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प्यासा परिंदा
कविता

प्यासा परिंदा

सौरभ समर महराजगंज (उत्तर प्रदेश) ******************** यह सोच भटका हुआ मंजिल परख जायगा कही ना कहीं तो हर सड़क जायगा सबको पता है उसका ठिकाना घोसला ही होगा परिंदा आसमा छूते छूते जब थक जायगा चिंगारी दरकार नही मोहब्बत ए आतिश को महज एक दीदार से ये शोला भड़क जायगा बेअदब है ये लोग नजरे नही झुकायेंगे बदन से जो दुप्पटा सरक जायगा किसी बेघर को घर मे सुलाकर कर के देखो घर का कोना कोना महक जायगा और छज्जे पर रख देना आब का प्याला कोई प्यासा परिंदा चहक जायगा परिचय :- सौरभ समर निवासी : महराजगंज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवान...