा गुलाल एक दूजे को, पर्व विदाई मनाया। अब विदाई की बेला आई, सबका मन घबराया। चरण शरण पाई जिस माँ की, शुभाशीष भी पाई। ममतामयी मातु की बोलो, कैसे करूँ विदाई? कैसे करें विदाई माँ की, है दिमाग चकराया। नौ दिन तक सेवा कर माँ-सा, जिसका आँचल पाया। सोच नहीं ...
क्या रावण मर गया बता दो?
कविता

क्या रावण मर गया बता दो?

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मिलकर उसे जलाया सबने, ठोक रहे निज छाती। क्या रावण मर गया बता दो, लाज नहीं क्यों आती? पुतला एक विशाल बनाकर, दस सिर उसे लगाए। राम बने बालक ने पल में, लंकाधीश जलाए। रावण जला, गिरा धरती पर, खड़ा हुआ पल भर में। मुझे जलाने से क्या होगा, रावण हैं घर-घर में? जिसने मुझे जलाया उस पर, प्रकरण हैं थाने में। छेड़ चुका कई बार बच्चियाँ, सकुचाता आने में। राम बने बालक से पूछा, क्यों कर मुझे जलाया? देखे नहीं आचरण खुद के, मुझे जलाने आया। हो गंभीर बताया उसने, मिलकर तुझे जलाते। दोष ढाँक लेते सब अपने, पापी तुझे बताते। दोषारोपण करें और पर, दोष न देखें अपने। मुझे जला, अच्छे बनने के, खूब देखते सपने। गुस्से में रावण झल्लाया, मैं सीता हर लाया। मेरी पुष्प वाटिका में पर, फिर भी कष्ट न पाया। पावनत...
मनमर्जी घातक होती है
कविता

मनमर्जी घातक होती है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अच्छी बात तुम्हें समझाते, कान खुलकर सुनना। मनमर्जी से नहीं रास्ता, तुम जीवन में चुनना। रावण भी मनमर्जी करके, सीता को हर लाया। मारा गया राम के हाथों, कुल का नाश कराया। कौरव दल ने मनमर्जी से, चीर हरण कर डाला। शेषसमय अपने जीवनका, किया भयंकर काला। करें अवज्ञा मात- पिता की, तिरष्कार करते हैं। कालकूट अपने हाथों से, जीवन में भरते हैं। जानबूझकर जो मनमर्जी, जीवन में करते हैं। पाप- ताप, संताप हृदय में, वे अपने भरते हैं। जिसने की मनमर्जी उसने,मर्मान्तक दुख पाया। मनमर्जी कर सारे जीवन, उसने कष्ट उठाया। मनमर्जी कर, कैकेयी ने, भेजे रघुवर वन में। पश्चाताप रहा अंतस में, दुखी रही जीवन में। मनमर्जी तुम कभी न करना, हर पल पछताओगे। सजा भयंकर मनमर्जी की, निश्चय ही पाओगे। परिचय :- अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्री...
निशिका मिलन कराती दिल का
कविता

निशिका मिलन कराती दिल का

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** है घनघोर गमों की, निशिका राह नहीं दिखती है। आज कहानी इस जीवन की, निशिका ही लिखती है। निशिका देख न तुम डर जाना, आगे चलते जाना। बीच राह में कभी न रुकना, गर मंजिल हो पाना। निशा-दिवस सुख-दुख के जैसे, आते हैं जाते हैं। गहराई में जाने वाले, ही मोती पाते हैं। आधी निशिका में ही जन्मे, कारागार कन्हाई। कान्हा पहुँच गए गोकुल में, बनी यशोदा माई। बीतेगी घनघोर यामिनी, सुखद भोर आएगी। देख अरुणिमा बाल सूर्य की, निशिका भी जाएगी। तमस उजाला दो पहलू हैं, इससे क्या घबराना। सब संघर्ष करें जीवन में, पार दुखों से पाना। स्याह पक्ष निशिका का देखा, धवल पक्ष अब जानें। चलना पड़ता हमें रात में, चाँद सितारे पानें। सदा स्वप्न आते निशिका में, नींद निशा में आती। जीवन की सारी दुख पीड़ा, निशिका दूर भगाती...
हिंदी की बिंदी प्यारी
कविता

हिंदी की बिंदी प्यारी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** भालचंद्रमा-सी शोभित है, हिंदी की बिंदी न्यारी। भारत के जन-जन को लगती, हिंदी भाषा, अति प्यारी। सुख सौभाग्य यही बिंदी है, लगी भाल पर हिंदी के। इससे ही सुहाग हिंदी का, बड़े भाग्य, इस बिंदी के। अनुपम और अनूठी बिंदी, माँ निज भाल लगाती है। नवरस से हो सराबोर यह, सुखप्रद आस जगाती है। अलंकार छंदों से सज्जित, होकर लगती मनभावन। सहज, सरल सब भाषाओं में, हिंदी भाषा है पावन। जग मंगल, करती है हिंदी, सबको आँचल में लेती। मन प्रसून को पुष्पित करती, सुरभित, केसर-सी खेती। सूर, कबीर, दास तुलसी ने, हिंदी का गौरव गाया। रामचरितमानस अति पावन, जन-जन के, मन को भाया। सागर-सी गहराई उर में, पर्वत-सी ऊँचाई है। पंत, निराला, दिनकर जी ने, इसकी महिमा गाई है। है विशाल आँचल हिंदी का, इसमें सभी समाते हैं। स...
हाथ काट लो हत्यारों के
कविता

हाथ काट लो हत्यारों के

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जोर जबरदस्ती बेटी सँग, जो करते वे पापी। जो विरोध ना करें पाप का, वे पक्के संतापी। भरा विकार हृदय में जिनके, भरी गंदगी मन में। ऐसे पापी अधम काम ही, करते हैं जीवन में। है दिमाग में विकृति जिनके, वे हैं पापाचारी। औरों को पीड़ा पहुँचाना, है उनकी बीमारी। नर पिशाच शैतान सड़क पर, खुला तांडव करते। शील हरण करके बहनों का, भय अंतस में भरते। बीच राह बेटी की अस्मत, लूट रहे हत्यारे। घटना देख बोल ना पाते, हम कितने बेचारे? कब तक जुल्म सहेगी बेटी, कोई तो बतलाओ? खून गर्म,जिंदा दिल बालो, जरा शर्म तो खाओ। खून जल गया है हम सब का, कायरता है मन में। मौत हो गई है हम सब की, बचा न कुछ जीवन में। कायर बन, जीवन जीने से, अच्छा है मर जाना। पाप देखने से अच्छा है, कालकूट बिष खाना। माता-पिता अधर्मी...
मन के पंछी
कविता

मन के पंछी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार। अब तो नीरस लगा दीखने, मुझको यह संसार। आना जाना नियम यहाँ का,फिर भी महल बनाते। कोई यहाँ ठहर न पाता, सब हैं आते जाते। मेरा घर इस पर बना है, साजन हैं उस पार। ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार। बीच भँवर में डोले नैया, मन हिचकोले खाता। दूर-दूर तक दिखे न कोई, समझ नहीं कुछ आता। बन जा मेरे प्यारे कान्हा, तू ही खेवनहार। ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार। माया दिखती बिल्कुल सच्ची, सबको उलझाती है। जीवन की है कठिन पहेली, समझ नहीं आती है। माया तो आनी जानी है, झूठा यह संसार। ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार। वशीभूत माया के होकर, ठोकर ही खाता है। खाली हाथ आगमन तेरा, खाली ही जाता है। सबके पालन हार राम हैं, जीवन के आधार। ले चल मन के पंछी मुझको, तू स...
रखें हौसला हम जीवन में
कविता

रखें हौसला हम जीवन में

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मानव जीवन कठिन पहेली, नहीं समझ में आती। सारी दुनिया की आबादी, समझ नहीं क्यों पाती? जीवन में बाधा आ जाना, सहज सरल होता है। बुद्धिमान लड़ता बाधा से, पर कायर रोता है। बिना समस्या वाला जीवन, कभी मान ना पाता। पल-पल घिरा समस्याओं से, कहते जिसे विधाता। परेशानियाँ विपदा आना, जीवन का हिस्सा है। बिना बुलाए आ जाती हैं, यह सच्चा किस्सा है। सम्मुख देख समस्या मानव, पल में घबरा जाते। बुद्धिमान जन इनसे लड़कर, सदा सफलता पाते। डटकर लड़ें समस्याओं से, समाधान पाएंगे। रखें हौसला हम जीवन में, मंजिल पा जाएंगे। ऐसी नहीं समस्या कोई, मिल न सके हल जिसका। भला चढ़े वह क्या पर्वत पर, लगे जिसे वह खिसका? ढूढें समाधान दृढ़ता से, कर विचार निज मन में। कदम सफलता उनके चूमे, पग-पग पर जीवन में। चाहे जैसी द...
खामोशी सब कुछ कहती है
कविता

खामोशी सब कुछ कहती है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** बिन बोले मन की सब बातें, खामोशी कह देती। लंबे वक्त रहे खामोशी, प्राण हरण कर लेती। गलत बात को मन में रखकर, स्वतः मौन हो जाना। धीरे-धीरे खामोशी में, बिना वजह खो जाना। कभी जिंदगी में खामोशी, अजब रंग भरती है। पास बुलाती कभी किसी को, कभी दूर करती है। खामोशी के पल जीवन में, कभी रंग लाते हैं। कभी-कभी खामोशी के क्षण, सहे नहीं जाते हैं। समझदार खामोशी लख कर, सावधान हो जाते। क्यों ओढ़ी खामोशी उसका, कारण पता लगाते? मन विरुद्ध जब कुछ भी होता, रोक नहीं हम पाते। खामोशी छा जाती मन पर, शब्दहीन हो जाते। खामोशी सब कुछ कह देती, जो सुविज्ञ वह जाने। बिना कहे जो बात समझ ले, गुणी उसी को माने। बहुत बोलती है खामोशी, जाने क्या-क्या कहती? खामोशी भी अपने भीतर, दर्द छुपाये रहती। परिचय :- अंज...
साजन कब आओगे?
कविता

साजन कब आओगे?

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** कब आओगे साजन मेरे, तुमको प्यार बुलाता? बिना तुम्हारे मेरे जी में, पलभर चैन न आता। बारिश में आने की कह कर, मुझको समझाया था। नहीं भूलता प्यार तुम्हारा, जो तुमसे पाया था। पेड़ों पर झूलों में सखियाँ, साथ पिया के झूलें। मुझको तो तेरी बाहों के, झूले कभी न भूलें। बारिश बीती, जाड़ा आया, पर तू लौट न आया। विरह व्यथा में डूबे मन को, मैंने यह समझाया। तेरे इंतजार में साजन, आँखें भी पथराईं। जाड़ा बीता बिना तुम्हारे, पलकें झपक न पाईं। पवन बसंती चली सुहानी, मेरा मन हर्षाया। तेरे बिना मोर, कोयल का, स्वर संगीत न भाया। ज्येष्ठ मास के लंबे दिन भी, मेरी पीर बढ़ाते। विरह अग्नि पर, गर्मी के दिन, लगता बदन जलाते। कब आओगे सजन मेंरे, पाती लिख बतला दो? अब बारिश आने वाली है, प्यार मेघ बरसा दो। परिचय :- अंजनी कुमार ...
हो जाता प्रभु को प्यारा
कविता

हो जाता प्रभु को प्यारा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** घर में पाला है तोता कब जगता है, कब सोता? जरा छेड़ दे गर कोई, क्रोधित पल भर में होता। मिर्च शौक से खाता है, राम-राम वह गाता है। कोई आ जाए घर में, दुल्हन-सा शर्माता है। पिंजरे में ही रहता है, मिट्ठू मिट्ठू कहता है। अम्मा गुस्सा हो जाती, बिन बोले सब सहता है। लंबी पूँछ, नहीं छोटी, खाता खूब दूध रोटी। पकड़ चोंच से लेता है, झट से गुड़िया की चोटी। पके आम जब घर आते, तोता राम खूब खाते। कोई अगर छीन ले तो, मिट्ठू जमकर चिल्लाते। पिंजरा ही जीवन सारा, धानी रंग लगता न्यारा। राम-राम रटते रटते, हो जाता प्रभु को प्यारा। जब तोता मर जाता है, सब घर शोक मनाता है, बच्चे रोते,तोते बिन, घर सूना हो जाता है। कभी न पिंजरे में पालें, छत पर ही दाना डालें। भरें सकोरों में पानी, देख-देख खुशियाँ पा ले...
अग्रगण्य बजरंगबली हैं
कविता

अग्रगण्य बजरंगबली हैं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अग्रगण्य बजरंगबली हैं, अतुलित बल पाया है। माता सीता पुत्र मानतीं, रघुवर का साया है। अग्रगण्य जो हैं दुनिया में, उनका वंदन होता। पर उपकारी का दुनिया में, है अभिनंदन होता। अग्रगण्य हैं श्री गणेश जी, घर-घर पूजे जाते। शुभारंभ में गौरा सुत को, मिलकर सभी मनाते। अग्रगण्य गुरुवर समाज में, अंधकार को हरते। सिखा ककहरा, हृदय शिष्य के, ज्ञान उजाला करते। अग्रगण्य ऋषि मुनि सन्यासी, हमें सुपथ दिखलाते। जीवन जीने का कौशल भी, हमें सदा सिखलाते। माता अग्रगण्य गुरुओं में, जीवन सुखमय करती। प्रथम पाठशाला बनाकर माँ, ज्ञान हृदय में भरती। जो सेवा में अग्रगण्य हैं, उनको मिलता मेवा। सेवक की रक्षा करते हैं, सदा गजानन देवा। अग्रगण्य बनकर जीवन को, हम खुशहाल बना लें। जो रूठे हैं स्वजन हमारे, चलकर उन्...
लागी तुझसे लगन साँवरे
कविता

लागी तुझसे लगन साँवरे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** लागी तुझसे लगन साँवरे, तेरे बिना न जीना। तेरे बिन, लगता है मुझको, काल कूट विष पीना। रहा नहीं जाता तेरे बिन, दिल में भी तू छाया। नहीं समझ में आती मोहन, मुझको तेरी माया। तुझसे लगन लगाई मोहन, तुझको अपना माना। है उद्देश्य यही जीवन का, केशव तुझको पाना। तुझको देखे बिना कन्हैया, होता नहीं सवेरा। तेरे बिना हुआ है मोहन, दुखमय जीवन मेरा। माखन मिश्री लेकर प्रतिदिन, तेरी राह निहारूँ। निष्ठुर, बेदर्दी मनमोहन, तुझ पर तन मन वारूँ। छुप जाता तू जानबूझकर, तुझको दया न आती। पागल हूँ, तेरे बिन मोहन, तेरी याद सताती। तुझसे लगन लगाकर मैंने, अमन चैन खोया है। तेरे बिना कन्हैया हर पल, मेरा मन रोया है। मनमोहन विनती है तुमसे, मुझको पास बुला लो। अपना मान कन्हैया मुझको, अपने अंक लगा लो। परिच...
सनातन की छाया
कविता

सनातन की छाया

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिसके मन में सदा सदा से, रही सनातन की छाया। सुचिता शुभता और धर्म सँग, धन यश वैभवभी पाया। हमें सनातन ने सिखलाया, चलते रहें सुपथ पर हम। नेक राह चलकर सुख पायें, नहीं रहे जीवन में गम। बने दीन हितकारी हम सब, काम सभी के हम आयें। दीन दुखी की पीड़ा हर कर, दीन बंधु हम कहलायें। सबके घर में करें उजाला, दुनिया को रोशन कर दें। अंधकार को दूर हटाकर, खुशियों से घर को भर दें। धर्म सनातन ही सिखलाता, औरों के दुख दूर करें। जिन्हें गुमान देह,दौलत का, उन सबका मद चूर करें। दें सम्मान, सभी धर्मों को, धर्म सनातन बतलाता। जो सारे जग का शुभ चाहे, सच्चा मानव कहलाता। जिसके जीवन में पल भर भी, रही सनातन की छाया। धर्म सनातन धारण करके, राम धाम उसने पाया। करें धर्म की रक्षा हर पल, मन का मैल हटा लें हम। मान गुमा...
चलो मिटा दें घृणित दायरे
कविता

चलो मिटा दें घृणित दायरे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** चलो मिटा दें घृणित दायरे, सभी एक हो जाएँ। छुआछूत का घृणित दायरा, मिलकर सभी मिटाएँ। ऊँच-नीच का भेद मिटा दें, समरसता आएगी। होगी तब समाज में समता, सबके मन भाएगी। पनप रहा है एक दायरा, ऊँच-नीच का भारी। निर्धन और धनी का अंतर, बहुत बड़ी बीमारी। कुछ दायरे सदा दुखदाई, हमें कलंकित करते। भाईचारा सदा मिटाते, जीवन में दुख भरते। करें विनष्ट दायरे मिलकर, बंधन दूर हटा दें। पड़े जरूरत घर, समाज को, अपना शीश कटा दें। नहीं दायरे कामयाब हों, जो संघर्ष बढ़ाते। मीलों दूर रहे हम उनसे, जो पीड़ा पहुँचाते। जीवन के दायरे मिटा लें, रहें सदा हिल मिलकर। मन की बगिया, महके ऐसे, सुमन सुगंधित खिलकर। भाईचारा रहे पल्लवित, प्रमुदित दुनिया सारी। सुरभित सुषमा रहे हिंद की, ज्यों केसर की क्यारी। परिचय ...
मोर मुकुट सँग होली
कविता

मोर मुकुट सँग होली

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन की मदमाती ऋतु में, जंगल लाल हुए हैं। लगता यौवन प्राप्त प्रकृति के, रक्तिम गाल हुए हैं। दावानल सा दीख रहा है, फिर भी धुआँ नहीं है। रक्तिम टेसू के फूलों को, अलि ने छुआ नहीं है। रक्तिम पुष्प, गुच्छ आच्छादित, सभी जगह लाली है। लाल चुनरिया ओढ़ यौवना, ज्यों आने वाली है। हैं पलाश के फूल अनोखे, अद्भुत इनकी रचना। रत्नारे अधरों जैसे हैं, मुश्किल इनसे बचना। पत्तों का अवसान हुआ है, पुष्प लालिमा दिखती। लाल लेखनी लेकर प्रकृति, टेसू महिमा लिखती। सब वृक्षों की हर डाली पर, पुष्प गुच्छ हैं छाए। बासंती मौसम में सजकर, राधा -मोहन आए। तन पीतांबर ओढ़ सजी है, ज्यों जंगल की रानी। श्रृंगारित रक्तिम पुष्पों से, शोभित ज्यों महारानी। ओढ़ चुनरिया धानी, पृथ्वी, सबका मन हरसाती। फूलों पर भौंरों का...
आज महानिशि पुण्य प्रदायक
स्तुति

आज महानिशि पुण्य प्रदायक

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** हे देवों के देव, सदाशिव तुम हो सृष्टि का आधार। हे त्रिनेत्र, हे महाकाल प्रभु, कृपा करो हे जगदाधार। भूत नाथ, भोले भंडारी, कोर कृपा की तुम कर दो। पार्वती पति, महाकाल तुम, खुशियाँ जीवन में भर दो। है शिव रात्रि परम सुखदायी, चहुँ दिशि मंगल छाया है। पाणिग्रहण माँ पार्वती सँग, शिव शक्ति की माया है। पाश विमोचन, हे शशि शेखर, दया दृष्टि हम पर कर दो। सूख गई निष्प्राण देह में, प्राण पिनाकी तुम भर दो। सात्विक, अष्टमूर्ति, गिरिधन्वा, मन उमंग खुशियाँ भर दो। अंधकार हट जाए उर से, कोर कृपा की तुम कर दो। आज 'महा निशि' पुण्य प्रदायक, गौरी,शंकर व्याहेंगे। मधुर कंठ से गीत ब्याह के, सभी भक्त मिल गाएंगे। हो आधार सृष्टि के तुम ही, जग के पालनहार तुम्हीं। बीच भँवर हिचकोले खाता, कर दो बेड़ा पार तुम्ही...
मर्यादा जीवन की पूँजी
कविता

मर्यादा जीवन की पूँजी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मर्यादा जीवन की पूँजी, संस्कार देती है। मर्यादित आचरण सदा ही, सद्गुण की खेती है। मर्यादा में रहे रामजी, पुरुषोत्तम कहलाते। मर्यादित व्यवहार राम का, बाबा तुलसी गाते। राम राज्य में सागर सबको, रत्न प्रेम से देते। मर्यादा में जल रहता है, वारिधि प्राण न लेते। कभी नहीं मर्यादा लाँघें, सीमा कभी न तोड़ें। धर्माचरण करें जीवन में, नहीं सुपथ को छोड़ें। मर्यादा का बाँध न तोड़ें, अपनी सीमा जाने। मर्यादित आचरण करें हम, अन्तस को पहचाने। बाँध टूटता मर्यादा का, सदा अमंगल होता। मर्यादा भंजक, जीवन में, नहीं चैन से सोता। मर्यादा को खंडित करके, कौरव दल मुस्काया। पाया दंड स्वयं माधव से, अपना वंश नशाया। मर्यादा में रहने वाले, जगवंदित हो जाते। मिलता है सम्मान जगत में, सुखमय जीवन पाते। जो मर्...
तेरी राहों में साजन हम
कविता

तेरी राहों में साजन हम

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** साजन हम तेरी राहों में, मधुरिम फूल बिछाएंगे। अपने सुंदर घर आँगन को, उपवन-सा महकाएंगे। लिख-लिख पाती हार गई में, तुझे याद ना आती है। पवन बसंती आँचल छूकर, मुझको बहुत सताती है। खबर नहीं लाती है तेरी, पास देह तक आती है। शीतल मंद सुगंध पवन भी, मुझको नहीं सुहाती है। ना मुँडेर पर काग बोलता, नहीं शगुन करती मैंना। जैसे-तैसे दिन कट जाता, मगर नहीं कटती रैना। ओ निष्ठुर, बेदर्दी बालम, तेरी याद सताती है। पागल हो जाती हूँ सुनकर, जब कोयलिया गाती है। पवन झकोरे मेरे मन को, बार-बार विचलित करते। विरह वेदना मेरे मन की, आज क्यों नहीं तुम हरते? कागा तेरी चोंच कनक से, खुश होकर मड़वा दूँगी। बड़ा कीमती एक नगीना, मैं उसमें जड़वा दूँगी। तेरे कहने से जब साजन, गेह लौट कर आएंगे। हम तेरी राहों में साज...