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Tag: स्वाती जितेश राठी

दायित्व
जीवन मूल्य

दायित्व

स्वाती जितेश राठी नई दिल्ली ******************** बस बहुत हुआ अब ओर नहीं ना एक शब्द ना एक और दायित्व कुछ नहीं। कुछ नहीं करेंगे अब मेरे माँ पापा किसी के लिए भी सिवाय नानी माँ के क्योंकि वो उनकी जिम्मेदारी है जो उन्होंने अपने पूरे मन से ली है और सच्चे मन से निभा भी रहे है। पर आप लोग उनकी जिम्मेदारी नहीं है फिर भी वो आप लोगों को निभाते आ रहे है पर बस अब ओर नहीं। देख मीनल तुझे बीच में पड़ने की कोई जरूरत नहीं। ये तेरी नानी मेरी भी माँ है मौसी हूँ मैं तेरी। इस घर पर मेरा भी बराबर का हक है। हक के लिए कौन मना कर रहा मौसी लेकिन दायित्वों का क्या वो भी तो बराबर है आपके और मेरी माँ के अपनी माँ यानि मेरी नानी के लिए। वो क्यों भूल जाते हो आप? खैर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप केवल हक जताना जानते हो फर्ज निभाना नहीं। वो आपके और नानी जी के बीच की बात है लेकिन मेरे माँ-पापा को परेशान करने या उनकी बे...
जर्जर घर
लघुकथा

जर्जर घर

स्वाती जितेश राठी नई दिल्ली ******************** कभी-कभी कहानियां इंसान नहीं सुनाते। टूटे, उजड़े घर जो कभी शोरगुल से भरे थे भी कहानियां सुनाते हैं। जहां कभी बच्चों की किलकारियां गूंजती थी, जहां कभी पायल की झंकार सुनाई पड़ती थी ..... आज वो घर अकेला, जर्जर खड़ा है। अपने मायके के घर के बाहर आँगन में खड़ी वान्या यही सोच रही थी कि एक समय था जब यहाँ उसकी और भाई की हँसी, मस्ती और लड़ाईयाँ गूँजा करती थी। पापा और मम्मी का लाड़, दुलार, नसीहतें, प्यार भरी डाँट बरसती थी। हर त्यौहार पर घर सजता था। पकवान बनते थे। गीत, संगीत ,खुशियाँ होती थी। दोस्तों की टोली की शैतानियों, पड़ोस की आँटीयों की बातों से गुलजार इस घर की शामें होती थी । फिर पापा के ऑफिस से आने के बाद दिन भर के किस्सों की महफिल सजती थी। माँ के हाथ के गरम खाने के स्वाद और पापा की सीख भरी कहानियों के साथ निंदिया की नगरी की सैर की जाती थी ...