कामदेव सहचर बसंत के
अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत"
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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प्रथम बार रति कामदेव ने,
दिल में प्यार जगाया।
थी बसंत पंचमी पावन,
मदनोत्सव कहलाया।
यह बसंत उत्सव कहलाता,
सब मिल इसे मनाते।
कामदेव सहचर बसंत के,
ज्ञानी गुणी बताते।
जब बसंत आता बागों में,
बौर आम पर आता।
कोयल कुहू-कुहू करती है,
मोर खुशी से गाता।
यौवन में हिलोर आती है,
पोर-पोर मदमाती।
बासंती ऋतु में बिरहन को,
पिय बिन नींद न आती।
कामदेव रति बाण चला कर,
दिल में आग लगाते।
विरह चौगुना हो जाता जब,
मोर पपीहे गाते।
नख-शिख सजी यौवना कहती,
अब बसंत मदमाता।
निष्ठुर बेदर्दी आ जाओ,
अब दुख सहा न जाता।
दस कुमार चरित में होली,
मदनोत्सव कहलाती।
हुड़दंगों की टोली कर में,
रँग गुलाल ले आती।
सबको रंग लगायें दिल से,
सबको गले लगायें।
रंग प्यार का सब पर डालें,
सब पर प्यार लुटायें।
सच्चे अर्थों...