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ईश्वर फिर भी एक है
कविता

ईश्वर फिर भी एक है

अंकित कुमार पाँचाल जयपुर (राजस्थान) ******************** मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरिजाघर एक है। नाम चाहे अलग-अलग ईश्वर फिर भी एक है।। जात-धर्म में बंटा है जो वो इंसां भी तो एक है। जात-धर्म बांटा था हमने उसका बनाया इंसां एक है।। दो आंखे, दो कान, एक मुँह, एक नाक, दो हाथ, दो पैर वाला प्राणी हर एक है। जिसको बनाने में भूल हुई वो दिव्यांग जन भी नेक है।। कोई करे प्रे, कोई करे अरदास कोई करे प्रार्थना तो कोई करे दुआ पर इन सबको सुनने वाला वो ऊपरवाला भी एक है। कण-कण में है जो समा हुआ वो सबका मालिक एक है।। अलख निरंजन है जो वो उसके रूप अनेक है। नाम चाहे अलग-अलग ईश्वर फिर भी एक है।। परिचय :-  अंकित कुमार पाँचाल निवासी : जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी ...