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आज फिर कोई रोया
कविता

आज फिर कोई रोया

अंकु कुमारी शर्मा गोपालगंज (बिहार) ******************** आज फिर कोई रोया फिर कोई टूटा कितनी निर्भया, कितनी प्रियंका अब किसकी है बारी न्याय का गुहार, मोमबत्ती जलाकर क्या फायदा हर रोज जलती इस नर्क में कई नारी और कितना नारियों का चीरहरण बाकी है न्यायालय भी शान्त पड़ी है, किससे अब गुहार लगाए क्यों होती है चरित्रहीन नारियां ही नारी क्या इंसान नहीं। हर युग में चीरहरण होता है नारी की अग्नि परीक्षा भी देती नारी क्या... ये नारी का अपमान नहीं। सर्व शक्तिमान मान बैठे हैं पुरुष पुरूष क्या भगवान है खुद के गिरेबान में झांक कर देख ये बल रहा अभिमान है ये ताकत दिखाते फिरते क्या इतना बड़ा शक्तिमान हो ये शक्ति नहीं है तेरी निचता से भी नीच तेरा काम है। कल तक थी खुशी की जिन्दगी कब आ जाएं निर्भया, प्रियंका की जिंदगी क्यों कदम बढ़ाते डर सहम कर? दुनिया के हजारों प्रश्नों में घिर जाती है नारी पुरूष से क्...